रामचरितमानस में नपुंसक — देवदत्त पट्टनायक | अनुवाद: भरत तिवारी


रामचरितमानस में क्वीर (queer) — देवदत्त पट्टनायक | अनुवाद: भरत आर तिवारी

और इस तरह युद्ध की तैयारी शुरू होती है — देवदत्त पट्टनायक


अनुवाद: भरत तिवारी
तुलसीदास की रामचरितमानस में एक चौपाई की दो पंक्तियाँ है, जिन्हें वक़्त बेवक़्त दोहराया जा रहा होता है—
   ‘ढोल  गवाँर  शूद्र  पशु  नारी।
    सकल ताड़ना के अधिकारी॥ ‘
इन पंक्तियों का अर्थ बहस का बड़ा मुद्दा रहा है। जिनमें सबसे प्रचलित अर्थ है —
    ‘ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री सब फटकार के लायक हैं।‘ 
यह ढोल गवाँर ... हिन्दू धर्म को सामंतवादी दिखाने के लिए प्रयोग होता रहा है। वाजिब है कि इसका विरोध करने वाले भी कम नहीं हैं।

यहाँ आरोप लगाने वाले अकसर वामपंथी और बचाव पक्ष वाले दक्षिणपंथी होते हैं। लेफ्टिस्ट अपने आप को ‘पूर्णतया सही’ मानते हुए राइटिस्ट को बेकार की बहस करने वाले, सच को अस्वीकार करने वाले कहते हैं। इधर राइटिस्ट ख़ुद को ‘न समझे जा सकने वाला’ और लेफ्टिस्ट को उद्धारकर्ता-मनोग्रंथि से पीड़ित मान रहा होता है। शैक्षणिक और मीडिया समुदाय का झुकाव वामपंथ की तरफ होता है, हालांकि इस समय बहुतेरे वाम की समझ पर सवाल उठाते हुए दक्षिणपंथी बन रहे हैं। वामपंथी यह मान कर चल रहा होता है कि दक्षिणपंथी सारे-ही गुंडे हैं। और दक्षिणपंथी हर एक राइटिस्ट पर राष्ट्र-विरोधी (भारत में देशभक्ति को चतुराई से हिन्दू धर्मनीति में बदल कर) का बिल्ला लगाना चाहता है। और इसतरह युद्ध की तैयारी शुरू होती है।

देवदत्त पटनायक ने चमत्कार कर दिखाया — ममता कालिया

मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई इस पुस्तक का सरल सुबोध अनुवाद भरत तिवारी ने किया है। हममें से जो मित्र अब तक भरत तिवारी को एक छायाकार, पत्रकार के रूप में जानते थे, जरा संभल जाएं। इस अनुवाद से  स्पष्ट है कि भरत के पास बड़ी समर्थ भाषा और भाव-संपदा है। यह पुस्तक अवधी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिंदी में रूपांतरित होकर भी अपनी अर्थगर्भिता में अत्यंत समृद्ध है।
और इस चिल्लपों युद्द में, जहाँ कुछ-भी वह अदालती ड्रामा बन जाता हो मय लाइव कैमरा, आरोपी-प्रत्यारोपी सबकुछ, पांडित्य गुम हो जाता है। समुद्र के देव, वरुण इन पन्क्तियों को राम से तब कहते हैं जब राम, समुद्र से, लंका जाने के लिए रास्ता देने की माँग रखते हैं। वरुण राम से ख़ुद के ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी की तरह व्यवहार की माफ़ी माँगते हुए, उन्हें यह याद दिलाते हैं कि संसार में हर किसी को अपनी सीमा के भीतर रहना पड़ता है, यानी ईश्वर के लिए भी समुद्र अपने नियम नहीं बदल सकता।

क्या कवि तुलसी ने यहाँ सामंतवाद का और सेवक व स्त्री को पीटे जाने का समर्थन किया है? क्या ये शब्द 16वीं शताब्दी में गंगा के मैदानी इलाक़ों में रहने वाली हिंदी-भाषी-पट्टी के किसी ख़ास समुदाय के लिए कहे गए हैं, याकि सारे हिन्दुओं के लिए? ये निर्देश हैं या फिर समय पर टिप्पणी ? यह अपनी-अपनी समझ का मसला है। इस पर कभी-न-ख़त्म होने वाली ऐसी बहस हो सकती है जो डॉक्ट्रेट की डिग्री दिला दे और टीवी के कार्यक्रमों में जगह पक्की करा दे। सच यह है: लोगों की ही तरह कवि की भी अपनी समझ होती है, और यह ज़रूरी नहीं है कि वह हमेशा सही हो। और इसमें कोई दिक्क़त भी नहीं है, सिवाय उन्हें छोड़, जो ‘न्याय’ के नाम पर आवाज़ को घोंटना चाहते हैं।

इसी पुस्तक में एक लाइन है जिसे इस तरह नहीं उछाला जा रहा होता। जब राम — अंतिम अध्याय (7.87 क) में — काक भुसंडी से कहते हैं —
    “पुरुष  नपुंसक  नारी  वा  जीव  चराचर  कोइ। 
     सर्व भाव भज कपट तजि मय परम प्रिय सोइ॥ “ 




अर्थात —
     ‘वह पुरुष, नपुंसक, स्त्री, जानवर या पेड़-पौधा जो छल-कपट छोड़ने के बाद मेरे पास आता है, मुझे प्यारा है।‘ 
यहाँ, प्रभु स्वयं को सबकी, नपुंसक तक की, पहुँच के भीतर होना बता रहे हैं। क्यों भला वामपंथ और दक्षिणपंथ इन लाइनों का हवाला नहीं देते, उध्दृत नहीं करते? इसलिए तो नहीं कि यह वामपंथी प्रतिमान कि ‘हिन्दू धर्म सामंतवादी है’ को चुनौती देता है? इसलिए तो नहीं कि यह दक्षिणपंथी प्रतिमान कि ‘समलैंगिक हिन्दू धर्म का अंग नहीं हैं’ को चुनौती देता है?

translation by Bharat R Tiwari
अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद,
भरत आर तिवारी
मृणाल पाण्डे — एक सुकवि का मर्म थाहना
ये दो छंद, हिन्दू धर्म के दो बहुत जुदा नज़रिये दिखाते हैं। पहला हिन्दू धर्म को सामंती और ऊँच-नीच मानने वाला बनाता है। दूसरा हिन्दू धर्म को सबकी पहुँच के भीतर और सबके लिए मौजूद होने वाला बता रहा है। यह आज़ादी के बाद के भारत की तरह समलैंगिकों के होने को नहीं नकारता। ‘असली’ भारत कौन सा है? हम किसे चुनें? क्या हमारी पसंद हमारी राजनीति को प्रभावित करती है? क्या ये दोनों छंद, एक प्राचीन संस्कृति को बल और प्रतिबल देते हुए, मौजूद हैं? वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों को ही अपने चिल्लपोंपन पर वापस जाने से पहले — ठहर के — सोचना-समझना और विचार करना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025