प्रकाशकों से अच्छे दिन की उम्मीद - अनंत विजय | Expectation of 'Achhe Din' from Publishers - Anant Vijay

हमारे देश में अपनी विरासत को संभालने के लिए गंभीर उद्यम क्यों नहीं होता है । मानव संसाधन विकास मंत्रालय का छियासठ हजार करोड़ से ज्यादा का बजट है 
प्रकाशकों से अच्छे दिन की उम्मीद - अनंत विजय Rigveda-Yajurveda-Samaveda-Atharvaveda

प्रकाशकों से अच्छे दिन की उम्मीद


अभी कुछ दिनों पहले मन में ये बात आई कि वेदों को पढ़कर देखा जाए कि उसको संदर्भित कर जो बातें कही जाती हैं उनमें कितनी सचाई है । इसके अलावा यह जानने की इच्छा भी प्रबल थी कि वेद में तमाम बातें किस संदर्भ और किन स्थितियों में कही गई हैं । एक प्रकाशक मित्र ने चारो वेद के नौ खंड उपलब्ध करवा दिए । महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा किए गए हिंदी भाष्य को आर्य प्रकाशन दिल्ली ने छापा है । जब वेद को पढ़ना प्रारंभ किया तो इस बात का एहसास हुआ कि छपे गए अक्षर भी काफी पहले के हैं । ये ग्रंथ उस जमाने के छपे हुई हैं जब लीथो प्रेस, लेटर प्रसे आदि का इस्तेमाल होता होगा । बहुत संभव है कि उसी जमाने में छपाई के लिए बनाए गए निगेटिव का इस्तेमाव अब तक हो रहा है । ऋगवेद के पहले खंड में जो प्रकाशकीय वक्तव्य का पन्ना है वह अच्छे और साफ अक्षरों में छपा है । पढ़ने में आंखों को सहूलियत होती है लेकिन जैसे ही आप आगे बढ़ेंगे और अगले पन्ने पर पहुंचते हैं तो आपकी नजर को झटका लगेगा, आंखों को पढ़ने में मेहनत करी पड़ेगी क्योंकि छपाई पुराने अक्षरों में शुरू हो जाती है । इसी तरह से हिंदी की महान कृतियों को छापने वाली नागिरी प्रचारिणी सभा वाराणसी से छपी एक और किताब हाल ही में मैंने खरीदी । नागिरी प्रचारिणी सभा की शास्त्रविज्ञान ग्रंथमाला ऋंखला के अंतर्गत छपी किताब “हिंदी शब्दानुशासन” जिसे पंडित किशोरीदास वाजपेयी ने लिखा है । पंडित किशोरीदास वाजपेयी की लिखी यह किताब -हिंदी शब्दानुशासन हिंदी की इतनी अहम किताब है कि हिंदी के सभी छात्रों को इस किताब को पढ़ना चाहिए ।  छह सौ से चंद पन्ने ज्यादा की यह किताब लगभग अपठनीय है । कागज रद्दी और छपाई घटिया । यह हाल सिर्फ इन्हीं दो किताबों का नहीं है । साठ के दशक से पहले की छपी ज्यादातर किताबें इसी हाल में छप और बिक रही हैं ।  तकनीक के इस उन्नत दौर में इतनी अहम किताबों की यह दुर्दशा देखकर मन बेचैन हो उठा । मन में कई शंकाएं और सवाल खड़े होने लगे ।

          सवाल यही कि हमारे देश में अपनी विरासत को संभालने के लिए गंभीर उद्यम क्यों नहीं होता है । मानव संसाधन विकास मंत्रालय का छियासठ हजार करोड़ से ज्यादा का बजट है । मंत्रालय की कई योजनाएं चलती रहती हैं । देश में अकादमी और हिंदी विश्वविद्यालय हैं जहां से किताबों का प्रकाशन होता है । नेशनल बुक ट्रस्ट जैसा भारी भरकम महकमा है । इन महकमों को भी सरकार से करोड़ों का अनुदान मिलता है । नेशनल बुक ट्रस्ट की स्थापना का उद्देश्य देश में हिंदी, अंग्रेजी समेत अन्य भारतीय भाषाओं के बेहतर साहित्य का प्रकाशन और कम कीमत पर उपलब्ध करवाना था । आजादी के दस साल बाद यानि 1957 में इसकी स्थापना हुई थी । इसका एक उद्देश्य देश में पुस्तक संस्कृति को विकसित करना भी था । पुस्तक संस्कृति के विकास का एक अहम कोष यह भी है कि हम पूर्व प्रकाशित अहम पुस्तकों को नए जमाने के हिसाब से छापकर उसको जनता तक पहुंचाने का उपक्रम करें । नेशनल बुक ट्रस्ट इस काम में आंशिक रूप से ही सफल हो पाया है । पुस्तक मेलों के आयोजन में तो उसने महारथ हासुल कर ली है लेकिन पुस्तकों को प्रकाशन या उसके संरक्षण और संवर्धन में वहां भी ढिलाई है । दूसरी तरफ साहित्य अकादमी अपने मूल उद्देश्यों से भटकती हुई पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में उतर तो गई लेकिन वहां इतना लंबा बैकलॉग है कि अनुवाजक से लेकर लेखक तक खिन्न हैं । अनुवादकों को पांच पांच साल पहले उनके मानदेय मिल चुका है लेकिन किताबों के प्रकाशन का पता नहीं है । ऐसे माहौल में उनसे पुरानी किताबों के संरक्षण की अपेक्षा व्यर्थ है । इस दिशा में निजी प्रकाशन संस्थानों से ही उम्मीद जगती है । 

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES