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सामान्य भारतीय की देशभक्ति टीवी स्क्रीन देशभक्ति होती है। आम जीवन में भारत के धनी, राजनेता, बड़े अफसर अपने बेटे-बेटियों को सेना में भेजते ही नहीं। 542 सांसदों और तीन हजार के लगभग विधायकों में से कितने माननीय ने अपने बच्चे सेना में भेजे हैं ?
विशेष संदेश है और वह संदेश किसी विश्वविद्यालय में टैंक रखने से भी ज्यादा मजबूत है
— तरुण विजय
हमारी देशभक्ति का वाणी-विलास इस राजनीति की देन है जिसमें सत्ता सुख का महत्व सीमा-रक्षकों से ज्यादा भारी है। जवान जाति और मजहब के भेद से ऊपर उठकर मातृभूमि की रक्षा को ही अपना सबसे बडा धर्म मानते हैं लेकिन राजनेता उनके हित के लिए शायद ही कभी कोई बड़ा कदम उठाते हों। यहां तक कि शौर्य और पराक्रम के लिए केन्द्रीय सम्मान तथा अलंकरण पाने वाले वीरों को प्रान्तीय सरकारों द्वारा दी जाने वाली राशि भी एक जैसी नहीं है कहीं कम कहीं ज्यादा। मोदी सरकार ने जवानों के लिए पिछले चालीस वर्षों से लटकी हुई मांगों को पूरा किया लेकिन अभी बहुत कुछ शेष है।सरकार से आगे बढ़ कर समाज इस दिशा में कुछ पहल करे। समाज के अग्रणी लोग, विद्यालय, संगठन, मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च जवानों के उत्साहवर्धन के लिए एकजुट क्यों नहीं हो सकते ? रक्षा बंधन पर जवानों को राखियां भेजने का प्रयास ऐसा ही एकता का अनुष्ठान है। आप अपनी राखियां #Sisters4Jawans (ट्वीटर) या सीधे इस पते पर भेज सकते हैं-"जवानों के लिए राखियां"-द्वारा थल सेनाध्यक्ष, सेना मुख्यालय, साउथ ब्लॉक, नई दिल्ली-110001
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अनेक बहनों, विद्यालयों और विश्वविद्यालय के छात्रों ने यह नायाब तरीका ढूंढ़ा है— देहरादून से आर्यन स्कूल की मृदुला, जो प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में से एक है, ने अपने भाई सन्नी गुप्ता के साथ मिलकर बच्चों से इतनी सुन्दर राखियां और जवानों को नन्हीं नन्हीं चिट्ठियों वाले ग्रीटिग कार्ड बनाए कि देखने वाला हैरत में पड़ जाए। सनातन धर्म विद्यालय की इन्दु दत्ता, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की निधि त्रिपाठी, केरल विश्वविद्यालय से हरि शिव प्रिया, गुवाहाटी विश्वविद्यालय, मुम्बई विद्यापीठ, जम्मू विश्वविद्यालय से छात्राएं राखियां बना कर सेनाध्यक्ष, रक्षामंत्री तथा सेना मुख्यालय भेज रही हैं और अनेक संगठनों ने "सिस्टर्स फार जवान्स" नाम से सोशल मीडिया अभियान शुरू किया है। इस अभियान में सैनिकों की बेटियां, अन्य छात्राएं और नौजवान शामिल हो रहे हैं।
क्यों कर रहे हैं ये सब ? जब राजनीतिक दल और नेता अपने अपने हिसाब किताब में लगे हैं, ये नौजवान अपनी राखियां सिक्किम और सियाचिन क्यों भेज रही है ?
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विशेष संदेश है और वह संदेश किसी विश्वविद्यालय में टैंक रखने से भी ज्यादा मजबूत है। उस जवान की खुशी की कल्पना करिये जिसे देश के एक अनजान कोने से, एक अनाम, अचीन्ही बहन की भावभीनी राखी उसे उोकलाम, सियाचिन या जैसलमेर की सरहद पर मिलेगी? तो उसे महसूस होगा कि सिर्फ गांव में बैठी उसकी बहन ही नहीं, सवा अरब भारतीयों की शक्ति उसकी कलाई पर बंधी है।
ऐसा विश्वास है कि पटना, मुजफ्फरपुर, धनबाद, रांची से लेकर जालन्धर, लुधियाना और अमृतसर होते हुए जयपुर, जोधपर, उदयपुर, जबलपुर, मन्दसौर तथा कोलकाता तक से बहनों की राखियां डोकलाम में सामाजिक सन्देश भी है— वो यह कि देश केवल युद्ध एवं विपरीत परिस्थितियों में ही नहीं, बल्कि हर पल, हर काल परिस्थिति में सैनिकों के साथ खड़ा रहता है।
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"सिस्टर्स फार जवान्स" एक अनूठा और वर्तमान सन्दर्भों में प्रेरणाप्रद अभियान है। अपनेपन का धागा, भाई की सलामती और खुशी का पैगाम देता धागा, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई को एक स्नेह के तार में पिरोता धागा, भारत के तिरंगे की आन-बान-शान को समेटे हुए दुर्गा की शक्ति का धागा। यही धागे देश की राष्ट्रीयता का वस्त्र बुनते हैं यह धागा आपके मन को भी डोकलाम और सियाचिन से लेकर जैसलमेर और राजौरी-पुंछ तक बैठे जवानों के हृदयों से जोड़े तो यह रक्षाबन्धन सच में गणतंत्र का उत्सव बन जाएगा।
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