स्मृति: मन्नू भंडारी 1931-2021 ~ ममता कालिया
आगे पढ़ें »रानी माँ का चबूतरा मन्नू भंडारी की कहानी ‘खातिर हम क्या करेंगे काका, बच्चों को सुलाते-सुलाते देर हो गई।’ फिर बूढ़ी काकी की ओर घूमकर बोली, ‘काकी, क…
आगे पढ़ें »मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है। मन्नूजी अपने लेखन द्वारा महिलाओं को प्रदान अमिट आवाज़…
आगे पढ़ें »जैसे-जैसे मृदुलाजी के इन संस्मरणों को पढ़ता जाता हूँ, उनके, हिन्दी साहित्य की स्त्रियों के प्रति सम्मान बढ़ता है। भारत की महिलाओं को 'स्त्री विमर्…
आगे पढ़ें »अधजले पटाखे बटोरने वाली पीढ़ी ~ रघुवंश मणि वर्ष: १९७४, दीपावली। स्थान : फैजाबाद, चौक और उसके आसपास। समस्त पात्र काल्पनिक हैं।
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Vandana Rag
हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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