अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी साहित्य सम्मेलन (अप्रसास) 2014 International Conference on Pravasi Literature

तृतीय अंतराष्ट्रीय प्रवासी साहित्य सम्मेलन, कथा यू. के. तथा डी.ए.वी. गर्ल्ज़ कॉलेज यमुना नगर के संयुक्त तत्वधान में  17-18 जनवरी को होना है।
आयोजन के बारे में विस्तार से जल्द ही शब्दांकन आप को सूचित करेगी, आइये तब तक पिछले साल की यादों को ताज़ा करते हैं।

पिछले साल 2013 की 18-19 जनवरी को कथा यू. के. तथा डी.ए.वी. गर्ल्ज़ कॉलेज यमुना नगर ने संयुक्त तत्वधान में अंतराष्ट्रीय प्रवासी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया था।

इस दो- दिवसीय सम्मेलन में कुल छः सत्र थे जिसका समापन काव्य गोष्ठी से हुआ था।

कार्यक्रम के उदघाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो राम बक्श सिंह ने तथा मुख्य आतिथि वरिष्ठ आलोचक प्रो गोपेश्वर सिंह थे। कार्यक्रम कथा यू.के. की संरक्षक ज़किया ज़ुबैरी के स्वागत भाषण से शुरु हुआ था। जिसमे उन्होने कहा था "पिछले दिनो कथा यू.के. के आयोजनों को भारत के बाहर ही नहीं बल्कि भारत में भी सभी का बहुत प्रेम और समर्थन मिला है। आप सब के उत्साह वर्धन से हम अपने वतन से दूर रह कर भी अपनी मिट्टी से जुड़े रहकर अपनी भाषा में साहिय रच पाते हैं।"

उद्घाटन सत्र के चर्चा के विषय- प्रवासी साहित्य और मुख्य धारा की अवधारणा का प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ कथाकार तथा कथा यू.के. के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा ने अपने विचार रखते हुआ कहा "आज प्रवासी साहित्य केवल वही साहित्य नहीं जो गिरमिटिया मज़दूरों के रूप में अपना वतन छोड़कर विदेशों में जा बसे लोगों ने अपने देश को याद करते हुए किसी नॉस्टेलजिया में लिखा हो बल्कि आज बहुतायत में ऐसे लोग प्रवास में हिन्दी साहित्य रच रहे हैं जो पढ़ने लिखने के बाद अपनी इछा से देश से बाहर जाकर बसे हैं। इनके दुख-दर्द, इनके अनुभव पहले के प्रवासियों से बिलकुल अलग हैं। यह आज लगभग एक वैश्विक गाँव की अवधारणा में जीने वाले लोग हैं। इससे इनके द्वारा रचा जा रहा साहित्य सिर्फ़ नॉस्टेलजिया में रचा जा रहा साहित्य नहीं है बल्कि वह हिन्दी की तथाकथित मुख्य धारा में रचे जा रहे साहित्य की तरह बहुआयामी और गम्भीर साहित्य है। उसे अलग करके नहीं बल्कि मुख्यधारा से जोड़कर ही देखा जाना चाहिए।" तेजेंद्र जी के अनुसार "इस लगातार बदलते समय में भारत से बाहर लिखे जा रहे साहित्य को परखने के लिए आलोचना के नए औज़ार विकसित करने की ज़रूरत है। "

सत्र के मुख्य अतिथि गोपेश्वर सिंह जी ने कहा "आज दरसल साहित्य की कोई मुख्यधारा नहीं है और यदि है भी तो उस पर भी पाठको की कमी का संकट है। इसलिए यदि प्रवासी साहित्यकार चाहते हैं कि उन्हें भारत में पाठक और आलोचक स्वीकार करें तो उन्हें भी वही जोखिम उठाने होंगे, उन्ही चुनौतियों का सामना करना होगा जिनका कि यहा के साहित्यकार कर रहे हैं।" कार्यक्रम के अध्यक्ष ने प्रवास की पीड़ा से जन्मे अलगाव की पीड़ा और उससे उपजे साहित्य को अपने आप में एक ऐसी धारा बताया जिसकी अपनी एक मुख्यधारा बनती नज़र आ रही है।

कार्यक्रम में हरियाणा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. श्याम सखा श्याम ने भी अपने विचार रखे थे तथा इसी अवसर पर उन्होंने कथाकार तेजेन्द्र शर्मा को हरियाणा साहित्य आकादमी पुरुस्कार दिए जाने की भी घोषणा भी की थी। सत्र का संचालन कथाकार-आलोचक डॉ. अजय नावरिया ने किया था जो आयोजन के संयोजक भी थे। उन्होंने यह बात शुरुआत में ही ज़ोर देकर कही थी कि मुख्यधारा एक दमघोंटू मुहल्ले का रूप ले रहा है, जहॉं यदि ताज़ी हवा न पहुंची तो वह सड़ने लगेगा । इस तरह के वि‍मर्श, साहि‍त्य को जीवन ऊर्जा देते हैं और उसे समृद्ध करते हैं। इस अवसर पर डॉ. अजय नावरिया तथा डॉ. सुषमा आर्य द्वारा संपादित पुस्तक ‘ प्रवासी हिन्दी कहानी-एक अन्तर यात्रा’ का लोकार्पण भी हुआ था। डी.ए.वी. कॉलेज की प्राचर्या डॉ. सुषमा आर्या ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया था।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में – प्रवासी साहित्य में अस्मिता निर्मिति के सूत्र विषय पर चर्चा हुई थी। अध्यक्ष्ता प्रो. जबरीमल्ल पारिख, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय ओपन यूनिवर्सिटी ने तथा मुख्य अतिथि अम्बेडकर विश्वविद्यालय, नर्इ दिल्ली के सत्यकेतु सांकृत थे। इस सत्र में दाइतो बंका यूनिवर्सिटी, टोक्यो, जापान के प्रोफ़ेसर हिदेआकी इशिदा मुख्य वक्ता थे। उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा तथा ज़किया ज़ुबैरी की कहानियों पर बात करते हुए कहा "यह कहानियाँ कहीं से भी प्रवासी साहित्य कहकर किनारे की जा सकने वाली कहानियाँ नहीं हैं। इनमें वही पैनापन और धार है, जो किसी भी एशियाई लेखक की कहानियों में होना चाहिए।" साथ ही इसी सत्र में डॉ. मधु अरोड़ा, डॉ. प्रीत अरोड़ा ने भी अपना पर्चा पढ़ा था।

तृतीय सत्र का विषय ‘प्रवासी साहित्य : यथार्थ और अलगाव के द्वंद्व’ था तथा इसकी अध्यक्ष्ता प्रो. मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, प्रख्यात आलोचक तथा संपादक, नया पथ ने की और वरिष्ठ आलोचक डॉ. रेखा अवस्थी कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं। इस सत्र में विशिष्ट अतिथि डॉ. बली सिंह थे तथा वक्तागणों में मीनाक्षी जिजिविषा और निर्मल रानी थीं। इस सत्र का संचालन एवं विषय प्रवर्तन कहानीकार विवेक मिश्र ने किया था।
दूसरे दिन दिनाँक 19 जनवरी के प्रथम सत्र में ‘प्रवासीसाहित्य का देश और काल’ विषय पर चर्चा हुई थी जिसकी अध्यक्षता कनाडॉ. से आई साहित्यकार स्नेह ठाकुर ने की एवं चर्चित कथाकार तरूण भटनागर मुख्य अतिथि रहे। सत्र की विशिष्ट अतिथि आउटलुक मैगजीन की फ़ीचर एडीटर तथा कथाकार आकांक्षा पारे रही। डॉ. रहमान मुसव्विर, प्राध्यापक , जाम्मिया मिल्लिया इस्लामिया तथा डॉ. मीना शर्मा ने भी अपने विचार रखे थे। सत्र का संचालन एवं विषय प्रवर्तन विपिन चौधरी ने किया था।

इस सत्र के पश्चात वेल्स (ब्रिटेन) के कवि-फ़िल्मकार डॉ. निखिल कौशिक द्वारा निर्देशित इक लघु फ़िल्म को पर्दे पर दिखाई गई । जिसका निर्माण लन्दन की एक महत्वपूर्ण संस्था एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने किया है। शीर्षक था सैलेब्रेटिंग ब्रिटिश हिन्दी लिटरेचर। यह फ़िल्म तेजेन्द्र शर्मा के 60वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में बनाई गई थी।

दूसरेदिन के द्वितीय सत्र का विषय ‘प्रवासी साहित्य : क्षितिज का विस्तार’ था जिसकी अध्यक्षता  जय वर्मा, कथाकार, ब्रिटेन ने और मुख्य अतिथि सुश्री अर्चना पैन्यूली, कथाकार, (डेनमार्क) थीं। सत्र के विशिष्ट अतिथि, कहानीकार विवेक मिश्र रहे । सत्र में कल्पना शर्मा ने भी अपने विचार रखे थे।

सत्र का संचालन एवं विषय प्रवर्तन प्रांजल धर ने किया था। डॉ. रहमान मुस्सविर का कहना था कि, "ज़किया ज़ुबैरी की कहानियाँ उस समाज के चित्र प्रस्तुत करती हैं जो हमारे लिए अजनबी और नितांत नया है। नए भावबोध, नए यथार्थ और नए अनुभव के संसार से हमें जोड़ती ज़कीया ज़ुबैरी की कहानियाँ अपनी भावों की सघनता, सरोकारों की व्यापकता और अनुभव की प्रामाणिकता के कारण जानी पहचानी जाएंगी।"

दिन के तीसरे एवं आखरी सत्र का विष्य ‘ प्रवासी साहित्य: पहचान का संकट और पुनर्वास’ था, जिसके
अध्यक्ष मण्डल में प्रो. हरिमोहन शर्मा, (हिन्दी विभाग – दिल्ली विश्वविद्यालय), कमलेश भारतीय – (उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी), सुश्री जय वर्मा (कवियत्री – ब्रिटेन), सुश्री ज़क़िया जु़बैरी, डॉ. सुषमा आर्य, श्री तेजेन्द्र शर्मा थे। सत्र का संचालन पुन: डॉ.. अजय नावरिया ने किया था। एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की अध्यक्षा काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी का कहना था कि, “साहित्य में ईर्ष्या या द्वेश के लिए की स्थान नहीं है। जो लोग साहित्य के लिए सकारात्मक कार्य कर रहे हैं, उन्हें समर्थन दिया जाना चाहिये। ईर्ष्या जैसा नकारात्मक रवैया नहीं अपनाया जाना चाहिये। शेक्सपीयर ने कहा था "जलन क्ई स्तरों मनुष्य को जलाती है – उससे हासिल कुछ नहीं होता"।

कार्यक्रम का समापन काव्य गोष्ठी के आयोजन से हुआ था जिसके अध्यक्ष थे डॉ. श्याम सखा श्याम (कवि, कथाकार तथा सचिव, हरियाणा साहित्य अकादमी, हरियाणा) और डॉ. ब्रजेन्द्र त्रिपाठी (चर्चितकवि, उपसचिव साहित्य अकादमी) इसके मुख्य अतिथि थ। सत्र के विशिष्ट अतिथि: डॉ. अमर नाथ अमर (दूरदर्शन दिल्ली) रहे व गोष्ठी के कविगणों में तेजेन्द्रशर्मा, ज़क़ियाजु़बैरी, स्नेहठाकुर, जयवर्मा, विपिनचौधरी, रहमानमुसव्विर, दीप्ति शर्मा, मीनाक्षी जिजिविषा थे गोष्ठी का संचालन तेजेन्द्रशर्मा ने किया था और डॉ.सुषमा आर्य ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया था।

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