तीन ग़ज़लें- एक बह्र - प्राण शर्मा | Pran Sharma's 3 New Ghazals in the same meter

तीन ग़ज़लें- एक  बह्र 

प्राण शर्मा

1

कानों  में रस  सा  घोलती रहती  हैं बेटियाँ
मुरली  की  तान  जैसी  सुरीली  हैं  बेटियाँ

क्योंकर न उनको सीने से अपने लगाए वो
माँ  के  लिए  तो  प्यारी - दुलारी हैं बेटियाँ

कमरे महकते लगते हैं सब उनके आने से
कैसा   अनूठा   जादू   जगाती   हैं  बेटियाँ

उनको   बड़े  ही  लाड़  से  पाला  करें  सदा
देवी  की  जैसी  दोस्तो   होती   हैं  बेटियाँ

माना कि  बस  गई हैं  किसी  दूर  देश  में
ये  सोचिये  कि  पास  ही  बैठी  हैं  बेटियाँ

बेटे  भले   ही  जाएँ  बदल   दोस्तो  मगर
बदली  हैं   बेटियाँ  नहीं  बदलेंगी  बेटियाँ

माँ  का कलेजा मुँह को हमेशा ही आया है
जब  भी  अजीब  दौर  से गुज़री हैं बेटियाँ


 2

सागर  की  तेज  लहरों  में  खोने  नहीं दिया
हिम्मत  ने  मेरी  मुझ  को डुबोने नहीं दिया

वंचित  कभी  दुलार   से  होने    नहीं   दिया
मैंने  किसी  भी  बच्चे  को  रोने  नहीं  दिया

अख़लाक़ हो तो ऐसा कि  जिसने मुझे कभी
काँटा  किसी  की  राह  में  बोने   नहीं  दिया

मैं भूल सकता  हूँ  भला कैसे  वो  तेरा  साथ
बारिश को तूने  मुझ  को भिगोने नही दिया

रहबर  नहीं   कहूँ  तो  तुझे  और  क्या  कहूँ
तूने  ही   मुझे   भीड़   में   खोने  नहीं  दिया

कुछ हम भी काम कर न सके ज़िंदगानी में
कुछ भाग्य ने भी काम को होने नहीं  दिया

बिस्तर भले ही मखमली है मेरा  ए  सनम
यादों   ने   तेरी   रात  में  सोने  नहीं  दिया


 3

बरसों    के   भाईचारे   से   अलगाव  दोस्तो
अच्छा    नहीं    आपसी    टकराव    दोस्तो

अच्छे  कभी ,  बुरे  कभी  कुछ  भाव  दोस्तो
माना  कि  आ  ही  जाते  हैं  बदलाव  दोस्तो

सुन्दर लगें वे  माला  में  गर साथ - साथ हों
अच्छा लगे न  मनकों  का  बिखराव  दोस्तो

याद आती है वो सौंधी सी खुशबुएँ सड़कों की
याद  आता है  वो  पानी का छिड़काव दोस्तो

ये  शौक़  अपने  पास  ही  रक्खो  तो  ठीक है
घर  में  किसी  के  करना  न  पथराव  दोस्तो

सूखा  हुआ  सा  लगता है दरियाओं की तरह
ये    आपका    इरादों    में    ठहराव   दोस्तो

चप्पू   चलाते  जाइए  नदिया   में  प्यार  से
प्यारी  लगे   है   बहती   हुयी   नाव  दोस्तो


१३ जून १९३७ को वजीराबाद में जन्में, श्री प्राण शर्मा ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम ए बी एड प्राण शर्मा कॉवेन्टरी, ब्रिटेन में हिन्दी ग़ज़ल के उस्ताद शायर हैं। प्राण जी बहुत शिद्दत के साथ ब्रिटेन के ग़ज़ल लिखने वालों की ग़ज़लों को पढ़कर उन्हें दुरुस्त करने में सहायता करते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि ब्रिटेन में पहली हिन्दी कहानी शायद प्राण जी ने ही लिखी थी।
देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भाग ले चुके प्राण शर्मा जी  को उनके लेखन के लिये अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं और उनकी लेखनी आज भी बेहतरीन गज़लें कह रही है।


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8 टिप्पणियाँ

  1. बिटिया वाली ग़ज़ल ने आँख भिगो दी प्राण जी , अब आगे क्या कहू .
    बस सलाम कबुल करे .
    आपका अपना
    विजय

    जवाब देंहटाएं
  2. तीनों ही गज़लें बहुत शानदार तीनों के अलग़ अंदाज .. प्त्भावी गज़लें बधाई आदरणीय प्राण शर्मा जी सर
    शब्दांकन के लिए शुभकामनाएं
    आशा पाण्डेय ओझा

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत उम्दा तीनों ग़ज़लें अलग रूप अलग बयानी .. पर गहराई अनंत .. भाव सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय भाई प्राण शर्मा जी आपकी तीनों गजलों ने बेहद प्रभावी ढंग से मन को छू लिया,अति सुन्दर,बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. बेटियाँ सच में जान होती हैं परिवार की ... हर शेर दिल से हो कर गुज़रता हुआ इस ग़ज़ल का ...
    दोस्ती से जुड़े शेरों में बीते समय की यादों का झरोखा स्पष्ट नज़र आता है ...
    प्राण साहब की गजलों की सादगी और सरलता दिल में अनायास उतर जाती है ...

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  6. पहले कमेंट किया तो नैट उड गया ………आपकी तीनो गज़लें दिल को छू गयीं और बेटियों वाली गज़ल ने तो भावुक कर दिया ………बेहद उम्दा और शानदार गज़लें

    जवाब देंहटाएं
  7. तीनों ही गज़लें दिल को छू कर निकल जाती हैं लेकिन पहली गज़ल बेटियाँ तो बहुत देर तक रुकने को मजबूर कर देती है। जिस तरह से अलग रूपकों का प्रयोग किया है आपने वो इस गज़ल को बहुत ही शानदार और रोचक बना देती हैं। जीवन का एक सत्य पर काव्य में।
    स्वयं शून्य

    जवाब देंहटाएं
  8. प्राण साहब की ग़ज़लों के बारे में क्या कहूँ ? वो सच्चे मोतियों से सादा लफ़्ज़ों से अपनी ग़ज़लों में प्राण फूंक देते हैं। बेटियां वाली ग़ज़ल अंदर तक भिगो गयी , ऐसा करिश्मा सिर्फ प्राण साहब ही कर सकते हैं। लाजवाब।
    वंचित कभी दुलार से होने नहीं दिया ,मैंने किसी भी बच्चे को रोने नहीं दिया - अहा हा क्या अद्भुत शेर है , ऐसा शेर जो कालजयी है , कमाल है।
    दोस्तों रदीफ़ वाली ग़ज़ल जीवन जीने के कितने ही पाठ सरलता से सीखा देती है।
    मेरा प्रणाम स्वीकारें गुरुदेव।

    Neeraj

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