सत्यजित रे की कहानी — सियार देवता का रहस्य | पार्ट 2



सियार देवता का रहस्य (पार्ट २)

सत्यजित रे



फाटक के अन्दर घुसते ही देखा, बाहर एक खुले बरामदे पर बेंत की कुरसी पर एक मध्यवयस्क आदमी बैठे हुए हैं। हमें अपनी ओर आते देखकर भी वे कुरसी से नहीं उठे। शाम के धुंधलके में भी यह पता चल गया कि उनका चेहरा खासा गम्भीर है।

फेलुदा ने दोनों हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर नमस्कार करते हुए अपने नये बुढ़ापे की धीमी आवाज में कहा, 'क्षमा करें, आप ही क्या प्रतुल बाबू हैं? '

भले आदमी ने गम्भीर स्वर में कहा, 'हाँ।'

'मैं ही जयनारायण बागची हूँ। मैंने ही आज दोपहर आपको फोन किया था। यह है मेरा भान्जा, सुबोध।'

'भांजे को अपने साथ क्यों ले आए? इसके बारे में तो आपने फोन पर कुछ कहा नहीं था।'

मेरे सिर पर का विग खुजलाने लगा।

फेलुदा ने अपनी आवाज को अत्यन्त मीठी बनाते हुए कहा, 'वह चित्र बनाना सीख रहा है इसीलिए'...भले आदमी कुरसी छोड़कर खड़े हो गए।

'आप लोग मेरी चीजें देखना चाहते हैं, इसमें मुझे कुछ आपत्ति नहीं। तब हाँ, हटाकर रखी हुई तमाम चीजों को खींच-खाँच कर बाहर निकालना पड़ा है। बड़ी ही परेशानी उठानी पड़ी। एक तो यों ही घर पर रात-दिन मिस्त्रियों का झमेला लगा रहता है, इसे ठेलो, उसे हटाओ... चारों तरफ कच्चा रंग है। रंग की गन्ध भी बरदाश्त नहीं होती। सारी झंझटें चुक जाएँ तो साँस लेने का मौका मिले। आइए, अन्दर...'

वह आदमी भले ही अच्छा न लगा हो परन्तु अन्दर जाकर उनकी चीजों को देखते ही मैं आश्चर्यचकित रह गया।

फेलुदा ने कहा, 'देख रहा हूँ आपके पास मिस्र की शिल्प-कला का खासा अच्छा संग्रह है।'

'सो है। कुछ चीजें कैरो में खरीदी हैं, और कुछ यहाँ ऑक्शन में।'

'देखो भैया सुबोध, अच्छी तरह से देख लो।' फेलुदा ने मेरी पीठ में चिकौटी काटकर मुझे चीजों की ओर धकेल दिया। 'तरह-तरह के देवी-देवता हैं, देख लो। यह जो बाज है, वह भी देवता ही है, यह जो उल्लू है—वह भी देवता ही है। देखो, मिस्र में कितनी तरह की चीजों की लोग-बाग पूजा-उपासना किया करते थे।'

प्रतुल बाबू ने सोफे पर बैठकर चुरुट सुलगाया।

न जाने एकाएक मुझे क्या विचार आया कि मैं बोल उठा, 'सियार देवता नहीं है, मामा जी?'

इस सवाल से प्रतुल बाबू को जैसे एक धक्का लगा हो। वे बोले, 'चुरुट की क्वालिटी फील कर गई है। पहले इतना कड़ा नहीं हुआ करता था।'

फेलुदा ने पहले की तरह ही महीन आवाज में कहा, 'हें-हें—मेरा भांजा एनबिस के बारे में कह रहा है। कल ही उसे इसके बारे में बताया था।'

प्रतुल बाबू अचानक झुंझला उठे, 'हुँ! एनूबिस स्टुपिड फूल!'

'जी?' फेलुदा ने अचकचाकर प्रतुल बाबू की ओर देखा, 'एनूबिस को आप मूर्ख कह रहे हैं?'

'एनबिस को नहीं कह रहा हूँ। उस दिन नीलामी के समय...उस आदमी को मैं पहले भी देख चुका हूँ...ही इज ए फूल। उसकी बिडिंग का कोई हिसाब ही नहीं रहता। एक बहुत की खूबसूरत मूर्ति थी। ऐसी एबसर्ड बोली बोला कि उससे ज्यादा बोलना मुश्किल था। पता नहीं, उतना पैसा कहाँ से लाता है!'

फेलुदा ने चारों तरफ एक बार फिर से सरसरी निगाह दौड़ाते हुए उन्हें नमस्कार किया और कहा, 'बहुत-बहुत धन्यवाद। आप बड़े ही भले आदमी हैं। आपका शिल्पों का संग्रह देखकर बेहद खुशी हुई।'

ये सब चीजें दोमंजिले पर थीं। अब हम नीचे की ओर चल दिए। सीढ़ियाँ उतरते हुए फेलुदा ने कहा, 'आपके यहाँ और कौन-कौन...?'

'पत्नी है। लड़का विदेश में रहता है।'

प्रतुल दत्त के घर से निकलने के बाद जब हम टैक्सी के लिए आगे बड़े तो यह बात समझ में आई कि मुहल्ला कितना निर्जन है। अभी सात भी नहीं बजे हैं, फिर भी सड़क पर राहगीर नहीं के बराबर हैं। दो भिखमंगे बच्चे श्यामा संगीत गाते हुए आ रहे हैं। हम जब उनके करीब पहुँचे तो पता चला कि उनमें से एक गीत गा रहा है और दूसरा बाजा बजा रहा है। लड़के का गला बड़ा ही मधुर है। फेलुदा उसके स्वर से स्वर मिला कर गाने लगा

बोलो माँ तारा जाऊँ मैं कहाँ

कोई न मेरा है शंकरी यहाँ... 

बालीगंज के सर्कलुर रोड से चहल-कदमी करते वक्त हमारी दृष्टि एक भागती हुई टैक्सी पर पड़ी। फेलुदा ने आवाज देकर उसे रोका। जब हम टैक्सी के अन्दर बैठने लगे तो बूढ़े ड्राइवर को फेलुदा की ओर आश्चर्य-भरी दृष्टि से देखते हुए पाया। इस मरियल बूढ़े के गले से नौजवान के गले की जैसी तेज आवाज कैसे निकली थी, शायद वह यही सोच रहा था।

दूसरे दिन सुबह जब टेलीफोन बजा मैं बाथरूम के अन्दर दाँत साफ कर रहा था। इसलिए फेलुदा ने ही फोन का रिसीवर उठाया।

पूछने पर पता चला कि नीलमणि बाबू ने एक सूचना देने के लिए फोन किया था।

कल प्रतुल बाबू के घर में भी डकैती हो गई। यह खबर अखबार में भी छपी है। रुपया-पैसा नहीं गया है, डकैत सिर्फ कुछेक प्राचीन काठकार्य की चीजें ले गए हैं। आठ-दस छोटी-छोटी चीजें। उनकी कीमत कुल मिलाकर बीस-पचीस हजार रुपये से कम न होगी। पुलिस ने खोज-पड़ताल शुरू कर दी है।

प्रतुल बाबू के घर पर सुबह-सुबह पुलिस से साक्षात्कार होना और उनके बीच फेलुदा का परिचित आदमी मिल जाना—कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हम जब वहाँ पहुँचे तो सवा सात बज चुके थे। आज मैंने मेकअप नहीं किया है। फेलुदा अपना जापानी कैमरा अपने साथ लाना भूला नहीं था।

हम कुल मिलाकर गेट के अन्दर पहुँचे ही होंगे कि तभी एक प्रसन्न मुख मोटा-सोटा चश्मा लगाए हुआ आदमी—शायद इन्स्पेक्टर या कुछ वैसा ही होगा—फेलुदा पर नजर पड़ते ही उसके पास बढ़ आया और उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुए बोला, 'क्या हाल-चाल है फेलु मास्टर? लगता है, गंध मिलते ही आकर हाजिर हो गए।'

फेलुदा ने विनम्रता के साथ हँसते हुए कहा, 'क्या करूँ, हमारा तो यही काम है।'

'काम मत कहो। काम तो है हम लोगों का। तुम लोगों का यह शौक है। कहो, ठीक कह रहा हूँ न?' — फेलुदा ने इस बात का उत्तर न देकर कहा, 'कुछ पता चला? बर्गलरी केस है?'

'इसके अलावा और क्या हो सकता है? इतना जरूर है कि भले आदमी बहुत ही 'अपसेट' हैं। अपना सिर पीटते हुए बस इतना ही कहते हैं कि कल एक बूढ़ा आदमी एक छोकरे के साथ उनकी चीजें देखने आया था। उनकी धारणा है कि इस बर्गलरी के पीछे दोनों का हाथ है।'

यह बात सुनते ही मेरा गला सूखने लगा। फेलुदा वास्तव में बीच-बीच में बड़ा ही बेढब काम कर बैठता है।

मगर फेलुदा में घबराहट का नामोनिशान नहीं था। वह बोला, 'फिर उस बूढ़े का पता चलते ही चोर पकड़ में आ जाएगा। यह तो बड़ा ही आसान मामला है।'

मोटे पुलिस के अफसर ने कहा, 'बहुत ही अच्छी बात कह रहे हो। एक बारगी उपन्यास के खाँटी जासूस की तरह। वाह!'

उनसे इजाजत लेकर फेलुदा और हम कमरे की ओर बढ़ गए। प्रतुल बाबू को आज भी उसी बरामदे पर बैठे हुए देखा। वे इतने अनमने थे कि हमें देखकर भी जैसे नहीं देख रहे थे।

'किस कमरे से चोरी हुई है, देखोगे?' मोटे पुलिस अफसर ने पूछा। 

'चलिए।'

कल शाम हम दोमंजिले के जिस कमरे में गए थे, आज भी हमें उसी के अन्दर जाना पड़ा। किसी और चीज की ओर आँखें दौड़ाए बगैर फेलुदा सीधे बालकॉनी की ओर चला गया। बालकॉनी से झुककर नीचे की ओर देखते हुए बोला, 'हूँ, पाइप से अनायास ऊपर चढ़ा जा सकता है।'

मोटे पुलिस-अफसर ने कहा, 'हाँ, चढ़ा तो जा सकता है। और जानते हो, परेशानी की बात यह है कि दरवाजे का रंग कच्चा रहने के कारण उसे दो दिनों से बन्द नहीं किया जाता था।'

'चोरी किस वक्त हुई है?' 

'रात पौने दस बजे।'

‘पहले-पहल इसका पता किसे चला?'

‘इनका एक पुराना नौकर उसी तरफ एक कमरे में बिस्तर बिछा रहा था। आवाज सुनकर वह वहाँ देखने गया। तब कमरे में अँधेरा फैला था। बत्ती जलाने के पहले ही उसपर एक जोरों का घूसा पड़ा और वह बेहोश हो गया। उसी मौके से लाभ उठाकर चोर चंपत हो गया।'

फेलुदा की भौंहों में सिकुड़न पड़ गई। बोला, 'एक बार उस नौकर से बातचीत करना चाहता हूँ।'

नौकर का नाम वंशलोचन है। घूँसे के कारण उसे जिस यातना और भय का सामना करना पड़ा था—उनमें से दोनों चीजें अब तक बरकरार हैं। फेलुदा ने पूछा, 'दर्द कहाँ है?'

नौकर ने कराहते हुए कहा, पेट में।' 

'पेट में? ऐसा पेट में मारा था?'

'हाथ में कितनी ताकत थी—बाप रे बाप! ऐसा महसूस हुआ जैसे पेट पर किसी पत्थर की चोट पड़ी हो और उसके बाद ही आँखों के सामने अँधेरा तिर आया।' 

'तुम्हें आवाज कब सुनाई पड़ी थी? उस वक्त तुम क्या कर रहे थे?'

'मैंने टाइम नहीं देखा था, बाबू। तब मैं माँजी के कमरे में बिस्तर बिछा रहा था। दो बच्चे मिलकर कीर्तन गा रहे थे और मैं सुन रहा था। माँजी पूजाघर में थीं। वे बोलीं, बच्चे को जाकर पैसा दे दो। मैं जाने-जाने को था ही कि तभी बाबू के कमरे से बरतन गिरने की जैसी आवाज आई। सोचा, कोई वहाँ है नहीं, फिर भी चीजों के गिरने की आवाज क्यों आ रही है? इसलिए मैं देखने गया और कमरे के अन्दर जाते ही...' ।

वंशलोचन इसके बाद कुछ कह नहीं सका।

सब कुछ सुनने के बाद लगा, हमारे जाने के बाद एकाध घण्टे के अन्दर ही चोर वहाँ पहुँचा होगा।

मैंने सोचा, फेलुदा शायद और कुछ पूछताछ करे, मगर अन्तत: वह कुछ नहीं बोला। मोटे पुलिस-अफसर को धन्यवाद देकर हम कमरे से बाहर निकल आए।

बाहर सड़क पर आते ही फेलुदा के चेहरे पर एक परिवर्तन आ गया। इस चेहरे को मैं पहचानता हूँ। फेलुदा को कोई रास्ता दीख गया है और उस रास्ते पर चलते ही रहस्य का समाधान मिल जाएगा।

हमारे निकट से होती हुई टैक्सी गुजर गई, मगर फेलुदा ने उसे नहीं रोका। हम दोनों पैदल चलने लगे। फेलुदा की देखादेखी मैं भी सोचने लगा, परन्तु बहुत आगे तक नहीं बढ़ पाया। प्रतुल बाबू चोर नहीं हैं, इसका साफ-साफ पता चल जाता है, हालाँकि प्रतुल बाबू जवान जैसे दीखते हैं और उनकी आवाज में एक बुलन्दी है। मगर यह बात फिर भी मुमकिन जैसी नहीं लग रही थी कि प्रतुल बाबू एक पाइप से चढ़कर दोमंजिले पर पहुँच सकते हैं। उसके लिए बहुत कम उम्र के आदमी की जरूरत पड़ती। फिर चोर कौन है? और, फेलुदा किस चीज के बारे में इतनी तल्लीनता से सोच रहा है?

कुछ देर तक पैदल चलने के बाद हम नीलमणि बाबू की दीवार के पास पहुँच गए। दीवार को अपनी बाईं ओर छोड़कर फेलुदा आगे बढ़ने लगा।

कुछ दूर के बाद दीवार बाईं ओर मुड़ गई है। फेलुदा मुड़ गया और उसके साथसाथ मैं भी। इस ओर रास्ता नहीं है, घास पर से होकर चलना पड़ता है। मुड़ने के बाद अठारह या उन्नीस कदम चला हूँगा कि फेलुदा एकाएक ठिठककर खड़ा हो गया और दीवार के एक हिस्से को बड़े गौर के साथ देखने लगा। उसके बाद बिलकुल करीब जाकर उस जगह की एक फोटो खींची। देखा, वहाँ एक भूरे रंग की हाथ की छाप है। पूरे हाथ की नहीं, दो उँगलियों और हथेली के कुछ अंश की। मगर उससे पता चल जाता है कि यह बच्चे के हाथ की छाप है।

अब हम जिस रास्ते से वहाँ गए थे, उसी रास्ते से लौटकर फाटक से होते हुए एकबारगी मकान की ओर चले गए।

खबर भेजते ही नीलमणि बाबू हड़बड़ाते हुए नीचे चले आए। हम तीनों जब बैठक के अन्दर बैठ गए तो नीलमणि बाबू ने कहा, 'आपसे कहूँगा तो पता नहीं, आप क्या सोचेंगे मगर हकीकत यही है कि आज मेरा मन कल के बनिस्बत हल्का है। हमारी ही तरह एक और व्यक्ति की दुर्दशा हुई है, यह सोचकर तकलीफ बहुत कुछ कम हो गई है। मगर जब तक एक सवाल का जवाब न मिलेगा, मेरी तकलीफ दूर नहीं होगी। और वह सवाल है—मेरा एनूबिस कहाँ गया? बतलाइए। आप इतने बड़े डिटेक्टिव हैं। एक-एक कर दो डकैतियाँ दो दिनों के दरमियान हो गई और आप पहले की तरह अब भी अँधेरे में हैं।'

फेलुदा एक सवाल कर बैठा –

'आपका भांजा कैसा है?'

‘कौन, झन्टु? आज वह बहुत अच्छा है। दवा कारगर साबित हुई है। आज बुखार बहुत कम हो गया है।

'अच्छा, एक बात तो बताइए—बाहर से कोई लड़का दीवार लाँघकर यहाँ आता हैं? '

'दीवार लाँघकर? क्यों?' 

'आपकी दीवार के बाहरी हिस्से में एक बच्चे के हाथ की छाप दिखाई पड़ी है।' 

'छाप का मतलब? किस तरह की छाप है?' 

'भूरे रंग की छाप।' 

'ताजा छाप है?' 

'कहना मुश्किल है। तब इतनी बात जरूर है कि पुरानी नहीं है।'

'मैंने कभी किसी बच्चे को आते नहीं देखा है। एक ही बच्चा यहाँ आता है—और वह भी दीवार लाँघकर नहीं—वह है एक भिखमँगा। अत्यन्त मधुर स्वर में श्यामा संगीत गाता है। तब हाँ, मेरे बगीचे के पश्चिम तरफ तरी का एक पेड़ है। बीच-बीच में मुहल्ले के लड़के दीवार लाँघकर यहाँ न आते हों और पेड़ के फल तोड़कर न खाते हों—इसकी मैं गारन्टी नहीं दे सकता।'

नीलमणि बाबू ने अब पूछा, 'चोर के बारे में और कुछ जानकारी हासिल नहीं हुई है?'

फेलुदा सोफे से उठकर खड़ा हो गया।

'उसके हाथ में गजब की ताकत है। एक ही धूंसे में प्रतुल बाबू के नौकर को बेहोश कर डाला था।'

'फिर यहाँ और वहाँ एक ही चोर ने चोरी की है और इसमें सन्देह की कोई बात नहीं है।'

'हो सकता है। तब देह की ताकत यहाँ वैसी कोई बड़ी बात जैसी नहीं लगती है। एक भयंकर बुद्धि का भी संकेत मिलता है।'

नीलमणि बाबू का चेहरा उतर गया। बोले, 'मुझे उम्मीद है, उस बुद्धि को परास्त करने की बुद्धि आपमें है। और अगर नहीं है तो मुझे अपनी मूर्ति वापस पाने की आशा छोड़नी ही होगी।'

फेलुदा ने कहा, 'दो दिन और इन्तजार कीजिए। आज तक फेलुदा मित्तिर ने हार नहीं मानी है।'

नीलमणि बाबू के मकान के पोर्टिको से गेट तक रोड़े से बिछा रास्ता है। हम जब उस रास्ते के बीच पहुँच चुके होंगे कि तभी खट्-खट् आवाज सुनाई पड़ी और हमने पीछे की ओर मुड़कर देखा। नीलमणि बाबू के दोमंजिले के एक कमरे की खिड़की के पीछे एक छोटा लड़का—शायद झण्टु ही होगा—खिड़की के शीशे पर हाथ से दस्तक दे रहा है।

मैंने कहा, 'है।' फेलुदा ने कहा, 'देख चुका हूँ।'





दोपहर-भर फेलुदा अपनी नीली कापी में अपनी आदत के अनुसार ग्रीक अक्षरों में क्या-क्या अन्टसन्ट लिखता रहा। जानता हूँ, असल में वह अंग्रेजी है, मगर उसके अक्षर ग्रीक हैं, इसलिए कि पढ़कर कोई उसका असली मतलब नहीं समझ सके। मेरी बोलचाल फेलुदा से एकदम बन्द है और वह एक तरह से अच्छा ही है। अभी उसका सोचने का समय है, बोलने का नहीं। बीच-बीच में उसे गीत गुनगुानते देखता हूँ। यह उस भिखमंगे बच्चे के द्वारा गाया गया वही रामप्रसादी संगीत है।

तीसरे पहर पाँच बजे चाय पीकर फेलुदा बोला, 'मैं ज़रा बाहर निकल रहा हूँ। पॉपुलर फोटो से मुझे अपनी तसवीर का एनलार्जमेण्ट ले आना है।'

घर पर मैं अकेला ही रह गया।

दिन छोटे होते जा रहे हैं। इसीलिए साढ़े पाँच बजते न बजते सूर्य डूब गया और अँधेरा रेंगने लगा। पॉपुलर फोटो की दुकान हाजरा रोड के मोड़ पर है। फेलुदा को फोटो लेकर लौटने में बीस मिनट से ज्यादा नहीं लगना चाहिए था। लेकिन इतनी देर क्यों हो रही है? यह जरूर है कि कभी-कभी तसवीर तैयार न रहने के कारण दुकान पर बैठना पड़ता है। मुझे उम्मीद है, वह कहीं दूसरी जगह नहीं गया होगा। मुझे छोड़कर अगर वह इधर-उधर चक्कर लगाता है तो मुझे अच्छा नहीं लगता।

करताल की आवाज मेरे कान में आती है और उसके साथ-साथ परिचित गले का वही गीत—

बोलो माँ तारा जाऊँ मैं कहाँ

कोई न मेरा है शंकरी यहाँ... 

वे दोनों लड़के ही हैं। आज हमारे मुहल्ले में भीख माँगने आए हैं।

गीत धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता आ रहा है। मैं अपने कमरे की खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया। यहाँ से सड़क दिखाई पड़ती है। वे ही लड़के हैं—एक गीत गा रहा है और दूसरा करताल बजा रहा है। कितना मधुर है उस लड़के का स्वर!

अब गीत गाना बन्द कर दोनों लड़के हमारे घर के सामने खड़े हो गए और ऊपर की ओर चेहरा उठाकर बोले, 'माँजी, भीख दीजिए, माँजी!'

पता नहीं मुझे क्या हुआ कि मैंने पचास पैसे का एक सिक्का खिड़की से लड़कों की ओर फेंक दिया। ठन से आवाज करता हुआ वह सिक्का जमीन पर गिर पड़ा। लड़के ने उसे उठाकर झोले में रख लिया और फिर से गीत गाता हुआ वहाँ से रवाना हो गया।

एक बात की वजह से मेरा माथा चकराने लगा। हम लोगों का रास्ता हालाँकि काफी अँधेरा था, फिर भी भिखमँगे बच्चे ने ऊपर की ओर मुँह उठाकर भीख माँगी, तो मुझे लगा कि उसके चेहरे से झण्टु का चेहरा हूबहू मिल रहा है। हो सकता है मैंने देखने में गलती की हो, मगर मन में तो एक खटका पैदा हो ही गया। मैंने तय किया कि फेलुदा के आते ही उससे यह बात कहूँगा।





लगभग साढ़े छह बजे फेलुदा एनलार्जमेन्ट लेकर वापस आया। उसके चेहरे पर एक तनाव था। मैंने जो सोचा था, वही हुआ, उसे दुकान में बैठकर इन्तजार करना पड़ा। बोला, 'अब खुद ही एक डार्करूम तैयार करूँगा और उसी में फोटो का डेवलपिंग-प्रिन्टिंग करूँगा। बंगाली दुकानदारों की बात पर यकीन नहीं किया जा सकता।'

फेलुदा जब अपने बिस्तर पर तसवीरों को फैलाए बैठा था, मैंने उसके पास जाकर उससे भिखमँगे बच्चे की बात बताई। बिना किसी आश्चर्य के उसने कहा, 'इसमें हैरान होने की कौन-सी बात है?' 

'हैरान होने की बात नहीं है?' 

'उहुँ।' 

‘मगर इसे तो भयंकर गड़बड़ ही कहा जाएगा।' 

'गड़बड़ है ही। यह बात शुरू ही में मेरी समझ में आ गई थी।' 

'तुम क्या यह कहना चाहते हो कि वह लड़का चोरी के मामले में शामिल है?' 

'हो भी सकता है।'

'मगर एक बच्चे के घूँसे में क्या इतनी ताकत हो सकती है कि वह एक बड़े आदमी को बेहोश कर दे?'

'मैंने तो यह नहीं कहा कि बच्चे ने घूँसा मारा है।' 

'तब ठीक है।'

यों मैंने कह तो दिया कि ठीक है, मगर वास्तव में मुझे ठीक नहीं लग रहा था। पता नहीं, फेलुदा साफ-साफ कुछ क्यों नहीं कह रहा है।

पलंग पर फैली बारह तसवीरों में से एक को फेलुदा बहुत गौर के साथ देख रहा था। करीब जाने पर मैंने देखा, वह आज ही सवेरे नीलमणि बाबू की दीवार से बच्चे के हाथ की छाप की ली गई तसवीर है। एनलार्जमेन्ट के कारण हथेली साफ-साफ दीख रही है। मैंने कहा, 'तुम्हारा कहना है कि तुम हाथ देखना जानते हो। यह तो बताओ कि बच्चे की आयु कितनी है? '

फेलुदा ने कुछ भी जवाब न दिया। वह तन्मय होकर तसवीर की ओर देख रहा था। उसमें बेहद दत्तचित्तता का भाव था।

'तेरी समझ में कुछ आ रहा है?' 

उसके आकस्मिक प्रश्न ने मुझे चौंका दिया। 

'समझ में क्या आएगा?' 

‘सुबह तूने क्या समझा था और अब तेरी समझ में क्या आ रहा है—यही बता।' 

'सुबह? यानी जब तुमने तसवीर ली थी?' 

'हाँ।' 

'क्या समझूंगा? बच्चे का हाथ है—इसके सिवा समझने की और क्या बात है?' 

'छाप का रंग देखने से कुछ मतलब नहीं निकलता है?'

'रंग तो भूरा था।' 

'इसका क्या मतलब निकलता है?' 

'यही कि बच्चे के हाथ में भूरा रंग लगा हुआ था।' 

'इसका कुछ मानी है? ठीक-ठीक बताओ।' 

'पेण्ट हो सकता है।' 

'कहाँ का पेण्ट?' 

मुझे एकाएक यह बात याद आ गई। 'प्रतुल बाबू के दरवाजे का रंग।'

'एग्जैक्टली। उस दिन तुम्हारी शर्ट की आस्तीन में भी लग गया था। तू जाकर देख सकता है कि अब भी लगा हुआ है।'

'मगर...' मेरा सिर चकराने लगा था, 'जिसके हाथ की छाप है वही क्या प्रतुल बाबू के घर के अन्दर घुसा था?'

हो सकता है। अब यह बता कि तसवीर देखने से तेरी समझ में क्या बात आई है? '

बहुत सोचने के बाद भी मैं यह बता नहीं सका कि कोई नई बात मेरी समझ में आई है।

फेलुदा ने कहा, 'तू बता देता तो मुझे ताज्जुब होता। ताज्जुव ही नहीं, शॉक भी लगता; क्योंकि तब मुझे मानना पड़ता कि तेरी और मेरी बुद्धि में कोई अन्तर नहीं है।'

'तुम्हारी बुद्धि क्या बता रही है?'

‘बता रही है कि यह एक संगीन मामला है। भयंकर बात। एनूबिस जितना भयंकर होता है उतनी ही भयंकर।'





दूसरे दिन सवेरे फेलुदा ने पहले नीलमणि सान्याल को फोन किया।

'हेलो, आप कौन बोल रहे हैं—मिस्टर सान्याल? आपके रहस्य का पता चल गया है...मूर्ति अब भी मिली नहीं है, तब वह कहाँ है इसका मोटे तौर पर अन्दाज लगा लिया है...आप क्या घर पर ही रहिएगा? ...बुखार बढ़ गया है?...किस अस्पताल में लेकर जा रहे हैं...? ओह अच्छा। फिर बाद में मिलूंगा...'

फोन रखकर फेलुदा ने एक दूसरे नम्बर में डायल किया। फुसफुसाकर क्या बातचीत हुई, अच्छी तरह सुन नहीं सका। तब हाँ, यह जरूर ही समझ गया कि फेलुदा पुलिस को फोन कर रहा है। फोन रखकर उसने मुझसे कहा, 'अभी तुरन्त बाहर चलना है। तैयार हो जा।'

एक तो सुबह यों ही ट्रैफिक कम रहता है, उसपर फेलुदा ने ड्राइवर से टॉप स्पीड में गाड़ी चलाने को कहा। देखते न देखते हम नीलमणि बाबू के घर के रास्ते पर आ गए।

हम जब गेट के करीब पहुँचे, नीलमणि बाबू अपनी काले रंग की एम्बेसडर गाड़ी पर सवार होकर बहुत तेजी के साथ दूसरी दिशा की ओर रवाना हो गए। सामने ड्राइवर और पीछे नीलमणि बाबू के अतिरिक्त और कोई आदमी दिखाई नहीं पड़ा।

'और जोर से।' फेलुदा चिल्ला उठा। टैक्सी ड्राइवर ने भी उत्तेजना में आकर एक्सिलेटर को अपने पैर से दबा दिया।

सामने की गाड़ी एक भद्दी गों-गों आवाज करती दाहिनी ओर मुड़ गई। अब फेलुदा ने एक ऐसा काम किया, जैसा इसके पहले उसने नहीं किया था। कोट के अन्दर हाथ डालकर अचानक उसने अपना रिवाल्वर बाहर निकाल लिया और खिड़की से नीचे झुककर नीलमणि बाबू की गाड़ी के पिछले टायर को निशाना बनाकर गोली दाग दी।

लगभग एक ही साथ रिवाल्वर और टायर फटने की आवाज कानों में आई। नीलमणि बाबू की गाड़ी सड़क के एक किनारे तिरछी होकर एक लैंपपोस्ट से टकरा गई।

हम लोगों की गाड़ी जैसे ही नीलमणि बाबू की गाड़ी के पास खड़ी हुई, दूसरी दिशा से पुलिस की जीप भी आ गई।

नीलमणि बाबू गाड़ी से उतरकर विरक्ति के साथ इधर-उधर ताक रहे थे। फेलुदा और मैं टैक्सी से उतरकर नीलमणि बाबू की ओर चले गए। पुलिस की गाड़ी आकर रुक चुकी है। उससे वही मोटा अफसर नीचे उतरा। नीलमणि बाबू अचानक बोल पड़े, 'यह सब क्या हो रहा है?'

फेलुदा ने गम्भीरता के साथ कहा, 'क्या मैं यह जान सकता हूँ कि आपके साथ गाड़ी में ड्राइवर के अलावा और कौन-कौन है?'

'और कौन रहेगा?' वे चिल्ला उठे, ‘बताया ही था कि मैं अपने भांजे को साथ लिए अस्पताल जा रहा हूँ।'

अब फेलुदा बिना कुछ बोले सीधे नीलमणि बाबू की गाड़ी के पास चला गया और दरवाजे के हैण्डल को पकड़कर जोरों से खींचा। दरवाजा खुल गया। दरवाजे को खोलते ही एक बच्चा गाड़ी के अन्दर से तीर की तरह बाहर निकला और फेलुदा पर झपटकर उसका गला दबोचने लगा। मगर फेलुदा सिर्फ योगाभ्यास नहीं करता, उसने कुश्ती की भी शिक्षा पाई है। बच्चे की कलाइयों को पकड़कर उसे एक अजीब तरीके से सिर की तरफ से घुमाकर सड़क पर पटक दिया। बच्चे के मुँह से दर्द के कारण एक चीख निकल पड़ी और उस चीख को सुनकर मैं भय से काँप उठा।

क्योंकि वह एक बच्चे के गले की आवाज नहीं थी। वह एक वयस्क आदमी के गले की विकट और जोरदार चीख थी। यही आवाज उस दिन मुझे टेलीफोन पर सुनाई पड़ी थी।

इसी बीच पुलिस ने आकर नीलमणि बाबू की गाड़ी के ड्राइवर और बच्चे को पकड़ लिया था।

फेलुदा अपनी कमीज का कॉलर ठीक करते हुए बोला, 'दीवार पर हाथ की छाप देखते ही बात मेरी समझ में आ गई थी। कच्ची उम्र के लड़कों के हाथ में इतनी रेखाएँ नहीं हुआ करती हैं। उनका हाथ और भी अधिक कोमल हुआ करता है। लेकिन आकार जब छोटा है तो उसका एक ही मतलब निकल सकता है। दरअसल यह एक बौने के हाथ की छाप है। बच्चा और कुछ नहीं, बल्कि एक बौना है। आपके शागिर्द की उम्र कितनी है, नीलमणि बाबू?'

'चालीस!' नीलमणि बाबू के गले से ठीक से आवाज नहीं निकल रही है।

'बहरहाल आपने बड़ी अक्लमन्दी से काम निकाला था। पहले अपनी चीज की चोरी की घटना खड़ी कर मुझे बुलवाया और उसके बाद अपने आदमी से दूसरे की चीज की चोरी कराई। आपके घर पर जिसे कल देखा था, वह क्या वही भिखमँगा बच्चा है?'

नीलमणि बाबू ने सिर हिलाकर हामी भरी।

'इसका मानी तो यही है कि असल में वह आपका भांजा नहीं है। उसे आपने चोरी के मामले में मदद पहुँचाने के लिए घर पर लाकर रखा है।'

नीलमणि बाबू सिर झुकाकर खामोश खड़े रहे।

फेलुदा कहने लगा, लड़का गीत गाता था और बौना खंजड़ी बजाता था। जब चोरी का वक्त आता, खंजड़ी भिखारी के हाथ में थमा देता था और तब वही बजाता रहता था। बौना होने के कारण ही उसकी देह में इतनी ताकत है। एक ही घूँसे में वह एक जवान को घायल कर सकता है। वण्डरफुल! आपकी अक्ल की तारीफ किए बिना रहा नहीं जाता, नीलमणि बाबू!'

नीलमणि बाबू ने एक लम्बी साँस लेकर कहा, 'मिस्र की प्राचीन चीजों के प्रति मुझमें एक नशा छा गया था। उसके बारे में मैंने गहरा अध्ययन किया है। यही वजह है कि प्रतुल बाबू से मैं रश्क किया करता था।'

फेलुदा ने कहा, 'लालच बुरी बला है। आप और आपका बौना दोनों पकड़ में आ गए।...खैर, अब मैं एक अन्तिम अनुरोध करना चाहता हूँ।'

'क्या?' 

'मेरा पुरस्कार।' 

नीलमणि बाबू फटी-फटी आँखों से फेलुदा की ओर देखने लगे। 

'पुरस्कार!' 

'एनूबिस की मूर्ति सम्भवत: आपके पास ही है।'

नीलमणि बाबू ने बेवकूफ की तरह अपने दाहिने हाथ को कुरते की जेब के अन्दर डाला।

जब हाथ बाहर निकाला तो देखा—बित्ते भर लम्बे काले पत्थर पर मणिमुक्ता जड़ी चार हजार साल पुरानी मिस्र देश के स्यारमुखी देवता एनूबिस की मूर्ति है।

फेलुदा ने हाथ बढ़ाकर उसे ले लिया और कहा, 'थैंक यू।'

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