साकुरा की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा - 34 | Vinod Bhardwaj on Sakura, Cherry Blossom

Photo credit: Monia Merlo (https://www.thegreengallery.com/en/issue-1/portfolio)
साकुरा,
मुझे फिर बुलाओ,
मेरे पास आओ,
एक अदृश्य चुंबन दो मुझे,
थोड़ी देर बैठो मेरे पास,
महान जापानी हाईकू कवि बाशो की
कुछ अमर पंक्तियों की याद दिलाओ।

— विनोद भारद्वाज

साकुरा की यादें 

— विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा

जापान से मेरा कुछ अजीब तरह का रिश्ता है। इस रिश्ते के केन्द्र में साकुरा यानी चेरी ब्लोसम फूल हैं। चीन, कोरिया, जापान इन सभी देशों में इन फूलों का महत्व है। चीन में ये फूल स्त्री के सौंदर्य और उसकी कामुकता से जुड़े हैं। एक खास तरह की स्त्री शक्ति हैं वे।





लेकिन जापान में साकुरा बौद्ध दर्शन और वसंत के आगमन से जुड़े हैं। वे जीवन की नश्वर्ता, अस्थायीपन आदि से एक दार्शनिक और काव्यात्मक स्तर पर भी जुड़े हैं। चीनी पर्यटकों को मैनें जापान में साकुरा के पेड़ों के नीचे उछलकूद के अंदाज़ में देखा है, एक खास तरह की आक्रामक्ता होती है उनमें। जापानी साकुरा की डाल को छूते नहीं हैं, वे बस उसके सौंदर्य को निहारतें हैं। इन फूलों का जीवन ज्यादा से ज्यादा दो हफ्ते का होता है। पर वो फिर साल भर की जादुई ताकत दे देता है।

जापान में हनामी का मतलब फूलों को देखना है, वो भी साकुरा को। वैसे प्लम देखने को भी हनामी ही कहते हैं। लेकिन साकुरा का अर्थ ही कुछ और है और कुछ ज्यादा गहरा है।

जब मैं समझ रहा था कि मेरा ये यादनामा खत्म हो गया है, तो कवि मित्र मंगलेश डबराल ने मुझे ठीक ही याद दिलाया है कि साकुरा को याद किए बिना कैसे मैं विदा ले सकता हूँ। मुझे खुद पर भी हैरानी हुई कि मैं साकुरा को कैसे भूल गया। अगर करोना ने हमारी जिंदगी को तबाह न कर दिया होता, तो मार्च के अंत में अपने भाई के साथ मैं हनामी के लिए जापान का टिकट खरीद चुका था। मेरा बेटा विनायक जापान में रहता है, फ़ेसबुक पर उसकी तस्वीरों से पता चला कि इस बार पर्यटक नहीं थे और जापानी भी कोरोना से कुछ डरे हुए थे इसलिए साकुरा संस्कृति में सौंदर्य के साथ उदास करने वाला सन्नाटा भी था।

मेरा जापान से शुरुआती रिश्ता कुरोसावा और ओजू की क्लासिक फिल्मों के कारण था। ओजू की टोक्यो स्टोरी या कुरोसावा की राशोमोन दुनिया की बेहतरीन फिल्मों में से हैं।

मेरे बेटे ने जब होटल मैनेजमेंट को अपना कैरियर बनाना चाहा, तो उसे मैने मोटी फीस दे कर दाखिला तो दिला दिया पर बहुत जल्दी ही वह इस दुनिया से निराश हो गया। ये संस्थान लंदन की किसी अज्ञात यूनिवर्सिटी से जुड़ कर बस पैसा बटोरतें हैं। बच्चों को किसी होटल से नत्थी कर के दिन भर आलू छिलवाना कौन सी ट्रेनिंग है।

मेरे बेटे के दोस्त की माँ ने उसे कोरियन या जापानी भाषा सीखने की सलाह दी। मेरा मन था वह जापानी सीखे पर मैं कुछ बोला नहीँ। उसने खुद जापानी चुनी, बाद में एक स्कोलरशिप पा कर कानाजावा यूनिवर्सिटी में पढ़ा भी। कई साल बाद उसकी एक जापानी दोस्त ने मुझे कहा कि उसकी जापानी जापानियों से कम नहीं है। मुझे ये जान कर अच्छा लगा।



पर वह मेरे जैसा पागल साकुरा प्रेमी नहीं है। मुझे मेरी जापानी दोस्त एमिको मियाशिता ने साकुरा संस्कृति का नज़दीकी हिस्सा बनाया। एमिको जापानी हाईकू कवयित्री है और अंग्रेज़ी अच्छी जानती है, काफी मिलनसार है। किमोनो में वह खूबसूरत लगती है। मंगलेश डबराल उसकी हाईकू कविताओं का अनुवाद भी कर चुके हैं।

पहली बार मैं साकुरा महोत्सव का हिस्सा एमिको के साथ ही बना। वो मुझे दिन में खास जापानी माहौल में ले गयी, मैं बस अकेला बाहर वाला था। साकुरा के फूल पूरी तरह खिले हुए थे। खाना पीना, संगीत, नृत्य, किमोनो में चमकती स्त्रियां। साके तो नहीं , मैनें बियर का पूरा लुत्फ उठाया।

एमिको मियाशिता और विनोद भारद्वाज,टोक्यो साकुरा महोत्सव 2018


एमिको ने लंबा प्रोग्राम बनाया था। शाम को एक अन्य जापानी कवि को बुला रखा था। वह डिनर के लिए हमें कुरोसावा रेस्तराँ ले गयी। पता चला वहाँ कुरोसावा के घर की रसोई के नुस्खों से खाना बनता था। महँगा रेस्तरां था और मैं व्हिस्की के कुछ ज्यादा ही पेग पी गया सेवन सामुराई को कुछ ज्यादा ही याद कर के। अब अगला प्रोग्राम था नाइट साकुरा से अद्भुत मिलन का। वे दोनों कवि साथ थे, तो जाहिर है साकुरा को देखा भी बहुत दूसरी तरह से। कवियों को दिखता भी कुछ दिव्य है।

उस साल के बाद मैं साकुरा संस्कृति का अजीब नशा महसूस करने लगा। जापान में अकेले भाषा जाने बिना घूमना आसान और सेफ़ है। मैं ज्यादातर अकेले हो घूमता हूँ।

क्योतो में गेइशा इलाके के एक प्रसिद्ध मंदिर के पास के सुन्दर साकुरा बगीचे में पेड़ों के नीचे जापानी बैठे बड़ी संख्या में खाने-पीने और संगीत, गपशप का पूरा आनंद उठा रहे थे। एक सबसे अच्छी जगह की चटाई खाली थी। वेटर लड़की ने बताया, पाँच बजे से इसकी बुकिंग है। चार बजे थे। उसने कहा एक घंटा आप बैठ सकते हैं। बियर, साकुरा और शत प्रतिशत जापानी माहौल ने मुझे उस शाम असली हनामी का जादुई हिस्सा बना दिया।

एक बार मंदिर नगरी नारा में बारिश ने साकुरा के फूलों को असमय गिरा दिया था, एक अजीब उदासी के माहौल में नारा पार्क के प्रसिद्ध हिरण घूम रहे थे। वो उदासी मुझसे देखी नहीं जा रही थी।



मैं फूलों का बहुत रसिक कभी नहीं रहा पर साकुरा ने मुझे अपना खास चाहने वाला बना दिया। उनको खिलते और गिरते देखना एक पूरा और अद्भुत जीवन जान लेना है।

साकुरा, मुझे फिर बुलाओ, मेरे पास आओ, एक अदृश्य चुंबन दो मुझे, थोड़ी देर बैठो मेरे पास, महान जापानी हाईकू कवि बाशो की कुछ अमर पंक्तियों की याद दिलाओ।

कोरोना, तुम तो भाग जाओ।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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2 टिप्पणियाँ

  1. अच्छी स्मृति है। प्रतीकात्मक भी।

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  2. करीब 10 साल पहले जब हाइकु को पढ़ा , समझा , जाना , लिखने की कोशिश की तो बासो को भी पढ़ा, शांत होने का अर्थ भी तभी समझ में आया। वास्तव में मन में बिना किसी विचार के, किसी भी प्राकृतिक या आप्राकृतिक बदलाव को देखना मात्र ही अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है, मन में आए हुए विचार उस पूरे क्षण की सुंदरता को भंग करने की ताकत रखते हैं, ऐसे में सिर्फ देखना और महसूस करना एक परम आनंद देता होगा ऐसा मुझे जरूर लगता है।

    बहुत ही सुंदर लिखा है लेखक ने, मन जैसे वहीं फूलों की वादियों में पहुंच गया, आंखों के सामने वही रंग बिरंगे फूल तैरने लगे।

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