लाठी और लेखनी - महेश चन्द्र त्रिपाठी

महेशचन्द्र त्रिपाठी प्रधानाचार्य, महात्मा गाँधी इंटर कालेज सिधांव, फतेहपुर mahesh chandra tripathi,Mahatma Gandhi Inter College, Fatehpur, Sidhaon , fatehpur महेशचन्द्र त्रिपाठी

प्रधानाचार्य, महात्मा गाँधी इंटर कालेज सिधांव, फतेहपुर, (उ. प्र.) 
जन्म : १५ जनवरी १९६२ , ग्राम मोहकमपुर , जिला - उन्नाव (उ. प्र.)
कृतियां:
प्रकाशित:लायेंगे नूतन विहान (बाल काव्य संग्रह), हम चौकन्ने (बाल काव्य संग्रह), जंगल में मंगल (बाल काव्य संग्रह), काका कलाम (खण्डकाव्य), गीतांजलि (पद्यानुवाद), बड़ी बात (आध्यात्मिक कविताओ का संग्रह), विज्ञान पहेलियां (तीन भाग), बाल कविताएं, 501 ज्ञान पहेलियां, झलकियां 'मोहकमपुर' की
प्रकाश्य
महाराजा अग्रसेन (खण्डकाव्य), जय दशकंधर (खण्डकाव्य), बांहों में अभय (प्रेम कविताओ का संग्रह)
सम्मान-पुरस्कारभारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर  द्वारा प्रदत्त 'श्याम लाल पहरिया स्मृति सम्मान', अक्षय कला केंद्र अमौली फतेहपुर द्वारा प्रदत्त ' राष्ट्रकवि सोहन लाल द्विवेदी सम्मान'. मनीषिका कोलकाता द्वारा सारस्वत अभिनन्दन  वृत्ति - अध्यापन
सम्प्रति -
संपर्क - खुशवक्त राय  नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 212 601
दूरभाष - 087 9515 5030
ईमेल - mctripathi62@gmail.com

लाठी और लेखनी 


विधार्थी जीवन में किसी कवि की एक कविता पढ़ी थी । कविता की प्रारंभिक पंक्तियाँ थीं -
एक दिवस जब सुनकर हल्ला, मैं घर से बाहर आया ।
लाठी और लेखनी दोनों बहनों को लड़ते पाया ।।
तब जो कुछ भी लगा उचित, वह मैंने उनको समझाया ।
आगे की कविता तो अब मुझे याद नहीं रही, परन्तु इतना सुनिश्चित है कि कविता में लाठी और लेखनी दोनों की उपयोगिता तथा महत्व पर प्रकाश डाला गया था । नि:सन्देह, आज भी व्यक्ति तथा समाज के लिए दोनों उपयोगी हैं, महत्वपूर्ण हैं ।
विधालयों में जहां लेखनी का साम्राज्य माना जाता है, वहां भी डण्डा जो लाठी का पूर्वज है, के बिना काम नहीं चलता । लाख सरकारी प्रयासों के बावजूद आज भी अनेक शिक्षाविद इस बात के पक्षधर हैं कि 'डण्डा छूटा लड़का बिगड़ा' । डण्डे, लघु लाठी का प्रयोग सामान्यतया अध्यापकों द्वारा विधार्थियों पर किया जाता है । कभी-कभी इसके विपरीत दृश्य भी आजकल - अनुशासन के अभाव में - दृष्टीगत होन लगे हैं ।
राजनीति में 'जिसकी लाठी उसकी भैंस का मुहावरा प्रसिद्ध है । यहां लाठी सत्ता का पर्याय है । जिसकी सत्ता होती है, सरकार होती है, उसे लाठी के बल पर देश अथवा प्रदेश को लूटने की छूट होती है । आम आदमी के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष, नागनाथ और सांपनाथ की तरह रक्त-शोषक होते हैं । रक्त-शोषण में लेखनी भी बराबर की भूमिका निभाती और उपकृत होती है । याद आ रही हैं अपनी ही लेखनी से नि:सृत ये पंकितयां -
नागनाथ में सांपनाथ में जंग बराबर जारी है ।
जिसकी लाठी भैंस उसी की, माल मगर सरकारी है ।। 
  लाठी किसान यूनियन की प्रमुख पहचान है । परन्तु, यूनियन कोर्इ भी हो मात्र लाठी के दम पर न बन सकती है, न चल सकती है । उसे अपनी असिमता के लिए, अपनी पहचान के लिए लेखनी की शरण लेनी पड़ती है । लाठीधारक वह किसान भी जिसकी ककहरा से लाठी चली होती है, 'गिरधर कवि की यह कुण्डली गुनगुनाता मिलता है -
लाठी में गुण बहुत है, सदा राखिए संग ।
गहिरे नदी नारा जहां, तहां बचावै अंग ।।
तहां बचावै अंग, झपटि कुत्ता का मारै ।
दुश्मन दावागीर होय तिनहूं का झारै ।।
कह 'गिरधर कविराय, सुनौ हो दूर के बाठी ।
सब हथियारन छांडि़, हाथ मा लीजै लाठी ।।
आज कोर्इ लेखनीधारक अंधे की लाठी नहीं बनना चाहता । हां, यदि अंधा रेवड़ी या मोतीचूर के लडडू बांट रहा हो तो सभी उसके अपने बनकर ज्यादा से ज्यादा पाना चाहते हैं । कोर्इ न देख रहा हो तो अंधे को लूट लेने से नहीं चूकते । अंधा बेचारा भगवान के भरोसे जिन्दगी काटता है क्योंकि अपने ही समान अंधे कानून पर उसका भरोसा नहीं होता । वह इस विश्वास में जीता है कि भगवान सबसे बड़ा न्यायी है, भगवान ही सबसे बड़ा लठैत है, भले ही उसकी लाठी में आवाज नहीं होती ।
    पहले हर चरवाहे के पास एक लाठी होती थी । उस लाठी से जानवर हांके जाते थे । आज हर पुलिस वाले के पास एक लाठी होती है जिसे वह आम आदमी को पीटकर 'चार्ज' करता है । लाठीचार्ज कब और कहां किया जाएगा, इसका फैसला लाठीधारक नहीं करते । इसके लिए उन्हें लेखनीधारकों से आदेश लेना पड़ता है ।
'यह ले अपनी लकुटि कमरिया', लिखकर सूरदास ने भले ही कृष्ण के हाथ में लकुटि (लाठी) पकड़ायी हो, परन्तु, सर्वविदित है कि सांदीपनि के आश्रम में रहकर लेखनी की उपासना की थी । तभी वे कुरुक्षेत्र में पार्थ को गीता का ज्ञान प्रदान कर सके थे । तथ्यत: गीता ही नहीं, समस्त वांग्मय किसी न किसी की लेखनी से ही जन्मा है । लेखनी को आजकल कलम कहा जाता है और लेखनीधारक को कलमकार । पर, कभी कागज और कलम न छूने वाले कबीर को, कबीर जैसों को आप क्या कहेंगे ? वाणी ही उनके लिए कलम थी और लाठी भी ।
कलम की मार बड़ी पैनी होती है । कलम में वह शक्ति है जो तोप तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पायी जाती । इतिहास साक्षी है कि एक जमाने मे अकबर की तलवार से ज्यादा अबुलफजल की कलम का आतंक था कलम की महिमा बखानते हुए किसी कवि ने क्या खूब कहा है -
कलम की महिमा अपरम्पार
कलम के गुण गाता संसार
कलम से वश में होते भूत
मीत बन जाते हैं यमदूत ।
    कहने को तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पास भी एक लाठी थी । पर, क्या केवल लाठी ही ? जहान जानता है कि वे अपने जमाने के महानतम कलमकार भी थे । उन्हें लेखनी सिद्ध थी । लाठी और लेखनी दोनों का सम्यक उपयोग करके ही उन्होंने कालजयी कीर्ति कमायी ।
और, अब अंत में अपनी बात कहकर मैं इस चर्चा को विराम देना चाहता हूं -
मेरे पास नहीं है लाठी
मेरे पास कलम है
दूध भैंस का नित्य पिलाती
इतनी इसमें दम है
जिसकी लाठी भैंस उसी की
लेकिन उसे कसम है
घर में दाना नहीं अन्न का
फिर पय कहां हजम है ?
 - महेश चन्द्र त्रिपाठी

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