हिंदी-कर्मियों की आवश्यकता है, हिंदी-सेवियों की नहीं —अशोक चक्रधर #हिंदीदिवस #HindiDiwas


उन कुंठाहीन हिंदी-कर्मी द्विभाषी या त्रिभाषी बालकों और युवाओं का अभिनंदन करता हूं जो हिंदी के सारथी हैं — अशोक चक्रधर

हिंदी-सेवी या हिंदी-कर्मी

—अशोक चक्रधर

चौं रे चम्पू
   


Ashok Chakradhar on Hindi. Hindi Divas

चौं रे चम्पू! काऊ और भासा कौ दिबस नायं मनायौ जाय? हिंदी दिबस ई चौं?


साल में यदि किसी एक दिन हिंदी याद आ रही है तो बुरा क्या है? पर, मैं आपको बताऊं चचा! हिंदी दिवस लगभग बीस-पच्चीस साल पहले सिर्फ़ एक दिन का होता था। राजभाषा विभाग के कर्मचारियों की बढ़ती लेखन-रुचि के कारण कार्यक्रम बढ़े तो हिंदी पखवाड़ा मनाया जाने लगा। इस बार मैंने पहली बार देखा है कि पहली सितम्बर से ही हिंदी के कार्यक्रम प्रारंभ हो गए हैं। एक सितंबर को दिल्ली के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में कक्षा पांच के बच्चों की वाद-विवाद प्रतियोगिता थी। मेरे अतिरिक्त हिंदी के तीन विद्वान वहां उपस्थित थे। मानक भाषा, शुद्ध उच्चारण और अद्वितीय अभिव्यक्ति से बच्चों ने हमें चमत्कृत कर दिया। निश्चय ही उनके शिक्षकों अभिभावकों ने तैयारी कराई होगी।

लल्ला जे ऐ हिंदी की सच्ची सेवा।


चचा, ये ‘सेवा’ शब्द अब मुझे पचता नहीं है। बच्चे भाषाएं सीखेंगे तो भविष्य में मेवा मिलेगी। अच्छे कार्मिक बनेगें। किसी भाषा के बोलने वाले दरिद्र या सम्पन्न हो सकते हैं। आज हिंदी कोई दरिद्र है, जो सेवाएं चाहेगी। हिंदी-सेवी संबोधन के साथ कृत्रिम भावना सामने आती है। आज़ादी मिलने से पंद्रह साल तक थे हिंदी-सेवी। जिनके सामने इस अवधि में हिंदी को देशभर में फ़ैलाने का दायित्व था। संविधान ने अवधि का बंधन तोड़ दिया। हिंदी-सेवी उसके अगले पंद्रह-बीस साल तक जूझते रहे और अंग्रेज़ी के मैदान में खेत रहे। भूमंडलीकरण के बाद जब से बाज़ार हावी हुआ है, सेवा शब्द बेमानी हो गया है। क्या हिंदी सिनेमा या हिंदी के चैनल ये दावा करते हैं कि वे हिंदी की सेवा कर रहे हैं? क्या लेखक, पत्रकार, कवि, मीडियाकर्मी यह अभिमान दिखा सकते हैं कि वे हिंदी की सेवा कर रहे हैं। चचा अब हिंदी-कर्मियों की आवश्यकता है, हिंदी-सेवियों की नहीं। मैं आज के दिन अत्यंत बुज़ुर्ग हिंदी-सेवियों को उनकी निस्वार्थ सेवा के कारण झुक-झुक कर प्रणाम करता हूं। कम्प्यूटर की निष्पक्षता का वंदन करता हूं। उन कुंठाहीन हिंदी-कर्मी द्विभाषी या त्रिभाषी बालकों और युवाओं का अभिनंदन करता हूं जो हिंदी के सारथी हैं। हां, चंद विभ्रमग्रस्त, महान, आत्ममुग्ध, तुनकमिजाज़, हिंदी-हितैषी, अंग्रेज़ी के आशिक़ तथाकथित हिंदी-सेवियों से बहस करके ऊर्जा नष्ट कौन करे, चचा!


००००००००००००००००







एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. अशोक जी , आप ने कम लिखा प् खूब लिखा |कर्म के साथ सेवा स्वतः ही हो जाती है , जब कर्म हो सेवा हो तो मेवा भी मिल ही जाता है | आप को शुभकामना |

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

बारहमासा | लोक जीवन और ऋतु गीतों की कविताएं – डॉ. सोनी पाण्डेय
काली-पीली सरसों | ज्योति श्रीवास्तव की हिंदी कहानी | Shabdankan
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
चतुर्भुज स्थान की सबसे सुंदर और महंगी बाई आई है