बारूद भाई की फ्रेंड रिक्वेस्ट और फुस्स प्रोफ़ाइल — मलय जैन



व्यंग्य 

बारूद भाई की फ्रेंड रिक्वेस्ट और फुस्स प्रोफ़ाइल

मलय जैन

जन-जन की भांति मैं भी सुबह आंख पूरी खुलने से पहले चौखटा बही खोल बैठा हूँ और जोड़ बाकी हिसाब लगाकर पा रहा हूं कि कुल नौ सौ निन्यानबे जोड़ी दोस्ती के हाथ मेरी ओर बढ़ प्रतीक्षा में हैं । बरसों बाद आज हर हाल में बैठकर मुझे तय करना है कि इन्हें थाम लूं या आगे बढ़ चलूं ।



'संतप्त चित्त को जो बहला दे मित्र वही है'  लिखते राष्ट्रकवि ने भी नहीं सोचा होगा कि एक ज़माने में फ़ौरी मित्रता के ऐसे भी उदाहरण  होंगे जब बड़नगर का बड़कूलाल पट से बुरकिनाफासो की बेंजीला फ्रेंको का मित्र बन जायेगा । 
आठ साल का पोता अस्सी साल के  दादा का और साठपार सास पचीसपार पतोहू की मित्र बन जाएगी । एक फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजकर ये इसका, वो उसका और कौन किसका मित्र बन जाए पता नहीं । मुझे इन नौ सौ निन्यानबे फ्रेंड रिक्वेस्ट का एक रुका हुआ फ़ैसला आज लेना है । मैं क्रम से आगे बढ़ता हूँ । 
देखता हूं , मित्रता का एक हाथ किन्हीं 'चिराग' जी का बढ़ा है। चौखट पर उनकी नरसिंहावतारी डीपी के साथ चिपके शेर को पढ़ते प्रगट होता है कि इनकी पोस्ट से चिराग जला करते होंगे । लेकिन दीवार का पलस्तर थोड़ा छीलते ही समझ आ गया कि ' चिराग ' की जगह इनका तख़ल्लुस ' चिरकीन ' होता तो बेहतर था क्योंकि जिस प्रकार ' चिरकीन चने के खेत में चिरके जगह जगह ' की तर्ज पर उन्होंने अपने गंधाते विचारों का चिरकाव जगह-जगह किया है , इससे समझ आता है कि इनके पोस्ट से चिराग जलें न जलें समाज का राग भरपूर सुलग सकता है ।
मैं वीतराग भाव से ' चिराग़ ' जी को बुझा आगे बढ़ता हूँ तो युवा आँधी के रूप में एक षोडश की रिक्वेस्ट देख ठिठक जाता हूँ । कपाल पर करताल करत कृष्ण केश , भाल पर भौकाल धरत लाल तिलक , पुष्ट देह और बलवान भुजाएं देख दिनकर जी मेरे मानस में उतर आते हैं मानो पूछ रहे हों ,' तुम रजनी के चांद बनोगे या दिन के मार्तंड प्रखर !' मगर  प्रोफ़ाइल खंगालने के बाद  ख़ुद पर न्यौछावर होत अनगिन  सेल्फियां पाते ही आँधी उड़ जाती है और मन में गुबार रह जाता है । समझ आ जाता है कि अगला केवल नकली रूप सजायेगा न कि असली सौंदर्य लहू का आनन पर चमकाएगा । आगे बढ़ता हूँ । 
देखता हूँ किन्हीं बारूद भाई ने भी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी हुई है । मन कह उठता है जब नाम ही बारूद है तो पोस्ट भी एकदम विस्फोटक होंगी । हर मुद्दे पर बारूदी सुरंगें बिछी पड़ी होंगी , मुंह से आरडीएक्स के शोले निकलते होंगे और शब्दों से विसंगतियों के परखच्चे उड़ते होंगे । मगर देखकर निराश होता हूँ कि आगे का रास्ता ही बंद है । पराये कब्जे से डरे बारूद भाई प्रोफ़ाइल पर ताला मार ख़ुद बंकर में दुबके पड़े हैं । फुस्स हुए बारूद के बाद भतेरे ऐसे ही तालाबंद मित्रानुरोधों ने मन खट्टा कर दिया है । ऐसा लगता है कि घर आने का न्यौता दे मित्र कहीं और जीमने निकल पड़े हों और मुंह चिढ़ाने को ताला छोड़ गए हों । 

मैं चाय का कप उठा भीतर सकारात्मकता घोल आगे बढ़ता हूँ । बुझे चिराग और फुस्सी बारूद  के बाद असल यारी की कोई तो चिनगारी निकलेगी और मैं कह सकूं , दिल से दिल का जो मेल करा दे , मित्र वही है । 

मलय जैन
मोबाईल 9425465140
ई मेल: maloyjain@gmail.com

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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