कहीं काजोल, कहीं अशोक वाजपेई, 'जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल' - अमित मिश्रा



कहीं ठहाके, कहीं टशन

 - अमित मिश्रा


गुरुवार 21, जनवरी, से शुरू हुए जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की छटा में कई तरह के रंग हैं और रंग भरने का काम कर रहे हैं यहां मौजूद नई उम्र के रीडर्स। हर सेशन को पूरे रंग में लाने के लिए अगर कोई सबसे चटपटी रेसिपी है तो वह है यंगस्टर्स के सिलेब्रिटी से सवाल और उन सवालों के जवाबों पर मिलने वाले चटपटे जवाब। मिसाल पेश हैः जब एक स्टूडेंट ने शशि थरूर से पूछा कि कांग्रेस क्यों सरकार के हर काम में मीन-मेख निकाला करती है क्या यह सिर्फ कमियां निकालने वाली पार्टी बन गई है। इस पर थरूर के साथ पूरी लॉन ठहाकों से गूंज गया। थरूर बोले, हां, हम कमियां निकालते हैं क्योंकि विपक्ष का काम ही रचनात्मक कमियां निकालना है और हम इसमें पीछे रहने वाले नहीं हैं। पूरे माहौल में सेल्फी खींचने वालों की बहार नजर आई। लोग ऑटोग्राफ़ से ज्यादा सेल्फी के लिए धक्कामुक्की करते नजर आए। दोस्तों के साथ सेल्फी लेने के बाद लोगों ने सेलेब्रिटीज को टारगेट करना शुरु किया। दोस्तों की टोली में इस बात को लेकर भी चर्चा सुनाई पड़ी कि किसने दिन के अंत में सेलेब्रिटीज के साथ ज्यादा सेल्फी क्लिक कीं।

यह जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि 15 साल के राइटर से लेकर 80 साल के राइटर तक स्टेज पर हैं। एक तरफ मशहूर गीतकार गुलजार हैं जो तकरीबन 80 साल के हैं तो दूसरी तरफ 15 साल की उम्र का 11वीं क्लास का स्टूडेंट प्रशांत मिश्रा है जो अपने नॉवल के साथ स्टेज पर होगा। प्रशांत ने केदारनाथ त्रासदी को केंद्र में रख कर एक नॉवल लिखा है जिसे जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में लोग काफी पसंद कर रहे हैं। प्रशांत की मां हिंदी की टीचर हैं तो पापा साइंस के।


लिटरेचर फेस्टिवल में शनिवार की शुरुआत काजोल के सेशन के साथ हुई। खचाखच भरे फ्रंट लॉन में काजोल के आते ही तालियों और सीटियों से लोगों ने उनका स्वागत किया। बातों-बातों में जिक्र हर उस बात का आया जो उनसे जुड़ी हुई थी। किसी ने उसने उनके फेवरेट खान स्टार के बारे में पूछा तो किसी ने उनकी और अजय देवगन की केमिस्ट्री के बारे में। फेवरेट खान के सवाल को तो वह टाल गईं लेकिन अजय देवगन के बारे में वाकया शेयर करते हुए उन्होंने बताया कि वह अजय से शादी करने के लिए इस शर्त पर राज़ी हुई थीं कि वह उन्हें एक बड़ी लाइब्रेरी गिफ्ट करेंगे। जो कि उन्होंने हनीमून गिफ्ट के तौर पर उन्हें गिफ्ट की। वह हर सवाल का जवाब बेबाकी से देती नजर आईं। जब उऩसे सनी लियोनी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बॉलीवुड में सबका स्वागत है इसलिए उऩका आना अच्छी बात है। जब उनसे पूछा गया कि क्या अजय देवगन भविष्य में एंटी टुबैको मूवमेंट का हिस्सा बनेंगे तो उनका कहना था फिलहाल एक साल तक तो ऐसा मुमकिन नहीं है।




अमित मिश्रा

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से गणित में स्नातक और भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली से मास कम्युनिकेशन में परास्नातक अमित ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत नवभारत टाइम्स से की। दिल्ली में अन्ना और रामदेव आंदोलनों के उथल पुथल को कवर करते हुए वह फिलहाल संडे नवभारत टाइम्स को सेवाएं दे रहे हैं। गैजैट्स में गहरी रुचि के चलते टेक्नो स्टोरीज और कुछ अलग करने की कुलबुलाहट में स्पेशल स्टोरीज पकाते रहते हैं।
जहां पर राजनीति से जुड़े लोग स्टेज पर हों वहां लिटरेचर से ज्यादा पॉलिटिक्स पर चर्चा लाजमी है। शशि थरूर, पिंकी आनंद और सुधींद्र कुलकर्णी का सेशन कई विवादित बयानों को समेटे था। पिंकी आनंद ने अपनी ही पार्टी के उन लोगों को गलत करार दिया जो हिंदुत्व की बातों को न मानने पर पाकिस्तान जाने की बात करते हैं तो शशि थरूर ने माना कि कांग्रेस ने पार्लियामेंट में वैसा ही रवैया अपना रखा है जो यूपीए के शासन के दौरान बीजेपी ने अपना रखा था। सुधींद्र कुलकर्णी का कहना था कि बीजेपी को नई इबारत लिखने से ज्यादा पिछली सरकारों से मिली विरासत में मिली चीजों को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी मुश्किल बीजेपी और आरएसएस के भीतर मौजूद उन लोगों को बताया जिन्हें किसी भी मामले की गहरी समझ नहीं है लेकिन फिर भी वह सरकार पर दबाव बनाते रहते हैं। पिंकी आनंद ने कहा कि सरकार कतई दलित विरोधी नहीं है और हैदराबाद में स्टूडेंट सुसाइड एंटी दलित मामला न होकर सिर्फ एक स्टूडेंट का मामला है।


सरकार के विरोध में पुरस्कार वापस करने वाले साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता अशोक वाजपेई एक बार सरकार के दलित विरोधी रवैये से काफी खफा नजर आए और उन्होंने कहा कि सरकार को देश में राममंदिर बनाने से पहले रामराज्य लाने की कोशिश करनी चाहिए। राम को मंदिर की जरूरत नहीं है। उनका कहना था कि राम की परंपरा में विरोध का मुखर स्वर नजर आता है। भगवान राम खुद सबको बराबरी का मौका देने और सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करने वाले पात्र हैं ऐसे में सरकार की बातें और काम विरोधाभास पैदा करते हैं।

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