इस आखिरी किस्त के साथ विनोद भारद्वाज जी की किताब यादनामा पूरी हो गयी है। इसका उप-नाम है, लॉकडाउन डायरी, कुछ नोट्स, कुछ यादें । जल्दी ही किताब भी स…
विनोद जी अपने संस्मरणों में, इसके पिछले लेखन (जापान वाले 'साकुरा की यादें') से, खूबसूरत कवि-से हो गए हैं! उनके इस सौन्दर्य भरे परिवर्तन से उ…
Photo credit: Monia Merlo (https://www.thegreengallery.com/en/issue-1/portfolio) साकुरा, मुझे फिर बुलाओ, मेरे पास आओ, एक अदृश्य चुंबन दो मुझे, …
आज के इस संस्मरण के साथ विनोद जी ने कहा है कि यह अंतिम कड़ी है। मैं संस्मरण का घोर प्रेमी हूँ, मानता हूँ कि संस्मरण हमें वह बातें समझाते हैं…
रोम की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा न जाने क्या बात है इटली की स्त्रियाँ बहुत आसानी से मेरी दोस्त बन जाती हैं, उन्होंने मुझे इ…
कुबेर दत्त और पीने की कुछ अन्य यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा मेक्सिको की चर्चित चितेरी फ्रीडा काल्हो ने कहा था, मैंने अपने दुख दर्द…
विनोद जी लेखन में इतने बहुत वरिष्ठ हैं, उन्होंने इतना देखा लिखा है, इसलिए, यह तो नहीं कह सकता कि उनके संस्मरणों में निखार आ रहा है. लेकिन, …
हिंदी के एक नामी उपन्यासकार ने गाइड को कमरे में बुलाने की कोशिश की, तो उनकी शिकायत दूतावास को कर दी गई थी। — विनोद भारद्वाज कोल्ड वार …