
अनामिका चक्रवर्ती की कवितायेँ
ये जीवन
यथार्त और परछाईयों में,
आवरण मुस्कुराता हुआ,
अंतर सतह एकांत है ये जीवन।
एक अनुमान और परिर्वतन के,
मध्य संकुचित है ये जीवन।
जीवंत अनुभव और
अतृप्त अभिलाषाओं के सम्मुख,
निरूत्तर है ये जीवन।
तृष्णा और सीमाओं में गुथा,
एक मरीचिका है ये जीवन।
अपरिचित सा मन और
अनंत स्वप्नों के
पंख फड़फड़ाता सा
है पूरा जीवन।
स्पर्श
मन को मेरे,
तुम मेरी नियती का उपहार नहीं,
मेरी खुशियों का श्रगाँर हो।
तुमसे बिछुड़ना वियोग नहीं,
तुमसे जुड़ना कोई संजोग नहीं।
तुम पर मेरा कोई बन्धन नहीं,
मैं सम्बन्धों से मु्क्त नहीं।
तुम प्रश्न नहीं उत्तर हो,
तुम जीवन का आनंद हो।
जिसका कोई मूल्य नहीं,
जिसका कोई अन्त नहीं।
तुम भम्रित होना छोड़ दो,
खुद को अंतर्मन से जोड़ दो
तुमसे ये प्रेम आलिंगन का नहीं,
ये निच्छल है जिसकी परिभाषा नहीं।
तुम मेरे मन की धरा में जड़वत हो,
तुम मात्र मेरी स्मृतियों का अंश नहीं।
माँ
माँ तेरी रोटी,
होती थी।
अब की रोटी,
कितनी फीकी,
होती है।
तेरी दाल के छौक से,
भूख बढ़ सी,
जाती थी।
अब की छौक से,
मितली सी आती है।
तेरी चौके के,
गंध वाली साड़ी,
कितनी भाती थी।
अब मेरी,
खुशबुदार साड़ी,
कितनी फीकी होती है।
तेरे आँगन की मिट्टी,
कितनी पक्की होती थी।
अब की इमारत,
कितनी कच्ची होती है।
माँ तु कितना गुस्सा होती थी।
तब भी तु माँ होती थी।
अब की जब मै गुस्सा होती हूँ,
तो मेरे जैसी माँ नहीं होती है।
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अनामिका चक्रवर्ती
जन्म स्थान - जबलपुर (म.प्र.)
प्रारंभिक शिक्षा - भोपाल म.प्र. से।स्नातक - मनेन्द्रगढ़ (गुरू घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर ) छ.ग. से। कम्प्युटर में PGDCA
कार्यक्षेत्र- विगत कुछ वर्षो से निजी संस्थानो में कार्यरत थी किन्तु अब पूर्ण रूप से लेखन के प्रति समर्पित हूँ। वेब पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित। बचपन से ही साहित्य में रूची । गद्य और पद्य दोनो विधाओ में लेखन। सभी विषयो पर अपनी कविता और कहानी एवं लेख से अपने अनुभव और भावनाओ के द्वारा समाज को एक सकारात्मक दृष्टीकोण देना चाहती हूँ।
बहुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाएं....
जवाब देंहटाएंअनु
सुन्दर कविताऐं आगे इंतजार रहेगा
जवाब देंहटाएंbahut sunder,,
जवाब देंहटाएंवर्तनी का भी ध्यान नहीं रखा जाता! दुखद स्थिति है! ये ध्यान रखा जाना जरूरी है कि पंक्तियाँ इस तरह से तोड़ी जाएँ कि प्रवाह न बाधित हो!
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