संतोष त्रिवेदी
दूलापुर, नीबी,
रायबरेली
मो: 09818010808
कुण्डलियाँ (होली-विशेष)
फागुन गच्चा दे रहा, रंग रहे भरमाय ।
आँगन में तुलसी झरे, आम रहे बौराय ।।
आम रहे बौराय, नदी-नाले सब उमड़े ।
सुखिया रहा सुखाय, रंग चेहरे का बिगड़े ।।
सजनी खम्भा-ओट, निहारे फिर-फिर पाहुन ।
अपना होकर काट रहा ये बैरी फागुन ।। ... (१)
होली में देकर दगा, गई हसीना भाग ।
पिचकारी खाली हुई, नहीं सुहाती फाग ।।
नहीं सुहाती फाग, बुढउनू खांसि रहे हैं ।
पोपले मुँह मा गुझिया, पापड़ ठांसि रहे हैं ।
अखर रहे पकवान, नीकि ना लगै रंगोली ।
चूनर लेती जान, कहे आई अस होली ।। ... (२)
फागुन के इस समय में, रोया, हँसा न जाय ।
पिचकारी में रंग भरें, वो भी गवा बिलाय ।।
वो भी गवा बिलाय, बढी अतनी मँहगाई ।
देवर खाली हाथ, तकै मुँहु सब भौजाई ।।
होरी कइसे मनी, कहैं सजनी ते साजन ।
बिपदा भारी लिए, खड़ा मुस्काए फागुन ।। ... (३)

दोहे
गुझिया, पापड़ छन रहे, रामदीन के संग ।
होरी में सब मिल गए, चटख-स्याह एक-रंग ।। ... (१)
आसमान में उड़ रहा, केसर रंग, गुलाल ।
साली को जीजा रँगे, उसको नहीं मलाल ।। ... (२)
रंग काटने दौड़ते, होली में इस बार ।
हरिया के बरतन बिके, घरवाली बीमार ।। ... (३)
फगुवा टोली देखकर, मन में उठे तरंग ।
साजन हैं परदेस में, नाचूँ किसके संग ।। ... (४)
पीली चूनर उड़ रही, आसमान की ओर ।
धरती पटी गुलाल से, जियरा डोले मोर ।। ... (५)
2 टिप्पणियाँ
हिलोरे मारे जियरा, बूझि विविध ये रंग,
जवाब देंहटाएंमस्ती आती योँ हुज़ूर, ज्यों छक ली हो भंग.
बहुत सुंदर... शुभ होली
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