फिर अफवाह...फिर हिन्दू-मुसलमान — अभिसार शर्मा #UPvotes @abhisar_sharma



दंगों की बात को छोड़ दें तो आपका और हमारा साथ 600 साल पुराना है

कल मोदीजी की बिजनौर मे रैली के बाद दो जाटों, बाप और बेटा को गोली मार दी गई। ये रंजिश तीन महीने पुरानी है जिसमें तीन मुसलमानों को गोली मार दी गई थी। यानी कि बदले की कार्रवाई थी। मेरे दो सवाल हैं। आखिर क्यों, कुछ नेता ये बात फैला रहे हैं कि इन दो जाटों को तब मारा गया जब वो मोदी की रैली से लौट रहे थे। जबकि उस वक्त बाप बेटे अपने खेतों मे काम कर रहे थे। वोटिंग से ठीक एक दिन पहले ये अफवाह फैला कर कुछ लोगों को क्या मिलेगा? आखिर क्यों? और क्या ये अजीब नहीं लगता कि वोटिंग के एक दिन पहले एक ऐसी घटना को अंजाम दिया जाता है, जिससे बंटवारे का माहौल पैदा होता है? ध्रुवीकरण के हालात पैदा होते हैं? क्या बदला लेने का यही दिन मिला था। मै जानता हूं ये इत्तफाक भी हो सकता है। मगर ज़रा सोचिए कि आखिर ये इत्तफाक क्यों एक घिनौने राजनीतिक खेल की ओर इशारा कर रहा हैं? ऊपर से अमित शाह का वो विडियो जिसमें वो जाटों के आगे वोट को लिए लगभग गिड़गिड़ाते सुनाई दे रहे हैं। भाव लगभग, भैया मुझे बचा लो वाला है। ये क्या हो रहा है? क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि ये तमाम घटनाएं एक अदृश्य कड़ी से जुड़ी दिखाई दे रही हैं।


"दंगों की बात को छोड़ दें तो आपका और हमारा साथ 600 साल पुराना है।" ये दंगों के दौरान किस साथ की बात कर रहे हैं अमित शाह?
मै आपको बिहार के चुनावों की ओर लेकर चलना चाहता हूं। उस दौरान ऐसी कई घटनाएं हुई थी जिसका मक़सद राज्य मे घातक साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाना था। भागलपुर की एक मस्जिद के सामने जानवर फेंकने की कई घटनाएं हुई। मंदिर के सामने भी ऐसा ही हुआ। नवसारी से एक नेता जानबूझकर मुस्लिम बहुल इलाकों से गणेश यात्रा निकालते थे और नारे लते थे, "दूध मांगोगे तो खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे"! अब बिहार मे गणेश यात्रा की ऐसी परम्परा होगी, मैं नहीं समझता। मक़सद था मुसलमानों को उत्तेजित करना और उसके बाद भी चाहे गिरिराज सिंह हों, अमित शाह हों या फिर खुद प्रधानमंत्री मोदी । या तो भाषणों मे गाय का मामला उठाया गया या फिर नीतीश की जीत की सूरत मे पाकिस्तान मे काल्पनिक जश्न का डर दिखाया गया। ऐसा क्यों? आखिर क्यों जिस शख्स के विकास के रिकार्ड का लोहा दुनिया मानती है (और मै सिर्फ गुजरात की बात कर रहा हूं, क्योंकि भारत को मोदीजी का जौहर अभी देखना है) उनकी पार्टी को बार-बार गाय, पाकिस्तान जैसे जुमलों का रुख करना पड़ता है? ये बात हैरत मे डाल देने वाली है।

2013 मे भी मुज़फ्फरनगर के दंगे ऐसे ही शुरू हुए और उसे फैलाने मे एक चिंगारी ज़बरदस्त आग मे तब्दील हो गई। नतीजा यूपी मे मोदीजी के नाम की ऐसी लहर जिसने वोट को दो फाड़ कर दिया ।

अब मैं अमित शाह के उस विडियो या ये कहा जाए यू ट्यूब पर ऑडियो के विडियो की बात करना चाहता हूं जिसमें वो वोट के लिए जाटों से अपील कर रहे है। ध्यान से सुनिएगा ये विडियो। करीब चार मिनट (4:01) के आसपास अमित भाई एक अहम बात करते हैं। कहते हैं, "दंगों की बात को छोड़ दें तो आपका और हमारा साथ 600 साल पुराना है।" ये दंगों के दौरान किस साथ की बात कर रहे हैं अमित शाह? ध्यान से सुनिएगा ये हिस्सा। बार-बार सुनिएगा। दंगों मे साथ? 600 साल पुराना साथ? क्या जनता इस बात को समझेगी? क्या जाट नेता ये बात समझ रहे हैं? ये कैसा साथ है भई? लोगों मे दोहराव पैदा करने वाला ये कैसा साथ है? अब एक और बयान पर गौर करें। सुरेश राणा का वो बयान। कहा था कि मैं जीता तो मुस्लिम बहुल इलाकों मे कर्फ्यू होगा। वाकई? क्या बीजेपी समर्थक भी ऐसे शहर मे रहना चाहेंगे जिसमें शहर मे तनाव हो और कर्फ्यू को माननीय नेता एक तमगे की तरह पहन कर चलें? ये बहुत खतरनाक है।

हो सकता है बिजनौर की घटना राज्य मे वोट को दो फाड़ कर दे। हो सकता है कि बीजेपी सत्ता मे भी आ जाए। हो सकता है कि इसके बाद यूपी और देश मे भी राम राज्य और अच्छे दिन आ जाएं। मगर गांधी ने कहा था, ज़रूरी सिर्फ उद्देश्य नहीं, ज़रूरी है उस उद्देश्य तक पहुंचने का ज़रिया। मगर फिर गांधी और संघ की विचारधारा का अंतर्विरोध तो जगजाहिर है और कुछ लोग इसे भी तमगे की तरह पहन कर चलते हैं।

Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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