दर्द हो मेरा, दवा भी हो...
समीक्षा: उपन्यास (इरा टाक) 'लव ड्रग'
कमलेश वर्मा
पी.एच डी (हिन्दी साहित्य) राजस्थान युनिवर्सिटी जयपुर। एम फिल (हिन्दी साहित्य) राजकीय महाविधालय, भरतपुर (राज.) kuldeepkamlesh05@gmail.com
Review of Hindi Novel Love Drug |
इरा टाक एक लेखक, चित्रकार और फिल्मकार हैं। उनका चर्चित उपन्यास 'लव ड्रग' इन दिनों पढ़ा। प्रेम के लम्बे संवादों और विमर्श के बाद भी अक्सर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रेम को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है। प्रेम की विविध पहेलियों में उलझता और सुलझता यह उपन्यास प्रेम के विविध अन्तर्द्वन्द से होकर गुजरता है। एक सामान्य सी पृष्ठभूमि बांधकर उपन्यास मुख्य विषय में प्रवेश करता है। पहले ही अध्याय में शाज़िया और असलम का प्रेम जिस गति से आगे बढ़ता है उसी गति से धराशायी हो जाता है। क्या प्रेम आकर्षण है या आवश्यकता, या इससे परे कुछ और। आप जैसे ही इस द्वन्द्व में उलझते है शाजिया का मार्टिन की हर खामियों के साथ दुबारा प्रेम में हो जाना उपन्यास के शीर्षक 'लव ड्रग' की और हमारा ध्यान आकर्षित करता है कि प्रेम शायद एक नशा है, जब होता है तो उसे एक दूसरे की खामियाँ के साथ भी स्वीकार कर लेता है। फिर आखिर ऐसे कौन से कारण थे कि इतने प्रेम में भी शाजिया और मार्टिन का रिश्ता टूटने की कगार पर अन्तिम साँसे लेने लगा। यहाँ एक चीज निकलकर आती है वो है विश्वास। सम्पूर्ण समर्पण के बाद भी आप किसी के विश्वास के साथ खेलते है, किसी की भावनाओं को आहत कर रहें हैं, दुख पहुँचा रहे हैं तो स्वाभाविक है किसी भी रिश्ते में आप ज्यादा नहीं ठहर सकते। बहुत सी पेचीदगियों के साथ यहाँ प्रेम अलग-अलग रूपों में हमारे सामने आता है।
पुरुष और स्त्री मन की बात कहूँ तो असलम और मार्टिन के लिए प्रेम बहुत सहज है। यहाँ प्रेम एक आकर्षण के रूप में आता है। असलम का प्रेम आकर्षण के साथ स्वार्थ से भी जुड़ा है। वह शाजिया के आकर्षण में बंधा किसी तरह शाजिया के साथ विवाह पूर्व सम्बन्ध बनाना चाहता है। और शाजिया को छोड़ विदेश में जाकर विदेशी लड़की से शादी कर लेता है। लेकिन शाजिया के लिए यह सब इतना सहज नहीं है, एक बार असलम के प्रेम में धोका खाई शाजिया मार्टिन को उसकी सभी खामियों के साथ स्वीकार करने के बावजूद मार्टिन से प्रेम में पूर्ण समर्पण और ईमानदारी चाहती है।
नारी मन के अनेक अन्तर्द्वन्द शाजिया के माध्यम से उभर कर आते हैं। शाजिया जहाँ प्रेम में दो बार धोखा खाती है वही जातीय अन्तर्विरोध भी उसे झेलना पड़ता है, असलम से सम्बन्ध टूटने पर उसे अब्बू से सहानुभूति मिलती है वहीं मार्टिन से प्रेम करने पर पिता का विरोध सहन करना पड़ता है।
उपन्यास में आए सभी पात्र वर्तमान परिवेश व परिस्थितियों से सम्बन्ध है। अपनी तमाम खामियाँ और अच्छाइयों के साथ वे सहज जीवन जी रहे हैं। जहाँ मार्टिन अपने रसिक व्यक्तित्व के साथ बार बार स्त्री आकर्षण का शिकार होता है वही दिलो जान से शाजिया के प्रेम में पूर्ण समर्पण भी करता है। शाजिया एक सहज स्त्री है हर परिस्थिति में अपनी बुद्धिमता से परिस्थितियों का आंकलन करने में समर्थ अन्ततः सही निष्कर्ष पर पहुँचती है। पुरातन और नवीन पीढ़ी में अन्तर्विरोध होने के बावजूद जड़ता नहीं है उनमें एक गतिशीलता भी मौजूद है क्रिस्टी शाजिया का पूरा साथ देती हैं अपने बेटे मार्टिन की कमियों से आहत होकर, शबीर अन्ततः शाजिया को स्वीकार कर लेते हैं।
पूरी गतिशीलता के साथ चलते हुए उपन्यास अन्तिम अध्याय में भरपूर ठहराव लेता है जो महत्वपूर्ण भी है और निष्कर्ष का अन्तिम निचोड़ भी। वर्तमान में तेजी से बनते व बिगड़ते प्रेम सम्बन्धों को लेकर ये उपन्यास एक महत्वपूर्ण सन्देश देता नजर आता है। सम्बन्धों को जोड़ने के साथ ही जरूरी है उन्हें बनाए रखना। और इसके लिए बहुत जरूरी है विश्वास, समर्पण, ईमानदारी। आधुनिकता बोध, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव, भारतीयता के मूल्यों से गुथा बंधा यह उपन्यास आने वाली पीढ़ी के लिए भी कई सन्देश छोड़ता है। यह सही है कि प्रेम एक नशे की तरह है जब व्यक्ति इसमें डूबता है तो अपने हित, अहित एक कोने में रख देता है, किन्तु जैसे ही नशा उतरता है वह वापस अपने वास्तविक धरातल पर पहुँचता है और उसके लिए क्या सही है क्या गलत है एक निर्णायक स्थिति तक पहुँचता है, उपन्यास में आया मुख्य पात्र मार्टिन इसका उदाहरण हैं, हम शाजिया को भी यहाँ रख सकते हैं
भाषा सरल और सहज है। सरल हिन्दी अंग्रेजी के शब्दों के साथ उपन्यास में आए अधिकांश उर्दू के शब्दों ने भाषा की नजाकत को बनाए रखा। उपन्यास का शीर्षक 'लव ड्रग' अपनी सार्थकता बनाए हुए है। लगभग सभी पात्रों में प्रेम नशे की तरह चढ़ता और उतरता है। हिन्दी पाकेट बुक्स से प्रकाशित दस अध्यायों में समाहित इस उपन्यास में लेखिका इरा टाक द्वारा लिखे शेर उपन्यास की रोचकता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है। इस उपन्यास में आया एक शेर जो कि प्रेम को कुछ यूं परिभाषित करता है--
तुम एक नशा हो, सजा हो
दर्द हो मेरा, दवा भी हो
क्यूँ न प्रेम को इस रुप में भी स्वीकार कर लिया जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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