सर्वमंगला (अवधी) रचयिता आचार्य विश्वनाथ पाठक का निधन | Sarvamangala Author Acharya Vishwanath Pathak Passed Away

आचार्य विश्वनाथ पाठक पंचतत्व में विलीन

Sarvamangala Author Acharya Vishwanath Pathak Passed Away


फैजाबाद
सर्वमंगला और घर कै बात जैसी मार्मिक कृतियों के प्रणेता, साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त अवधी के सर्वप्रमुख रचनाकार आचार्य विश्वनाथ पाठक का पार्थिव शरीर विगत् मंगलवार को पंचतत्व में विलीन हो गया। वे 83 वर्ष के थे और विगत 3 नवम्बर 2014 की रात को उन्होंने इस दुनिया से विदा ली। स्थानीय जमथराघाट पर उनके ज्येष्ठ नाती वसु उपाध्याय ने मुखग्नि दी। इस अवसर पर शहर के अनेक साहित्यकार, कवि, पत्रकार आदि उपस्थित रहे। पालि प्राकृत और संस्कृत अवधी भाषा के उत्कृष्ट विद्वान के रुप में चर्चित  पाठक विगत 7 वर्षो से अपनी पुत्री के नैयर कालोनी स्थित घर में निवास कर रहे थे। लम्बे अरसे से बीमारी के कारण उनका लिखना, पढ़ना भी बन्द था। पाठक जी को उ.प्र. हिन्दी संस्थान और संस्कृत संस्थान ने पुरस्कृत किया था। वर्ष 2008-2009 में साहित्य अकादमी ने उन्हें अवधी भाषा में महत्वपूर्ण कार्य करने पर ‘सर्वमंगला’ पर भाषा सम्मान प्रदान किया। यद्यपि पाठक जी की सर्वाधिक ख्याति ‘सर्वमंगला’ के कारण है। तथापि उन्होने गाथा सप्तशती, वज्जालग्ग, तरंगलोला, देशीनाम माला कबीर शतकम् आदि रचनाओं का भी प्रणयन किया। अभी हाल ही में ही उनकी बहुप्रतीक्षित कृति ‘घर कै कथा’ प्रकाशित हुई है। आचार्य जी ने लम्बे अरसे तक होबर्ट इ. का. टाण्डा में संस्कृत का अध्यापन किया। उनकी विद्वता का प्रभाव था कि सेवानिवृत्त के बाद पाश्र्वनाथ शोधपीठ काशी में उन्होने शोध अधिकारी का कार्य किया। संस्कृत पालि, प्राकृत, अपभ्रंश में उनकी विद्वता उक्त क्षेत्रों में उनके गहन अध्ययन अनुशीलन का ही परिणाम था। पिछले 5-6 वर्षो में उनके करीबी रहे ‘आपस’ के निदेशक डाॅ. विन्ध्यमणि ने एक मुलाकात में बताया- सम्पूर्ण उत्तरी भारत में आचार्य विश्वनाथ पाठक जैसा पालि प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, अवधी का कोई और मर्मी विद्वान नहीं है। यह दूसरी बात है कि उनकी अवधी की विद्वता को ही यह साहित्यिक जगत जानता है किन्तु प्राकृत पालि का उनका ज्ञान साहित्य जगत कम जानता है। पाठक जी की अन्त्येष्टि में डाॅ. परेश पाण्डेय, डाॅ. रघुवंश मणि, स्वप्निल श्रीवास्तव, मिश्रीलाल वर्मा, डाॅ. सत्यनारायण पाण्डेय, दीपक मिश्र, आलोक कुमार गुप्ता, पंचमुखी हनुमान मंदिर के मिथिलेश नन्दिनी शरण, साकेत महा.वि. के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ. जनार्दन उपाध्याय, डाॅ. विन्ध्यमणि, जगदम्बा प्रसाद मिश्र आदि उपस्थित रहे। 

आचार्य विश्वनाथ पाठक शोध संस्थान (आपस) द्वारा आयोजित शोक गोष्ठी में वक्ताओं ने उनके अवदान और विद्वता की चर्चा की। साकेत महाविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ जनार्दन उपाध्याय ने कहा पाठक जी अवधी काव्य के ऐसे रचनाकार हैं जिनके भाषा प्रयोग में अवध क्षेत्र की अन्तरात्मा पूर्णतः मार्मिकता के साथ सजीव हुई है। उनके दोनों काव्य ‘सर्वमंगला’ और ‘घर कै कथा’ इसके जीवन्त साक्ष्य हैं। पाठक जी के अवसान से आधुनिक युग की अवधी काव्य परम्परा की अपूरणीय क्षति हुई है। आलोचक डाॅ. रघुवंशमणि ने कहा कि श्री विश्वनाथ पाठक जी अपने समय में अवधी भाषा के सबसे सशक्त रचनाकार रहे हैं। उन्होंने अवध क्षेत्र की जनता द्वारा बोली जाने वाली अवधी को अपनी रचनाधर्मिता का माध्यम बनाया। भाषा के चुनाव के संदर्भ में यह महत्वपूर्ण बात है कि उन्हें संस्कृत जैसी शास्त्रीय भाषा के साथ-साथ हिन्दी, प्राकृत और अपभ्रंश तक का ज्ञान था, मगर उन्होंने अवधी को ही अपनी सृजनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने उन्हें लोकपक्ष का चितेरा कवि और शास्त्रीय विद्वान बताया। डाॅ. परेश पाण्डेय ने कहा विश्वनाथ पाठक जी अवधी के उन्नायक कवि थे। उन्हें अवध क्षेत्र की ग्रामीण जनता के लोक व्यवहार का अद्भुत ज्ञान था। यह बात कम लोग जानते है कि पाठक जी पालि प्राकृत और अपभ्रंश के भी प्रकाण्ड पण्डित थे। ‘आपस’ के निदेशक डाॅ. विन्ध्यमणि ने कहा - पाठक जी की विद्वता में प्राकृत अपभ्रंश अवधी का त्रिकोण समाया हुआ था। यह अलग बात है कि आज प्राकृत और अपभ्रंश समझने वाले कम ही लोग है। उनकी ध्वन्यात्मक विवक्षा अद्भुत है। दीपक मिश्र ने कहा पाठक जी के निधन से समकालीन अवधी कविता का मर्मी, गूढ विद्वान हमने खो दिया है। उनकी प्राकृत, अपभं्रश विद्वता को साहित्य जगत प्रयोग में न ला सका। राजकीय आश्रम पद्धति इं.का.बरवा, मसौधा के पूर्व प्रधानाचार्य डाॅ. ओंकार त्रिपाठी ने कहा वे जब कभी मेरे मिल्कीपुर आवास पर आते तो सर्वमंगला का छन्द अवश्य सुनाते। पालि, प्राकृत अवधी का ऐसा विद्वान अब मिलना असंभव है। शोक गोष्ठी में शामिल होने वालों में डाॅ. कोमल शास्त्री, डाॅ. कृष्णगोपाल त्रिपाठी, जगदम्बा प्रसाद, डाॅ. शिव प्रसाद मिश्र, आदि शामिल रहे।

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2 टिप्पणियाँ

  1. विश्वनाथ पाठक ने अवधी में जो काम किया है.वह महत्व का है लेकिन पालि और अपभ्र्श में उनका काम दुर्लभ किस्म का है.कुछ भाषाये मरणासन्न हो रही है.उनके लोप होने के खतरे है.यह हैरत की बात है कि पाठक जी फैजाबाद जैसी जगह से निस्पृह होकर साहित्य साधना कर रहे थे.यह कितनी बड़ी विड्म्बना कि लेखक को उसकी मृत्यु के बाद जाना जाता है.सच्ची श्रद्धाजलि यही है कि उनके साहित्य को सामने लाया जाय.आप अवध क्षेत्र के है.दिल्ली में रहकर इस काम को आगे बढ़ा सकते हैं

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