सत्यजित रे की कहानी — सियार देवता का रहस्य | पार्ट 1



सियार देवता का रहस्य

सत्यजित रे

'टेलीफोन किसने किया था, फेलुदा?'

यह सवाल करते ही मेरी समझ में आया कि मैंने बेवकूफी की है, क्योंकि फेलुदा योगाभ्यास के समय बातचीत नहीं करता है। फेलुदा ने कुल मिलाकर छह महीनों से व्यायाम छोड़कर योगाभ्यास करना शुरू किया है। सुबह वह आधे घण्टे तक तरह-तरह का आसन करता है। यहाँ तक कि कुहनी के बल अपने सिर को नीचे कर पैरों को शून्य में उठाकर शीर्षासन भी करता है। फेलुदा का शरीर एक महीने के अन्दर और भी अधिक मजबूत हो गया है; इसलिए यह मानना ही होगा कि योगासन से बहुत ही फायदा हुआ

सवाल करने के बाद ही मैंने पीछे की तरफ मेज पर रखी घड़ी में वक्त देख लिया। साढ़े सात मिनट के बाद फेलुदा ने योगासन समाप्त कर उत्तर दिया -

'तू उसे पहचान नहीं सकेगा।'

इतनी देर के बाद इस तरह का जवाब पाकर बड़ा ही गुस्सा आया। जहाँ तक पहचानने की बात है, बहुतों को नहीं पहचानता हूँ, मगर नाम बतलाने में दोष ही क्या है? और अगर नहीं पहचानता हूँ तो पहचान क्या कराई नहीं जा सकती? मैंने गम्भीरता के साथ कहा, 'तुम पहचानते हो?'

फेलुदा ने भिगोया हुआ चना खाते-खाते कहा, 'पहले पहचानता नहीं था। मगर अब जान-पहचान हो गई है।'

कुछ दिन पहले हमें पूजा की छुट्टी मिल चुकी है। बाबूजी तीन दिन पहले काम से जमशेदपुर गए हुए हैं। घर पर अभी फेलुदा, मैं और माँ हैं। अबकी हम पूजा के अवसर पर कहीं बाहर नहीं जाएँगे। इसके लिए मुझे कोई खास दुख नहीं है, क्योंकि पूजा के अवसर पर मुझे कलकत्ता ही अच्छा लगता है, खासकर फेलुदा अगर मेरे साथ रहे। आजकल शौकिया जासूस के नाम से उसे काफी प्रसिद्धि प्राप्त हो चुकी है, फलस्वरूप बीच-बीच में रहस्य का पता लगाने के लिए उसकी बुलाहट होती है और इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। इसके पहले मैं हर रहस्य के मामले में फेलुदा के साथ रहा हूँ। डर लगता है, नाम अधिक फैल जाने के कारण वह एक दिन एकाएक कहीं यह न कह बैठे कि तुझे अपने साथ नहीं लूँगा। मगर अभी तक ऐसी बात नहीं हुई है। मेरा विश्वास है कि वह जो मुझे अपने साथ रखता है उसके पीछे एक कारण है। सम्भवत: उसके साथ एक कच्ची उम्र के लड़के को देखकर अनेकों उसे जासूस समझते ही नहीं। यह एक बहुत बड़ी सुविधा है। जासूस अपने-आपको जितना छिपाकर रख सके, उसके लिए यह बात उतनी ही लाभदायक है।

'फोन किसने किया, यह बात जानने की तुझे बेहद इच्छा हो रही है?'

यह है फेलुदा का एक तौर-तरीका। वह जब समझता है कि किसी चीज को जानने के लिए मैं बहुत आग्रहशील हूँ तो उस बात को तत्काल न कहकर पहले एक ससपेन्स की सृष्टि करता है। यह बात चूंकि मैं जानता हूँ इसलिए विशेष उत्साह न दिखाते हुए मैंने कहा, 'फोन के साथ अगर किसी रहस्य का मामला जुड़ा हुआ हो तो जानने की इच्छा अवश्य ही होती है।'

बनियान पर अपनी हरी धारीदार कमीज को पहनते हुए फेलुदा ने कहा, 'उस आदमी का नाम है नीलमणि सान्याल। रोलैण्ड रोड में रहता है। बहुत जरूरी काम से मुझे बुला भेजा है।'

'यह नहीं बताया कि जरूरत क्या है?'

'नहीं। यह बात फोन पर कहना नहीं चाहता। आवाज से पता चला कि घबराया हुआ है।'

'कब जाना होगा?'

'टैक्सी से जाने में लगभग दस मिनट लगेंगे। नौ बजे एपॉयन्टमेंट है। इसलिए अब दो मिनट के अन्दर निकल जाना चाहिए।'

टैक्सी से नीलमणि सान्याल के मकान की ओर जाते हुए मैंने कहा, 'बहुत तरह के शैतान आदमी हुआ करते हैं। मान लो, नीलमणि सान्याल किसी मुसीबत में न हो और उसने तुम्हें किसी फन्दे में डालने के लिए बुलाया हो!'

फेलुदा ने सड़क की ओर से बिना आँख हटाए कहा, 'वह रिस्क तो रहता ही है। तब इतना जरूर है कि उस तरह का आदमी अपने घर पर बुलाकर फन्दे में नहीं डालेगा, क्योंकि यह उसके लिए भी खतरे से खाली नहीं होगा। इस तरह के कामों के लिए कम रुपये में ही किराये के गुंडे मिल जाते हैं।'

एक बात कहना भूल गया हूँ : फेलुदा पिछले साल ऑल इण्यिा राइफल कम्पटीशन में फर्स्ट आया है। मात्र तीन महीने तक बन्दूक चलाने की शिक्षा पाने के बाद उसका निशाना इतना पक्का हो गया कि आश्चर्य लगता है। अब फेलुदा के पास बन्दूक और रिवाल्वर दोनों हैं, तब इतना जरूर है कि किताब के जासूस की तरह वह हमेशा रिवाल्वर लेकर नहीं घूमता है। सच कहूँ, अब तक फेलुदा को इन दो हथियारों में से एक की भी जरूरत नहीं पड़ी है। फिर भी कोई यह नहीं कह सकता कि कभी जरूरत होगी ही नहीं।

टैक्सी जब मैडम स्क्वायर के पास आई तो मैंने पूछा, 'वे क्या करते हैं, यह बात तो मालूम है?'

फेलुदा ने कहा, 'वे पान खाते हैं, शायद कान से कुछ कम सुनते हैं, 'वो' शब्द का कुछ अधिक प्रयोग करते हैं और जुकाम से कुछ परेशान हैं। इसके अलावा मुझे अधिक जानकारी नहीं है।'

इसके बाद मैंने उससे कुछ और पूछताछ नहीं की।

नीलमणि सान्याल के घर पहुँचने पर टैक्सी का किराया एक रुपया सत्तर पैसा चुकाना पड़ा। दो रुपये का एक नोट निकालकर फेलुदा ने टैक्सीवाले को दिया और अपने हाथ की भंगिमा से उसे समझा दिया कि खुदरा वापस करने की जरूरत नहीं है। हम टैक्सी से उतरकर पोर्टिको के नीचे से होते हुए सामने के दरवाजे के पास पहुँचे और कॉल बेल दबाई।

दोमंजिला मकान है, बहुत बड़ा नहीं और न पुराना ही। सामने की तरफ एक बगीचा भी है, लेकिन उसमें ऐसा कोई पेड़-पौधा नहीं है जो आकर्षक लगे।

दरबाननुमा एक व्यक्ति ने फेलुदा से विजिटिंग कार्ड ले लिया और हमें बैठक में बैठने को कहा। कमरे के अन्दर जाकर जब हमने चारों तरफ दृष्टि दौड़ाई तो हम विस्मय-विमुग्ध हो गए। सोफा, टेबल, गुलदस्ता, तसवीरों और काँच की आलमारी में सजी हुई खूबसूरत चीजों ने एक खासा आकर्षक वातावरण तैयार कर दिया है। लगता है, बहुत पैसा खर्च कर और दिमाग लगाकर इन चीजों को खरीदकर सजाया गया है।

फेलुदा ने खुद ही उठकर जब पंखे का रेगुलेटर घुमाया, ठीक उसी क्षण एक भले आदमी ने कमरे के अन्दर प्रवेश किया। पहनावे के रूप में स्लीपिंग सूट के पाजामे पर एकतरफा बटनदार अद्धी का कुरता, पाँवों में हिरन के चमड़े का चप्पल और दोनों हाथों की उँगलियों में कई अँगूठियाँ। कद मंझला, दाढ़ी-पूंछ मुड़ी हुई, सिर पर बहुत ही कम बाल, रंग मोटे तौर पर गोरा और आँखें नींद से बोझिल जैसी। देखने से लगता है, अभी नींद से जगकर आ रहे हैं। उम्र कितनी होगी? पचास से ज्यादा नहीं।

'आपका ही नाम प्रदोष मित्तिर है?' भले आदमी ने पूछा, 'आप इतने यंग हैं, यह बात मालूम नहीं थी।'

फेलुदा ने 'हें-हें' करते हुए मेरी ओर इशारा किया और कहा, 'यह मेरा चचेरा भाई है। बड़ा ही अक्लमन्द लड़का है। आप अगर चाहें तो हम लोगों की बातचीत के दौरान उसे मैं बाहर भेज दे सकता हूँ।'

मेरा कलेजा धड़कने लगा। मगर भले आदमी ने एक बार मेरी ओर सरसरी निगाह डालते हुए कहा, 'रहने दीजिए, कोई हर्ज नहीं है।' उसके बाद फेलुदा की ओर मुड़कर बोले, वो—आप लोग कुछ लीजिएगा? चाय या कॉफी?'

'नहीं। हम अभी चाय पीकर ही आ रहे हैं।'

'ठीक है, फिर वक्त, बरबाद न कर यही बता रहा हूँ कि मैंने आपको क्यों बुलाया है। तब हाँ, इसके पहले मैं अपना परिचय बता दूँ। आप समझ ही रहे होंगे कि मैं शौकीन आदमी हूँ। इसका भी अन्दाज लग गया होगा कि मेरे पास थोड़ा-बहुत पैसा भी है। कहने पर आपको इस पर यकीन न होगा कि मैं न तो नौकरी करता हूँ और न व्यवसाय हाँ। बपौती जायदाद का एक भी पैसा मुझे नहीं मिला है।'

नीलमणि बाबू ने रहस्य की सृष्टि करने की मुद्रा बनाकर चुप्पी साध ली।

‘फिर क्या लॉटरी का पैसा मिला है?'

'जी?'

'फिर क्या लॉटरी वगैरह से पैसा मिला है?'

'एजैक्टली!' भले आदमी बच्चे की तरह चिल्ला उठे, ‘ग्यारह साल पहले रेंजर्स लॉटरी में जीतने के कारण एक ही बार में लगभग ढाई लाख रुपए मिल गए। उसके बाद उसी रुपये से—कुछ तो रुपये के जोर से और कुछ भाग्य के जोर से—अच्छी तरह से रह रहा हूँ। आठेक साल पहले मैंने यह मकान बनवाया है। हो सकता है, आप सोचें कि इस तरह निठल्ला रहकर जीवन कैसे जीता हूँ मगर दरअसल मैं एक काम करता हूँ—बस एक ही काम—और वह है नीलामी से सब चीजें खरीदकर घर सजाना।' ।

भले आदमी ने अपने दाहिने हाथ को उठाकर चारों तरफ सजी हुई चीजों की ओर इशारा किया। उसके बाद बोले—

'जो घटना घटी है, उससे मेरी इन आर्टिस्टिक चीजों का कोई रिश्ता है या नहीं, कह नहीं सकता, मगर मेरे मन में सन्देह हो रहा है कि रिश्ता हो भी सकता है। यह जो...'

नीलमणि बाबू ने अपने कुरते की जेब में हाथ डालकर कागज के कुछ टुकड़े बाहर निकाले और फेलुदा की ओर बढ़ा दिए। फेलुदा के साथ-साथ मैंने भी उन कागज के टुकड़ों को देखा। कागज के तीन टुकड़े हैं, उनमें से हरेक में लिखावट के बदले लकीरों के जरिये छोटे चित्र बने हुए हैं। उन चित्रों में से कुछ साफ-साफ समझ में आते हैं—जैसे, उल्लू आँख, साँप, सूर्य। मुझे ये चित्र पहले से दिखे जैसे लग रहे थे कि तभी फेलुदा ने कहा, 'यह सब तो हियरोग्लिफ्रिक जैसा लगता है।'

भले आदमी ने सकते में आकर कहा, 'जी?'?

फेलुदा ने कहा, 'पुराने जमाने में इजिप्शियनों ने जिस लिखावट की ईजाद की थी, यह उसी तरह के जैसा लग रहा है।'

'यह बात है?'

'हूँ। मगर इस लिखावट को पढ़ ले, ऐसा आदमी कलकत्ते में है या नहीं, कहना मुश्किल है।'

भले आदमी का चेहरा थोड़ा बुझ गया और बोले, 'फिर? जो चीज हर दो दिन के बाद डाक के जरिये मेरे नाम से आती है, उसका अगर अर्थबोध न हो तो बहुत ही परेशानी में डालने वाली बात होगी। मान लीजिए, यह सब अगर सांकेतिक धमकियाँ हों—कोई मेरी हत्या करना चाहता हो और मुझे डरा रहा हो...'

कुछेक क्षण चुप रहने के बाद फेलुदा ने कहा, 'आपके यहाँ जो-जो चीजें सजी हुई हैं, उनके बीच कोई इजिप्शियन चीज है?'

नीलमणि बाबू ने हँसकर कहा, 'मेरी कौन-सी चीज कहाँ की है, यह बात मैं भी अच्छी तरह नहीं जानता। खरीदता इसलिए हूँ कि मेरे पास पैसा है। दूसरी बात है, और-और लोगों को खरीदते देखता हूँ, इसलिए मैं भी खरीदता हूँ।'

'मगर आपकी इतनी चीजों के बीच ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे फालतू कहा जाए? इन चीजों को जो भी देखेगा, आपको पूरे तौर पर पारखी ही कहेगा।'

भले आदमी ने मुसकराकर कहा, 'जानते हैं, बात क्या है? इन मामलों में अगर कोई चीज ऐसी होती है जिसकी जानकारी सभी को हो, तो उसकी कीमत ज्यादा होती है। पैसा जब है तो मैं वैसी चीज क्यों न खरीदूं जो सबसे बेहतरीन हो। बहुतेरे बड़े-बड़े ग्राहकों से ऊँची बोली बोलकर नीलामी में मैंने ये सब चीजें खरीदी हैं। इसलिए मेरे पास अगर बेहतरीन चीजें हैं तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं।'

'आपको यह पता है या नहीं कि आपके पास मिस्र की कोई चीज है?'

नीलमणि बाबू सोफे से उठकर काँच की एक आलमारी की ओर गए और उसके ऊपर के ताक से बित्ते-भर की लम्बी एक मूर्ति उतारकर फेलुदा को दी। हरे पत्थर की मूर्ति है, उस पर विविध रंगों के चमकते नग जड़े हुए हैं। दो-चार जगहों में सोना भी है। मगर आश्चर्य की बात यह है कि मूर्ति का शरीर यद्यपि आदमी की तरह है मगर उसका चेहरा सियार के जैसा है। 'इसे मैंने दसेक दिन पहले एराटुन ब्रदर्स की नीलामी में खरीदा है। शायद यह...'

फेलुदा ने मूर्ति पर एक बार सरसरी निगाह दौड़ाकर कहा, 'एनूबिस।'

'एनूबिस? यह एनूबिस क्या है?'

फेलुदा ने मूर्ति को सावधानी से उलट-पुलटकर उसे नीलमणि बाबू के हाथ में वापस करते हुए कहा, 'एनूबिस था प्राचीन मिस्र का 'गॉड ऑफ द डेड' —मृत आत्माओं का देवता।...आपको यह बेहतरीन चीज मिली है।'

'मगर'...भले आदमी की आवाज में भय का पुट था, 'इस मूर्ति से इन चिट्ठियों का कोई सम्बन्ध है? मैंने इसे खरीदकर कोई गलती की है? इसे छीन लेने के लिए कोई धमकियाँ दे रहा है?'

फेलुदा ने सिर हिलाकर कहा, 'यह कहना मुश्किल है। चिट्ठियों का आना कब से शुरू हुआ है?'

'पिछले सोमवार से।'

'यानी मूर्ति खरीदने के बाद से ही?'

'हाँ।'

'लिफाफे आपके पास है?'

'नहीं, फेंक दिए। रखना ही सम्भवत: उचित था। मगर लिफाफे बिलकुल मामूली थे, मामूली टाइपराइटर से ही पता लिखा गया था। एलगिन रोड पोस्ट ऑफिस की मुहर थी।'

'ठीक है।' फेलुदा उठकर खड़ा हो गया, 'मुझे ऐसा नहीं लगता है कि अभी कोई कार्रवाई की जाए। सेफसाइड में रहने के लिए इतना ही कीजिएगा कि मूर्ति को आलमारी में रखने के बजाय अपने हाथ के पास रखिएगा। हाल में एक आदमी के घर से इस तरह की चीजों की चोरी हो गई है।'

‘ऐसी बात है?'

'हाँ। एक सिंधी सज्जन के घर से। जहाँ तक मुझे मालूम है, चोर अब तक पकड़ा नहीं जा सका है।'

हम कमरे से निकलकर बाहर लैंडिंग में चले आए।

फेलुदा ने कहा, 'आपसे मजाक कर सकता हो, ऐसा कोई व्यक्ति आपको याद आ रहा है?'

भले आदमी ने सिर हिलाकर कहा, 'कोई नहीं। पुराने मित्रों से बहुत दिनों से सम्पर्क टूट चुका है।'

‘और शत्रु?'

भले आदमी कुछेक क्षणों तक चुप रहे, उसके बाद उन्होंने कहा, 'धनी आदमी का शत्रु हमेशा ही है, लेकिन शत्रु कहकर कोई अपना परिचय नहीं देता। आमने-सामने मुलाकात होने पर सभी सम्मान के साथ बातचीत करते हैं।'

'आपने बताया था कि मूर्ति आपने नीलामी में खरीदी है।'

'हाँ। एराटुन ब्रदर्स की नीलामी में।'

'उस पर और किसी को लोभ था?'

यह बात सुनकर वे अचानक तनिक उत्तेजना में आ गए और हाथ मलने लगे। उसके बाद बोले, 'आपने यह बात पूछकर मेरी चिन्ता के एक नये पहलू को उजागर कर दिया। नीलामी के दौरान एक सज्जन से मेरी कई बार होड़ लग चुकी है। उस दिन भी यही बात हुई थी।'

'वे कौन है?'

'प्रतुल दत्त।'

'क्या काम करते हैं?'

'शायद वकील थे। रिटायर हो चुके हैं। उस दिन हम दोनों में अन्त-अन्त तक होड़ लगी रही। उसके बाद जब मैंने बारह हजार कहा तो वे चुप हो गए। याद है, नीलामी के बाद जब मैं बाहर आकर गाड़ी पर बैठा, अचानक उनसे मेरी आँखें मिल गईं। उनकी दृष्टि मुझे कतई अच्छी नहीं लगी।'

'आइ सी!'

हम नीलमणि बाबू के घर से बाहर निकल आए। गेट की तरफ चहल-कदमी करते हुए फेलुदा ने पूछा, 'इस मकान में आप लोग बहुत-से आदमी रहते हैं?'

नीलमणि बाबू ने हँसकर कहा, 'आप क्या कह रहे हैं, साहब! मेरे जैसा अकेला आदमी आपको कलकत्ते में शायद ही मिलेगा। ड्राइवर, माली, दो पुराने विश्वसनीय नौकर और मैं—बस इतने ही जने हैं!'

फेलुदा के इसके बाद वाले प्रश्न की उन्होंने कतई प्रत्याशा नहीं की थी

'इस घर में क्या कोई लड़का रहता है?'

एक क्षण तक वे अवाक् खड़े रहे, उसके बाद एक कहकहा लगाते हुए कहा, 'देख रहे हैं न! मैं तो भूल ही गया था। दरअसल आदमी कहने से मैं बालिगों के बारे में सोच रहा था। दसेक दिनों से मेरा भांजा झंटु यहाँ आकर ठहरा हुआ है। उसके पिताजी व्यवसाय करते हैं। यह अभी उस दिन की ही बात है कि वे जापान चले गए। झंटु को मेरे पास छोड़ गए हैं। वह बेचारा यहाँ आते ही इनफ्लूयेंजा की चपेट में आ गया है।'

उसके बाद एकाएक फेलुदा की ओर देखते हुए बोले, 'आपको बच्चों की बात कैसे याद आई?'

फेलुदा बोला, 'बैठक में एक आलमारी के कोने से एक पतंग झाँक रही थी। उसी को देखकर...'

नीलमणि बाबू का नौकर टैक्सी लाने गया था। टैक्सी रोड़े-बिछी सड़क से कड़-कड़ आवाज करती हुई पोर्टिंको के नीचे आकर खड़ी हुई। फेलुदा ने टैक्सी में बैठने के समय कहा, 'अगर कोई सन्देहजनक बात हो तो मुझे फौरन सूचित कीजिएगा। अभी ऐसा नहीं लगता कि कोई कार्रवाई की जाए।'

घर वापस जाते वक्त मैंने फेलुदा से कहा, 'सियार देवता का चेहरा कितना डरावना लगता है!'

फेलुदा ने कहा, 'आदमी के धड़ में किसी भी चीज का सिर जोड़ देने से वह डरावना लगने लगता है। यह बात सिर्फ सियार के साथ ही नहीं है।'

मैंने कहा, 'पुराने इजिप्शियन देवता मूर्ति घर में रखना तो बड़ा ही खतरनाक है।'

'तुमसे यह किसने कहा?'

'वाह! तुम्हींने तो कहा था।'

'बिलकुल नहीं। मैंने यही कहा था कि जिन पुरातत्त्ववेत्ताओं ने मिट्टी खोदकर प्राचीन इजिप्शियन मूर्तियाँ बाहर निकाली हैं उनमें से कुछेक की हालत बदतर हो गई है।'

'हाँ-हाँ—वह जो एक गोरा था, उसकी तो मौत हो ही गई थी। क्या तो था उसका नाम?'

'लॉर्ड कारनारवन।'

'और उसका कुत्ता?'

'कुत्ता उसके साथ नहीं था। कुत्ता विलायत में था। साहब इजिप्ट में था। तूतनखामेन की कब खोदकर मूर्तियाँ निकालने के कुछ दिन बाद ही कारनारवन भयंकर बीमारी की चपेट में पकड़कर मर गया। उसके बाद खबर मिली कि जिस वक्त साहब की मृत्यु हुई, ठीक उसी वक्त बिना किसी बीमारी के, रहस्यमय ढंग से हजारों मील दूर उसका कुत्ता भी मौत के मुँह में समा गया।'

प्राचीन इजिप्ट की किसी चीज पर जैसे ही मेरी नजर पड़ती है, फेलुदा से सुनी हुई इस अजीब घटना की मुझे याद आ जाती है। सियार देवता की एनबिस की मूर्ति भी किसी आदम के जमाने के इजिप्शियन बादशाह की कब्र से आई है। नीलमणि बाबू क्या यह सब नहीं जानते? जान-सुनकर विपत्ति को बुलाने के पीछे कौन-सा मजा है, यह बात मेरी समझ में नहीं आती।

दूसरे दिन भोर पौने छह बजे हमारे घर में अखबार के बण्डल के गिरने के साथ ही टेलीफोन घनघना उठा। मैं फोन उठाकर 'हेलो' कहकर दूसरी तरफ की बात सुनने की प्रतीक्षा कर ही रहा था कि तभी फेलुदा ने फोन मेरे हाथ से ले लिया। एक-एक कर तीन बार ‘हुँ', दो बार 'ओ' और एक बार 'अच्छा, ठीक है, कहकर उसने फोन को नीचे रख दिया और भर्राई आवाज में कहा, 'एनबिस गायब हो गया है। अभी तुरन्त चलना है।'

सुबह ट्रैफिक कम रहने के कारण नीलमणि सान्याल के घर पहुँचने में सात मिनट लगे। टैक्सी से उतरते ही देखा—नीलमणि बाबू अपने चेहरे पर बेचैनी का भाव लिए मकान के बाहर हम लोगों की प्रतीक्षा में खड़े हैं। फेलुदा पर नजर पड़ते ही बोले, 'नाइटमेयर के बीच से गुजरा हूँ जनाब। इस तरह का हाँरिबिल अनुभव मुझे कभी न हुआ था।'

हम इस बीच बैठक में आ चुके थे। भले आदमी ने हमारे बैठने के पहले ही बैठकर अपनी कलाइयाँ दिखाई। देखा, आदमी जहाँ घड़ी पहनते हैं, उससे ठीक नीचे रस्सी का दाग लगा हुआ है और उनके दोनों हाथ लाल हो गए हैं।

फेलुदा ने कहा, 'बात क्या है?'

भले आदमी ने दम लेकर भर्राई आवाज में कहना शुरू किया, 'आपके कहे अनुसार कल मूर्ति को सोने के कमरे में ले जाकर तकिये के नीचे रख दिया था। अब लगता है, वह जहाँ थी, वहीं अगर पड़ी रहती तो कम-से-कम शारीरिक यातना तो नहीं भोगनी पड़ती। खैर! मूर्ति को सिर के नीचे रखकर मैं मजे में सोया हुआ था कि तभी-पता नहीं, रात के कितने बजे होंगे—बहुत ही बुरी हालत में मेरी नींद टूट गई। देखा, किसीने कसकर मेरा मुँह अंगोछे से बांध दिया है। गले से आवाज निकलने के रास्ते को बन्द देखकर मैंने अपने हाथ से अड़चन डालने को कोशिश की और ठीक उसी वक्त मेरी समझ में यह बात आई कि अपने से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति के शिकंजे में फंस गया हूँ बात की बात में मेरा हाथ पीछे की ओर उमेठ दिया। उसके बाद फिर तकिये के नीचे से मूर्ति लेकर चलता बना।'

भले आदमी दम लेने के लिए कुछ क्षण तक खामोश रहे। उसके बाद बोले, 'शायद तीन घण्टे तक हाथ-बँधे जैसी हालत में पड़ा रहा। पूरे शरीर में झिनझिनी समा गई थी। सुबह मेरा नौकर नंदलाल जब चाय लेकर आया तो मुझे उस हालत में देखकर उसने डोरी खोल दी और मैंने फौरन आपको फोन किया।'

देखा, फेलुदा के चेहरे का भाव बदल गया है। वह सोफा छोड़कर खड़ा हो गया और बोला, 'एक बार आपका कमरा देखना चाहता हूँ और जरूरत पड़ी तो आपके मकान की तसवीरें लूँगा।' कैमरा भी फेलुदा के झक्कीपन में शुमार है।

नीलमणि बाबू हमें दोमंजिले के अपने सोने के कमरे में ले गए। कमरे के अन्दर घुसते ही फेलुदा ने कहा, 'खिड़की में सलाख नहीं हैं?'

भले आदमी ने सिर हिलाकर कहा, 'मत कहिए! विलायती तरीके का मकान है न; और मेरे साथ बात यह है कि मैं खिड़की बन्द कर सो ही नहीं पाता।'

फेलुदा ने खिड़की से गरदन बढ़ाकर नीचे की ओर देखते हुए कहा, 'बहुत आसान बात है—पाइप है, कार्निश है। कोई भी जवान आदमी खिड़की से कमरे के अन्दर आ सकता है।'

उसके बाद फेलुदा ने कमरे के चारों तरफ भलीभाँति देखकर और तसवीरों को उलट-पुलटकर देखते हुए कहा, 'अब मकान के बाकी हिस्से को भी घूम-फिरकर देखना चाहता हूँ।' नीलमणि बाबू ने पहले दोमंजिला दिखाया। बगल के कमरे में एक खाट पर बारह-तेरह साल के एक लड़के को गले तक रजाई ओढ़कर पड़े देखा। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं और देखने से लगता है कि उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। समझ गया, यही झंटु है नीलमणि बाबू ने कहा, 'कल ही डॉक्टर बोस झंटु की नींद की दवा दे गए हैं। इसीलिए रात में उसके कानों में कोई आवाज नहीं पहुँची थी।'

दोमंजिले के और दो कमरों को देखकर और एक मंजिले के कमरों पर सरसरी निगाह दौड़ाकर हम बाहर चले आए। नीलमणि बाबू के कमरे की खिड़की के नीचे कई फूलों के टब देखे, जिनमें पाम जैसे पेड़ लगे हुए है। फेलुदा यह देखने लगा कि टबों के अन्दर कुछ है या नहीं। शुरू के दो टबों में उसे कुछ भी न मिला। तीसरे के पत्तों के अन्दर टटोलने पर टीन का एक छोटा डिब्बा मिला। उसके ढक्कन को खोलकर नीलमणि बाबू की ओर बढ़ाते हुए कहा, 'इस मकान का कोई आदमी सुंघनी का सेवन करता है?'

नीलमणि बाबू ने सिर हिलाकर 'ना' जताया। फेलुदा ने डिब्बे को अपनी पैन्ट की जेब में रख लिया।

अबकी नीलमणि बाबू ने बहुत ही उदासी-भरे स्वर में कहा, 'मिस्टर मित्तिर, और कोई बात नहीं—एक मूर्ति चली गई, न होगा तो दूसरी खरीद लूँगा—मगर एक डाकू मेरे घर पर आकर मुझपर जोर-जुल्म करके चला जाए, यह बात बरदाश्त के बाहर है। आपको इसका कोई-न-कोई रास्ता निकालना ही होगा। आप अगर उस आदमी को पकड़वा दें तो मैं आपको वो—यानी और क्या...'

'पारिश्रमिक?'

'हाँ-हाँ। पारिश्रमिक यानी रिवार्ड दूंगा।'

फेलुदा ने कहा, 'रिवार्ड कोई बड़ी बात नहीं है। अगर आप देना चाहते हैं तो दीजिएगा। मगर मैं इस काम की जिम्मेदारी जो अपने माथे पर ले रहा हूँ उसका प्रधान कारण यह है कि इस तरह की खोज-बीन के पीछे एक चैलेंज है, आनन्द है।'

यह बात सुनकर मुझे लगा, 'बड़ी-बड़ी जासूसी कहानियों में जासूस लोग जिस तरह की बातें कहते हैं, फेलुदा ने भी वैसी ही बातें कही हैं।

इसके बाद लगभग दस मिनटों तक फेलुदा ने नीलमणि बाबू के ड्राइवर गोविंद, नौकर नंदलाल और पाँच तथा माली नटवर से बातें की। सभी ने बताया कि रात में उन्होंने कुछ अस्वाभाविक घटते हुए नहीं देखा है। बाहरी आदमी में सिर्फ डाक्टर बोस रात को नौ बजे झंटु को देखने आए थे। नीलमणि बाबू सम्भवत: एक बार मुखर्जी के दवाखाने से दवा लेने के लिए बाहर निकले थे।

लौटती बार मैं जरा अनमना था। अचानक ध्यान में आया, टैक्सी हमारे घर के रास्ते को छोड़कर कहीं दूसरी ओर ही जा रही है। फेलुदा को गम्भीर पाकर उससे मैंने कुछ और पूछताछ नहीं की। टैक्सी फ्री स्कूल स्ट्रीट के एक मकान के सामने रुकी। देखा, मकान के सदर दरवाजे के ऊपर साइनबोर्ड पर बड़े-बड़े रुपहले अक्षरों में लिखा हैएराटुन बदर्स—ऑक्शनियर्स। यही नीलामी की दुकान है।

मैंने कभी नीलामघर नहीं देखा था। पहली बार देखकर मैं अचम्भे में आ गया। इतनी तरह की अजूबा चीजें एक साथ कभी देखने का मौका नहीं मिला था।

फेलुदा का काम दो मिनटों में निपट गया। प्रतुल दत्त का पता है—सेवेन बाइ वन, लवलक स्ट्रीट। मैंने मन-ही-मन सोचा, प्रतुल दत्त के घर पर जाने पर भी फेलुदा को अगर निराश होना पड़ा तो फिर उसके लिए कहीं जाने का रास्ता नहीं रह जाएगा। इसका मानी यही कि फेलुदा को हार स्वीकार करनी पड़ेगी। और तब मेरी क्या हालत होगी, मालूम नहीं; क्योंकि अब तब फेलुदा को कहीं हार स्वीकार नहीं करनी पड़ी है। वह किसी मामले में हर तरफ से निराश होकर मुँह लटकाए बैठा हो—इस दृश्य की मैं कल्पना तक नहीं कर सकता। मुझे उम्मीद है, जल्द ही उसे किसी सुराग का पता चल जाएगा। हालाँकि मुझे अभी अँधेरा ही अँधेरा दीख रहा है।

दोपहर के समय खाना खाते-खाते मैंने कहा, 'इसके बाद?'

उसने चावल के ढेर पर एक गड्ढा बनाकर उसमें एक कटोरा मूंग की दाल डाली और कहा, 'इसके बाद मछली। फिर चटनी, फिर दही।'

'उसके बाद?' ‘उसके बाद पानी पीकर मुँह धोऊँगा। फिर एक बीड़ा पान खाऊँगा।'

'उसके बाद?'

‘उसके बाद एक जगह फोन कर आधे घण्टे तक नींद लेता रहूँगा।'

इन सबों में टेलीफोन ही मेरे लिए सबसे दिलचस्प खबर है, इसीलिए मैं उसीके इन्तजार में बैठा रहा।

डायरेक्टरी से मैंने प्रतुल दत्त का नम्बर खोजकर निकाल दिया था। नम्बर डायल कर 'हेलो' कहने के समय फेलुदा ने अपनी आवाज को बिलकुल बदलकर एक बूढ़े आदमी की जैसी आवाज बना ली। फोन पर जो बातें हुईं, उनमें से एक ही तरफ की बातें मैं सुन सका था। उसको यहाँ ज्यों-का-त्यों लिख रहा हूँ

'हेलो, मैं नाकतल्ला से बोल रहा हूँ।'

'जी, मेरा नाम है जयनारायण बागची। मुझे प्राचीन कारुकार्य के शिल्पों के प्रति गहरी दिलचस्पी है। इसपर मैं एक पुस्तक लिखने जा रहा हूँ।'

'...'

'हाँ...जी हाँ। आपके संग्रह के बारे में सुन चुका हूँ। मेरा आपसे यही अनुरोध है कि कृपया मुझे अपनी कुछ चीजें देखने का अवसर प्रदान करें...'

'...'

'नहीं-नहीं! मैं पागल हूँ क्या!'

'...'

'अच्छा !'

'...'

'हाँ-जरूर।'

'...'

‘अनेकानेक धन्यवाद। नमस्कार।'

टेलीफोन से बातचीत करना समाप्त कर फेलुदा ने कहा, 'उनके घर पर सफेदी हो रही है। इसलिए चीजों को हटाकर रख लिया है। तब हाँ, शाम को चलें तो देखने का मौका मिलेगा।'

मैं एक बात कहे बिना चुप नहीं रह सका।

'प्रतुल बाबू ने अगर सचमुच एनबिस की मूर्ति की चोरी की होगी तो उसे वे हमें दिखाएँगे नहीं।

फेलुदा ने कहा, 'अगर तेरी तरह बेवकूफ होंगे तो दिखा भी सकते हैं। सम्भावना इस बात की है कि दिखाएँगे नहीं। मैं मूर्ति नहीं, उस आदमी को देखने जा रहा हूं।'

फैलुदा ने जैसा कहा था, टेलीफोन करने के बाद ही वह अपने कमरे में सोने के लिए चला गया। फेलुदा में एक आश्चर्यजनक क्षमता है और वह यह कि अपनी जरूरत के अनुसार वह किसी भी समय थोड़ी देर तक सो ले सकता है। सुना है, नेपोलियन में भी यह क्षमता थी। वह लड़ाई के मैदान में जाने के पहले घोड़े की पीठ पर बैठे-बैठे नींद लेकर अपने बदन को तरो-ताजा कर लिया करता था।

मेरे पास करने के लिए कोई खास काम नहीं था, इसीलिए फेलुदा के आले से इजिप्शियन आर्ट की एक पुस्तक निकालकर मैं उसे उलट-पुलट कर देख रहा था। तभी किंग-किंग कर फोन बज उठा।

मैं दौड़ता हुआ बैठक के अन्दर गया और फोन उठा लिया। 'हेलो!'

कुछ देर तक किसी की आवाज नहीं आई, हालाँकि यह बात मेरी समझ में आ गई थी कि कोई फोन पकड़े हुए है।

मेरी छाती धड़कने लगी। लगभग दस सेकेण्ड के बाद एक गम्भीर और कर्कश आवाज सुनाई पड़ी 'प्रदोष मित्तिर हैं?' मैंने थूक निगलकर कहा, 'वे सो रहे हैं। आप कौन बोल रहे हैं?'

फिर कई मिनटों तक चुप्पी रेंगती रही। उसके बाद सुनाई पड़ा, 'ठीक है। आप उनसे कह दीजिएगा कि मिस्र के देवता को जहाँ जाना था, वहीं चला गया है। प्रदोष मित्तिर इस मामले में दखलन्दाजी करने नहीं आएं, क्योंकि उससे किसी का कोई उपकार नहीं होने जा रहा है। बल्कि अनिष्ट होने की ही ज्यादा सम्भावना है।'

उसके बाद खट् से फोन रखने की आवाज आई, फिर चुप्पी छा गई।

पता नहीं, मैं कब तक फोन पकड़े और साँस रोके बैठा रहा। अचानक फेलुदा की आवाज कानों में आई और मैंने रिसीवर को यथास्थान रख दिया।

'कौन फोन कर रहा था।?'

मैंने फोन से जो कुछ सुना था, बता दिया। फेलुदा गम्भीर चेहरा लिए, भौंहें सिकोड़कर सोफे पर बैठते हुए बोला, 'इस्स—तू अगर मुझे बुला लेता!'

'मैं क्या करता? कच्ची नींद में जगा देने से तुम बिगड़ उठते हो।'

'उस आदमी के गले की आवाज किस तरह की थी?'

'गम्भीर और घर्घराती जैसी।'

'हु...! खैर, अभी चलकर एक बार प्रतुल दत्त का चेहरा देख आऊँ। लग रहा था, थोड़ी रोशनी दिखाई पड़ रही है; अब फिर धुंधलापन तैरने लगा है।'

छह बजने में जब पाँच मिनट बाकी थे, हम प्रतुल दत्त के मकान के फाटक के सामने टैक्सी से नीचे उतरे। मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि हमारे पिताजी भी इस वक्त हमें देखकर पहचान नहीं सकते थे। फेलुदा एक साठ साल के बूढ़े के भेष में सजा हुआ है। खिचड़ी दाढ़ी, आंखों पर मोटे काँच का चश्मा, बदन पर काले रंग का बन्द गले का कोट, घुटने तक उठी हुई धोती और मोजे के ऊपर बाटा के भूरे रंग के केड्स जूते। आधा घण्टे तक कमरे का दरवाजा बन्द कर उसने मेकअप किया और बाहर निकलकर कहा, 'तेरे लिए दो-तीन चीजें रखी हुई हैं, चटपट पहन ले।'

मैंने अवाक् होकर कहा, 'मुझे भी मेकअप करना है?'

'बेशक।'

दो मिनटों में ही मेरे सिर पर छोटे-छोटे बालों वाला एक विग और नाक पर एक चश्मा लग गया। उसके बाद फेलुदा ने एक पेन्सिल से मेरे बालों को बिखेर दिया। उसके बाद कहा, 'तू मेरा भांजा है, तेरा नाम है सुबोध—यानी तू शान्त शिष्ट पूँछदार भलामानस है। वहाँ अगर कुछ बोला तो घर लौटते ही तमाचे और थप्पड़ से तेरा स्वागत किया जाएगा।'

प्रतुल बाबू के मकान में सफेदी का काम करीब-करीब खत्म हो चुका है। मकान की डिजाइन देखकर पता चल जाता है कि वह कम-से-कम पचीस-तीस साल पुराना है। नये रंग के कारण खिड़की, दरवाजे, दीवार इत्यादि झिलमिला रहे हैं।

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