तीन ग़ज़लें और कई ख़याल - प्राण शर्मा | Three Ghazals of Pran Sharma


कुछ  तो  जानें ,  कुछ  तो   मानें  अपनी  उस   नादानी  को 
कैसे   खोया   हम    ने    अपने  घर  के   दाना - पानी  को 

अपने  को  पहचान  न  पाये , जान  न  पाये  हम  खुद  को 
पूजते  रह  गए  सदियों - सदियों हम  तो  राजा -  रानी  को 

कब  तक  धोखा   देते   रहेंगे   अपने    को   या   औरों  को 
कब   तक   साथ    चलेंगे   लेकर    अपनी    बेईमानी   को 

यूँ   तो   मनमानी   की  फ़ितरत   सब  में  पायी   जाती  है 
हर    कोई    लेकिन    दुत्कारे    दूजे   की   मनमानी    को 

जिसकी  मीठी  बानी   में  जो  रोज़  ही  सुनता   था  किस्से 
क्यों   न  याद  करे  वो  अपनी  प्यारी - प्यारी    नानी  को 

जिस की जितनी `प्राण` पहुँच  थी उस ने उतना साथ दिया 
छोटा  और   बड़ा  मत   समझो   ज्ञानी  को  या  दानी  को 

◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘


शहरों  में  इस   बात  की  चर्चा  करानी चाहिए 
चुगली   करने  वालों  से  दूरी   बनानी  चाहिए 

वो   मरा तो  समझियेगा ज़िंदगी  भी  मर गई 
ज़िंदा   मेरे   दोस्तो   आँखों  का  पानी  चाहिए 

हो  न  अपने  से  किसी का  बैर  कोई राम जी 
हर किसी पर हर  किसी की  मेहरबानी चाहिए 

सोचता हूँ , हर किसी के अच्छे कामों  के  लिए 
हर  किसी  को  प्यार  से ताली  बजानी चाहिए 

पढ़ने वालों को दिखें अपनी ही उसमें  झाँकियाँ 
लिखने वाले, कुछ न कुछ ऐसी कहानी चाहिए 

काम  आती  हैं   हमेशा  मुश्किलों  में  दोस्तो 
हौसलों   की  बातें   भेजे   में  समानी   चाहिए 

दुःख में भी वो हर घड़ी आये नज़र हँसती हुयी 
हर  किसी की `प्राण` ऐसी  ज़िंदगानी  चाहिए 

◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘


कोई  शै  दिल  को  तब  भाती  नहीं है 
मुसीबत  आ  के  जब  जाती  नहीं  है 

भले  ही  उस  से  है  रौनक  गगन की 
वो गुडडी  क्या जो बल  खाती नहीं  है 

कई   करते  हैं  उस  से  तौबा -  तौबा 
सभी  को  यारी   रास  आती  नहीं  है 

बड़ी  निर्लज्ज  जानो  मौत  को  तुम 
कभी   आने   से   कतराती   नहीं   है 

न  इतना  नाज़  कर  दौरे  खुशी  पर 
मुसीबत  बात पूछ कर आती नहीं है 

◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘◘
१३ जून १९३७ को वजीराबाद में जन्में, श्री प्राण शर्मा ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम ए बी एड प्राण शर्मा कॉवेन्टरी, ब्रिटेन में हिन्दी ग़ज़ल के उस्ताद शायर हैं। प्राण जी बहुत शिद्दत के साथ ब्रिटेन के ग़ज़ल लिखने वालों की ग़ज़लों को पढ़कर उन्हें दुरुस्त करने में सहायता करते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि ब्रिटेन में पहली हिन्दी कहानी शायद प्राण जी ने ही लिखी थी।
देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भाग ले चुके प्राण शर्मा जी  को उनके लेखन के लिये अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं और उनकी लेखनी आज भी बेहतरीन गज़लें कह रही है।


प्राण शर्मा
3 Crackston Close, Coventry, CV2 5EB, UK

एक टिप्पणी भेजें

7 टिप्पणियाँ

  1. सहज, सरल आम आदमी की भाषा के गज़लकार ... सामाजिक सरोकार लिए हर किसी के दिल की बात सहज ही कह देने की कला है प्राण जी के हाथ में ... तीनों गजलें लाजवाब दिल में सीधेर घेर करती हुयी ...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी तीनों रचनाओं ने बेहद प्रभावित किया है मन को अच्छा लगा इनको पढ़ते हुए,आपकी हर रचना बहुत कुछ कह जाती है,बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. प्राण शर्मा जी को जब जब पढती हूँ निशब्द हो जाती हूँ ……………सहज सरल भाषा में ज़िन्दगी को उतारना कोई उनसे सीखे ………एक एक शेर दिल को छू जाता है ………लाजवाब प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय देवमणि जी ,



    ` कब तक देते रहेंगे धोखा ` में भी तो ` ते ` की मात्रा गिरती है



    कब तक धोखा देता रहेंगे के दूसरे मिसरे को देखिये



    कब तक साथ चलेंगे लेकर



    ` धोखा ` और ` साथ ` उपयुक्त स्थान पर आने से ही लय में वृद्धि हुयी है।



    तख़ल्लुस मिसरे के शुरू , मध्य या अंत में इस्तेमाल हो , कोई अंतर नहीं पड़ता



    नहीं पड़ता , मक़्ता में स्पष्टता होनी चाहिए।



    देखिये , आनंद नारायण ` मुल्ला ` की ग़ज़ल का मक़्ता है -



    हमने भी ` मुल्ला ` को समझाने को समझाया मगर

    चोट सी लगती है दिल में उसको समझाते हुए



    अगर ` मुल्ला ` साहिब यूँ भी लिखते तो सही था -



    ` मुल्ला ` को हमने भी समझाने को समझाया मगर

    चोट सी लगती है दिल में उसको समझाते हुए





    दोनों बयान सही हैं क्योंकि कहीं भी अस्पष्टता नहीं उनमें और लय बरक़रार है



    मैं हमेशा इस बात का क़ायल रहा हूँ कि शे`र साफ़ - सुथरा होना चाहिए। पाठक



    को मगज़पच्ची नहीं करनी पड़े।



    मुझे एक बच्चे का मश्वरा भी सुकून देता है।



    रात को मैं आपका ` रफ़्ता - रफ़्ता --- ` वाला शे`र गुनगुनाता रहा था। मेरी



    मानिए , इसको यूँ कीजिये -



    रफ़्ता - रफ़्ता अपने सारे पेंच ढीले हो गए - कहिये



    ज़िंदगी को बहुत इस्तेमाल कर लिया है शायरों ने।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय देवमणि जी ,



    ` कब तक देते रहेंगे धोखा ` में भी तो ` ते ` की मात्रा गिरती है



    कब तक धोखा देता रहेंगे के दूसरे मिसरे को देखिये



    कब तक साथ चलेंगे लेकर



    ` धोखा ` और ` साथ ` उपयुक्त स्थान पर आने से ही लय में वृद्धि हुयी है।



    तख़ल्लुस मिसरे के शुरू , मध्य या अंत में इस्तेमाल हो , कोई अंतर नहीं पड़ता



    नहीं पड़ता , मक़्ता में स्पष्टता होनी चाहिए।



    देखिये , आनंद नारायण ` मुल्ला ` की ग़ज़ल का मक़्ता है -



    हमने भी ` मुल्ला ` को समझाने को समझाया मगर

    चोट सी लगती है दिल में उसको समझाते हुए



    अगर ` मुल्ला ` साहिब यूँ भी लिखते तो सही था -



    ` मुल्ला ` को हमने भी समझाने को समझाया मगर

    चोट सी लगती है दिल में उसको समझाते हुए





    दोनों बयान सही हैं क्योंकि कहीं भी अस्पष्टता नहीं उनमें और लय बरक़रार है



    मैं हमेशा इस बात का क़ायल रहा हूँ कि शे`र साफ़ - सुथरा होना चाहिए। पाठक



    को मगज़पच्ची नहीं करनी पड़े।



    मुझे एक बच्चे का मश्वरा भी सुकून देता है।



    रात को मैं आपका ` रफ़्ता - रफ़्ता --- ` वाला शे`र गुनगुनाता रहा था। मेरी



    मानिए , इसको यूँ कीजिये -



    रफ़्ता - रफ़्ता अपने सारे पेंच ढीले हो गए - कहिये



    ज़िंदगी को बहुत इस्तेमाल कर लिया है शायरों ने।

    जवाब देंहटाएं
  6. मुसीबत बात पूछ कर आती नहीं है

    आदरणीय प्राण जी , आपकी इस एक लाइन पर सौ गज़ले कुर्बान . बस यही तो ज़िन्दगी की सबसे बड़ी सच्चाई है . और आपकी गज़ले तो हमेशा ही दिल के करीब होती है .
    शुक्रिया सर . और आपके लेखन को सलाम .
    आपका अपना
    विजय

    जवाब देंहटाएं
  7. सभी गज़लें बेहतरीन. हर एक शेर में ज़िन्दगी से जुडी बातें... जो सीधे दिल तक पहुँचती हैं. बहुत खूब. प्राण शर्मा जी को बधाई.

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
कहानी : भीगते साये — अजय रोहिल्ला