एक आंधी है, जो कि अंधी है...
अशोक गुप्ता
केजरीवाल से घंटा-घंटा भर की कार्यवाही का हिसाब माँगा जा रहा है, जिसमें महाजनी पार्टी की उछलकूद सबसे आगे है. ऐसे में राज्य के पास पुलिस नहीं है और जो पुलिस है वह उनके हुकुम की ताबेदार है जिनका नमक खाती हैप्रबंधन सीखने और निभाने के दौर में एक उक्ति सामने आयी थी, “अगर तुम एक काम को हज़ार बार एक ही तरीके से करोगे तो हज़ार बार एक सा ही नतीजा सामने आएगा” इसी क्रम में समस्या हल करने की एक प्रक्रिया सीखी थी, जिसका पहला कदम था ब्रेन स्टॉर्मिंग यानी विचारमंथन, इस क्रिया का पहला सूत्र था ‘कोई भी प्रस्तावित हल पहली नजर में वाहियात नहीं होता, भले ही वह प्रयोग के बाद असफल सिद्ध हो.’ वैज्ञानिक हेबर ने जब अमोनिया बनाने के लिये एक हिस्सा नाइट्रोजन और तीन हिस्सा हाइड्रोजन गैस को उच्च दबाव में रखने की बात की तो उसका बहुत मखौल बना, लेकिन कुछ प्रारंभिक असफलताओं के बाद वह कामयाब हुआ और वह प्रयोग के वैज्ञानिक स्तर तक पहुंचा. सोने के अयस्क से सोना निकालने के एक तरीके में सायनाइड का उपयोग होता है, जो कि एक जहरीला रसायन है. समझा जा सकता है कि जिस वैज्ञानिक ने इस विधि पर विचार किया होगा उसे किन विरोधों का सामना करना पड़ा होगा. इसके बावज़ूद यह विधि प्रचालन में आई और इसे वैज्ञानिक मान्यता मिली.
अब ज़रा अरविंद केजरीवाल की नवगठित और सत्तारूढ़ ‘आम आदमी पार्टी’ का नज़ारा देखें. उसके सामने चारों तरफ उसकी अप्रत्याशित जीत से बौखलाए हुए राजनैतिक घटकों का अराजक बवंडर है. बौखलाहट का आलम यह है कि अरविंद केजरीवाल के कार्यालय पर हमला होता है, सारे राजनैतिक दल एकजुट हो कर हो हल्ला मचा रहे है, जिसमें न कॉंग्रेस (केन्द्र) पीछे है और न भाजपा. उन सबका रुख पूरी तरह दंगई घमासान मचाने का है और केजरीवाल से घंटा-घंटा भर की कार्यवाही का हिसाब माँगा जा रहा है, जिसमें महाजनी पार्टी की उछलकूद सबसे आगे है. ऐसे में राज्य के पास पुलिस नहीं है और जो पुलिस है वह उनके हुकुम की ताबेदार है जिनका नमक खाती है. इस नाते अरविंद केजरीवाल को राज्य में कानून व्यवस्था चलाने के लिये पुलिस की कहीं ज्यादा ज़रूरत है, क्योंकि शीला दीक्षित और नेहरु सरकार एक ही थैली के चट्टे-बट्टे थे और शीला जी को उनके आगे अपने कद का बहुत सही अंदाज़ था. यहां अरविंद केजरीवाल का लक्ष्य कहीं अधिक चुनौती भरा है जो राज्य के इस अराजक दंगई माहौल में और कठिन हो जाता है.
केजरीवाल विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रबंधन धारा के कुशल और अनुभवी व्यक्ति हैं. वह वैज्ञानिक धारा के अटपटे से लगते प्रयोगों की उपयोगिता को जानते हैं. वह समझते हैं कि वह राज्य के लिये पुलिस व्यवस्था पाने के लिये शीला जी सरीखे असफल प्रयोगों के भरोसे नहीं रह सकते. इसलिये उन्होंने यह कदम उठाया. उसका कुछ दबाव बना. कहा गया कि उनकी मांग उचित है ,लेकिन तरीका गलत है. मेरा प्रश्न है कि इस विरोध की अंधी आंधी रचने वालों को ‘तरीकों’ के वैविध्य के बारे में कितना ज्ञान है..? उनके पास राजनीति में जितनी भी डिग्रियां हैं, वह सब कुंजियों और चौपतियों को पढ़ कर हासिल की गयी हैं. वह क्या जाने कि तरीके किन्हीं सिद्धांतों के अनुसरण से निकलते हैं. उनमें ताप, दबाव और प्राविधि के नियंत्रण का खास महत्त्व होता है. इसलिए सारे तरीके ‘मख्खी पे मख्खी’ टाइप जानकारी के सहारे नहीं पाये जा सकते.
इस तरह केजरीवाल का तरीका प्रोटोटाइप राजनैतिक लोगों के लिये तो ‘वाहियात’ हो सकता है पर दरअसल एक नीति सिद्ध तरीका है. यह तरीका केजरीवाल की निस्वार्थ प्रतिबद्धता को और मुखर रूप से सामने लाता है, जो सारे विरोधी राजनैतिक लोगों को डराने और सन्न कर देने के लिये काफ़ी है.
यहां में बस एक बात कह सकता हूँ कि केजरीवाल और ‘आप’ के सामने इस समय जो अंधी आंधी है, वह बौखलाए हुए राजनैतिक लोगों और उनके स्वार्थी समर्थकों की है. इसे जनता की आवाज़ न समझा जाय. ये पब्लिक है, सब जानती है.

अशोक गुप्ता
305 हिमालय टॉवर.
अहिंसा खंड 2.
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Arvind Kejriwal
is a
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Person
- Ashok Gupta
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