चार ग़ज़लें ~ प्राण शर्मा | #Ghazal : Pran Sharma #Shair


चार ग़ज़लें 

~ प्राण शर्मा

खामियाँ सबकी गिनाना दोस्तो आसान है / खामियाँ अपने गिनाना दोस्तो आसां नहीं


परखचे   अपने  उड़ाना   दोस्तो  आसां  नहीं

१३ जून १९३७ को वजीराबाद में जन्में, श्री प्राण शर्मा ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम ए बी एड प्राण शर्मा कॉवेन्टरी, ब्रिटेन में हिन्दी ग़ज़ल के उस्ताद शायर हैं। प्राण जी बहुत शिद्दत के साथ ब्रिटेन के ग़ज़ल लिखने वालों की ग़ज़लों को पढ़कर उन्हें दुरुस्त करने में सहायता करते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि ब्रिटेन में पहली हिन्दी कहानी शायद प्राण जी ने ही लिखी थी।
संपर्क: sharmapran4@gmail.com
आप  बीती  को  सुनाना दोस्तो  आसां नहीं

खामियाँ  सबकी  गिनाना  दोस्तो आसान है
खामियाँ  अपने  गिनाना   दोस्तो आसां नहीं

तुम  भले ही मुस्कराओ साथ बच्चों के मगर
बच्चों  जैसा  मुस्कराना दोस्तो  आसां   नहीं

दोस्ती कर लो भले ही हर किसी से शौक़ से
दोस्ती  सबसे  निभाना   दोस्तो  आसां  नहीं

रूठी दादी  को  मनाना  माना  के  आसान है
रूठे  पोते  को  मनाना   दोस्तो  आसां   नहीं






फूलों पे बैठी  तितलियाँ तुम नित उड़ाते  हो
उफ़! नन्हीं-नन्हीं  जानों को नाहक सताते  हो

रहने  दो  मन  को  फूल   सा  नादान  दोस्तो
पत्थर की तरह सख्त क्यों उसको  बनाते हो

कोई तुम्हें सुनाये भला  क्यों  पते  की  बात
तुम हर किसी की बात की खिल्ली उड़ाते हो

अपनी हँसी को मन में  ही रक्खा करो जनाब
तुम हँसते  तो  लगता  है  सबको बनाते  हो

गंगा   का  साफ़  पानी  है  पीने   के   वास्ते
तुम  हो कि मैल जिस्म की उसमें मिलाते हो




कुछ  शर्म कर तू उनकी निगाहों  के  सामने
भद्दे   मज़ाक   करता  है   बूढ़ों  के   सामने

बूढ़ों  को घूरता है , अरे  इतना  तो  विचार
जुगनू  की क्या  बिसात चिरागों  के सामने

शमशान हो न कोई किसी घर के आसपास
नचती है मौत  हर  घड़ी  आँखों के  सामने

ये सोचिये ,ये समझिए ,  ये मानिए जनाब
झगड़ा न घर में कीजिये  बच्चों के  सामने

छाती  भले  फुलाइये  घर  में  हज़ार  बार
झुक कर  ऐ 'प्राण'  जाइए संतों के सामने




रोती   है ,  कभी   हँसती -  हँसाती   है   ज़िंदगी
क्या -क्या  तमाशे जग को  दिखाती  है  ज़िंदगी

कोई    भले  ही   कोसे  उसे  दुःख   में  बार-बार
हर     शख़्स  को   ऐ  दोस्तो  भाती  है   ज़िंदगी

दुःख   का   पहाड़   उस  पे   न  टूटे  ऐ  राम  जी
इन्सां   की   जान   रोज़  ही  खाती   है   ज़िंदगी

खुशियो,  न जाओ छोड़  के इतना  करो  खयाल
घर  -  घर  में   हाहाकार    मचाती   है   ज़िंदगी

ऐ `प्राण` कितना खाली सा लगता है आसपास
जब  आदमी  को   छोड़   के   जाती   है  ज़िंदगी

००००००००००००००००

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5 टिप्पणियाँ

  1. गज़ब ... जिंदाबाद... चारों गजलों में कमाल किया है प्राण साहब ने... हर ग़ज़ल सरल शब्दों में ... गहरी बात लिए ... सिल में सीधे उतर जाती है... बधाई प्राण साहब को इस ग़ज़ल की ...

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  2. गज़ब ... जिंदाबाद... चारों गजलों में कमाल किया है प्राण साहब ने... हर ग़ज़ल सरल शब्दों में ... गहरी बात लिए ... सिल में सीधे उतर जाती है... बधाई प्राण साहब को इस ग़ज़ल की ...

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-07-2015) को "कौवा मोती खायेगा...?" (चर्चा अंक-2043) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-07-2015) को "कौवा मोती खायेगा...?" (चर्चा अंक-2043) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. बहुत सुंदर घलें कही हैं आपने...

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