![धरम एक अफ़ीम — अशोक चक्रधर](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQMoARiK6qtvuUHxTluns2NEL0Ix2fctBsgMbmY95cMDSqekJPjUSxhCn-v_bkq_7EWJuJfssk3_LOkj8o0KnkDTJRpZiIWPusc0JX6RJfEeWUrigPMjyqAGaFmoVMKlUE_k0aqJf2mauG/s1600-rw/drugs-and-terrorism-connection.jpg)
अर्धसजीव धरती की अरदास
—अशोक चक्रधर
चौं रे चम्पू! धरम एक अफ़ीम ऐ, जे बात कौन्नैं कही?
कही तो मार्क्स ने थी, लेकिन बात पुरानी हो गई। धर्म अफ़ीम है या नहीं, मैं नहीं जानता, पर इतना जानता हूं कि अफ़ीम खाकर जो लोग धर्म की ओर जाते हैं, वे गड़बड़कारी हैं। आतंकवाद की जितनी घटनाएं हो रही हैं, चाहे वे फ्रांस या जर्मनी में, चाहे टर्की में या कल फ्लोरिडा में, ये ड्रग्स का सहारा लिए बिना नहीं हो सकतीं। जिस ट्रक ड्राइवर ने नीस में आज़ादी का जश्न मनाते हुए अस्सी लोग कुचलकर मार दिए और सैंकड़ों घायल कर दिए वह अफ़ीमायित था। चचा, कोई भी सामान्य मनुष्य इस क़दर विकृत मानसिकता का अनायास ही नहीं हो सकता कि सिर्फ़ धार्मिक विचारों से अनचाही मौत का वरण कर ले। मानसिकता को विकृत करने के लिए चाहिए लहीम-शहीम अफ़ीम। खिलाने वाले ही जानते हैं कि वे क्या-क्या दे रहे हैं अपने जेहादियों को। मात्र विचारों से नहीं, अफ़ीम के अचारों से आतंकवाद सम्भव हो पाता है।
अफ़ीम कौ अचार बनै कहां पै ऐ?
कहते हैं अफ़गानिस्तान की मिट्टी में उसके किल्ले फूटते हैं। कोलम्बिया में उसकी बहन है कोकेन। बोलीविया में कोको, मोरक्को में गांजा, मैक्सिको में मैरुआना और क्रिस्टल मैथ और म्यांमार में हेरोइन, अफ़ीम के कुटुम्बी हैं। आजकल प्रयोगशालाओं में कितने नामों से अफ़ीम अपना जानलेवा जलवा दिखा रही है, मैं और आप नहीं जानते। संयुक्त राष्ट्र की एक ड्रगान्वेषी संस्था के अनुसार दुनिया में पच्चीस करोड़ लोग ड्रगानुयायी हैं। इनमें से दो लाख से ज़्यादा अपनी जान गंवा बैठते हैं। कुछ लोग इसलिए बैठते हैं कि उनको अपनी जान गंवानी है। उनके लिए ड्रग्स कुछ अतिविशिष्ट तांत्रिक प्रयोगशालाओं में बनाई जाती हैं। उनका ब्रेन सिर्फ़ वाश नहीं होता, लाश बना दिया जाता है। ब्रेन मरा और देह यांत्रिक! संवेदनहीनता नहीं, संवेदनशून्यता बढ़ जाती है। आतंकी आत्मघाती मारने-कुचलने के बाद ठहाका नहीं लगाता। वह तो एक प्रोग्राम्ड रोबोट है। बिना हर्ष, बिना अमर्ष और बिना संघर्ष जान लेता और जान देता है। आज आतंकवाद के कारण अर्धसजीव धरती पूर्ण जीवन के लिए अरदास कर रही है चचा।
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