वेनिस की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा - 33 | Vinod Bhardwaj on Venice



आज के इस संस्मरण के साथ विनोद जी ने कहा है कि यह अंतिम कड़ी है। मैं संस्मरण का घोर प्रेमी हूँ, मानता हूँ कि संस्मरण हमें वह बातें समझाते हैं जो साहित्य की किसी अन्य विधा के बस में नहीं है। विनोद जी को और साथ में ख़ुद को कुछ वक़्त का आराम देने की भले सोच सकता हूँ लेकिन अंतिम कड़ी कहे जाने की कड़ी निंदा करते हुए अस्वीकार करता हूँ। और अब तक की इन यादों की पुस्तक तैयार होने की विनोद जी को हार्दिक बधाई देता हूँ...सादर भरत एस तिवारी।

वेनिस की यादें

— विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा


वेनिस का मेरे लिये मतलब है प्रोफ़ेसर मरियोल्ला अफ्रीदी। उन्होंने कुँवर नारायण के प्रबंध काव्य आत्मजयी का इतालवी में नचिकेता  नाम से अनुवाद किया था। वह लंबे समय तक वेनिस विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्यक्ष थीं, अब रिटायर होने के बाद भी भारत आती जाती हैं। ज़बरदस्त मेहनती स्त्री हैं, उनके गाँव (या शायद उसे क़स्बा कहना बेहतर होगा) लोवेरे में भी मैं कई बार रह चुका हूँ। उन्होंने अपनी कार से मुझे उत्तर इटली के न जाने कितने शहर घुमाए हैं। उनके स्वभाव को समझना थोड़ा मुश्किल काम है। आप पर मेहरबान हैं, तो आपकी चाँदी। आपसे नाराज़ हैं, तो कई साल आपको पहचानने से भी इंकार कर देंगी। मेरा सौभाग्य और दुर्भाग्य है कि उनके दोनों रूप देख चुका हूँ।

नचिकेता: कुँवर नारायण के प्रबंध काव्य आत्मजयी का इतालवी अनुवाद, प्रोफ़ेसर मरियोल्ला अफ्रीदी 

एक बार नब्बे के दशक की शुरुआत में वे दिल्ली आयी थीं, किसी कोश के लिए उन्हें भारतीय कला पर लिखना था। मैंने उनकी थोड़ी बहुत मदद की, तो मेरे लिए महंगे और रोमांटिक वेनिस शहर के दरवाज़े खुल गए।

1993 में रोम से एक ट्रेन पर वेनिस के लिए रवाना हुआ, जहाँ मेस्तरे में उन्होंने अपने एक पुराने छात्र के फ़्लैट की चाभी मुझे एक हफ़्ते के लिए दिला दी। मैं दोपहर में वेनिस विश्वविद्यालय में उनके कक्ष में पहुँचा। उनकी एक छात्रा एलिजाबेत्ता वहाँ बैठी थी।

मरियोल्ला ने मेरा उस छात्रा से परिचय कराया, ये आपको वेनिस घुमाएगी।

आपके पिता क्या काम करते हैं, मैंने एक छोटा सा और मेरे लिए सहज सवाल किया।

मरियोल्ला का स्वभाव मैं तुरंत जान गया। वह बहुत अच्छी थीं, पर ग़ज़ब की ग़ुस्सैल भी थीं। बोलीं, यह भी कोई सवाल है, हो सकता है इनके पिता चोर हों। 

"और हाँ, आप इनसे सिर्फ़ हिंदी में ही बोलिएगा। "

वह अंग्रेज़ी जानती थी। हिंदी भी सीख रही थी। पर उसने मुझे पर्यटकों के वेनिस से दूर रखा, वेनिस की छिपी हुई गलियाँ बहुत मन से दिखाईं। उसका कोई मित्र डाकिया था, वह एक दूसरे वेनिस को जानती थी। पर दुर्भाग्यवश हम अंग्रेज़ी का ज़्यादा इस्तेमाल करते रहे। मरियोल्ला से माफ़ी। वह आज भी फ़ेस्बुक पर मेरी दोस्त है, पिछले साल यानी 2019 में मैं अपने छोटे भाई के साथ वेनिस गया, तो पहली बार वहाँ एक होटेल में रुका। तब भी एलिजाबेत्ता ने एक दिन छुट्टी ले कर हम दोनों को वेनिस की अनजान गलियाँ घुमाईं। एक अच्छी मित्र है, सुंदर और मीठी मुस्कानवाली।

प्रोफ़ेसर मरियोल्ला अफ्रीदी (फ़ोटो: Lars Eklund/ nordicsouthasianet.eu)


वीकेंड में हमें लोवेरे जाना था मरियोल्ला की कार में। एक अच्छा ख़ासा बड़ा घर था, जिसकी वह बड़ी जम कर सफ़ाई करती थीं। मैंने बाद में नोट किया, मैं जब भी पेशाब कर के लौटता था, वह तुरंत अंदर चेक करने जाती थीं, कुछ इधर उधर छिड़काव तो नहीं हो गया। बाद में एलिजाबेत्ता ने भी एक बार बताया, कि उसे भी अपने पति का ऐसे ही ध्यान रखना पड़ता है। 

आख़िर मर्द तो सब ऐसे ही हैं।

और लोवेरे में पहली ही शाम को प्रोफ़ेसर साहिबा ने मुझे अपने निजी रिवाल्वर के दर्शन कराए। मैं सोचता रहा, कि इन्हें मुझसे कोई ख़तरा तो नहीं नज़र आ रहा है। हो सकता है उन्होंने उसे मुझे शौक़ से ही दिखाया हो। पर वह कोई क़ीमती तमंचा था, शायद उनके पिता का होगा। पिता की बहुत सी चीज़ें उन्होंने संभाल कर रखी थीं। एक पुरानी विस्की की बोतल का स्वाद भी मुझे चखने का मौक़ा मिला। वह ख़ुद ड्रिंक नहीं लेती हैं।

मेरे बाद कुँवर नारायण वेनिस आने वाले थे। मरियोल्ला मुझे एक ऊँची पहाड़ी पर किसी महत्वपूर्ण इमारत दिखाने को ले गयीं, रास्ते में बार बार वह पूछती रहीं, क्या कुँवर जी को यहाँ चढ़ाई में दिक़्क़त तो नहीं होगी। वह कुँवर जी का बहुत आदर करती थीं, लखनऊ में उनके घर रूकती भी थीं। लेकिन कुँवर जी से अंतिम वर्षों में उनकी बोलचाल क्यूँ बंद हो गयी, यह मैं कभी नहीं जान पाया। मुझसे भी एक बहस के बाद वह कई साल नहीं बोलीं, पर कुछ साल पहले वह दिल्ली में थीं, तो उनका मेरे पास फ़ोन आया, हम मिले भी। मैंने उन्हें बताया कि कुँवर जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, आँखों की रोशनी खो रहे हैं, आप उनसे ज़रूर मिलिए। पर मुझे यह अफ़सोस हमेशा रहेगा कि वह फिर कभी कुँवर जी से मिली नहीं, वे तो बहुत नेक दिल इंसान थे। इसके लिए मैं उन्हें माफ़ नहीं कर सकता।

जब मेरा बेटा विनायक जापान के कानाजावा विश्वविद्यालय से पढ़ कर दिल्ली आया, तो मुझे एक आर्ट गैलरी से अच्छे पैसे मिले थे। मैंने सोचा उसे इटली और स्विट्जरलैंड घुमाया जाए। उसकी माँ तब इस दुनिया को विदा दे चुकी थीं। वैसे जवान बेटे के साथ बाप की यात्रा बहुत अनुकूल अवसर नहीं है, बेटी बाप का ज़्यादा ध्यान रखती है। ख़ैर। मरियोल्ला ने बाप बेटे को कार में घुमाने का शानदार ऑफ़र दिया। एक पुरानी इमारत में हम घूम रहे थे। मेरे बेटे ने अपने कैमरे से फ़ोटो खींचना चाहा, तो सिक्योरिटीज़ ने कहा, फ़ोटो खींचना मना है। विनायक ने कैमरा बंद कर दिया। मरियोल्ला ने बात की और फ़ोटो खींचने की अनुमति ले ली। पर अब मेरा बेटा अड़ गया कि नियम नहीं तोड़ूँगा। मरियोल्ला बहुत नाराज़ थीं, मुझसे बोलीं, आप तो बड़े विनम्र हैं, आपका बेटा बहुत ग़ुस्सैल है। मैंने हँस कर कहा, आपकी तरह ही ग़ुस्सैल है। पर उस यात्रा का असली झगड़ा अभी होना था। रास्ते में फ़ेलीनी का जन्म स्थान रिमिनी आने वाला था। उसे मैं देखना चाहता था। मरियोल्ला ने बड़े प्यार से वो जगह दिखाई। वापस लोवेरे जाने का दो ढाई घंटे का रास्ता था। हमारी बातचीत अनुवाद पर होने लगी। वह मंगलेश के अनुवाद कर रही थीं। मैंने कहा, हो सके तो मूल रचयिता के साथ मिल कर अनुवाद करना चाहिए। यह सिम्पल सी बात थी, पर वह बुरी तरह नाराज़ हो गयीं। सारे रास्ते ग़ुस्से में बोलती रहीं। फिर वह कई साल मुझसे बोली नहीं। ग़ज़ब का यह अजब अनुभव था।

एक बार मैंने उनसे कहा किसी लंबी कार यात्रा में, सुना है आपका किसी भारतीय से प्रेम था, आपने शादी क्यूँ नहीं कराई। वे अपने निजी जीवन के बारे में कोई बात नहीं करना चाहती थीं। ठीक है, नो प्रॉब्लम। लेकिन मुझसे वह निर्मल वर्मा और गगन के बारे में जानना चाह रही थीं, राम कुमार की पत्नी विमला जी के बारे में कह रही थीं कि वे अपने ऊँचे दाँत ठीक क्यूँ नहीं करातीं। ये सब भी निजी जीवन था।

मैं मानता हूँ कि उन्होंने इटली घुमाने में मेरी बहुत मदद की, बिना किसी बड़े स्वार्थ के। मेरी पत्नी देवप्रिया के आकस्मिक निधन के कुछ महीने बाद उन्होंने, कहा, आप बस टिकट का इंतज़ाम कर लीजिए, एक महीने आप एक इतालवी परिवार में रह सकेंगे, वे लोग आपको ख़ूब रेनेसां की कला दिखाएँगे। एक महीना मैं वेनिस के पास स्पीनया में स्टीफानो के घर में रहा। मेरा बस काम था उसके साथ हिंदी बोलना। उसके माता पिता भले हैं, उनके साथ रोज़ रात रसोई की टेबल पर बैठ कर भोजन का अनुभव दिव्य था।



उन दिनों अलका सरावगी भी वेनिस में लेक्चर के लिए आयी हुई थीं। मरियोल्ला ने उनके लेखन का भी अनुवाद किया है।

चित्रकार ग़ुलाम शेख़ ने कभी मुझे बताया था कि कैसे वे हिचहाइकिंग करते हुए पियरे देल्ला फ्रांचेस्का का अद्भुत फ़्रेस्को परेगनेंट मैडोना देखने गए थे। मैंने मरियोल्ला से इस फ़्रेस्को को देखने की इच्छा बतायी। हम तुस्कानी के अरेस्सो शहर में गए जहाँ पियरे का एक बड़ा काम था। इसी जगह पर लाइफ़ इज़ ब्यूटिफ़ुल फ़िल्म की शुरू के हिस्सों की शूटिंग हुई थी। फिर वह कार से दिन भर भटकते हुए मुझे मोंतेरची नाम की जगह पर ले गयीं, जहाँ गर्भवती मेडौना थी। पता चला, उस दिन वहाँ अवकाश था। मरियोल्ला ने कहा, मेरा वायदा, यह फ़्रेस्को आपको दिखाऊँगी ज़रूर।

पियरे देल्ला फ्रांचेस्का का फ़्रेस्को परेगनेंट मैडोना (विकिपीडिया)


मेरी अगली यात्रा में उन्होंने पूरा इंतज़ाम करा रखा था कि गर्भवती मैडोना मैं ठीक से देख सकूँ। ग़ज़ब का फ़्रेस्को है वो।

और कम ग़ज़ब की नहीं हमारी प्रिय और आदरणीय मरियोल्ला। वेनिस ही नहीं, पूरा उत्तर इटली घुमा दिया। कार में घूमते हुए वे इतालवी कॉफ़ी पीती थीं, जो मात्रा में बहुत कम और बहुत स्ट्रॉंग होती थी।

वे कहती थीं, आप तो अमेरिकन कॉफ़ी पिएँगे, गंदा पानी।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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