अशोक चक्रधर — सम विषम दिल | Ashok Chakradhar Ki Hasya Vyang

सम विषम दिल 

— अशोक चक्रधर

अशोक चक्रधर — सम विषम दिल | Ashok Chakradhar Ki Hasya Vyang #शब्दांकन

—चौं रे चम्पू! सम और विसम के चक्कर में दिल्ली के दिल कौ का हाल ऐ?

—दिल में सम-विषम संख्याएं नहीं होतीं, सम-विषम स्थितियां होती हैं। विषम स्थिति सब जानते हैं सम स्थितियों को सुखद सकारात्मक मान लीजिए। वैसे भी अब सम-विषम छोड़कर, ईवन-ऑड कहिए। हिंदी का पूरा संचार-तंत्र प्रारम्भ में सम-विषम बोलता था। अचानक उसने शुरू कर दिया ईवन और ऑड। इस अनावश्यक अंग्रेज़ी से हमें कैसे बचाए गॉड! जहां तक दिल्ली के दिल की पसंद-नापसंद का सवाल है, दिल्ली का दिल समवादी है। यह नहीं कहा जा सकता कि शायरों की तरह बेइंतहा ग़मगीन है। ग़म के बिना कैसी शायरी? जिसके दिल में सुकून हो, वह शेर कह ही नहीं सकता। फिर भी स्थितियां इतनी सरल नहीं हैं चचा!

—तौ तू सरल कद्दै!

—सरल नहीं हो सकतीं। दिल सम और विषम नहीं, विषमात्मक सम और समात्मक विषम हो सकता है। पाकिस्तान के एक मुशायरे में एक शेर सुना था। एक बार में ही याद हो गया, ’दिल अगर दिल है तो दिलबर के हवाले कर दे, अगर शीशा है तो पत्थर के हवाले कर दे।’ इसमें समात्मक विषम स्थिति है। दिल अगर दिल है और तुमने दिलबर के हवाले कर दिया है तो फिर ग़म की कोई स्थिति ही नहीं रह गई। देकर तू निश्चिंत, पाकर वो निश्चिंत। निश्चिंत भाव के बाद सम स्थितियां होती हैं, विषम हो ही नहीं सकतीं। लेकिन, अगर दिल दिलबर केजरीवाल के हवाले नहीं किया, मुसीबतों मजबूरियों के कारण, भुनभुनाते और कलपते रहे तो आपका वह दिल शीशे का है। फेंककर मारिए उसे पत्थर पर। कोसिए केजरीवाल को कि हाय हमारे काम चूर-चूर हो गए, हमारा रोजगार चूर-चूर हो गया, हमारी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो गई, हमारा स्वावलंबन जाता रहा। गाड़ी खड़ी है और हम खड़े है। पड़ा हुआ है एक टूटा हुआ दिल।

—तैनैं एक भड़िया सेर कहां खर्च कद्दियौ!

—यही तो शेर की ख़ूबी होती है चचा कि अलग नज़र से देखो तो अलग अर्थ देगा। आपने दिल की नहीं, दिल्ली के दिल की बात पूछी थी। दिल के सारे शेर इस दिल्ली पर लागू हो सकते हैं। व्याख्या करने वाला होना चाहिए। दिल से पूरी उर्दू शायरी भरी पड़ी है।

—तौ फिर और सेर सुना!



—नज़ीर का एक शेर है, ‘बाग़ मैं लगता नहीं, सहरा से घबराता है दिल; अब कहां ले जाके बैठें ऐसे वीराने को हम।’ बाग़ में क्यों लगेगा, जिनके लिए बागो-बहार चाहिए, वे बच्चे घरों में बैठे हैं।  उनकी बसों को भी लगा दिया। उन यात्रियों को कैसा लगता होगा कि जिन बसों में बच्चे पढ़ाई करने जाते, उनमें हम लदे हुए हैं। सहरा में जाने से इसलिए घबराते हैं कि मैट्रो में रिकॉर्डतोड़ भीड़ है। वीरान दिल को कहां ले जाकर बैठाएं? रोज़गार, न कारोबार, न कोई यार! इसीलिए अहमद फराज़ ने कहा था, ‘काश तू भी आ जाए मसीहाई को, लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे।’ यह एक समात्मक विषमता का शेर है। कोई ऐसा भी आए जो अपनी कार में बिठाकर ले जाए। एक और सुनिए। वसीम बरेलवी कहते हैं, ‘मेरे दिल की ग़म-पसन्दी तो ज़रूर कम न होगी, मगर उनकी आरज़ू है तो ये आंख नम न होगी।’ तुझे ग़म पसन्द हैं, पर अगर उन्होंने कहा है कि इस कष्ट को कष्ट न मानें तो आंखों को नम नहीं करेंगे। यह एक समझौतावादी दृष्टिकोण है। भैया, पन्द्रह तारीख तक सह लो।

—हर सेर एकई नजर ते देखि रह्यौ ऐ तू?

—शेर को सुनने या पढ़ने वाला अपने ही दृष्टिकोण से उसका अर्थ लगाता है। ऐसा न होता तो शायरी इतनी विकसित कभी न होती। एक शेर है, पता नहीं किसका है ‘रस्मे-मेहमानवाज़ी हम निबाहें कब तलक, दिल वो बस्ती है जहां रोज़ ही ग़म आते हैं।’ पन्द्रह तारीख के बाद ग़म आना बन्द हो जाएंगे, ऐसा नहीं है फिर भी पड़ोसियों की मेहमानवाज़ी कर रहे हैं। एक और सुन लीजिए, ‘दिल है कि ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह, या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं।’ या तो भैया प्रदूषणमुक्त दिल्ली कर दे या ऐसा कर दे कि यहां से सब भाग खड़े हों। दिल्ली कई बार उजड़ी है, इस बार प्रदूषण के नाम पर सही।

००००००००००००००००


ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025