अवधी में रचित कुल चालीस छंदों की इस कृति के अंत में लेखक ने कृति के नाम, तुलसी का जीवनवृत्त और उनका आराध्य हनुमान से एकीकरण पर भी तीन छोटे और जानकारी से भरे प्रकरण ही नहीं जोडे़, यत्रा-तत्रा अपनी विलक्षण तूलिका से बनाए पारंपरिक रेखांकन भी दिए हैं. उनकी वर्तिका का बल पांडित्य बघारने पर केंद्रित नहीं. उनका लक्ष्य सामान्य पाठकों को इस प्रकरण के बहाने एक बहुत ही समृद्ध ज्ञान की परंपरा और उसकी खुली विचार परंपरा से रूबरू कराने का है, जिसमें वे सफल रहे हैं.
देवदत्त पटनायक की सरस-गंभीर अंग्रेजी व्याख्या को एक सहज बोलचाल की हिंदी में अनूदित करते हुए भरत तिवारी ने हिंदी के सुधी पाठकों के लिए अपनी परंपरा और जनभाषाओं की ताकत को समझ पाने की कई नई राहें खोली हैं. यह काम जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं, क्योंकि इधर हिंदी भाषा और परंपरा का इतना जहरीला राजनीतिकरण हो चुका है कि गैर-राजनीतिक इरादे से देसी परंपरा को हिंदी में समझना-समझाना,अंग्रेजी में व्याख्या करने से कहीं जटिल बन चला है. फिर भी भरत तिवारी ने मूल लेखक का वह आशय गहराई से समझा और समझाया है जिसके अनुसार:
‘अनंत पुराणों में छिपा है सनातन सत्य
इसे पूर्णतः किसने देखा है?
वरुण के हैं हजार नयन
इंद्र के सौ
मेरे आपके केवल दो!’
इस मर्म को पकड़कर धर्म और संस्कृति को पोंगापंथी, विभेदकारी राजनीति और जड़ शास्त्राीयता से दूर सहज बुद्धि से समझना आसान बन जाता है. अनुवादक भरत तिवारी का लेखक की आवाज, उनका मुहावरा बोलचाल की हिंदी में सही तरह पकड़कर इस रसमय टीका को अंग्रेजी न जानने वाले हिंदी के पाठकों के लिए पेश करना, वह भी आज के विभेदकारी कोलाहल और नास्तिक माहौल में, बहुत सराहनीय है.
पुस्तक: मेरी हनुमान चालीसा
लेखक एवं रेखांकनकार: देवदत्त पटनायक
प्रकाशक: रूपा पब्लिकेशंस | मंजुल प्रकाशन | मूल्यः 195 रुपए
अनुवाद: भरत तिवारी
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मृणाल पाण्डे
संपर्क: ई-148, ईस्ट आॅफ कैलाश, नई दिल्ली-110065