हिंदी नाटक — करोना काल में शादी — सुमन केशरी


आपदा काल रचना प्रक्रिया को बहुत मुश्किल बना देता है लेकिन, पीड़ा से गुजरते हुए जब कोई साहित्य उपजता है तो उसमें कई नए रंग नज़र आते हैं। आ० सुमन केशरी लिखित प्रस्तुत नाटक 'करोना काल में शादी' एक बड़ी रचना है सुमन दीदी को बहुत-बहुत बधाई!

भरत एस तिवारी
शब्दांकन संपादक


हिंदी नाटक — करोना काल में शादी — सुमन केशरी




हिंदी नाटक

करोना काल में शादी

— सुमन केशरी

पात्र परिचय

रश्मि — वधू
अरविंद — वर
सुनीता — माता
मदनमोहन — पिता
पंडित जी 

स्टेज लगभग सारे नाटक में दो भागों में बँटा रहेगा। किंतु ऐसे दृश्य भी होंगे जब स्टेज एक ही जगह दिखाएगा।
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[ * दृश्य-1 * ]

[ इस दृश्य में स्टेज दो भागों में बँटा होगा। एक भारत का कोई शहर, दिल्ली ही मानिए। ठेठ उच्च मध्यवर्गीय परिवार का कमरा।  दूसरा भाग अमेरिका के किसी शहर में किसी हाईटेक- सैलरीड बैचलर का कमरा। 

भारतीय घर में पिता (मदनमोहन) अमेरिका में रह रहे, काम कर रहे बेटे (अरविंद) से बात कर रहा है। माँ बगल में खड़ी है। ]

मदनमोहन: क्या कहा? फ्लाइट कैंसिल हो गई? तो अब...

अरविंद: हाँ कह तो रहा हूँ सारी फ्लाइटें कैंसिल हो गई हैं और एक दो जो चल रही हैं उनमें सीट है ही नहीं...

(सुनीता  बगल में खड़ी खड़ी जोर से बोलती है)

सुनीता: जब मैं कह रही थी कि जरा पहले चले आओ तो तुम्हें समझ में नहीं आ रही थी मेरी बात...अब बताओ अब क्या होगा? तीन दिन बाद शादी है और तुम अभी तक वहीं बैठे हो? उस पर से ये करोना वायरस...समझ ही नहीं आ रहा कुछ भी! 

अरविंद: मम्मी तुम्हारी तो सुई एक ही जगह अटक जाती है...कैसे चला आता, प्रमोशन का इंटरव्यू होना था!

सुनीता: तुम तो खुद कह रहे थे, स्काईप इंटरव्यू होगा...तो क्या यहाँ स्काईप पर बात न हो जाती? अब ऐसी बैकवर्ड हमारी कंटरी भी नहीं है!

मदनमोहन: भई कितने लोगों से मिलना-जुलना होता है, नेटवर्किंग करनी होती है...अरविंद ठीक कह रहा है, सुनीता! सुई को वहाँ से आगे खिसकाओ! 

अरविंद हँसता है। सुनीता को गुस्सा आने लगता है। 

सुनीता: तो परेशान क्यों हो रहे हो बाप-बेटा...खुशियाँ मनाओ! पड़ोसी मना रहे हैं न म्यूजिक लगा कर! अभी थाली-कूकर पीट रहे थे। थोड़ी देर में लगता है ढोल बजाने लगेंगे! 

अरविंद: अरे हाँ पापा...ताली-थाली पीटने वाला तमाशा कैसा रहा वहाँ...आई रियली मिस्ड द फ़न!

मदन मोहन: दैट इज़ ट्रू...पाँच बजते ही सारे बाहर निकल आए। ऊपर वालों के बच्चों ने तो ड्रम निकाला और तेज म्यूजिक भी चला दिया। ऊपर से लड़की घुंघरू बाँध कर बंदरिया की तरह कूदने लगी, बाल्कनी में... 

अरविंदः रियली पापा...सो मच फ़न...

मदनमोहन: क्या बतलाऊँ अजीब बेवकूफ़ बसते हैं यहाँ ...कई जगह तो लोगों ने थाली पीटते हुए, तालियाँ और शंख बजाते हुए जुलूस तक निकाल डाले! कहाँ तो करोना चेन तोड़नी थी, कहाँ ये बीमारी को हाथों-हाथ लिए चल पड़े हैं! तुम अच्छी जगह पर हो... जम जाओ वहाँ तो मैं भी सुनीता के संग आ जाया करूँगा...कुछ दिन तो चैन से गुजरेंगे...आय एम फ़ेड अप! 

अरविंद: पापा कूल डाऊन...आप तो जानते ही हैं कि हम लोग वैसे भी लाउड है... यहाँ तो हर जगह बंद पड़ी है...एकदम सुनसान हो गया है शहर...इसी मारे तो यह फ़्लाईटें भी कैंसिल हो गईं!

सुनीता: हम अब क्या करेंगे। तुम्हारी बहन भी वहीं बैठी हुई है...एक साथ आएँगे...मजे करेंगे...अब कर लो मजे! वो तुम्हारे पास कब आ रही है?

अरविंद: आशिमा कैसे आ सकती है, वह ईस्ट में है और मैं वेस्ट में...सारे फ्लाइट बंद हैं तो वह कैसे आएगी...और तो और उसका हसबेंड तक मिज़ूरी में फंस गया है...मम्मी तुम्हारे खानदान ने ईस्ट-वेस्ट-सेंटर सब कब्जे में कर लिया है! (हँसता है! साथ में मदनमोहन भी हँसने लगता है।)

सुनीता (मजाक को अनसुना करके): क्या? तो वो वहाँ अकेली है दो दो बच्चों के संग! रोहित को क्या पड़ी थी मिज़ूरी जाने की? अब वहाँ होटल के खर्चे और हो रहे होंगे...ऊपर से वायरस का डर भी! गजब हैं ये बच्चे भी!

अरविंद: अरे उसे कंपनी ने भेजा था। वह गेस्ट हाउस में है...चिंता मत करो। आ जाएगा जब वायरस का डर कम होगा...

मदन मोहन: सब उल्टा-पलटा हो गया है...यहाँ भी कर्फ़्यू जैसा लग गया है...आज शाम ही दिल्ली सरकार ने सारे बॉर्डर सील कर दिए... अब हम लड़की वालों के घर नोएडा तक नहीं जा सकते!

अरविंद ठहाका लगा कर हँसता है: यह तो और भी मजेदार बात हो गई...अगर मैं आ भी जाऊँ तो बारात नहीं जा सकेगी...ट्विटर देख रहा हूँ...पाँच लोग साथ इक्ठ्ठे नहीं हो सकते, 144 लगा दिया है!

सुनीता: छोड़ो ट्विटर-श्विटर सब हो रहा है यहाँ...अनाउंसमेंट अपनी जगह लोगों का चालढाल अपनी जगह...हुँह धारा 144! 

अरविंड: क्या?

सुनीता(अपनी ही धुन में): तुम आ तो जाओ...इतने सारे ऑफिसर्स को हर साल इतने गिफ़्ट्स देते हैं, पार्टियाँ करते हैं तुम्हारे पापा और मैं ...वो सब इन्वेस्टमेंट ही तो है...कह-सुन कर सब हो जाएगा! टिकट भी मिल जाएगा!

(फिर मदन मोहन से मुखातिब होकर)

मदन, तुम एयर इंडिया वालों से कह कर कुछ करते क्यों नहीं...एक टिकट तो हो ही जाएगा! छोड़ो मैं बात करती हूँ कल सुबह ही! 

अरविंद: मम्मा क्या कह रही हो...पापा इनकी बात मत सुनना...मेरी कंपनी मुझे टिकट गिफ़्ट                                                                                                                  कर रही थी, उन्हीं ने बताया कि कुछ भी अवेलेबल नहीं है, अब अगर कोई जुगाड़ कर लिया हमने तो मेरी इमेज खराब हो जाएगी! 

सुनीता: क्यों इसे तो तुम्हारा रिसोर्सफुलनेस कहना चाहिए...दिस विल रादर एनहेंस युअर इमेज़!

अरविंद: पापा मम्मी को समझाओ...कंपनी वाले इसे रिश्वत का केस मानेंगे...और मेरी  सालों की मेहनत चौपट हो जाएगी! 

सुनीता: यह अमेरिकन सोच भी गजब ही है सीधी भी चलती है और उल्टी भी! तुम लोग तय कर लो फिर बता देना मुझे...कुक दो बार झांक गया है...डिनर के बारे में बताना होगा...बहुत टेंशन हो गया है! 

मदन मोहन इशारे से कहते हैं जाओ। सुनीता चली जाती है।

मदन मोहन: अब बताओ...तुम्हारी मम्मी ठीक कह रही है। पहले तो तुमने डेट देने में ही देर कर दी...फिर आने में।

अरविंद; पापा क्या हम शादी कुछ महीने पोस्टपोन नहीं कर सकते?

सुनीता अंदर आते हुए बात सुन लेती है। 

सुनीता: याद नहीं है इसे कुछ भी मदन...इसके बाद दो साल तक शादी का योग नहीं है...

अरविंद: वही दकियानूसी बातें...मम्मा कौन कहेगा कि तुमने यूके से एमबीए किया है? इतनी बड़ी कंपनी की डायरेक्टर हो...

सुनीता इठलाती है।

सुनीता: तो क्या हम अपना कल्चर, अपना रिलीजन छोड़ देंगे? पंडित जी ने साफ़ कहा था कि सुखी जीवन के लिए ये डेट अच्छा है...जनवरी वाला तो बेस्ट था…पर तुम्हारा प्रमोशन होना भी जरूरी था!

मदन मोहन: अब फोन रखो मैं लड़की वालों से बात करूँ...समझ में नहीं आ रहा अब कैसे क्या होगा...बट सी इफ़ वी कैन डू समथिंग

सुनीता: बट नो चेंज इन डेट! वो नहीं होने दूंगी मैं...भले ही तुम वर्चुअल शादी कर लो...मैं यहाँ तुम कहाँ की स्टाईल में!

मदन और अरविंद उछल पड़ते हैं दोनों साथ साथ

मदनमोहनः सुनीता

अरविंदः मम्मा यू आर सिंपली ग्रेट! क्या आऊट ऑफ़ बॉक्स सोचा है! लव यू...

मदन मोहन खुशी से सुनीता को बाहों में भर कर उसके माथे को चूम लेते हैः यू आर द रियल सेवियर! मैं अभी बात करता हूँ रश्मि के पेरेंट्स से!  वाह वाह वर्चुअल शादी...वे लोग भी मान जाएँगे...कौन अपनी लड़की घर में बिठा कर रखना चाहता है...

सुनीता: पर मैं कह रही हूँ, करोना वाला चक्कर खतम हो जाए तो ग्रैंड रिसेप्शन करेंगे...मेरी तो साड़ियाँ तक बेकार हो रही हैं, कितने मन से खरीदीं थीं... ...और वो डायमंड सेट... ... 

अरविंद: मम्मी का पुराना दु:ख...देयर आर सो मेनी थिंग्स टू मिस...क्यों पापा!

मदन मोहन: तुमने क्या समझा है अपनी मम्मी को (गाने लगता है) अभी तो मैं जवान हूँ…

सुनीता (तमक कर) नहीं हूँ क्या? बच्चों की शादी के बाद क्या माँ बाप बूढ़े हो जाते हैं...

मदन मोहन: बूढ़ें हो हमारे दुश्मन...सुनो जरा रश्मि के पेरेन्ट्स को फोन तो लगाओ

अरविंद: हाँ उन्हें अपना ग्रैंड आइडिया देते हैं! (सभी हँसते हैं...)
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[ * दृश्य-2 * ]



[स्टेज पुन: दो भागों में बँटा हुआ है। 
एक वही दिल्ली का घर और दूसरा अमेरिका वाला कमरा
पात्रों में दो बढ़ गए हैं। लड़की रश्मि और पंडित जी। पंडित जी मास्क लगाए हुए हैं। ]

दिल्ली वाले घर में एक हवन कुंड है। पूजा की थाल है जिसमें वरमाला, हल्दी-कुमकुम और सिंदूर आदि हैं। एक थाल में खील भी है। 

सुनीता( लैपटॉप के सामने): अरविंद आ जाओ अब स्काईप पर। तैयारी हो गई न?...अजीब हाल है हम रश्मि के घर तो जा ही नहीं पाए इसके मम्मी-पापा तक को यहाँ नहीं ला पाए... 

पंडित जी (दाँत चिहाड़ के): मैडम जी बहूरानी को तो यहीं आना था न...कल के बदले आज आ गईं...हमारे हिंदू धर्म में आपद् धर्म का विस्तृत विधान है। रोजमर्रा की बातें सब बदल जाती हैं, आपदा की स्थिति में…

मदन मोहन: अरे इसीलिए तो हिंदू धर्म की इतनी मान्यता है...अब तो अंग्रेज लोग भी हिंदू बन रहे हैं…

पंडित जी: कितना ही बन लें, जन्म थोड़े ही इस धर्म में हुआ है... कितना भी दुलत्ती मारें गधे घोड़े थोड़े ही बन जाएगें?

मदनमोहन: घोड़े भले न बने खच्चर तो बन ही जाएँगे...

पंडित जी हँसते हैं: आप तो साहब जी बड़ी सही बात कहते हैं...अपने धर्म का यहीं तो गुण है...सब तरसतें हैं हिंदू बनने को...बड़े भाग्य से हिंदू घर में जन्म मिलता है!

अरविंद (हँसता हुआ): हाँ पंडित जी तभी तो हम जनसंख्या बढ़ाने के कंपीटीशन में सबसे आगे हैं! 

(हँसता है, रश्मि को भी हँसी आ जाती है। मदनमोहन आँखें दिखाते हैं। पंडित जी अपने में सिमट करके गंभीरता की मूरत बन जाते हैं। तभी सुनीता की निगाह अरविंद पर पड़ती है।)

सुनीता: तुमने शेरवानी नहीं पहनी? यही डर था मुझे...रख दी होगी कहीं और अब मिल नहीं रही होगी...

अरविंद: मम्मा आप भूल गईं...स्काईप पर शादी हो रही है, आपका ही आइडिया है...अब याद करें जरा, शेरवानी दिल्ली में है और मैं अमेरिका में!

सुनीता: ओह! तुम लोगों की आदतें ही ऐसी हैं, कि मैं भूल जाती हूँ कि यह शादी तो जिंदगी भर याद रहेगी...क्यों रश्मि?

मदन मोहन: हमारी शादी तो जैसे सब शादियाँ होतीं हैं, वैसे ही हुई थी, पर क्या तुम्हें एक एक लमहा याद नहीं? तुम्हें तो यह तक याद होगा कि खाने के पहले कौर में पूड़ी के संग मैंने कौन सी सब्जी खिलाई थी तुम्हें...बताना जरा...

सुनीता: अपनी फ़ेवरेट कद्दू की सब्जी खिलाई थी! पहली बार खाई थी मैंने हाँ नहीं तो!

अरविंद और रश्मि साथ साथ: कद्दू की सब्जी...पापा आप तो ग्रेट हैं! 

रश्मि: मैं पहले ही बता दूँ मुझे या तो मलाई कोफ़्ते खिलाना या पनीर...नो कद्दू-शद्दू...

अरविंद: मैं तो शुरुआत ही तुम्हारी फ़ेवरेट आईसक्रीम से करूँगा...

पंडित जी: यजमान मुहुरत निकलता जा रहा है...

मदनमोहन: अरे अब बाद मैं खा लेना आइसक्रीम और कोफ़्ते...शादी शुरु करें?

पंडित जी: बेटी वर के गले में माला पहनाओ

(रश्मि  माला पहनाने की एक्टिंग करती है। फिर माला अपने गले में पहन लेती है। इसी तरह अरविंद चुन्नी बांध कर माला बनाए हुए है, उसे अपने गले में पहन लेता है।)

रश्मि: वाह बहुत सुंदर माला है...ग्रेट आइडिया इनडीड!

अरविंद: ऐसा ही है...ग्रेट माइंड... बट दिस वाज़ मॉम्स आईडिया! (विक्टरी का साईन बनाता है।)

रश्मि और मदनमोहन सुनीता को देख कर मुस्कुराते हैं। पंडित जी भी मुस्काते हैं...

पंडित जी (बुदबुदाते हुए) कलयुग में धर्म का यही हाल हो जाता है!

फिर फेरों की बारी है। 

हवन कुंड में आग जल रही है। एक चुन्नी में आगे गांठ लगा कर रश्मि के कंधे पर रख दिया गया है। 

पंडित जी: आपका हवनकुंड कहाँ है?

अरविंद: यहाँ कहाँ हवन कुंड है? किसी भी धुएँ से यहाँ सायरन बजने लगता है...मम्मा पंडित जी को बताओ...

सुनीता: हाँ हाँ पंडित जी, वहाँ आग-वाग नहीं जला सकते...अरविंद तुम गैस जला लो, उसके चारों ओर चक्कर लगा लेना...(कहते हुए वह पंडित जी को देखती है। पंडित जी अजीब ऊहापोह में हैं, उनका चेहरा घनचक्कर सा हो गया है। गजब कन्फ़्यूज्ड दिख रहे हैं...कुछ पल सोचने के बाद)

पंडित: ठीक है यजमान, करें जैसा कि मम्मी जी कह रही हैं...

सुनीता: मम्मी जी...पंडित जी आप तो न कहें मम्मी जी...

पंडित जी: सॉरी मैडम जी...सॉरी... 

अरविंद झुझंलाकर: मम्मा यू हैव बीन हेयर...यहाँ ऐसे चूल्हें होते हैं क्या...मेरा कुकिंग रेंज तो दीवार से चिपका हुआ है!

सुनीता: हाँ...तो अब? क्या तुम्हारे पास कुछ नहीं है?

अरविंद: मैं मोबाईल का टार्च ऑन कर देता हूँ...

पंडित: नहीं नहीं...अग्नि का कोई रूप तो होना चाहिए...सप्तपदी का मामला है...मुझसे नहीं...

सुनीता: प्लीज पंडित जी प्लीज...नाराज मत होइए...

मदनमोहन: क्या तुम्हारे पास कैंडल भी नहीं है?

रश्मि: अंकल वहाँ लाईट थोड़े ही जाती है कि उसके पास कैंडल होगा!

सुनीता: तो अब? इस समय तुम्हारा कोई दोस्त भी तो नहीं है कि कुछ कर सके!

अरविंद: टनटनाS…मेरे पास कैंडल है बर्थडे कैंडल...छोटा-सा...सो वी विल हैव टू हरी अप!

सुनीता: पंडित जी जल्दी जल्दी फेरे करवा दीजिए, नन्हीं सी मोमबत्ती मिल गई है दूल्हे राजा को!

पंडित जी मंत्र पढ़ने के लिए मास्क उतारने के लिए हाथ बढ़ाते हैं... 

मदनमोहन जल्दी से: पंडित मास्क लगाए लगाए ही पढ़ दीजिए...पता नहीं कहाँ कहाँ आते-जाते होंगे आप! 

खिसिआए से पंडित जी मंत्र पढ़ना कुछ शुरु ही करते हैं: ओम् श्री गणेशाय नम: 

(यहाँ रश्मि झटपट सात फेरे लगा लेती है और वैसा ही अरविंद करता है।)

पंडित जी: अरे अभी तो कोई मंत्र नहीं पढ़ा और यहाँ फेरे भी पूरे हो गए...धन्य हैं आप लोग! पहले चार फेरों में लड़की आगे चलती है...बाद में वधू वर के पीछे

मदनमोहन: यहाँ क्या आगे-पीछे होगा... चलिए अब सिंदूरदान की रस्म कीजिए...

अरविंद: अब सिंदूर कहाँ से लाऊँ...वेट वेट मैं रेड बॉलप्वाइंट पेन लाता हूँ!

सुनीता: स्मार्ट ब्याय! बिल्कुल मुझ पर गया है!

अरविंद हँसता है, रश्मि थम्स-अप करती है। 

यहाँ पंडित जी सिंदूरदान खोल कर चुटकी में सिंदूर लेकर रश्मि की ओर बढ़ते हैं...रश्मि एकदम पीछे हट जाती है: व्हॉट आर यू डूईंग...

अरविंद; अरे अरे पंडित जी यह गजब मत कीजिए...पंडिताईन घर घुसते ही हिसाब मांगेंगी! 

पंडित जी भी चौंक कर पीछे हट जाते हैं।

मदन मोहन: आपका दिमाग तो ठीक है न पंडित जी!?

सुनीता: हद हो गई...आप भी पंडित जी...

अरविंद हँसता है: सो यू मैरी हिम नाऊ!

रश्मि: अब तुम नहीं आओगे तो क्या करें बताओ (खिलखिलाने लगती है!) ही ईज़ अ स्मार्ट गाय...डोट यू थिंक? (जीभ निकाल कर चिढ़ाती है) पंडित जी! सिंदूर मुझे दीजिए!

पंडित जी सिंदूर की डिबिया उसे देते हैं। 

रश्मि अपनी अंगूठी निकालती है, उसमें सिंदूर लेकर अपने मांग में भर लेती है और बड़े फिल्मी अंदाज में कहती है

रश्मि: मैंने अपनी मांग में तुम्हारे नाम का सिंदूर भर लिया है...जमाने से डरकर धोखा मत देना तुम! (फिर अपना सिर ढंक कर पुरानी हिरोइनों की तरह चेहरा जरा घुमा कर टेढ़ा कर लेती है!)

अरविंद: लव यू डार्लिंग!

सुनीता आगे बढ़ कर रश्मि को गले लगाती है। झेंप कर रश्मि सुनीता, मदन मोहन के पाँव छूती है।

सुनीता: बहू पंडित जी से भी आशीर्वाद लो...तुम भी तो हमारे पाँव छूओ सपूत...देखा हमारी बहू कितनी सयानी है!

अरविंद: हो गया हो गया नाऊ वी आर मैरिड...क्यों पंडित जी...मिठाई खा लें न?

सुनीता और मदनमोहन: हाँ जी हाँ कॉन्ग्रेचुलेशन्स! खाओ मिठाई और जल्दी चले आओ!

अरविंद प्लेट से केक खाता है।

सुनीता: यहाँ तो करोना कर्फ्यू के चलते मिठाई तक नहीं मिली...हलवा और खीर बना पाई बस!

अरविंद: पापा...मम्मी सुनो तो जरा उधर मुँह फेर लो या एक मिनट के लिए बाहर चले जाओ...प्लीज़

सुनीता और मदनमोहन एक दूसरे को देखते हैं और मुस्कुराते हुए बाहर चले जाते हैं। 

अरविंद: रश्मि फर्स्ट किस फ़्रॉम यूअर हसबैंड। दोनों अपने अपने लैपटॉप पर देर तक किस करते हैं।  

रश्मि: आय लव यू

अरविंद: आय लव यू टू...सुनो... रात को बेडरूम में बातें करते हैं...तुम पिंक वाला गाउन पहनना

अरविंद के चेहरे पर शरारत है...रश्मि का चेहरा लाल हो जाता है

दृश्य यहीं  फ़्रीज़ हो जाता है। 
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[ * दृश्य-3 * ]



[घर का कमरा वही दूसरा कमरा थोड़ा बदला हुआ। होटल का कमरा। बेडशीट बेहतर। एक दो लैंप और एक कैटल लगा लें। यह डिटेंशन सेंटर है। ]

कुर्सी पर सामने फ़ोन लिए अरविंद बैठा है। 

घर के कमरे में रश्मि फ़ोन लिए बैठी है। 

अरविंद: क्या कर रही हो जान...मैं तो बहुत ही बोर हो गया हूँ...

रश्मि: मैं भी...तुम इतने पास होकर भी अमेरिका जितने दूर हो...

अरविंद: हमारी शादी के मुहुरत में ही कोई गड़बड़ थी...देखो न फोर्स्ड सेपेरेशन में रहना पड़ रहा है...कितने प्लैन्स थे मेरे

रश्मि: अभी हम लोग केरला में होते...बैक वाटर्स के मजे ले रहे होते...यहाँ भी देखो मौसम कितना प्यारा है...

अरविंद: खाक है...कमरे में पड़ा सड़ रहा हूँ...तीन बार वेटर आकर खाना नाश्ता बाहर से ही दे देता है...तुम बाहर वाहर तो नहीं जा रहीं?

रश्मि:  कैसे जाऊँगी और कहाँ जाऊँगी...सारे मॉल्स तो बंद पड़े हैं और पार्लर्स भी...हाँ नीना गुप्ता है न...वो नेक्स्ट वीक सेलेक्ट गैदरिंग की पार्टी दे रही है और कुछ प्रॉड्क्ट्स भी दिखा रही है...

अरविंद: कौन नीना गुप्ता

रश्मि: अरे वही ड्रेस डिजाइनर...(अचानक उसे कुछ याद आ जाता है) अब बनो मत पिछली बार तो तुम उससे चिपक ही गए थे!

अरविंद: मैं चिपका था या उसने अपनी ड्रेस में ही मैगनेट लगा लिया था...मैनग्नेट बोलूँगा मैं तो...सारे मेन चिपक लिए थे उससे! क्या मेकअप था उसकी पीठ और बाहों का...सच कह रहा हूँ फेस से ज्यादा उसने पीठ, बाहों और टांगों का मेकअप करवाया था...सो सिजलिंग...देखो अब भी मैं याद...

रश्मि: चुप रहो नहीं तो यहीं फोन में घुसकर मारूँगी तुम्हें

अरविंद: तुमसे कुछ न होने का...उस दिन रात को पिंक नाईटी पहनने को कहा था...पाँच मिनट में ही तुमने बत्ती बुझा दी...

रश्मि: तो?

अरविंद: तो क्या...फिर मैं मैनग्नेट ढूँढा करूँगा...मैं तो कमला नेहरू गर्ल्स कॉलेज में नहीं पढ़ा

रश्मि: शटअप! मैं एलएसआर में पढ़ी हूँ...

अरविंद; लगता तो नहीं...

रश्मि: तो क्या सींग निकालूँ?

अरविंद: सींग नहीं...बस प्रॉमिस करो कि आज बत्ती नहीं बुझाओगी...और मेरा कहना मानोगी...

रश्मि: शटअप

(तभी दरवाजे पर नॉक होता है)

सुनीता: बेटा क्या अरविंद से बात हो रही है...उसका फ़ोन बिजी जा रहा था...

रश्मि: जी मम्मी...अरविंद मम्मी बात करेंगी (आँख मारती है और फ़ोन सुनीता को पकड़ा देती है)

अरविंद; हाय मॉम...अभी तो चौदह दिन बाकी हैं...मैं तो फॉसिल हो जाऊँगा इस कमरे में पड़ा पड़ा। 

सुनीता: जब मैं कह रही थी कि तुम्हें अपने घर में ही क्वारंटाईन कर देंगे...तब तो तुम कानून...हेल्थ जाने क्या क्या रट रहे थे...अब एक दिन बीत गया न अब चुपचाप पड़े रहो...ये दिन भी बीत जाएँगे...

अरविंद: वो तो बीत ही जाएगे...पर रश्मि से कहें न मुझसे बातें किया करे...जाने क्या करती है ये...थोड़ी देर में ही बाय बोलने लगती है...

सुनीता: कितनी बातें करेगी वो भी पहले अमेरिका फिर यहाँ...फिर बातें घूम घूम कर करोना पर आ जाती हैं...वो भी तो उदास हुई पड़ी है

अरविंद: पापा कहाँ हैं...उनसे बात करवाओ...कुछ जरूरी डिसकस करना था!

सुनीता: वे डॉ. सूद के पास गए हैं...कुछ एंगजाईटी हो रही थी उन्हें...

अरविंद: अरे पहले क्यों नहीं बतलाया...ठीक हैं न पापा...आप लोगों के पास सारे मैडिसिन्स हैं न?

सुनीता: हाँ ठीक हैं...असल में डॉ. सूद अपने बगल वाला प्लॉट बेचने के मूड में हैं...मदन ने सोचा अभी तो कोई बात कर नहीं रहा होगा...तो क्यों न इस अपॉरच्यूनिटी को ग्रैब कर लिया जाए...

अरविंद: मम्मा आप लोग भी रिस्क ले रहे हैं...यह कोई टाईम है इधर-उधर जाने का...आपको प्रॉपर्टी की पड़ी है और रश्मि को नए ड्रेसेज़ की...इंडिया में भी लोग गजब ही हैं!

सुनीता: बन गए पूरे अमेरिकन...

रश्मि (वहीं बैठे बैठे): ज्यादा स्नॉब मत बनो... (सुनीता रश्मि को फोन पकड़ा कर चली जाती है) थोड़ा बहुत निकलने से इम्यूनिटी बढ़ती ही है! वरना तो कोकून बनाने लगेंगे साइन्टिस्ट्स...

अरविंद: तुम्हें याद है माईकल जैक्सन...वो अपने को इन्फ़ेक्शंस से बचाने के लिए कितने ड्रामे करता था...

रश्मि: और फिर मर गया...आदमी भी जाने क्या क्या सोचता है...

अरविंद: तुम तो बस ये सोचा करो कि जब मिलेंगे तो कैसे सेलीब्रेट करेंगे...मम्मी कह रही थीं कि उन्होंने ऊपर वाला फ्लोर हमारे लिए तैयार कर लिया है...

रश्मि: हाँ बहुत प्यारा है...वहाँ झूला भी लगा है और बाहर वाले ब्रांडे को उन्होंने बैंबू से हाफ़ कवर करवाया है...वहाँ जो बेड लगवाया है मम्मी जी ने उसमें इतनी प्यारी चांदनी आती है कि मैं क्या बतलाऊँ...सच में मम्मी हमें बहुत प्यार करती हैं...मैं तो उनकी भक्त हो गई हूँ...

अरविंद: ये वर्ड मत बोलना...भक्त...दिस इज़ ऑल पॉलिटिकल दीज़ डेज़...ऐंड नो पॉलिटिक्स इन  आवर रिलेशनशिप! 

रश्मि: भक्त...(हँसती है)...दोनों हँसते हैं...सीन खत्म
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[ * दृश्य-4 * ]



[इस सीन में एक ही कमरा है। फूल आदि लगा कर सजावट कर दी गई है। उत्सव का सा माहौल है। सजी धजी सुनीता ट्रे में लाकर खीर रखती है। चार-पाँच कटोरियाँ और चम्मच भी। एक जग में पानी और गिलास भी है। तभी एक फैशनेबल नई ड्रेस पहने रश्मि आती है। ]

सुनीता: ओह! यू आर लुकिंग फैबुलस...नीना गुप्ता बहुत टैलेंटेड डिजाईनर है...

रश्मि: तभी तो मैं आपको भी ले जाना चाहती थी...बट यू वर टू स्कैयर्ड टु वेंचर आऊट!

सुनीता: मदन जाने ही नहीं देते...कह रहे थे, तुम बस घर पर ही रहा करो...तुम तो जानती ही हो ही इज़ सो पजेसिव अबाउट मी...(कहती हुई इतराती है!)

रश्मि: कितना प्यार है आप दोनों में...पता नहीं हम लोग...

सुनीता: वन हैज़ टू नर्चर लव ऐंड फ़ेथ...यू विल बी फ़ाईन...अब देखो आज अरविंद को वेल्कम करने के लिए तुमने कितना रिस्क लिया...ऐंड यू आर लुकिंग सो प्रिटी!

रश्मि: उसको इम्पोर्टेंट भी तो फ़ील होगा न!

सुनीता: तुम इतनी केयरिंग हो...अरविंद बहुत लकी है!

रश्मि सुनीता के गले लगती है: थैंक्यू मम्मी

तभी डोर बेल बजता है। रश्मि जल्दी से जाकर म्यूजिक ऑन कर देती है। शंख आदि की शुभ ध्वनि वातावरण में तैरने लगती है। वह फिर पर्दे के पीछे छिप जाती है!

सुनीता दरवाजा खोलती है। मदनमोहन और अरविंद प्रवेश करते हैं। अरविंद ने चूड़ीदार और शेरवानी पहन रखी है। उसके हाथ में फूलों का गुलदस्ता और एक गिफ़्ट पैक भी है। मदनमोहन के हाथ में ट्रॉली बैग है। वे कुछ देर रुकते-मुस्कुराते हैं, घर का जायजा लेते हैं फिर लगेज़ के साथ भीतर चले जाते हैं। 

अरविंद: मौमी...एट लास्ट आए ऐम हेयर...कितना खुश हूँ मैं...

सुनीता उसे गले लगाने के लिए बढ़ती है पर वह भीतर जाता है। 

अरविंद: बस एक मिनट हाथ धो आऊँ जरा!

सुनीता मुस्कुराती हुई आँखों ही आँखों में रश्मि को वहीं रहने का इशारा करती है। 

अरविंद और मदन मोहन लौटते हैं

मदन: तो आ ही गया आपका लाडला...रश्मि कहाँ है, नजर नहीं आ रही!

अरविंद: यहीं कहीं छुपी होगी उसकी फ़ेवरेट सेंट की खुशबू तो यहाँ से वहाँ तक फैली हुई है! रश्मि कम आउट बेबी!... 

सुनीता: बहूरानी अब आ ही जाओ...(वह अरविंद को गले लगाती है, उसके माथे को चूमती है!)

रश्मि (पर्दे के पीछे से निकल कर): ओ हाय! 

(उसके चेहरे पर प्रशंसा पाने के लिए लालायित भाव हैं, थोड़ा संकोच भी...वह आकर सुनीता के पास खड़ी हो जाती है। अरविंद उसे निहारता रह जाता है! फिर आगे बढ़कर उसे फूल देता है)

अरविंद: लुकिंग...आय डोंट नो व्हॉट टू सेS...(फिर उसे गिफ्ट देता है) टू माय एब्सोल्यूटली फैबुलस वाईफ़!

रश्मि: थैंक्यू अरविंद...यू आर रियली अ वंडरफ़ुल...

सुनीता खीर लाती है और दोनो को देती है। 

मदनमोहन: अब मुँह मीठा करो...बहुत इंतजार करना पड़ा इस दिन का! तुम्हारी मम्मी ने बहुत प्यार से बनाया है!

अरविंद और रश्मि कटोरियाँ ले लेते हैं। सुनीता मदनमोहन को भी एक कटोरी पकड़ाती है।

अरविंद: सूपर्ब! सिंपली ग्रेट...तुम्हें कैसा लगा रश्मि...मम्मा तो गजब बनाती हैं! नो वन कैन सरपास हर!

रश्मि: एकदम सही कह रहे हो...तुमने सीखी है न यह रेसिपी...मम्मी अरविंद को तो सिखा ही दीजिए!

अरविंद: और तुम...तुम क्या सीखोगी?

रश्मि सोचते हुए शरारत से: खाना! मैं इसे प्यार से खाना सीखूँगी

सभी हँसते हैं। 

सुनीता: मदन इधर आओ तो...

मदन और सुनीता चले जाते हैं। 

अरविंद: तुमने इस ड्रेस के बारे में बताया नहीं...बट तुम एकदम  पटाखा...नहीं नहीं बम लग रही हो...(अरविंद बहुत सेंसुअस ढंग से उसे देखता है, उसे आलिंगन में लेने को आगे बढ़ता है!)

रश्मि: बताया तो था नीना गुप्ता के शो के बारे में...आय वौट टू...वो तो तुम्हें इससे भी अच्छी लगेगी...क्लास अपार्ट! (रश्मि उसके पास जाने को लपकती है!)

अरविंद चौंकता हुआ एक कदम पीछे हटता है

अरविंद: यू वेंट फ़ॉर दैट शो?

रश्मि: हाँ इट वाज़ अ वेरी सेलेक्ट गैदरिंग...हार्डली फ़ोर्टी पीपल...

अरविंद एकदम पीछे हटता है...हाथ उठा कर उसे पास आने से रोकता है...

रस्मि हड़बड़ाई सी रुकती है। उसकी आँखें भर आई हैं

अरविंद: मम्मा! मम्मा!

सुनीता और मदनमोहन हड़बड़ाए से आते हैं।

मदनमोहन: क्या हुआ अरविंद?

अरविंद: वी इंडियंस...हम कभी नहीं सुधरेंगे...जब सोशल डिस्टेंसिंग मेनटेन करना है तब नीना गुप्ता शो में चली गई रश्मि...आप लोगों ने उसे रोका नहीं...मैंने तो मना भी किया था...माय गॉड...वाय डू वी ऑलवेज़ थिंक दैट यह बीमारी हमें नहीं होगी...

मैं पंद्रह दिन क्यों रहा आप लोगों से अलग...मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा...रश्मि तुम तो ऑबियसली बेडरूम यूज़ कर रही होगी...मम्मा मैं गेस्टरूम जा रहा हूँ...आप लोग कल ही अपना चेकअप करा लीजिए...माय गॉड...दीज़ पीपल!

रश्मि का चेहरा एकदम स्याह पड़ जाता है। अरविंद क्रोध में है...मदनमोहन और सुनीता अपराध बोध से ग्रस्त 

रश्मि और अरविंद अलग अलग रोशनी के घेरे में हैं, जहाँ छायाएँ गहरी होती जाती हैं...। 

पर्दा गिरता है!

सुमन केशरी
मो० 98104 90401


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4 टिप्पणियाँ

  1. एक बेहतरीन नाटक ........बधाई दी

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  2. एक बेहतरीन सामयीक नाटक ।

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  3. 👏👏👏👏👏 Padha...bahut,bahut bahut,bahut shaandaar hai . Finally saprate ho jaate hain...Congratulations...aapne bada kaam kar liya

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    1. बहुत आभार इरफ़ान...आपकी बात गजब की ऊर्जा देती है।

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