मृणाल पाण्डे — एक सुकवि का मर्म थाहना



देवदत्त पटनायक की वर्तिका का बल पांडित्य बघारने पर केंद्रित नहीं — मृणाल पाण्डे




गैर-राजनीतिक इरादे से देसी परंपरा को हिंदी में समझना-समझाना,अंग्रेजी में व्याख्या करने से कहीं जटिल बन चला है — मृणाल पाण्डे



'हंस' जून 2018
देवदत्त पटनायक ने पुरातन साहित्य, उपाख्यानों, महाकाव्यों के मिथकों और आख्यानों पर सरस-सुघड़ अंग्रेजी में विस्तृत टीकाएं रचकर भारतीय भाषाओं से दूर खड़ी नई पीढ़ी और हमारी साझा सांस्कृतिक विरासत को लगातार सराहनीय तरीके से जोड़ा है. तुलसीदास की अमर लोकप्रिय वंदना, हनुमान चालीसा की मार्मिक वर्तिका (वह व्याख्या जो दीये की जलती बाती की तरह प्रकाश का दायरा बड़ा करते हुए अंधकार में छिपे सत्य पर प्रकाश डाले) लेखक के ज्ञान, भाषायी संवेदनशीलता और बेलाग सहज अभिव्यक्ति का एक सुंदर प्रमाण है.

अवधी में रचित कुल चालीस छंदों की इस कृति के अंत में लेखक ने कृति के नाम, तुलसी का जीवनवृत्त और उनका आराध्य हनुमान से एकीकरण पर भी तीन छोटे और जानकारी से भरे प्रकरण ही नहीं जोडे़, यत्रा-तत्रा अपनी विलक्षण तूलिका से बनाए पारंपरिक रेखांकन भी दिए हैं. उनकी वर्तिका का बल पांडित्य बघारने पर केंद्रित नहीं. उनका लक्ष्य सामान्य पाठकों को इस प्रकरण के बहाने एक बहुत ही समृद्ध ज्ञान की परंपरा और उसकी खुली विचार परंपरा से रूबरू कराने का है, जिसमें वे सफल रहे हैं.

मूल अंग्रेजी में उनकी यह पुस्तक पढ़ते हुए मन में सहज आता था, काश ऐसा सरस-सहज ज्ञान, जो दार्शनिक सोच-विचार से एक लोकप्रिय प्रार्थना के इतने सुंदर और गहरे पहलुओं को आज के युग से सीधे जोड़ रहा है, हिंदी पाठकों को भी सुलभ हो पाता. ईमानदारी की बात यह है कि आज के हिंदी जगत् में किताबी ज्ञान और बड़बोली दार्शनिकता तो बहुत है, लेकिन पुरानी साहित्य-कला परंपरा पर सहज-सुंदर व्याख्याओं की घोर कमी बनी हुई है इसकी वजह यह नहीं कि हिंदी में इन विषयों के पाठक नहीं या खुद हिंदी भाषा ऐसी अभिव्यक्ति के काबिल नहीं. बल्कि यह कि हिंदी के पास आज ऐसे विविध कलाओं के जानकार और बहुभाषा-भाषी लेखकों की बहुत कमी हो गई है, जो एक उदार और रसमय भाषा में परंपरा की तटस्थ व्याख्या कर सकें. और बात करते हुए एक ज्ञान की परिधि को और भी फैलाकर ज्ञान के दूसरे दायरों से जोड़ते चलें.


देवदत्त पटनायक की सरस-गंभीर अंग्रेजी व्याख्या को एक सहज बोलचाल की हिंदी में अनूदित करते हुए भरत तिवारी ने हिंदी के सुधी पाठकों के लिए अपनी परंपरा और जनभाषाओं की ताकत को समझ पाने की कई नई राहें खोली हैं. यह काम जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं, क्योंकि इधर हिंदी भाषा और परंपरा का इतना जहरीला राजनीतिकरण हो चुका है कि गैर-राजनीतिक इरादे से देसी परंपरा को हिंदी में समझना-समझाना,अंग्रेजी में व्याख्या करने से कहीं जटिल बन चला है. फिर भी भरत तिवारी ने मूल लेखक का वह आशय गहराई से समझा और समझाया है जिसके अनुसार:

  ‘अनंत पुराणों में छिपा है सनातन सत्य
   इसे पूर्णतः किसने देखा है?
   वरुण के हैं हजार नयन
   इंद्र के सौ
   मेरे आपके केवल दो!

इस मर्म को पकड़कर धर्म और संस्कृति को पोंगापंथी, विभेदकारी राजनीति और जड़ शास्त्राीयता से दूर सहज बुद्धि से समझना आसान बन जाता है. अनुवादक भरत तिवारी का लेखक की आवाज, उनका मुहावरा बोलचाल की हिंदी में सही तरह पकड़कर इस रसमय टीका को अंग्रेजी न जानने वाले हिंदी के पाठकों के लिए पेश करना, वह भी आज के विभेदकारी कोलाहल और नास्तिक माहौल में, बहुत सराहनीय है.

पुस्तक: मेरी हनुमान चालीसा
लेखक एवं रेखांकनकार: देवदत्त पटनायक
प्रकाशक: रूपा पब्लिकेशंस | मंजुल प्रकाशन | मूल्यः 195 रुपए
अनुवाद: भरत तिवारी
अमेज़न से मँगाने के लिए क्लिक कीजिये

मृणाल पाण्डे
संपर्क: ई-148, ईस्ट आॅफ कैलाश, नई दिल्ली-110065

००००००००००००००००

nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
टूटे हुए मन की सिसकी | गीताश्री | उर्मिला शिरीष की कहानी पर समीक्षा
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
एक स्त्री हलफनामा | उर्मिला शिरीष | हिन्दी कहानी
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy