भारतीय साहित्य के तार दूर तक फैले हैं : प्रो. अवधेश प्रधान



हिंदू कॉलेज में डॉ. दीपक सिन्हा स्मृति व्याख्यान का आयोजन

नई दिल्ली। भारत को देखने समझने के कई ढंग हैं जिनमें एक रास्ता साहित्य का भी है। इस भारतीय साहित्य की अवधारणा भारत से जुड़ी है । भारत एक बहुनस्लीय, बहुधर्मी तथा बहुभाषी देश है। भारतीय साहित्य के संबंध सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके तार पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, तिब्बत तथा दक्षिणी एशिया से भी जुड़े हैं। उक्त विचार हिंदी के सुपरिचित आलोचक एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य प्रो. अवधेश प्रधान ने 15 सितंबर को हिंदी साहित्य सभा, हिंदी विभाग, हिंदू कॉलेज द्वारा ‘डॉ. दीपक सिन्हा स्मृति व्याख्यान - 2021' के अंतर्गत आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान में ‘भारतीय साहित्य की अवधारणा’ विषय पर व्यक्त किए । 

पांच हज़ार वर्ष पुराना है भारतीय साहित्य
हिंदी विभाग की इस प्रतिष्ठित वार्षिक व्याख्यान शृंखला में प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि भारतीय साहित्य का इतिहास आज से करीब पांच हज़ार वर्ष पुराना है । भारतीय साहित्य की जड़ें संस्कृत तथा अन्य आर्य भाषा परिवार से जुड़ी हैं । अगर प्राचीन भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया जाए तो मालूम होता है कि प्राचीन भारतीय साहित्य में न सिर्फ रस साहित्य शामिल है, बल्कि उसमें ज्ञानात्मक साहित्य भी सम्मिलित है । उन्होंने प्राचीन संस्कृत साहित्य के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि जीवन के जितने क्षेत्रों में मानव की रुचि रही है उन सभी क्षेत्रों को संस्कृत साहित्य समेटता है । 

बहुधर्मी बहुआयामी 
प्रो. प्रधान ने बौद्ध साहित्य का ज़िक्र करते हुए कहा कि पालि भाषा में लिखे गए साहित्य में दर्शनशास्त्र, आयुर्वेद तथा ज्ञान-विज्ञान आदि क्षेत्रों का भी समावेश है । उन्होंने जैन धर्म साहित्य, जो प्राकृत भाषा में लिखा गया है, का उल्लेख करते हुए कहा कि उसमें जैन धर्म की शिक्षा-दीक्षा है । साथ ही नाट्यशास्त्र, काव्यशास्त्र, कथाशास्त्र आदि भी सम्मिलित है । प्रो. प्रधान ने अपने वक्तव्य द्वारा भारतीय साहित्य जैसे बहुआयामी विषय के अनेक नए एवं सूक्ष्म आयामों से परिचय कराया ।


सत्र के आरंभ में विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. हरींद्र कुमार ने डॉ. दीपक सिन्हा का परिचय देते हुए उनके विद्यार्थी वत्सल व्यक्तित्व का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपनी पुस्तक गुरुजी की खेतीबारी में भी एक अध्याय समाजवादी विचारधारा से प्रभावित सिद्धांतवादी अध्यापक सिन्हा जी पर लिखा है। इससे पहले हिंदी साहित्य सभा की संयोजक दिशा ग्रोवर ने प्रो. अवधेश प्रधान का औपचारिक परिचय देते हुए हिंदी जगत में उनके महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला।  प्रो. प्रधान के वक्तव्य पश्चात हिंदी साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने हिंदी साहित्य सभा की 2021-22 की निर्वाचित कार्यकारिणी का परिचय दिया । सत्र 2021-22 के लिए तृतीय वर्ष से दिशा ग्रोवर को संयोजक, कैलाश लिंबा को महासचिव, द्वितीय वर्ष से गरिमा शर्मा तथा हिरेन कलाल को क्रमानुसार सचिव तथा कोषाध्यक्ष निर्वाचित किया गया है। आयोजन में विभाग के अध्यक्ष डॉ रामेश्वर राय, वरिष्ठ प्राध्यापक श्री अभय रंजन, डॉ. रचना सिंह, डॉ विमलेन्दु तीर्थंकर सहित अनेक लेखक, पाठक और विद्यार्थी, शोधार्थी शामिल हुए । वेबिनार का संयोजन डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया।

~ कैलाश लिंबा, महासचिव, हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्विद्यालय, दिल्ली – 7

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