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योगिता यादव |
बदलते समय पर कहानी — बन्नो बिगड़ गई — योगिता यादव
बिगड़ना और सुधरना का माने वक़्त के साथ बदलता जाता है। कहानी कहे जाने का अंदाज़ भी इस वक़्त के बदलने के साथ बदलना चाहिए। ‘बन्नो बिगड़ गई’ कहानी में इन बदलावों को योगिता यादव ने जिस महकते चुहल के साथ अपनाया है वह रसमय है, आनंद उठाइए कहानीकार की किस्सागोई का
भरत एस तिवारीबन्नो बिगड़ गई
: योगिता यादवपहले से तेज चलने लगी है, कुछ ज्यादा बोलने लगी है । जब से बन्नो गोरखपुर से नोएडा आई है, एकदम बदल गई हैं। हर बात पर ऐसे अड़ जाती हैं कि जैसे आज ही सब तय हो जाना है, कल अगली सुबह नहीं होगी। मम्मी तो मम्मी, बहसबाजी में पापा को भी नहीं बख्शती। जिनसे कभी देह बचाकर चला करतीं थी, अब उनकी आंखों में आंखें डालकर बात करने लगी हैं।
जब तक पढ़ रहीं थीं, पापा के एटीएम पर पल रहीं थीं तब तक तो फिर भी हालात संभले हुए थे, पर जब से नौकरी में आईं हैं रंग ढंग और भी बदल गए हैं। चलती नहीं हैं बस जैसे उड़ती फिरती हैं, हवा से बातें करती हैं। पहले छुट्टियों में घर चली जातीं थीं, तो बदले रंग ढंग दिखते रहते थे और मम्मी उन्हें झाड़ पोंछकर ठीक कर देतीं थीं। पर अब तो कहती हैं कि ‘’छुट्टी ही नहीं मिलती, आप लोग ही आ जाइए। हमने अब अलग फ्लैट ले लिया है किराए पर। बताइए मां-बाप के प्यार के सामने अलग फ्लैट की धौंस।‘’
कमबख्त नोएडा में फ्लैट भी तो इतने हैं कि झट मिल जाते हैं, अकेली रहती लड़कियों से भी कोई कुछ नहीं पूछता।
अकसर मां बेटी में नए पुराने को लेकर बहस हो जाती। गांव पंचायत, जिला कलैक्टर से लेकर मंत्री संतरी तक को बन्नो धता बेतीं। मम्मी-पापा के बनाए, जमाए नायकों को छोड़ बन्नो हर बार देश-विदेश के नए-नए नायकों के बारे में बात कर रही होतीं। फेसबुक, इंस्टा, स्नैपचैट जैसी अनाप-शनाप चीजों में घुसी अपना टाइम और दिमाग दोनों खराब करती रहतीं।
इस बार तो मम्मी का कलेजा धक् हो गया, जब बन्नो ने उन्हें मम्मी-पापा नहीं मां-पिताजी कहकर संबोधित किया। उसी मोबाइल पर जो पापा ने उन्हें फर्स्ट क्लास डिग्री पूरी करने पर गिफ्ट किया था – कि जैसे बता रहीं हो कि आप लोग इतने पुराने पड़ गए हैं कि मम्मी-पापा कहलाने की बजाए, मां-पिताजी जैसे पवित्र-वात्सल्यमयी संबोधनों में ही आपको संरक्षित कर देना चाहिए।
गोरखपुर और नोएडा में ऐसा क्या अंतर है जो बन्नो हाथ से निकली जा रहीं हैं। यह तो वही जाने जो पहले गोरखपुर में रहे बीस साल, फिर नोएडा में रहे। यानी सिर्फ गोरखपुर में रहना या सिर्फ नोएडा में ही रहना काफी नहीं है, दोनों की समझ होनी चाहिए। मां-पिताजी यानी मम्मी-पापा की समझ से तो अब बात सीमा से बाहर हो रही थी।
रही सही समझ पर पानी बन्नों ने फेर दिया, बोलीं- ‘’ आप नहीं समझेंगे। शहर से कुछ नहीं होता, सब सोच से होता है। माहौल से होता है। हम भी रहें हैं न गोरखपुर में बीस साल। और अब पांच साल से ही तो नोएडा में है। उससे क्या, बदलाव विचारों का होता है शहर का नही। छोडि़ए आप, आप लोग नहीं समझेंगे।‘’ यह नहीं समझना ही तो परेशान किए डाल रहा है।
शहर और विचार की गड्डमड्ड से परेशान तो ज्यादा पिताजी थे पर पहल मां ने की।
दोनों को समझने के लिए मम्मी ने तय किया कि हो आएं हम भी नोएडा कुछ दिन। देखें जाकर कैसे और क्यों बदल गईं है हमारी बन्नो इतनी। कोई और तो नहीं जो भोलीभाली बन्नो को उल्टी पट्टी पढ़ा रहा है। बेगाने देस की हवा का कोई भरोसा नहीं। सो मम्मी ने बिना ज्यादा देरी किए गोरखपुर से नोएडा के लिए गाड़ी पकड़ ली।
मम्मी को लिवाने बन्नो भी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर समय रहते पहुंच गई। झट दौड़कर गाड़ी से सामान उतारा, कुली के कंधे पर लदवाया और कैब बुक कर घर ले आईं। वीकेंड था, सो बन्नो चाहती थीं कि मम्मी को आसपास के मॉल घुमा लाएं। पर मम्मी तो अभी तक बन्नो के कपड़ों में ही अटकी पड़ी थीं। सुविधाएं तो सब बढि़या हैं, लड़की पहले से ज्यादा सयानी भी हो गई है, बस पहनने-ओढ़ने का ढंग भूल गई हैं।
…ये भी कोई बात है कि हॉजरी का पजामा पहने स्टेशन चली आईं।
एक भी ढंग का सलवार सूट बन्नो की अलमारी में नही है!
ऑफिस भी जाती हैं तो वही बेमेल अजब ढंग के कपड़ों में…।
मां के टोकने पर एक दिन सूट पहना तो उसमें चुन्नी नहीं और सलवार…., सलवार तो छोडि़ए पजामी भी पूरी नहीं, कह रहीं थीं कैप्री है, यहीं तक होती है। उसमें मोरनी से पैर अलग चमक रहे थे। मम्मी ओढ़नी के बगैर बन्नों का कसा सीना देखें कि कैप्री से झांकती पिंडलियां। हे राम…,
तो तुरत फुरत राय ये बनी कि
‘’इससे तो अच्छा है एक अच्छा लड़का देख कर बन्नो का ब्याह कर दिया जाए।‘’
घर आए लड़का-लड़की सब तरह के दोस्तों के साथ जब बन्नो को मम्मी ने एक ही प्लेट में एक-दूसरे की झूठी चम्मच और निवालों को झपटते देखा, तब तो विवाह वाली राय और पक्की हो गई।
इतने उच्च कुल के ब्राह्मण परिवार की इकलौती संतान जाने किस किस की जूठन खा रही है।
अजब ढंग से रंगे बालों वाले लड़के-लड़कियों को देखकर मम्मी पूछना चाहती थीं कि कौन किस जात का है, कहां का रहने वाला है, किसके पापा क्या करते हैं पर बन्नो ने ऐसे आंखें तरेरी कि मम्मी चुप लगा गईं।
हालांकि मम्मी ने यह सब तो पापा को नहीं बताया पर इतना जरूर कह दिया कि शादी विवाह अपने समय से हो जाए वही अच्छा है। इसलिए बन्नों के लिए घर-वर खोजना शुरू करें।
फोन पर और बता भी क्या सकती थीं! इतने बरसों के संग-साथ में मौन की भाषा समझनी भी आ ही जाती है तो पापा भी बिना कुछ ज्यादा कहे कुछ-कुछ हालात समझ ही गए।
अब पढ़ी–लिखी, लाड़ से पली और अब तो कमाउ भी हैं, बन्नो को ऐसे ही किसी के पल्लू तो बांध नहीं सकते सो पापा ने सब नाते-रिश्तेदारों की मार्फत बन्नो के लिए घर-वर तलाशना शुरू किया। बहुत खोज बीन करके एक लड़का मिल भी गया, आर्मी में किसी बड़ी पोस्ट और अपने ही जिले में तिवारी जी का लड़का। कहावत भी है न ‘एक तिवारी सब पर भारी’, उस पर आर्मी की एजुकेशन कोर में बड़ी पोस्ट पर, घर का इकलौता लड़का। दस लाख में बात तय हुई। इससे कम में कहां मिलेगा अच्छा लड़का।
मम्मी से कहा कि बन्नो का एक फोटो भिजवा देवें।
पापा ने तो कह दिया पर मम्मी से पूछो कि यह भी कितना मुश्किल काम था। सारे दिन तो बन्नो मोबाइल से फोटो खींचती रहती है पर जब फोटो देखने बैठे तो एक भी ढंग की नहीं। एक भी फोटो में बन्नो का मुंह सीधा नहीं था। शादी के लिए कोई ऐसी फोटो भेजी जाती है?
कसी साड़ी, सुलझे बालों में वो तो ऐसी होनी चाहिए कि दसों उंगलियां सामने दिख रहीं हो, कि जी सब ठीक ठाक है, लड़की पूरी साबुत है।
घर आने वाले किसिम किसिम के दोस्तों से मनुहार कर मम्मी ने बन्नों को एक ढंग की फोटो खिंचवाने और भिजवाने के लिए राजी तो कर लिया पर बन्नो यहां भी अड़ गईं कि हम भी लड़के की फोटो देखेंगे। बिना देखे ऐसे ही किसी के साथ जिंदगी बिताने का फैसला कैसे कर सकते हैं।
मम्मी ने बहुत समझाया कि गोरखपुर जाते ही फोटो भिजवा देंगी, तुम्हारे पापा देखभाल के ही हां किए हैं। पर मान जाएं तो बन्नो ही क्यों।
खैर जैसे तेसे फोटो मंगवाई गयी पर यह तो मामला और गड़बड़ा गया। बन्नो तो फोटो देखकर और भी बिदक गईं। बोली ‘’लड़का गंजा है, हम नहीं करेंगे इससे शादी।‘’
माने वर, घर, पैसा, पद, प्रतिष्ठा, पोस्ट, कुल, जात कुछ नहीं!
बस एक ही रट लगाए हैं कि “हम नहीं करेंगे, शादी, लड़का गंजा है। अभी से ये हाल है तो बाद में क्या होगा।“
मम्मी ने कितना समझाया कि लड़का गंजा नहीं है बस जरा माथा चौड़ा है। यह तो किस्मत वाला होने की निशानी है। पर बन्नो कहां मानने वाली थीं अड़ गईं तो अड़ गईं।
अब क्या करें अपनी चिरैया जीवन भर दुखी रहें यह भी तो नहीं देख सकते न, सो बहुत भारी मन से रिश्ता उलटाया।
पापा का भी मन बहुत भारी हो गया। बरसों से कमायी प्रतिष्ठा को अपनी ही औलाद ने बहुत गंभीर चोट पहुंचाई। यही होता आया है, यही हुआ । पर क्या करते, बुझे मन से फिर से जुट गए वर-घर तलाशने के पुण्य कर्म में। लड़की का बाप होना कोई आसान काम नहीं है।
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इस बार पापा ने कुल, गोत्र, वर, घर, पद पैसा के साथ लड़के के बालों पर भी गौर करना शुरू कर दिया। अब उसी लड़के से कोई बात आगे बढ़ाएंगे जिसके सिर पर घने बाल हों।
“लड़की है, अभी लड़कपन हैं, कुछ नहीं समझती हैं। सो यह सब नखरे कर रहीं हैं।
और अब तो कमाने लगी हैं, अजबै रंग ढंग हैं।“ मम्मी नर्म-नर्म शब्दों के मरहम पापा के मन पर रख रहीं थी कि बन्नो ने नौकरी छोड़ दी।
पूछा तो बोलीं – ‘’बोर हो गए थे, अब नई खोजेंगे।‘’
“बताइए साल भर में ही बोर हो गईं। नौकरी कोई आसान चीज है? ऐसे ही मिल जाएगी? लोग लाख-लाख रुपया लिए खड़े रहते हैं…
आपके पापा ने जिस विभाग में ज्वाइन किया, पोस्टिंग भले ही बदली हों पर विभाग नहीं बदला और वहीं से पूरी मान प्रतिष्ठा के साथ रिटायर हुए। और ये हैं कि एक ही साल में बोर हो गईं।”
मम्मी का कलेजा तो बहुत कुढ़ा पर क्या करती, बिटिया से जबरदस्ती तो नहीं कर सकती थीं न।
पर ये क्या !
मम्मी–पापा पहले जितने परेशान हुए थे अबकी बार उतने ही हैरान भी थे और बन्नो पर हृदय से गद्रगद् हुए जा रहे थे, जब बन्नो ने बताया कि उन्हें एक नई कंपनी में और भी ज्यादा तनख्वाह पर नौकरी मिल गई है। मां-बाप के लिए इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है कि उनकी संतान की प्रतिभा का लोग इतना लोहा माने कि झट दूसरी नौकरी ऑफर कर दें।
प्रतिभाशाली हैं हमारी बन्नो, तभी न पद, पैसा को कुछ नहीं समझ रहीं, पापा ने कहा। अरे वहां बहुत नौकरी रहती हैं।
बन्नो की तनख्वाह जैसे जैसे बढ़ती जा रही थी पापा भी कुछ बजट गिनने देखने लगे थे।
तो बहुत देख दाख के अबकी जो लड़का पसंद आया उसके सिर पर बाल थे। काले घने। फोटो में तो पूरे दिख रहे थे, पापा ने सोचा एक बार खुद देखकर तसल्ली कर लें। लड़का बैंगलोर में नौकरी कर रह था बढिया पैकेज पर। आईआईटी पास किए, उस पर बात व्यवहार में भी बढिया तो पापा को लड़का एकदम से पसंद आ गया। पापा खुश कि इस बार वर घर और सर सब बढि़या है मम्मी को बताया तो मम्मी भी खुश। फोटो देखकर तो इस बार बन्नों भी खुश हो गईं।
बस बजट थोड़ा बढ़ गया। अबकी बार बात 15 लाख पर पक्की हुई। और तय हुआ कि अब तो सरकार, कानून सब तिलक विवाह में भी बेकार की दखलंदाजी करने लगा है, सो पैसा इस सबसे पहले ही पहुंचा दिया जाए। वो भी कैश। गहने कपड़े सब तभी बढि़या से तैयार हो सकते हैं।
बन्नो चाहती तो इस कैश के लेनदेन पर अड़ सकती थीं, पर आईआईटी लड़का देख कर इस बार बन्नो कुछ स्वार्थी हो गई। लव एट फर्स्ट साइट जैसा कुछ अनुभव किया बन्नो ने। पर बात एक और भी थी, पिछले कुछ महीनों से वे जिनके इश्क में थीं, उस लड़के ने साफ कह दिया था कि हमारे बीच सबकुछ हो सकता है, बस विवाह नहीं हो सकता। तो लड़के के इस साफगोई पर बन्नो इतनी दुखी थीं कि कुछ भी करके उसे दिखा देना चाहती थीं कि वे उससे बेहतर लड़के के लिए डिजर्व करती हैं। इसका पैकेज और लुक बन्नो के बॉयफ्रेंड से इक्कीस ही था।
इस बार तो बहुत कायदे से खिंचवाई गई फोटो बन्नो ने भिजवाई मां के हाथ। हाथों हाथ रिश्ता पक्का भी हो गया। सगाई और विवाह की तारीख भी निकाल ली गईं। यह काम माता-पिता के स्तर पर पूरा हो रहा था और भावी वर-वधु ने अपने स्तर पर एक – दूसरे को फेसबुक पर खोज निकाला। एक-दूसरे का स्टेटस और फोटो लाइक, कमेंट करने से शुरू हुई बात अब इनबॉक्स में लंबी चैट पर आगे बढ़ने लगी। दोनों ने एक-दूसरे से पूछा कि क्या इससे पहले भी आपने किसी से इस तरह रात भर लंबी चैट और बातचीत की है ?
दोनों ने ही इस सवाल को बहुत आत्मविश्वास से खारिज कर दिया। अब क्योंकि बन्नो ने झूठ ही ना कहा था तो उन्हें भी इस बात का पूरा विश्वास था कि अरुण कुमार शुक्ला ने भी झूठ ही कहा है। खैर हमें इससे क्या…. तो इस तरह बात वाट्सएप पर भी आगे बढ़ने लगी।
बेकरारी का आलम ये हुआ कि एक दिन बन्नो के बन्ने अरुण कुमार शुक्ला ने कह ही दिया कि “अब तुम्हारे बिना मन नहीं लगता, शादी में तो अभी चार महीने बाकी हैं।”
ऐसी ही बात है तो आ जाइए नोएडा, कौन सा हमने मना किया है। बन्नो ने भी खुला निमंत्रण दे दिया।
मुलाकात का पारीवारिक सत्यापन करवाने के लिए अरुण कुमार शुक्ला ने अपने घर में कह दिया, बिना देखे लड़की के लिए कैसे हां कर दें, एक बार देख तो लेना ही चाहिए।”
यह बात उनके परिवार को बुरी नहीं लगी, तो उन्होंने भी बन्नो के परिवार में यह प्रस्ताव भिजवा दिया कि लड़का लड़की आपस में मिल लें तो उनकी भी तसल्ली हो जाए, पारीवारिक स्तर पर तो बात पक्की ही है।
अब क्योंकि यह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से आया था, तो मानना ही पड़ेगा की तर्ज पर मम्मी-पापा ने भी बन्नो को लड़के के मिलने की बात बता दी।
बन्नो तो पहले ही इस मुलाकात के लिए बेकरार थीं उस पर अरुण कुमार शुक्ला के इस तरह पारीवारिक समर्थन हासिल करने पर उनकी इंटेलीजेंस की और भी कायल हो गईं।
अरुण कुमार शुक्ला ने आने वाले रविवार के लिए बैंगलोर से दिल्ली जाने वाली फ्लाइट में टिकट बुक करवा लिया।
अब मुलाकात के दिन गिने जाने लगे। बन्नो ने अपने लिए नई ड्रेस खरीदी। कहां जाना है, क्या करना है अब हर दिन इसी पर चर्चा होने लगी। उपर उपर से तय यह था कि अरुण कुमार शुक्ला सुबह दिल्ली पहुंचेंगे और दिन भर का समय बन्नो के साथ बिताकर शाम को दिल्ली में ही रहने वाली अपनी बुआ के घर चले जाएंगे पर भीतर भीतर दोनों ने यह तय किया था कि दोनों दो-चार दिन साथ ही रहेंगे। इतना खर्चा करके दिल्ली आए हैं, तो कुछ दिन तो साथ रहना ही चाहिए। और साथ ही ये वादा भी कि अब अगले महीने बन्नो बैंगलोर आएंगी।
तो तय तिथि आ ही पहुंची।
वाट्सएप और फेसबुक की खिड़की पर ताकाझांकी करने वाला कबूतरों का सा जोड़ा आज पहली बार रूबरू हुआ। देखने में भी ठीकठाक ही थे अरुण कुमार शुक्ला। बन्नो ने नजर भर देखा और मन ही मन बलैया लीं, इक्कीस नहीं बाईस ही हैं हमारे शुक्ला जी।
बन्नों और उनके अरुण कुमार शुक्ला एयरपोर्ट पर मिलते ही एक-दूसरे के गले लग गए। बन्नो भी खूब बन ठन कर गईं थी अरुण कुमार शुक्ला भी पहली ही मुलाकात में उन पर मोहित हो गए।
मोह मोह में बात और गाड़ी आगे बढ़ने लगी। अरुण कुमार शुक्ला दिल्ली और अपने होने वाली बन्नी को खूब नजर भर भर कर देख रहे थे। कभी एक-दूसरे का हाथ पकड़ते तो कभी हौले से सट जाते। तय हुआ कि दिल्ली हाट चला जाए। बन्नो ने बताया कि दिल्ली हाट और जनपथ ये दो ऐसी जगह हैं जहां आप कभी भी कहीं भी सुकून से घूम सकते हैं।
दिन भर हाथों में हाथ डाले दोनों प्राणी घूमते रहे, जायकेदार खाना खाया और कलाकृतियों पर मुग्ध दृष्ठि बिखेरी । यहां वहां घूमते खूब बतियाये। इस बार बन्नो ने अपना इंस्टाग्राम अकाउंट भी शुक्ला जी के लिए खोल दिया। लगाव के साथ-साथ अब कुछ अधिकार भाव भी शुक्ला जी में जागने लगा था। अभी तक जिसे फॉलो कर रहे थे उस अकाउंट के खुलते ही शुक्ला जी की तो जैसे आंखें ही चौंधिया गईं। यहां हॉट पेंट में बन्नो की गोवा की छुट्टियों की कई फोटो पोस्ट की गईं थीं।
“अरे ये सब फोटो इंस्टाग्राम पर नहीं डालनी चाहिए”, शुक्ला जी ने धीरे से ज्ञान देने की कोशिश की।
“मैं इतनी टेंशन नहीं लेती”, बन्नो ने अपने उसी बिंदास अंदाज में जवाब दिया।
“अरे आप नहीं जानती, कुछ लोग कुंठित होते हैं, और परिवार का कोई व्यक्ति देखेगा तो क्या सोचेगा।”
“आप तो कुछ नहीं सोच रहे न?”, बन्नो जैसे नेहले पर देहला मार रहीं थीं। “हमें मालूम है कौन देख सकता कौन नहीं।”
मने शुक्ला जी की सब आपत्तियां बेकार की हैं। अपने अकाउंट को संभालना बन्नो खूब जानती हैं।
अब शुक्ला जी का मन उखड़ने लगा था। तय हुआ कि कहीं और चला जाए, कहीं किसी ऐतिहासिक इमारत में या कहीं और….
शुक्ला जी का मन का उखड़ना तो बन्नो को ज्यादा समझ नहीं आया पर कहीं ओर चलने में कोई बुराई भी नहीं लगी। ओखला बर्ड सेंचुरी चला जा सकता है। पर बहुत अधिक समय न लग जाए। यही सोचकर बन्नो ने कैब बुक कर ली। आखिर शुक्ला जी मेहमान हैं इस शहर में उनके, तो उनका ध्यान रखना उसका फर्ज भी है। अब दोनों कैब में ओखला की तरफ हो लिए। कैब में सटकर बैठना शुक्ला जी को दिल्ली हाट में खुले में घूमने से ज्यादा बेहतर लगा। बीच-बीच में कभी चोरी चोरी चूम भी ले रहे थे, बातों का विषय कुछ-कुछ हॉट होता जा रहा था।
“गोवा में तो तुम बहुत हॉट कपड़े पहनीं थी, आज हमसे मिलने क्यों ये सूट सलवार पहन कर आईं, ताकि होने वाले पति पर इम्प्रेशन अच्छा पड़े ?”
“अरे नहीं वो तो आज हमको पीरियड आए थे, इसलिए सोचा सलवार सूट ही ठीक है। जींस में डर लगा रहता है कहीं स्पॉटिंग न हो जाए।”
“आज सैकिंड डे है न, तो हमें फ्लो ज्यादा रहता है।”
शुक्ला जी का चेहरा झेंप गया, “आहिस्ता बोलिए, क्या पीरड पीरड कर रहीं हैं, ड्राईवर सुन रहा होगा …..” शुक्ला जी ने यथासंभव धीमे बोलते हुए कहा।
“इसमें धीमे बोलने की क्या बात है, ये तो नेचुरल प्रोसेस है!”
“हां, हां ठीक है तब जरूरी है कि इतना खुलकर बोलना, वो सुन रहा है!”
“शुक्ला जी, जब आप इतनी देर से हमें किस करने की कोशिश कर रहे हैं तब ड्राईवर नहीं देख रहा और अब हमने पीरियड का नाम ले लिया तो ड्राईवर को कान उग आए। तब से तो आंख थी ही नहीं किसी की।” अब के तो बन्नो एकदम बिगड़ गई।
“साले ड्राईवर के घर की औरतों को पीरियड नहीं आते क्या। मर्द लोग सड़क किनारे पेशाब करते रहे तो बुरा नहीं हम पीरियड पर बोल ही दिए तो आपको ऑब्जेक्शन हो गया। ये तो बहुत छोटी मानसिकता है। ”
आईआईटी पास शुक्ला जी को समझते देर नहीं लगी, ये ड्राईवर के नाम से झाड़ उन्हीं को पिलाई जा रही है। जितना सटे थे उतना ही दूर हो गए।
“तुम कुछ ज्यादा ही हाईपर हो रही हो। हमें ज्यादा भाषण देने की जरूरत नहीं है, ये फेमिनिज्म की बातें आप अपने फेसबुक अकाउंट पर ही लिखिएगा, हमारे साथ यह सब नहीं चलेगा। हमारे साथ रहना है तो कुछ तो लिमिटेशन फॉलो करनी ही पड़ेंगी।
“तुम्हारे साथ ?” अब के तो बन्नो आग बबूला हो गईं ।
“साले तुम ही हमारे साथ नहीं चलोगे।”
“साले! ये क्या तरीका है बात करने का, आप इस तरह हमसे बात करेंगी ?”
“ड्राईवर गाड़ी रोको, हमें नहीं जाना कहीं भी।” शुक्ला जी ने तमतमाते हुए अपना पिट्ठू बैग उठा लेना चाहा।
बन्नो भी हमारी कहां कम हैं, शुक्ला जी के गुस्से ज्यादा दम तो उनके हाथों में था, बन्नो ने झटककर बैग शुक्ला जी के हाथ से छीन लिया। और उन्हें उठने से पहले ही वापस सीट पर बैठा दिया।
“ऐ भैये तुम गाड़ी चलाते रहो।”
“आप हमारे शहर में आए हैं, हमारे बुलावे पर, इस तरह बीच रास्ते में तो आपको उतारेंगे नहीं।
अपनी बुआ का पता बताइए, ड्रॉप लॉकेशन चेंज कर देते हैं। यही गाड़ी आपको आपकी बुआ जी के घर पहुंचा आएगी।”
जिस क्षण बन्नो ने झटके से बैग और शुक्ला जी पर अधिकार दिखाया था वे उससे एक पल को रीझ ही गए थे पर लोकेशन चेंज करने की बात सुनकर उनके तोते उड़ गए, तो क्या बन्नो गईं उनके हाथ से।
बन्नो ने लोकेशन चेंज कर ओखला से लक्ष्मी नगर कर दी। गाड़ी और ड्राईावर जैसे बन्नो का हुक्म मानते हुए चुपचाप आगे बढ़ते रहे। पूरे माहौल में शुक्ला जी सबसे गैरजरूरी हो गए।
पूरे रास्ते दोनों के बीच चुप्पी पसरी रही।
बन्नो बाईं खिड़की में देखती रहीं और शुक्ला जी की नजर दाईं खिड़की से नहीं हटी। उनके चेहरे पर सफर में लुट जाने के भाव थे तो बन्नो की आंखों में अब भी गुस्सा था।
अपनी मंजिल पर पहुंच कर आईआईटी पास शुक्ला जी उतर गए, पर बन्नो अपनी सीट पर बैठी रहीं। उसे अपने आगे का सफर तय करना था।
बहुत धीमी आवाज में कि ड्राईवर न सुन पाए शुक्ला जी ने कहा, “अपने पिताजी से कह दीजिएगा कि लड़का हमें पसंद नहीं है, कहीं और देखें।”
पर न गुस्सा कम हुआ था, न बन्नो की आवाज धीमी हुई, “हमें अपने पापा से क्या कहना है, वो तो हम कह ही लेंगे, आप अपने बारे में सोचिए कि आप अपनी मम्मी से क्या कहेंगे।
इस बार तो बन्नो ऐसी बिगड़ गईं कि शुक्ला जी की तरफ देखे बगैर ही खट्ट से गाड़ी का दरवाजा बंद कर लिया।
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