पत्रिका : नया पथ (जनवरी-मार्च 2014) Magazine 'Naya Path' (January - March 2014)

जनवादी लेखक संघ की 

केन्द्रीय पत्रिका 

"नया पथ" 

जनवरी-मार्च 2014

शब्दांकन के पाठकों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध है. जिसका अनुक्रम नीचे दिया जा रहा है. तदोपरान्त पत्रिका को पढने का लिंक दिया गया है

अनुक्रम

संपादकीय / 3
इलाहाबाद घोषणा / 5
नवउदारवाद और सांप्रदायिक फ़ासीवाद का उभार / प्रभात पटनायक / 10
संघ परिवार का फ़ासीवाद / सुमित सरकार / 20
जर्मन फ़ासीवाद (1933–34) : आतंक और लफ्फाजी की भूमिका / कुर्ट पेट्ज़ोल्ड / 31
गुजरात विकास की यथार्थ गाथा / कृष्ण मुरारी / 43
‘संघ–स्वदेशी’ और भूमंडलीकरण / अभय कुमार दुबे / 52
कॉरपोरेट पूंजी, फ़ासीवाद और मीडिया / मुकेश कुमार / 58
समकालीन भारतीय चित्रकला पर सांप्रदायिक हमले / मनोज कुलकर्णी / 63
हिंदू राष्ट्रवाद तथा उड़ीसा - अन्य के तौर पर अल्पसंख्यक / अंगना चटर्जी / 67
उड़ीसा - गुजरात बनाने की प्रक्रिया में / अंगना चटर्जी / 79
गुप्त ‘धर्मयुद्ध’ / प्रियंका कोटमराजु / 83
पांडित्य और सहानुभूति से निर्मित एक कृति / गोविंद पुरुषोत्तम देशपांडे / 86
सांप्रदायिक फ़ासीवाद के ख़तरे के ख़िलाफ़ लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों की एकता / इलाहाबाद से लौटकर राजेंद्र शर्मा द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट / 90
सांप्रदायिक सद्भाव की ऐतिहासिक अनिवार्यता / मृणाल / 104

कविताएं 

अथ राक्षस चालीसा / स्वामी सदानंद सरस्वती / 114
इन्तज़ाम / कुंवर नारायण / 116
उपदेश नहीं / भगवत रावत / 117
गुजरात के मृतक का बयान / मंगलेश डबराल / 119
हलफ़नामा / असद जै़दी / 121
वली दकनी / राजेश जोशी / 123
कार्तिक स्नान / मनमोहन / 126
मोदी / विष्णु नागर / 128
कौमी एकता का गीत / चंचल चैहान / 129
ईश्वरीय संगठन / कुमार अंबुज / 130
रात / निर्मला गर्ग / 132
अपराध / एकान्त श्रीवास्तव / 133
अथ श्री पूंजी प्रपंचम् / दिनेश कुमार शुक्ल / 135
नई सदी / नीलेश रघुवंशी / 136
हमारे समय की प्रार्थना / अनिल गंगल / 137
कविता मेरी नहीं / बोधिसत्व / 138
यह आवाज़ मुझे सच्ची नहीं लगती / पवन करण / 139
फ़ासिस्ट / मुकेश मानस / 141
सोख़्ता ग़ज़ल / मुज़फ़्फ़र हंफ़ी / 142
सितम / मंज़र शहाब / 143

कहानियां 

शाह आलम कैम्प की रूहें / असग़र वजाहत / 144
नींव की र्इंट / हुसैन उल हक़ / 148
बालकोनी / सुरेंद्र प्रकाश / 155
अली मंज़िल / अवधेश प्रीत / 166
दंगा भेजियो मौला! / अनिल यादव / 179
अंधेरी दुनिया के उजले कमरे में गुर्र–गों / राकेश तिवारी / 185

समीक्षाएं 

ज़ब्तशुदा नाटकों पर अनूठी शोध दृष्टि / मुरली मनोहर प्रसाद सिंह / 193
भाषा बोलती उतना नहीं, जितना देखती है / मुकेश मिश्र / 195

विशिष्ट आयोजन

‘हल्ला बोल’ उत्सव / अशोक तिवारी / 200



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