अरविन्द कुमार 'साहू'
खत्री मोहल्ला, ऊंचाहार
राय बरेली - 229404
फाल्गुनी मुक्तक
(1)कहीं अपना सा लगे ,कहीं पराया फागुन ।
आम के बौर सा फिर झूम के आया फागुन ।
काग की अनसुनी है ,कन्त नहीं लौटा है,
विरह के अश्रु में विरहिन का नहाया फागुन ।।
(2)
फूल टेसू के हुए आग ,जब आया फागुन ।

फिर किसी राधा को कान्हा की आस जागी है,
मधुर मिलन के छिडे राग जब आया फागुन ।।
(3)
मिठास घोल कर रिश्तों में ,ले आता फागुन ।
भेद अपने - पराये का भी मिटाता फागुन ।
भूल कर लाज - शरम हर कोई बौराया है,
गोरी की उँगली पर ,बाबा को नचाता फागुन ।।
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