मैं अपनी किताबों को मुक्त करना चाहता हूँ ~ विनोद कुमार शुक्ल | लेखकों का वक्तव्य #JusticeforVKS

विनोद कुमार शुक्ल:

मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ था कि मैं ठगा रहा हूँ। 

मेरी सबसे ज्यादा किताबें, जो लोकप्रिय हैं, वे राजकमल और वाणी से प्रकाशित हुई हैं। 

अनुबंध-पत्र कानून की भाषा में होती हैं। इकतरफा शर्तें होती हैं। और किताबों को बंधक बना लेती हैं। इस बात का अहसास मुझे बहुत बाद में हुआ, अभी-अभी हुआ। 

हम तो विश्वास में काम करते हैं। ‘नौकर की कमीज’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के समय तो ई-बुक और किन्डल जैसी बातें, ये चीज़ें नहीं थीं पर यह दोनों किताबें ई-बुक, किन्डल में हैं। 

‘कभी के बाद अभी’ किताब, मेरा कविता संग्रह, रॉयल्टी का को स्टेटमेंट भेजते हैं, उस स्टैट्मन्ट में तो इस किताब का कुछ वर्षों से उल्लेख ही नहीं करते हैं। और क्योंकि मैं अब एक ऐसी उम्र में पहुँच गया हूँ कि जहाँ मैं अशक्तों हूँ, और बहुत चीजों पर मैं ध्यान नहीं दे पाता... कुछ कर भी नहीं पाता है तो यह रह जाती हैं, और मैं ठगाता रहता हूँ। 
दूसरों ने, जैसे कि अभी मानव कौल आए थे – उन्होंने चर्चा के दौरान मुझसे पूछा कि ‘आपको कितनी रॉयल्टी मिलती है?’  तो मैंने उन्हें बताया कि जैसे वाणी प्रकाशन में बीस-पचीस सालों का अगर कहीं औसत निकालें तो वो करीब चार हज़ार-पाँच हज़ार का होता है , इससे ज्यादा नहीं होता है। 

इन लोगों ने ढेर सारे लोगों से, फेसबुक का ज़माना है, सबको बताया कि ये किताब इस तरह की हैं। मेरी किताबें, मुझे भी एहसास होने लगा कि इन बड़े प्रकाशकों जिन्होंने मेरी किताब ‘नौकर की कमीज़’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’ जो बिकती हैं। वो बहुत-बहुत बिकती हैं, लोग बताते हैं। और मुझे लगता है कि ये सारी की सारी किताबें मेरी जैसे बंधक हो गई हैं और मैं इन किताबों को मुक्त करना चाहता हूँ। 

ये बड़े लोग हैं और मैं इनसे ज्यादा किसी परेशानी में न पड़कर, स्वतंत्र होना चाहता हूँ। 

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हिंदी के अप्रतिम लेखक विनोद कुमार शुक्ल के समर्थन में लेखकों का वक्तव्य


हम हिंदी के लेखक यशस्वी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के साथ हिंदी के दो प्रकाशकों द्वारा किए गए शोषण और दुर्व्यवहार से बेहद चिंतित हैं और उन प्रकाशकों के इन रवैये की कड़ी भर्त्सना करते हैं। 

श्री शुक्ल ने अपने ऑडियो और वीडियो में राजकमल प्रकाशन और वाणी प्रकाशन के बुरे बर्ताव के बारे में जो बातें कहीं हैं, वह हतप्रभ करने वाली हैं। श्री शुक्ल 86 वर्ष की अवस्था में कई तरह की शारीरिक व्याधि से ग्रस्त हैं और गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। ऐसे में उनके बहुचर्चित एवम अनूठे उपन्यास "नौकर की कमीज" और "दीवार में एक खिड़की रहा करती है" की पूरी रॉयल्टी न मिलना और प्रकाशकों द्वारा उसका हिसाब किताब न देना अत्यंत क्षोभ की बात है। 

हम हिंदी के लेखक उपरोक्त प्रकाशकों द्वारा विनोद जी के संदर्भ में दिये गए स्पष्टीकरण से सहमत नहीं और इसे प्रकाशकों द्वारा इस मामले की लीपापोती करने का प्रयास मानते हैं। 

हमारा मानना है कि हिंदी में प्रकाशन जगत लेखकों के निरंतर शोषण पर आधारित है। अक्सर प्रकाशक बिना अनुबंध के पुस्तकें छापते हैं और छपी हुई किताबों की रॉयल्टी देना तो दूर उसका हिसाब किताब भी नहीं देते। अनुबंध पत्र भी प्रकाशकों के हित में बने होते हैं जिसमें लेखकों के अधिकार सुरक्षित नहीं। प्रकाशकों की मनमानी से हिंदी के लेखक त्रस्त हैं और विनोद जी के शब्दों में किताबें बंधक बना ली गयीं हैं। ये प्रकाशक एक तरफ तो किताबों के न बिकने का रोना रोते हैं पर दूसरी तरफ वे मालामाल भी हो रहे हैं। उनका नित्य विस्तार हो रहा है और उनके कारोबार में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 

हम हिंदी के लेखक प्रकाशकों की इस मोनोपोली के भी खिलाफ हैं और लेखकों के साथ उनसे सम्मानपूर्वक व्यवहार की उम्मीद करते हैं। 

हमारा मानना है कि विनोद कुमार शुक्ल की व्यथा को प्रकाशकों द्वारा तत्काल सुना जाना चाहिए और बिना उनकी अनुमति के उनकी किताबों का प्रकाशन और बिक्री नहीं होनी चाहिए या ऑडियो बुक नहीं निकलनी चाहिए। 

हम हिंदी के प्रकाशकों से अपील करते हैं कि वे किताबों के प्रकाशन के बारे में एक उचित नीति बनाएं और पुस्तकों को गुणवत्ता के आधार पर प्रकाशित करें न कि साहित्येतर कारणों से। वे लेखकों के आत्मसम्मान की भी रक्षा करें और यह न भूलें कि लेखकों की कृतियों के कारण ही उनका कारोबार जीवित है। 

हम हिंदी के सभी लेखकों से अपील करते हैं कि वे विनोद जी के समर्थन में खुल कर आएं और उनका समर्थन करें तथा प्रकाशकों के सामने समर्पण न करें। हम हिंदी के लेखक प्रकाशकों की चिरौरी की संस्कृति के भी विरुद्ध हैं। लेखकों के अधिकारों पर किसी तरह का कुठाराघात हमें स्वीकार्य नहीं है। 


विमल कुमार 


(यदि आप उपरोक्त से सहमति रखते हैं, व अपना  समर्थन जोड़ना चाहते हैं तो टिप्पणी में लिख सकते हैं, नाम जोड़ा जाएगा।  ~ सं०)  

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