खुश्बू: रिस्क@इश्क...
इरा टाक के रूमानी उपन्यास का अंंश
शाज़िया के पास फिलहाल कोई चारा नहीं था. वो अनमनी सी मार्टिन के साथ कार से उतर गई. वो ओनली फॉर ईव नाम की एक दुकान में घुस गई. उसने देखा मार्टिन बाहर खड़ा सिगरेट पी रहा था. जल्दी में उसने एक काले रंग की लॉन्ग फ्राक पसंद की, जिस पर सफ़ेद रंग की तितलियां बनी हुई थीं.. उसे लेकर वो चेंजिंग रूम में घुस गई.
बाहर आकर जब काउंटर पर बिल देने लगी तो कैशियर बोला-
“मैडम, साहब पेमेंट कर चुके हैं.”
शाज़िया कुछ नहीं बोली. बाहर आई तो मार्टिन फ़ोन पर बात कर रहा था. शाज़िया से नज़र मिलने पर उसने अपनी तर्जनी और अंगूठे को मिला कर “अच्छी लग रही हो।.” का इशारा किया और कार की तरफ बात करते करते बढ़ गया.
“आपने मेरा बिल क्यों दिया?” शाज़िया ने सीट बेल्ट लगाते हुए पूछा.
“क्यों दिया तो बताना मुश्किल है. कैसे दिया ये पूछ लो.”
शाज़िया ने हैरानी से उसकी ओर देखा.
“अरे कार्ड से दिया...यार.”
“कितने का बिल था.”
“याद नहीं. बिल वही छोड़ दिया.”
“बड़े दानी हैं आप! जिसको भी कार में लिफ्ट देंगे, उसका बिल भर देंगे?” शाज़िया ने कुछ चिढ़ते हुए पूछा.
“आप ख़ास हैं मेरे लिए.”
शाज़िया चुप हो गई. वो भी चुप रहा. करीब दस मिनट तक उसके बोलने का इंतज़ार करने के बाद शाज़िया बोल पड़ी.
“अब कितना वक़्त लगेगा पहुंचने में?”
“करीब चालीस पैंतालीस मिनट।”
कार में फिर से चुप्पी छा गयी. शाज़िया को लगा मार्टिन नाराज़ हो गया. वो बाहर देखने लगी. सड़कें पानी से लबालब थीं. ट्रैफिक कछुए जैसी चाल से चल रहा था. एक स्कूटर वाले का स्कूटर पानी में बंद हो गया था वो उसे दोबारा चालू करने की कोशिश कर रहा था. बारिश बहुत जोश में थी मानो पूरी दिल्ली डुबो देने के इरादे से आई हो. उसने एक नज़र मार्टिन पर डाली. उसकी नज़र सड़क पर थी. हमेशा उसके चेहरे पर छाई रहने वाली मुस्कुराहट अभी गायब थी.
“उसे बुरा लगा होगा, मैं बहुत ज़्यादा रुड हो रही हूं कोई सड़कछाप लड़का तो है नहीं. कितनी केयर करता है मेरी. वरना अभी तक सड़क पर खड़ी भीग रही होती. मैं ऐसे बिहेव कर रही हूं जैसे वो ज़बरदस्ती मेरे पीछे पड़ गया हो,” शाज़िया को मन ही मन पछतावा हुआ.
“मार्टिन.”
“हूं,” मार्टिन का ध्यान सड़क पर था.
“सुनो.”
“सुन तो रहा हूं बोलिए,” मार्टिन की आवाज़ में थोड़ी नाराज़गी थी.
“बहुत जाम है न.”
“जी शायद,” मार्टिन ने उसकी ओर देखते हुए कहा.
“कहीं डिनर कर लेते हैं,” शाज़िया के कहा.
“नहीं. आपको देर हो जाएगी.”
“प्लीज़. बिल मैं पे कर दूंगी...प्लीज़!” शाज़िया ने मुस्कुरा कर कहा.
“ओके...तीन-चार किलोमीटर दूर शम्मी दा ढाबा बहुत मशहूर है, वहीं चलते हैं,” मार्टिन एकदम से खुश हो गया.
ढाबा पूरा भरा हुआ था. शाज़िया ने इधर उधर देखा.
“बड़ी भीड़ है.”
“दूर दूर से लोग शम्मी स्पेशल चिकन खाने आते हैं. मैं अक्सर यहां आता हूं. बाई गॉड. मेरी मां के बाद अगर कोई चिकेन अच्छा बनाता है तो सिर्फ शम्मी!.”
“आपने अभी मेरे हाथ का बनाया चिकन नहीं खाया न. इसलिए ऐसा बोल रहे हैं,” शाज़िया बोली.
“जी! मुझे ख़ुशी होगी अगर मैं अपना ये बयान बदल पाया तो!” मार्टिन ने अपने बालों को झटका दिया.
तभी मार्टिन को देख कर एक वेटर लगभग भागता हुआ आया.
“सर बस दो मिनट टेबल खाली होने वाली है,” साइड में रखी एक टेबल की ओर इशारा करते हुए बोला.
वेटर से बाकी पैसे लेते हुए आदमी सौंफ चबा रहा था. शाज़िया परेशान सी हो पर्स से अपना मोबाइल निकाल कर ऑन करने की कोशिश कर रही थी.
“शायद पानी चला गया,” उसने बडबडाते हुए कहा.
“किसी को फ़ोन करना हो तो कर लो,” मार्टिन ने अपना फ़ोन उसकी तरफ बढ़ा दिया.
“हां. अब्बू से बात करनी थी,” शाज़िया उसका फ़ोन लेकर दूसरी तरफ चली गई.
जब वो लौटी तो मार्टिन टेबल पर बैठा मेनू कार्ड देख रहा था.
“बोलिए क्या ऑर्डर करूं,” मार्टिन उसे देख कर बोला.
“कुछ भी जो पसंद हो. मैं तो सब खा लेती हूं,” शाज़िया ने उसका फ़ोन उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा..
“मुझे लड़कियों की ये आदत बिलकुल पसंद नहीं.”
“कौन सी आदत?”
“अपनी पसंद को तवज्जो न देने की आदत. कुछ भी खा लूंगी...अरे कुछ भी क्यों खाओगी? मेरी मां भी ऐसे ही करती थी, बड़ी मुश्किल से उनकी आदत बदल पाया हूं...तुम्हें जो पसंद हो वही आएगा.”
शाज़िया को हंसी आ गई. उसने अपनी तरफ रखा मेनू कार्ड उठाया और पन्ने पलटने लगी. काफी सोच-विचार के बाद उसने शम्मी स्पेशल चिकन और रेशमी कबाब ऑर्डर किए.
“कुछ पियोगी?” मार्टिन ने पूछा.
“मैं पीती नहीं. तुम चाहो तो पी सकते हो,” शाज़िया ने बेफ़िक्री से कहा.
“मैं बियर लूंगा,” मार्टिन ने वेटर को इशारा कर के बुलाया.
“एक घनघोर ठंडी बियर और एक हॉट चिकन सूप.”
“अरे...मैं सूप नहीं लूंगी.”
“पी लो वैसे भी तुम्हें सर्दी लग गई है. नाक बह रही है,” मार्टिन ने एक टिश्यू उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा.
“पता है शाज़िया. एक बार मैं एक दोस्त की बहन की शादी में कन्नौज गया था. कन्नौज सुना है?”
“हां सुना है. इत्र के लिए फेमस है. पहले मेरे अब्बू वहां से खूब इत्र मंगाया करते थे.. सुना है वहां की गलियां खुशबू से महकती हैं.”
“अच्छा...तो कन्नौज में जगह-जगह बोर्ड लगे हुए थे “घनघोर ठंडी बियर.”वहीं मुझे पता चला कि चिल्ड मतलब –घनघोर ठंडी,” मार्टिन ज़ोर से हंसा.
शाज़िया ने उसका साथ दिया. वो बहुत मज़ाकिया इंसान था. वो बात-बात पर हंस रही थी. बातों-बातों में खाना भी हो गया. अरसे बाद शाज़िया ने इतने सुकून के साथ खाना खाया था.. मार्टिन ने उसे खाने का बिल नहीं देने दिया.
“तुमसे बड़ा हूं.”
*
जब उसका घर आ गया तो मार्टिन ने कार रोक दी.
“बहुत-बहुत शुक्रिया,” शाज़िया ने उसकी तरफ देखते हुए कहा.
“आपका भी शुक्रिया जो आप हमारे साथ आने पर राज़ी हुईं...फिर मुलाकात होगी न?”
“इंशाल्लाह!.”-शाज़िया अपने बैग्स उठाते हुए मुस्कुराई.
“गुड नाईट,” मार्टिन ने गाड़ी मोड़ दी.
शाज़िया ने उस रात अजीब सा खालीपन महसूस किया. मार्टिन के साथ बिताए सवा तीन घंटे बार-बार उसके दिमाग में रिवाइंड और प्ले हो रहे थे. उसमें एक अजीब सी कशिश थी, चाह कर भी उसे भूल पाना संभव नहीं था. थिएटर के बाद भी उसे मार्टिन की याद आती थी तो शाज़िया ने उसका नंबर ही ब्लॉक कर दिया था ताकि वो उससे दूर रह सके. पर आज किस्मत ने उसे फिर मार्टिन से मिला दिया. असलम के धोखे के बाद वो लड़कों से दूर रहना चाहती थी. वो उसके करीब आने की कोशिश कर रहा था. मार्टिन की आंखों में उसे अपने लिए चाहत दिखती थी. अब वो किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती थी.
शाज़िया को उसकी कमी महसूस होने लगी. दो दिन बाद आखिर मजबूर हो कर उसने मार्टिन को फ़ोन किया.
“हाई! मैं शाज़िया.”
“ओह हाई! क्या हाल.”
“मैं ठीक हूं और आप.”
“बिंदास.”
“वो मेरा एक शॉपिंग बैग मिल नहीं रहा. क्या आपकी गाड़ी में रह गया?” शाज़िया ने बात बनाई.
“हो सकता है. मैंने कार देखी नहीं. चेक कर के बताता हूं..”
“नो नो...कोई जल्दी नहीं. आराम से देख लेना...चलो बाय.”
थोड़ी देर बाद मार्टिन का फ़ोन आ गया.
“बैग तो नहीं है कार में... पर आपकी एक चीज़ मिली.”
“क्या?” शाज़िया ने लगभग चौंकते हुए पूछा.
“आपकी खुश्बू.”
“शायद मार्किट में ही छूट गया हो,” उसने मार्टिन की बात को अनसुना करते हुए कहा.
“वैसे था क्या उस बैग में?”
“एक स्कर्ट थी,” शाज़िया ने सफ़ेद झूठ बोला.
“हम्म.”
“उस दुकान में जा कर पता कर सकते हैं. हो सकता है वहीं रह गई हो!.”
“अब रहने दो मुझे याद भी नहीं...कहां से ली थी.”
“घनघोर ठंडी बियर पीने का मन है,” मार्टिन बोला.
“तो पी लो.”
“सामने कोई बैठे तब न. अकेले मैं नहीं पीता.”
“अपनी गर्ल फ्रेंड को ले जाओ.”
“फिलहाल मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं. कोई टिकती नहीं...इस बंजारे के साथ,” वो ज़ोर से हंसा.
शाज़िया को उसकी उन्मुक्त हंसी बेहद पसंद थी. ये सुन कर उसे कुछ अच्छा सा लगा.
“ओके कल मिलते हैं. शाम चार बजे..
x x x
बाहर आकर जब काउंटर पर बिल देने लगी तो कैशियर बोला-
“मैडम, साहब पेमेंट कर चुके हैं.”
शाज़िया कुछ नहीं बोली. बाहर आई तो मार्टिन फ़ोन पर बात कर रहा था. शाज़िया से नज़र मिलने पर उसने अपनी तर्जनी और अंगूठे को मिला कर “अच्छी लग रही हो।.” का इशारा किया और कार की तरफ बात करते करते बढ़ गया.
“आपने मेरा बिल क्यों दिया?” शाज़िया ने सीट बेल्ट लगाते हुए पूछा.
“क्यों दिया तो बताना मुश्किल है. कैसे दिया ये पूछ लो.”
शाज़िया ने हैरानी से उसकी ओर देखा.
“अरे कार्ड से दिया...यार.”
“कितने का बिल था.”
“याद नहीं. बिल वही छोड़ दिया.”
“बड़े दानी हैं आप! जिसको भी कार में लिफ्ट देंगे, उसका बिल भर देंगे?” शाज़िया ने कुछ चिढ़ते हुए पूछा.
“आप ख़ास हैं मेरे लिए.”
शाज़िया चुप हो गई. वो भी चुप रहा. करीब दस मिनट तक उसके बोलने का इंतज़ार करने के बाद शाज़िया बोल पड़ी.
“अब कितना वक़्त लगेगा पहुंचने में?”
“करीब चालीस पैंतालीस मिनट।”
कार में फिर से चुप्पी छा गयी. शाज़िया को लगा मार्टिन नाराज़ हो गया. वो बाहर देखने लगी. सड़कें पानी से लबालब थीं. ट्रैफिक कछुए जैसी चाल से चल रहा था. एक स्कूटर वाले का स्कूटर पानी में बंद हो गया था वो उसे दोबारा चालू करने की कोशिश कर रहा था. बारिश बहुत जोश में थी मानो पूरी दिल्ली डुबो देने के इरादे से आई हो. उसने एक नज़र मार्टिन पर डाली. उसकी नज़र सड़क पर थी. हमेशा उसके चेहरे पर छाई रहने वाली मुस्कुराहट अभी गायब थी.
“उसे बुरा लगा होगा, मैं बहुत ज़्यादा रुड हो रही हूं कोई सड़कछाप लड़का तो है नहीं. कितनी केयर करता है मेरी. वरना अभी तक सड़क पर खड़ी भीग रही होती. मैं ऐसे बिहेव कर रही हूं जैसे वो ज़बरदस्ती मेरे पीछे पड़ गया हो,” शाज़िया को मन ही मन पछतावा हुआ.
“मार्टिन.”
“हूं,” मार्टिन का ध्यान सड़क पर था.
“सुनो.”
“सुन तो रहा हूं बोलिए,” मार्टिन की आवाज़ में थोड़ी नाराज़गी थी.
“बहुत जाम है न.”
“जी शायद,” मार्टिन ने उसकी ओर देखते हुए कहा.
“कहीं डिनर कर लेते हैं,” शाज़िया के कहा.
“नहीं. आपको देर हो जाएगी.”
“प्लीज़. बिल मैं पे कर दूंगी...प्लीज़!” शाज़िया ने मुस्कुरा कर कहा.
“ओके...तीन-चार किलोमीटर दूर शम्मी दा ढाबा बहुत मशहूर है, वहीं चलते हैं,” मार्टिन एकदम से खुश हो गया.
ढाबा पूरा भरा हुआ था. शाज़िया ने इधर उधर देखा.
“बड़ी भीड़ है.”
“दूर दूर से लोग शम्मी स्पेशल चिकन खाने आते हैं. मैं अक्सर यहां आता हूं. बाई गॉड. मेरी मां के बाद अगर कोई चिकेन अच्छा बनाता है तो सिर्फ शम्मी!.”
“आपने अभी मेरे हाथ का बनाया चिकन नहीं खाया न. इसलिए ऐसा बोल रहे हैं,” शाज़िया बोली.
“जी! मुझे ख़ुशी होगी अगर मैं अपना ये बयान बदल पाया तो!” मार्टिन ने अपने बालों को झटका दिया.
तभी मार्टिन को देख कर एक वेटर लगभग भागता हुआ आया.
“सर बस दो मिनट टेबल खाली होने वाली है,” साइड में रखी एक टेबल की ओर इशारा करते हुए बोला.
वेटर से बाकी पैसे लेते हुए आदमी सौंफ चबा रहा था. शाज़िया परेशान सी हो पर्स से अपना मोबाइल निकाल कर ऑन करने की कोशिश कर रही थी.
“शायद पानी चला गया,” उसने बडबडाते हुए कहा.
“किसी को फ़ोन करना हो तो कर लो,” मार्टिन ने अपना फ़ोन उसकी तरफ बढ़ा दिया.
“हां. अब्बू से बात करनी थी,” शाज़िया उसका फ़ोन लेकर दूसरी तरफ चली गई.
जब वो लौटी तो मार्टिन टेबल पर बैठा मेनू कार्ड देख रहा था.
“बोलिए क्या ऑर्डर करूं,” मार्टिन उसे देख कर बोला.
“कुछ भी जो पसंद हो. मैं तो सब खा लेती हूं,” शाज़िया ने उसका फ़ोन उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा..
“मुझे लड़कियों की ये आदत बिलकुल पसंद नहीं.”
“कौन सी आदत?”
“अपनी पसंद को तवज्जो न देने की आदत. कुछ भी खा लूंगी...अरे कुछ भी क्यों खाओगी? मेरी मां भी ऐसे ही करती थी, बड़ी मुश्किल से उनकी आदत बदल पाया हूं...तुम्हें जो पसंद हो वही आएगा.”
शाज़िया को हंसी आ गई. उसने अपनी तरफ रखा मेनू कार्ड उठाया और पन्ने पलटने लगी. काफी सोच-विचार के बाद उसने शम्मी स्पेशल चिकन और रेशमी कबाब ऑर्डर किए.
“कुछ पियोगी?” मार्टिन ने पूछा.
“मैं पीती नहीं. तुम चाहो तो पी सकते हो,” शाज़िया ने बेफ़िक्री से कहा.
“मैं बियर लूंगा,” मार्टिन ने वेटर को इशारा कर के बुलाया.
“एक घनघोर ठंडी बियर और एक हॉट चिकन सूप.”
“अरे...मैं सूप नहीं लूंगी.”
“पी लो वैसे भी तुम्हें सर्दी लग गई है. नाक बह रही है,” मार्टिन ने एक टिश्यू उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा.
“पता है शाज़िया. एक बार मैं एक दोस्त की बहन की शादी में कन्नौज गया था. कन्नौज सुना है?”
“हां सुना है. इत्र के लिए फेमस है. पहले मेरे अब्बू वहां से खूब इत्र मंगाया करते थे.. सुना है वहां की गलियां खुशबू से महकती हैं.”
“अच्छा...तो कन्नौज में जगह-जगह बोर्ड लगे हुए थे “घनघोर ठंडी बियर.”वहीं मुझे पता चला कि चिल्ड मतलब –घनघोर ठंडी,” मार्टिन ज़ोर से हंसा.
शाज़िया ने उसका साथ दिया. वो बहुत मज़ाकिया इंसान था. वो बात-बात पर हंस रही थी. बातों-बातों में खाना भी हो गया. अरसे बाद शाज़िया ने इतने सुकून के साथ खाना खाया था.. मार्टिन ने उसे खाने का बिल नहीं देने दिया.
“तुमसे बड़ा हूं.”
*
जब उसका घर आ गया तो मार्टिन ने कार रोक दी.
“बहुत-बहुत शुक्रिया,” शाज़िया ने उसकी तरफ देखते हुए कहा.
“आपका भी शुक्रिया जो आप हमारे साथ आने पर राज़ी हुईं...फिर मुलाकात होगी न?”
“इंशाल्लाह!.”-शाज़िया अपने बैग्स उठाते हुए मुस्कुराई.
“गुड नाईट,” मार्टिन ने गाड़ी मोड़ दी.
शाज़िया ने उस रात अजीब सा खालीपन महसूस किया. मार्टिन के साथ बिताए सवा तीन घंटे बार-बार उसके दिमाग में रिवाइंड और प्ले हो रहे थे. उसमें एक अजीब सी कशिश थी, चाह कर भी उसे भूल पाना संभव नहीं था. थिएटर के बाद भी उसे मार्टिन की याद आती थी तो शाज़िया ने उसका नंबर ही ब्लॉक कर दिया था ताकि वो उससे दूर रह सके. पर आज किस्मत ने उसे फिर मार्टिन से मिला दिया. असलम के धोखे के बाद वो लड़कों से दूर रहना चाहती थी. वो उसके करीब आने की कोशिश कर रहा था. मार्टिन की आंखों में उसे अपने लिए चाहत दिखती थी. अब वो किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती थी.
शाज़िया को उसकी कमी महसूस होने लगी. दो दिन बाद आखिर मजबूर हो कर उसने मार्टिन को फ़ोन किया.
“हाई! मैं शाज़िया.”
“ओह हाई! क्या हाल.”
“मैं ठीक हूं और आप.”
“बिंदास.”
“वो मेरा एक शॉपिंग बैग मिल नहीं रहा. क्या आपकी गाड़ी में रह गया?” शाज़िया ने बात बनाई.
“हो सकता है. मैंने कार देखी नहीं. चेक कर के बताता हूं..”
“नो नो...कोई जल्दी नहीं. आराम से देख लेना...चलो बाय.”
थोड़ी देर बाद मार्टिन का फ़ोन आ गया.
“बैग तो नहीं है कार में... पर आपकी एक चीज़ मिली.”
“क्या?” शाज़िया ने लगभग चौंकते हुए पूछा.
“आपकी खुश्बू.”
“शायद मार्किट में ही छूट गया हो,” उसने मार्टिन की बात को अनसुना करते हुए कहा.
“वैसे था क्या उस बैग में?”
“एक स्कर्ट थी,” शाज़िया ने सफ़ेद झूठ बोला.
“हम्म.”
“उस दुकान में जा कर पता कर सकते हैं. हो सकता है वहीं रह गई हो!.”
“अब रहने दो मुझे याद भी नहीं...कहां से ली थी.”
“घनघोर ठंडी बियर पीने का मन है,” मार्टिन बोला.
“तो पी लो.”
“सामने कोई बैठे तब न. अकेले मैं नहीं पीता.”
“अपनी गर्ल फ्रेंड को ले जाओ.”
“फिलहाल मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं. कोई टिकती नहीं...इस बंजारे के साथ,” वो ज़ोर से हंसा.
शाज़िया को उसकी उन्मुक्त हंसी बेहद पसंद थी. ये सुन कर उसे कुछ अच्छा सा लगा.
“ओके कल मिलते हैं. शाम चार बजे..
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2 टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-07-2017) को "अद्भुत अपना देश" (चर्चा अंक 2680) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
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