वो अपने चेहरे में सौ आफ़ताब रखते हैंआज है उनकी पुण्यतिथि
इसीलिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं
- हसरत जयपुरी

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद चमड़े की झोपड़ी की आग बुझाने के लिए वो बम्बई आ गए, वहाँ पर उन्होंने आठ साल बस कंडेक्टरी की। हसरत साहब ने कभी हसीनाओ से टिकट का पैसा नही लिया वो कहते है, “मैं इन हसीनाओ को देखते हुए बस यही कहा करता था कि तुम खुदा की बनाई नेमत हो तुमसे टिकट के लिए पैसा नही लूँगा” और उनसे जो प्रेरणा मिलती मुझे वो गीतों-कविताओ में, घर आकर कागज के सीने में उतार देता। हसरत इन कामो के साथ ही मुशायरो में शिरकत करते, उसी दौरान एक कार्यक्रम में पृथ्वीराज कपूर उनके गीतों को सुनकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अपने पुत्र राजकपूर को हसरत जयपुरी से मिलने की सलाह दी। राजकपूर स्वंय हसरत जयपुरी के पास गये और उन्होंने उन्हें अपने स्टूडियो बुलाया और वहाँ पर उन्होंने हसरत साहब को एक धुन सुनाई। उस धुन पर हसरत साहब को गीत लिखना था।
धुन के बोल कुछ इस तरह के थे “अबुआ का पेड़ है वही मुंडेर है, आजा मेरे बालमा काहे की देर है” हसरत जयपुरी ने धुन सुनकर अपनी फ़िल्मी जीवन का पहला गीत लिखाफिल्म “बरसात” के लिए लिखे इस गीत ने हसरत जयपुरी को पूरे देश में एक नई पहचान दी। हिंदी फिल्मो में जब भी टाइटिल गीतों का जिक्र होता है, तो सबसे पहले हसरत जयपुरी नाम लिया जाता है। दीवाना मुझको लोग कहे (दीवाना) , 'दिल एक मंदिर है’ ,’ रात और दिन दीया जले’ , ‘तेरे घर के सामने इक घर बनाउगा’, ‘गुमनाम है कोई बदनाम है कोई’,’दो जासूस करे महसूस’ जैसे ढेर सारे फिल्मो के उन्होंने टाइटिल गीत लिखे, इसके साथ ही हसरत जयपुरी ने लिखा “अब्शारे-गजल” में
“जिया बेकरार है, छाई बहार है आजा मोरे बालमा तेरा इन्तजार है”।
ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी
फ़िज़ा महकी महकी हवा महकी महकी
वो आँखों में काजल वो बालों में गजरा
हथेली पे उसके हिना महकी महकी
ख़ुदा जाने किस-किस की ये जान लेगी
वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी
सवेरे सवेरे मेरे घर पे आई
ऐ "हसरत" वो बाद-ए-सबा महकी महकी
उन्होंने प्रेम को प्रतीक माना ...
हसरत जयपुरी ने अपनी उस प्रेमिका के लिए बहुत से गीत लिखे जहाँ वो बोल पड़ते है
चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुये बंधन से निकल, चल
हम वहाँ जाएँ जहाँ प्यार पे पहरे न लगें
दिल की दौलत पे जहाँ कोई लुटेरे न लगें
कब है बदला ये ज़माना, तू ज़माने को बदल, चल
प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियाँ अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं
तू भी बिजली की तरह ग़म के अँधेरों से निकल, चल
अपने मिलने पे जहाँ कोई भी उँगली न उठे
अपनी चाहत पे जहाँ कोई भी दुश्मन न हँसे
छेड़ दे प्यार से तू साज़-ए-मोहब्बत पे ग़ज़ल, चल
पीछे मत देख न शामिल हो गुनाहगारों में
सामने देख कि मंज़िल है तेरी तारों में
बात बनती है अगर दिल में इरादे हों अटल, चल
इन्होने अपने प्यार का इजहार बहुत ही शानदार तरीके से किया पर हसरत कभी अपनी उस पहली प्रेमिका को कह नही पाए और उन्होंने जो अपना पहला प्रेम पत्र लिखा था उसको वो कभी अपनी राधा को नही दे पाए तब राजकपूर ने उनके प्रेमपत्र को एक फिल्म में इस्तेमाल किया “ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कही तुम नाराज न होना कि तुम मेरी जिन्दगी हो तुम मेरी बन्दगी हो”
हसरत के गीतों में अंतर वेदना के साथ प्रेम की असीम गहराई है। हसरत जयपुरी की जोड़ी राजकपूर के साथ 1971 तक कायम रही। “मेरा नाम जोकर” और “कल आज और कल” की बाक्स आफिस में विफलता के कारण राजकपूर से उनकी जोड़ी टूट गयी और राजकपूर ने फिर आनन्द बख्शी को अपने साथ ले लिया। इसके बाद हसरत जयपुरी ने राजकपूर के लिए 1985 में प्रदर्शित फिल्म “राम तेरी गंगा मैली” में “सुन साहिबा सुन” गीत लिखा जो काफी लोकप्रिय हुआ। हसरत जयपुरी को दो बार फिल्मफेयर एवार्ड पुरूस्कार से सम्मानित किया गया। हसरत जयपुरी ने यों तो बहुत रूमानी गीत लिखे लेकिन असल जिन्दगी में उन्हें अपना पहला प्यार नही मिला। हसरत ने तीन दशक लम्बे फ़िल्मी कैरियर में 300 से अधिक फिल्मों के लिए करीब 2000 गीत लिखे। अपने गीतों से श्रोताओ को मन्त्र मुग्ध करने वाला शायर 17 सितम्बर 1999 में चिर निद्रा में विलीन हो गया और छोड़ गया अपने लिखे वो गीत जो उसने सादे कागज के कैनवास पे उतारे थे और अलविदा कह दिया उसने इस दुनिया को। ऐसे शायर को आज उनकी पूण्य तिथि पर शत शत नमन।
सुनील दत्ता (स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक)
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