हिन्दी साहित्य की दुनिया (कहीं-कहीं तथाकथित) में विचरण करते करते वहाँ के निवासी भूल जाते हैं कि हिन्दी की एक और दुनिया है जो उनकी वाली से बड़ी है। कथ…
दर्द हो मेरा, दवा भी हो... समीक्षा: उपन्यास (इरा टाक) 'लव ड्रग' कमलेश वर्मा
Era Tak (Photo Bharat Tiwari) शाज़िया के पास फिलहाल कोई चारा नहीं था। वो अनमनी सी मार्टिन के साथ कार से उतर गयी। वो “ओनली फॉर ईव” नाम की एक दुकान में…
मासूम कहानियाँ जिनमें इंसानियत अपने रोज़मर्रा के रूप में नज़र आती रहती है, उन्हें पढ़ना न सिर्फ एक मुस्कान दिए रहता है साथ ही स्फूर्ति भी देता है.…
समीक्षा: इरा टाक दिल ढूंढता है – उपन्यास | लेखक - राकेश मढोतरा सपनों और हकीकत की कश्ती में सवार हर इंसान जीवन के समंदर में इधर से उधर ड…
खुश्बू: रिस्क@इश्क... इरा टाक के रूमानी उपन्यास का अंंश शाज़िया के पास फिलहाल कोई चारा नहीं था. वो अनमनी सी मार्टिन के साथ कार से उतर …
पताका — इरा टाक साढ़े तीन सौ वर्ग गज पर बना चटक पीले रंग का "सरला सदन” गली में दूर से ही नज़र आता था, सरला सदन में बुजुर्ग तिवारी दंपत…
खौफ़नाक ड्राइव — इरा टाक अगस्त की एक भीगी सी शाम थी, निशा के कुछ दोस्त कोलकाता से मुंबई आए हुए थे। उनसे मिलने के लिए…