रूपा सिंह - पुकार : दो कवितायेँ | Rupa Singh


डॉ० रूपा सिंह

ऍम.फिल. पीएचडी (जे.एन.यू), डी.लिट.
एसो० प्रोफ़ेसर (हिंदी)
एसोसिएट आई.आई.ए.एस – राष्ट्रपति निवास, शिमला (2012-2015)
चार पुस्तकें प्रकाशित
राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित
संपर्क: rupasingh1734@gmail.com

पुकार - दो कवितायेँ


१...


मैंने पुकारा तुम्हे, एक तस्वीर बन जाने से पहले,
किसी विस्मृति में घुल जाने से पहले,
पुरजोर पुकारा तुम्हे।

रो-रो के आँखें धुल चुकी हैं।
रोशनी की ओर जाने वाली सभी राहें टटोली हैं।
जिन सुरंगों से खुशियाँ गुज़रती हैं –
उनका रंग काला है ।

मुझे डराया गया था, जोख़िम लेने से।

सांचे में ढाल दिए जाने से पहले,
जोर लगाया है, पुकारा है तुम्हें।
मेरे अन्दर की हसरतें और चित्कारता दुःख नहीं खत्म होगा,
जब तक तुम जकड़ न लो मुझको।
मेरा धधकता माथा उन धड़कनों के पार होगा,
जिसमे छटपटाती होगी तुम्हारी भी मुक्ति-कामना।
आग, पानी, आकाश, मिट्टी का कच्चा स्वाद
मुंह में भरे, चल-चलेंगें दूर तक,
घूम आयेंगें ब्रहमांड तक।
कर आयेंगे ढेरों मटरगश्तियाँ,
उगा आयेंगे रंग-बिरंगी तितलियाँ।
शास्त्रों की मंत्रणा पर हम खूब हँसेंगे ‘और
जिंदा रखेंगे एक-दूसरे के हौसलों को।

खून, मांस, मज्जा से पूरी ताक़त ले कर
पुकारती हूँ तुम्हें -
धमकते रास्तों पर संभलने,
बियाबान गुमशुदगी में दर्ज़ होने से पहले,
आ जाना चाहती हूँ तुम्हारे पास
जी लेना चाहती हूँ मुक्त-क्षण को।

अब क्या सोचना ...
पहले ही कितनी देर हो चुकी है।

____________________________________________

२...


हरो... रुको... ।
इत्मीनान से बातें करना चाहती हूँ तुमसे।
अपने अन्दर जितने अँधेरे थे,
सबों को दरेर कर बना ली है मोमबत्ती।
धागा डाला है जिसमे बचे-खुचे स्नेह का।

तुम्हारी मांगें क्यों हैं दियासलाई का झब्बा ?

ठहरो जरा... बहुत चली हूँ मैं।
जरा जांच लूं
अपने सलामत बचे पैरों को,
तुम्हारे गुरबती हाथ जो फैले मेरे सामने
धन्यवाद तो कहूँ अपने फौलादी हाथों को।

चेहरे की लुनाई में भरा है दुःख का पीलापन -
होठों की खुश्की से वे नज़र आते रहे अधिक रंगीन।
ठहरो... रुको... सोचने दो मुझे मेरे बारे में।
मेरे अंग कैसे और कब हुए तुम्हारे ?
टूटती पीड़ा आज फूटने को तैयार है,
अपने फूल चुनने हैं मुझे अपनी ही लाश से।
ठहरो... रुको... बातें करूंगी तुमसे -
पहले जरा बतिया लूं,
अपने आप से
इत्मीनान से ।

nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

5 टिप्पणियाँ

  1. सुंदर रचनाओ के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. रौशनी की और जाने वाली सभी राहे टटोली है -जिन सुरंगो से गुजरती है- उनका रंग काला है

    क्या कहूँ -

    एक गहरी सांस और स्तब्धता ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

    जवाब देंहटाएं
  3. बढिया कविताएं, दोनों.

    जवाब देंहटाएं
  4. बढिया कविताएं, दोनों.

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
सांता क्लाज हमें माफ कर दो — सच्चिदानंद जोशी #कहानी | Santa Claus hame maaf kar do
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari