कहानी के पात्रों में बढ़िया भोलापन दिखाया है कहानीकार ने। रवानगी भी अच्छी बन पड़ी है। पढ़िए "ड्राइव टाइम कॉल" विनीता अस्थाना की कहानी। ~ सं0
Hindi Kahani - Vineeta Asthana |
ड्राइव टाइम कॉल
~ विनीता अस्थाना
पत्रकारिता में परास्नातक विनीता ने करियर की शुरुआत जनसत्ता से की और दैनिक जागरण ग्रुप, नेटवर्क 18 ग्रुप के साथ भी काम किया है। 2006 में विनीता ने सक्रिय पत्रकारिता को अलविदा कह दिया और पूरी तरह से अध्यापन के क्षेत्र में आ गईं। पिछले 19 सालों में वो कई नामी-गिरामी मीडिया संस्थानों में अध्यापन कर चुकी हैं। विनीता, कंसलटेंट के तौर पर नए संस्थानों की स्थापना और प्रासंगिक पाठ्यक्रम बनाने का कार्य भी करती हैं। अक्टूबर 2019 में उन्होंने आईआईएमसी छोड़ने के साथ ही अध्यापन पर भी अल्पविराम लगा दिया। फ़िलहाल वो शिक्षा मंत्रालय की प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना पर, आईआईटी में काम कर रही हैं।
विनीता पठन और पाठन को लेकर बेहद संजीदा हैं। उनका काम उन्हें रोज़ नए किरदार और जीवित कहानियों से मिलने का अवसर देता है। विनीता की किताबें उन्हीं जीवित कहानियों और किरदारों का एक अंश है। Vineetaasthana13@gmail.com
स्वाति की सुबह हमेशा जैसी सुन्दर थी। जाते हुए भादों ने उसे सुबह की सैर पर भिगो दिया था। उसके पसंदीदा मौसम के आख़िरी कुछ दिन बचे थे जिसे वो अगली बारिश तक खुद में समेट लेना चाहती थी। भीगी-भागी स्वाति जबतक अपनी कॉलोनी के अंदर पहुंची, देर हो चुकी थी। टाइम देख कर वो हड़बड़ा गयी।
‘बच्चों की बस आने वाली होगी। देर हो गयी आज।’ सोचती हुई वो घर के अंदर घुसी और सीधे ही किचन में जाकर बच्चों का टिफिन पैक करने लगी। कान्हा और वृंदा पहले ही तैयार थे। टिफिन भी उसकी महराजिन मंजू बना चुकी थी। हर काम अपने समय से हो चुका था लेकिन माँ का दिल है न, जब तक खुद काम में हाथ न लगाए उसे चैन ही नहीं पड़ता। बच्चों को भेजकर वो भी गुनगुनाती हुई ऑफिस के लिए तैयार होने लगी।
“क्या बात है, आज तो कोई मूड में लग रहा है।” आईने के आगे संवारती स्वाति को गुनगुनाते देखकर अभिनव ने उसे बाँहों में भर लिया।
“अभी! देर हो जाएगी, छोड़ो मुझे” अभिनव को प्यार से झिड़कती हुई स्वाति लाल हो गई।
रोज़ ही दोनों साथ में ऑफिस के लिए निकलते थे। स्वाति पहले अभिनव को उसके ऑफिस पर ड्राप करती फिर अपने ऑफिस चली जाती। रोज़ की तरह दोनों साथ निकले और अपने-अपने ऑफिस चले गए। दिन की शुरुआत जितनी अच्छी थी ऑफिस पहुँचते ही स्वाति का उतनी ही बुरी ख़बर से सामना हुआ। बीती रात उसका एक सहकर्मी आलोक, नशे की हालत में ऑफिस की बालकनी से नीचे गिर गया और उसकी मौत हो गयी थी। ऑफिस में पुलिस और मीडिया का जमावड़ा था। सबके बयान लिए जा रहे थे। मीडिया वाले भी हर किसी से बात करने की कोशिश कर रहे थे। अचानक हुई इस दुर्घटना से स्वाति स्तब्ध रह गयी। वो समझ नहीं पा रही थी कि ‘जो अलोक कल दिन भर अपनी तरक्की को लेकर खुश था, जो अपनी गर्लफ्रेंड को शादी के लिए प्रोपोज़ करने वाला था उसके साथ ऐसा कैसे हुआ होगा? वो न सिर्फ दुखी थी बल्कि बहुत बेचैन भी थी। इसी उधेड़बुन में वो गलती से लाइव न्यूज़ करते रिपोर्टर्स के फ्रेम में आ गयी। हड़बड़ाई हुई स्वाति ने संकोच में खुद को लेडीज बाथरूम में बंद कर लिया।
‘आलोक ने ऑफिस में नशा कैसे किया? आखिर कौन था उसके साथ?’ उसके मन में सवाल बढ़ते जा रहे थे। इन्हीं सवालों के जवाब बाहर मीडिया और पुलिस भी ढूंढ रही थी। स्वाति ने अपने चेहरे को धोया और बाहर की तरफ बढ़ी कि उसके फ़ोन की घंटी बजने लगी। उसने फ़ोन उठा लिया।
“हेलो”
“तुम ठीक हो?”
“कौन?”
“स्वाति? स्वाति वत्स बोल रही हो न?”
“हाँ, मैं स्वाति ही बोल रही हूँ! आप कौन?”
“पहचाना नहीं? मैं निमिष राठौड़।”
“निमिष!! दिल्ली यूनिवर्सिटी वाले निमिष?”
“बिलकुल सही। तो याद हूँ तुम्हें।”
“कैसी बात कर रहे हो। हम फेसबुक पर जुड़े हुए हैं।”
“ऐसे जुड़ने का क्या फायदा, जब बस जन्मदिन और नए साल की शुभकामनाएं ही देती हो?”
निमिष और स्वाति ने पंद्रह साल पहले साथ में ही यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी। दोनों के बीच कभी ज्यादा दोस्ती नहीं थी। फेसबुक के आ जाने के बाद सभी लोगों ने अपने पुराने दोस्तों और सहपाठियों को ढूंढ लिया था और तभी से स्वाति और निमिष भी वहां जुड़े थे। निमिष एक नामी न्यूज़ चैनल का हेड था और स्वाति को अपने चैनल की लाइव न्यूज़ के फ्रेम में देख कर ही उसे कॉल किया था। हालाँकि कॉलेज में भी दोनों के बीच ज्यादा बातचीत नहीं थी लेकिन स्वाति को कॉलेज में भी उसका इंटेलिजेन्स अच्छा लगता था। उसकी वाणी और स्वभाव में हमेशा ही नरमी रहती। कुछ देर निमिष से बात करके उसका दिमागी बोझ थोड़ा हल्का हुआ। अब जबकि निमिष ने स्वाति के चेहरे की परेशानी कुछ सेकण्ड्स के वीडियो में ही समझ ली थी, तो उसे निमिष की परवाह अच्छी लग रही थी। शायद ये परवाह भी उसके स्वभाव का ही हिस्सा थी।
उस दिन के बाद रोज़ स्वाति और निमिष के बीच फ़ोन पर बात होने लगी। जब वो अपने ऑफिस के लिए निकलता था, उस वक़्त तक स्वाति अपने ऑफिस पहुँच चुकी होती थी। वो जब घर से निकलता तो उसे फ़ोन मिला लेता और जब तक अपने ऑफिस पहुँचता तब तक स्वाति से बात करता रहता। कई बार तो वो रास्ते में ही होती और निमिष का फ़ोन आ जाता। स्वाति ने अभिनव को निमिष के बारे में बता दिया था। उससे बात करके जो भी पुरानी यादें लौटती उनकी कहानी वो अभिनव को हर रोज़ सुनाती। अभिनव को स्वाति के दोस्तों से कभी कोई दिक्कत नहीं थी।
कॉलेज के दिनों की पुरानी बातें हों या रोज़मर्रा की बातें, निमिष और स्वाति के बीच अब कोई पर्दा नहीं था। एक दिन निमिष ने स्वाति को बताया कि जितनी बातें वो उससे करता है उतनी बातें उसने कभी भी किसी और से भी नहीं की हैं। न अपने परिवार में न ही पत्नी के साथ। ”सच में यार ! पति पत्नी की क्या बात कर रही हो, मुझे तो लगता है मैंने कभी भी किसी से इतनी बातें नहीं की जितनी मैं तुमसे करता हूँ! कैसे तुम्हारे साथ इतना सहज हूँ कि बिना किसी लाग लपेट के हर बात कह पाता हूँ?”
“अच्छा? लेकिन मैं तो हमेशा से इतनी बातूनी हूँ। मैं तो रोज़ की बात रोज़ न करूँ तो पेट में दर्द होने लगे।” वो हंसने लगी।
“हाँ, तुम तो कॉलेज के ज़माने से ही ऐसी हो। लेकिन तुम्हारी संगत मुझे बदल रही है वरना मैं अपने मन की बात किसी से नहीं बांटता।”
“घुटन नहीं होती?”
“आदत है, सब अपने अंदर रखने की। ख़ुशी हो या परेशानी, सब बस हमेशा अंदर ही रहा। इसीलिए मैं तुम्हारे जैसा एक्सप्रेसिव नहीं हूँ।”
“चलो तुम्हारे बंद ढक्कन को खोलते हैं और देखते हैं कि क्या क्या निकलेगा।”
निमिष सच कह रहा था। वो मितभाषी था और वो अपने मन की बात कभी किसी से नहीं कर पता था। जबकि स्वाति के साथ वो हर बात बिना किसी तकल्लुफ़ के साझा कर लेता था। निमिष जितना इस बात पर ज़ोर देता स्वाति उतना ही इसे हल्के में लेती। लेकिन स्वाति को एहसास हो रहा था कि उन दोनों के बीच कुछ तो बदल गया था। आखिर स्वाति के साथ उसका गजब का सामंजस्य था, वो बिना कहे एक दूसरे की बात यहाँ तक कि भाव भी समझ जाते। जब कभी स्वाति इस बात पर मंथन करती तो निमिष उसे मना करता। वो किसी भी रूढ़िवादी सोच के चलते अपने रिश्ते को खोना नहीं चाहता था। निमिष जानता था कि स्वाति के प्रति बढ़ता लगाव, दरअसल प्रेम ही है। उससे अब सब्र नहीं हो रहा था।
“सुनो, मुझे तुमसे मिलना है।”
“अचानक? ठीक तो हो?”
“बोलो न, मिलोगी?”
“हाँ, क्यों नहीं! इस इतवार को ही मिलते हैं।”
लगभग महीने भर तक फ़ोन पर बात करने के बाद निमिष और स्वाति कॉलेज के बाद पहली बार रु-ब-रु मिले। निमिष आज भी वैसा ही था जबकि कॉलेज के ज़माने में सींक सी दिखने वाली स्वाति अब भरी पूरी महिला हो गयी थी। उसका वज़न उस पर फबता था। उनका साथ कपूर और आग जैसा था, स्वाति की हंसी की खनक और बातों की खुशबू से निमिष का मन महक रहा था। जितनी देर वो स्वाति के साथ रहता उसके चेहरे की मुस्कान और आँखों की चमक कायम रहते। उसे देख कर कोई भी समझ सकता था कि वो पूरी तरह से स्वाति के प्यार में डूबा है। दूर से देखने वाले भी उनके बीच का स्पार्क महसूस कर सकते थे। ऐसे में ये बात उन दोनों को खुद महसूस न हो रही हो ये संभव नहीं था। निमिष इस अनाम से प्यारे रिश्ते में कोई सवाल नहीं चाहता था और अपने बीच तेजी से बदलती भावनाओं को वो जानबूझ कर अनदेखा करने लगा। स्वाति को निमिष की आँखों का प्यार और आकांक्षाएं साफ़ दिख रही थीं। मज़ाक-मज़ाक में वो उसे कई बार प्यार में न पड़ने के लिए चेता चुकी थी। निमिष भी उसकी बात हर बार हंसी में उड़ा देता। स्वाति ने मान लिया कि ये सिर्फ दोस्ती नहीं है बल्कि एक दूसरे के प्रति बढ़ता उनका आकर्षण भी है। लेकिन निमिष उससे सहमत नहीं था, वो कहता कि स्वाति बेवजह परेशान हो रही है और उसे इतना सोचना नहीं चाहिए। उसे अपनी बढ़ती दोस्ती में अपने पार्टनर्स के लिए कोई धोखा नहीं दिख रहा था।
स्वाति ने खुद को बहुत रोका लेकिन उनकी बातचीत की तरह उनके मिलने का सिलसिला भी बढ़ता गया। कभी निमिष उसके ऑफिस की तरफ आ जाता और उसके साथ कॉफ़ी पी लेता। कभी लंच पैक करवा के साथ ही ले आता और दोनों गाड़ी में ही बोलते बतियाते लंच करते। ऐसा लग रहा था कि अपनी भावनाओं और परिस्थितियों दोनों पर उन दोनों का कोई बस न रह गया हो।
“यार तुम सोचती बहुत ज्यादा हो! अगर दोस्ती से ज्यादा है तब भी ये कोई चीटिंग नहीं है। हमें भी खुश रहने का हक़ है। अपने पसंदीदा इंसान के साथ समय बिताना अगर किसी को धोखा लगे तो लगा करे। मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता।”
“निमिष, ये दोस्ती नहीं है। ये जो तुम्हारी आँखों में दिखता है उससे मुझे घबराहट होती है। मैं अभिनव को धोखा नहीं दे सकती। बात को समझो हमें मिलना फ़ौरन बंद करना होगा। प्यार-व्यार में पड़ जाओगे तो बस। हमें बात भी कम करनी चाहिए।”
“पागल मत बनो स्वाति! ये जो वक़्त मैं तुम्हारे साथ जीता हूँ वो मेरे पूरे दिन की ख़ुराक है। मुझे नहीं पता तुमसे मिलने से पहले मैं कैसे जिया। मुझे बस इतना पता है कि मेरे नीरस जीवन में जो भी रंग हैं उसकी वजह यही समय है जो मैं तुमसे बात करते हुए, तुम्हे देखते हुए बिताता हूँ।” निमिष ने कातर आँखों से स्वाति से उसका चैन न छीनने की गुज़ारिश की।
स्वाति समझ रही थी निमिष उससे अपने प्यार का इज़हार कर देना चाहता है लेकिन स्वाति से दूर होने का डर उसे रोक रहा था। उस रोज़ स्वाति ने उससे कोई वादा नहीं किया बल्कि उसे सांत्वना देकर चली गयी। धीरे-धीरे उसने निमिष के कॉल लेना कम कर दिया। जब भी वो मिलने को कहता स्वाति कोई न कोई बहाना बना देती। वो ऑफिस तक आ जाता तब भी वो मीटिंग का बहाना करके उससे नहीं मिलती। ऐसा नहीं था कि उसके इस व्यवहार से सिर्फ निमिष दुखी था, दुखी वो खुद भी थी लेकिन उसे पता था कि उसकी ही तरह निमिष भी शादीशुदा है। वो जितना अपने और निमिष के रिश्ते की पड़ताल करती उसे अपना कदम सही लगता। वो अभिनव से प्यार करती थी। उनके जीवन में कोई कमी नहीं थी और वो साथ में खुशहाल भी थे फिर क्यों वो उसने निमिष को इतना आगे बढ़ने दिया? ‘मुझे न प्यार की तलाश है न प्रेमी की। कैसे संभव है एक इंसान के प्रेम में होते हुए किसी दुसरे की तरफ आकर्षित हो जाना? क्या मैं आकर्षित हूँ या मुझे भी निमिष से प्रेम हो रहा है?’ वो जितना खुद को मथ रही थी उतने ही अलग-अलग जवाब उसके ज़हन में आ रहे थे। ‘नहीं मुझे निमिष से प्यार नहीं है। मुझे बस ये एहसास अच्छा लग रहा है कि कोई मेरी परवाह करता है। नियम से मुझसे बात करता है और मुझे अपने जीवन की प्राथमिकता मानता है। मुझे सिर्फ इस एहसास से प्यार है।’ उसे लगा कि जबसे निमिष ने अपने और अपनी पत्नी पूजा के बीच के संबंधों के विषय में बताया तब से उसे निमिष की ज्यादा फिक्र होने लगी थी। ‘निमिष और पूजा के सम्बन्ध किसी बुज़ुर्ग जोड़े से भी ज्यादा नीरस थे। उनके बीच न तो संवाद था न ही दैहिक सम्बन्ध। कम से कम निमिष का तो यही कहना था। उसके जीवन के बारे में सुनने के बाद स्वाति को उससे सहानुभूति होने लगी थी। उस जैसा सुलझा हुआ और प्यारा इंसान अपने जीवन में हर ख़ुशी का हक़दार था, प्यार का भी।’ स्वाति अपनी सोच की परतों से खुद ही घबरा रही थी। ‘कोई भी तर्क, कोई भी वजह इस बात को सही नहीं ठहरा सकता कि मैं एक खुशहाल शादीशुदा जीवन जी रही हूँ और ऐसे में अपने पंद्रह साल पुराने एक दोस्त के लिए मेरा दिल पिघल रहा है?’
स्वाति ग्लानि से भर गयी और उसने निमिष से हर संवाद ख़त्म करने का फैसला लिया। उसे निमिष के साथ बिताया हुआ हर पल अभिनव के साथ की हुई बेवफ़ाई लग रहा था। वो निमिष को दिए हुए समय की भरपाई अभिनव के साथ अच्छा वक़्त गुज़ार के करना चाहती थी। स्वाति ने दिवाली की पुरानी लाइट्स को स्टोर से निकाल के अपनी हरीभरी बालकनी में लगाया। सुनहरी लाइट्स में पौधों की खूबसूरती और निख़र गयी। बेंत के सोफे पर नए चढ़ाये कुशन कवर सज रहे थे। अभिनव घर में घुसा तो स्वाति ने तैयार हो कर उसका स्वागत किया। अभिनव के लिए ये सुखद आश्चर्य जैसा था। बालकनी में गरमा गरम कॉफ़ी के मग उसका इंतज़ार कर रहे थे।
“क्या बात है, अभी से दिवाली की सजावट शुरू हो गयी?”
“हट! ये दिवाली की सजावट है? शादी के कई साल बीत जाएँ तो यही होता है, स्पेशल फील कराने की कोशिश का अंजाम देखो ज़रा।” उसने झूठमूठ का गुस्सा दिखाया।
“सॉरी बाबा। मज़ाक कर रहा था। जीवन में रस बना रहे उसके लिए, प्यार में ये सब छोटी छोटी बातें बहुत मायने रखती हैं।”
देर रात तक दोनों वहीं बैठे बाते करते रहे। घर और नौकरी की भागदौड़ में दोनों को आपस में बातें करने का मौका कम मिलता था। हालाँकि स्वाति अपने हिस्से की बात रोज़ अभिनव से बोल ही लेती थी लेकिन वो एकतरफा संवाद था। अभिनव ने डिसाइड किया कि अब से हर शाम वो दोनों साथ में कॉफ़ी पिएंगे और हर हफ्ते में कम से कम एक बार साथ में अपने दफ्तर से अलग कहीं जायेंगे। स्वाति को अब हल्का महसूस हो रहा था। हवा में घुले संगीत के साथ उसके ज़हन में एक चेहरा बार बार उभर रहा था लेकिन उसने खुद को कड़ाई से रोक लिया और अभिनव को निहारने लगी। ‘कितनी समानता है अभिनव और निमिष में। दोनों कम बोलते हैं। दोनों को मेरी परवाह है और शायद मुझसे प्यार भी। शायद तभी मैं निमिष को पसंद करने लगी। ‘लेकिन निमिष ने मुझसे संवाद की अपनी कोशिश चंद दिनों में ही बंद कर दी। प्यार तो नहीं ही रहा होगा उसे। शायद आदत हो गयी हो बात करने की !’
स्वाति सोच ही रही थी कि अभिनव ने पूछा, ”अरे सुनो, वो तुम्हारे ड्राइव टाइम कॉल का क्या हाल है?”
अभिनव ने उससे निमिष का हाल पूछा था लेकिन उसकी आवाज़ के साथ ही स्वाति के दिल में कुछ झन्ना के बिखर गया। ‘क्या मैं सिर्फ उसकी ड्राइव टाइम कॉल थी?’
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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