सेलेब्रटिंग कैंसर!
- विभा रानी
धन तो आप कहीं से भी जुटा लेंगे, लेकिन मन की ताकत आप सिर्फ अपने से ही जुटा सकते हैं।
‘आपको क्यों लगता है कि आपको कैंसर है?’
‘मुझे नहीं लगता।‘
‘फिर क्यों आई मेरे पास?’
‘भेजा गया है।‘
‘किसने भेजा?’
‘आपकी गायकोनोलिज्स्ट ने।‘
और छ्ह साल पुरानी केस-हिस्ट्री- ‘बाएँ ब्रेस्ट के ऊपरी हिस्से में चने के दाल के आकार की एक गांठ। अब भीगे छोले के आकार की। ....कोई दर्द नहीं, ग्रोथ भी बहुत स्लो। मुंबई-चेन्नै में दिखाया- आपके हॉस्पिटल में भी। लेडी डॉक्टर से भी। ब्रेस्ट-यूटेरेस की बात आने पर सबसे पहले गायनोकॉलॉजिस्ट ही ध्यान में आती हैं।‘हम कैंसर या किसी भी बीमारी पर बात करते डरते- कतराते हैं। इससे दूसरों को जानकारी नहीं मिल पाती। मुझे लगता है, हमें अपनी बीमारी पर जरूर बातचीत करनी चाहिए, ताकि हमारे अनुभवों से लोग सीख-समझ सकें और बीमारी से लड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो सकें।
यह है हम आमजन का सामान्य मेडिकल ज्ञान- फिजीशियन, सर्जन, गायनोकॉलॉजिस्ट में अटके-भटके। छह साल मैं भी इस- उसको दिखाती रही। सखी-सहेलियों के संग गायनोकॉलॉजिस्ट भी बोलीं- ‘उम्र के साथ दो-चार ग्लैंड्स हो ही जाते हैं। डोंट वरी।‘ और मैं निश्चिंत अपनी नौकरी, लेखन, थिएटर में लगी रही।
धन्यवाद की पात्र रहीं गायनोकॉलॉजी विभाग की नर्स- ‘मैडम! आप सीधा ओंकोलोजी विभाग में जाइए। ये भी आपको वहीं भेजेंगी। आपका समय बचेगा’
‘मुझे फायब्रोइड लगता है। डजंट मैटर। आप जिंदगी भर इसके साथ रह सकती हैं। फिर भी, गो फॉर मैमोग्राफी, मैमो-सोनोग्राफी, बायप्सी एंड कम विथ रिपोर्ट।‘
हर क्षेत्र अनुभव का नया जखीरा। लुत्फ के लिए मैं हमेशा तैयार! मेरे शैड्यूल में एक महीने, यानि दीवाली तक समय नहीं। आज भी संयोग से कोई मीटिंग, रिहर्सल नहीं- सो काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब।
मैमोग्राफी विभाग ने कहा, ‘बिना एप्पोइंटमेंटवाले पेशेंट को वेट करना होता है'। मैं तैयार- अकेली, अजीब घबडाहट लिए। अपने किसी काम के लिए किसी को साथ ले जाना मुझे उस व्यक्ति के समय की बरबादी लगती। बायप्सी की तकलीफ का अंदाजा नहीं था। गाड़ी लेकर गई नहीं थी। ऑटोवाले रुक नहीं रहे थे। एक रुका, मना किया। मैंने कहा, ‘भैया, चक्कर आ रहा है, ले चलो।‘ उसने एक पल देखा, बेमन से बिठाया, घर छोड़ा और जबतक मैं लिफ्ट में चली नहीं गई, रुका रहा। छोटे-छोटे मानवीय संवेदना के पल मन को छूते हैं।
चेक-अप करवाकर मैं भोपाल चली गई- ऑफिस के काम से और भूल गई सब। चार दिन बाद अचानक याद आने पर अजय (मेरे पति) से पूछा। बोले- ‘रिपोर्ट पोजिटिव है, तुम आ जाओ, फिर देखते हैं।‘
आज तक मेरी सभी रिपोर्ट्स ठीक-ठाक आती थीं। मन बोला- ‘कुछ तो निकला।‘ लग रहा था, गलत होगी रिपोर्ट! लेकिन, फ़ैमिली डॉक्टर ने भी कन्फ़र्म कर दिया। मतलब, वेलकम टु द वर्ल्ड ऑफ कैंसर!
डॉक्टर रिपोर्ट देख चकरा गया- ‘कभी-कभी गट फीलिंग्स भी धोखा दे देती है।‘ डॉक्टर ने बड़े साफ शब्दों में बीमारी, इलाज और इलाज के पहले की जांच- प्रक्रिया बता दी। कैंसर के सेल बड़ी तेजी से बदन में फैलते हैं, इसलिए, शुभस्य शीघ्रम.....! इस बीच मुझे ऑफिस के महत्वपूर्ण काम निपटाने थे, एक दिन के लिए दिल्ली जाना था, मीटिंग करनी थी। डॉक्टर ने 30 अक्तूबर की डेट दी। इस दिन कैसे करा सकती हूँ! चेन्नै-प्रवास के कारण तीन साल से अजय के जन्म दिन पर नहीं रह पा रही थी। इसबार तो रह लूँ। 1 नवंबर तय हुआ।
अभीतक केवल ऑफिसवालों को बताया था। रिशतेदारों की घबडाहट का अंदाजा हमें था। वर्षों पहले कैंसर से मामा जी को खोने के बाद दो साल पहले ही अपने बड़े भाई और बड़ी जिठानी को कैंसर से खो चुकी थी। घाव ताजा थे, दोनों ही पक्षों से। इसलिए दोनों ही ओर के लोगों को संभालना और उनके सवालों के जवाब देना...बड़ी कठिन स्थिति थी। हमने निर्णय लिया कि इलाज का प्रोटोकॉल तय होने के बाद ही सबको बताया जाए।
आशंका के अनुरूप छोटी जिठानी और दीदियों के हाल-बेहाल! मैं हंस रही थी, वे रो रही थीं। मैंने ही कहा- ‘मुझे हिम्मत देने के बजाय तुमलोग ही हिम्मत हार बैठोगी तो मेरा क्या होगा?” मैंने तय किया था, बीमारी की तकलीफ से भले आँसू आएँ, बीमारी के कारण नही रोऊंगी। जब भी विचलित होती, सोचती, मुझसे भी खराब स्थिति में लोग हैं। मन को ताकत मिलती। यहाँ भी सोचा, ब्रेस्ट कैंसर से भी खतरनाक और आगे की स्टेज के रोगी हैं। वे भी तो जीते हैं। उनका भी तो इलाज होता है। पहली बार मैंने अपने बाबत सोचा- मुझे मजबूत बने रहना है। अपने लिए, पति के लिए, बेटियों के लिए।
‘शहर में जब चर्चा चली तो किस्से-आम होने लगे।‘ हम कैंसर या किसी भी बीमारी पर बात करते डरते- कतराते हैं। इससे दूसरों को जानकारी नहीं मिल पाती। मुझे लगता है, हमें अपनी बीमारी पर जरूर बातचीत करनी चाहिए, ताकि हमारे अनुभवों से लोग सीख-समझ सकें और बीमारी से लड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो सकें। याद रखिए, धन तो आप कहीं से भी जुटा लेंगे, लेकिन मन की ताकत आप सिर्फ अपने से ही जुटा सकते हैं। आपके हालात पर जेनुइनली रोनेवाले भी बहुत मिलेंगे, लेकिन आपको उन्हें बताना है कि ऐसे समय में आपको उनके आँसू नहीं, मजबूत मन चाहिए।
निस्संदेह कैंसर भयावह रोग है। यह इंसान को तन-मन-धन तीनों से तोड़ता है और अंत में एक खालीपन छोड़ जाता है। लेकिन इसके साथ ही यह भी बड़ा सच है कि हम मेडिकल या अन्य क्षेत्रों के प्रति जागरूक नही हैं। जबतक बात अपने पर नहीं आती, अपने काम के अलावा किसी भी विषय पर सोचते नहीं। इससे भ्रांतियाँ अधिक पैदा होती हैं। कैंसर के बारे में भी लोग बहुत कम जानते हैं। इसलिए इसके पता चलते ही रोगी सहित घर के लोग नर्वस हो जाते हैं। हम भी नर्वस थे। मेरा एक मन कर रहा था, हम सभी एक-दूसरे के गले लगकर खूब रोएँ। लेकिन हम सभी- मैं, अजय, मेरी दोनों बेटियाँ- तोषी और कोशी – अपने-अपने स्तर पर मजबूत बने हुए थे।
मेरा कैंसर भी डॉक्टर से शायद आँख-मिचौनी खेल रहा था। ऑपरेशन के समय डॉक्टर ने मुझे केमो पोर्ट नहीं लगाया- ‘आपका केस बहुत फेयर है। सैंपल रिपोर्ट आने के बाद हो सकता है, आपको केमो की जरूरत ही न पड़े। केवल रेडिएशन देकर छुट्टी। किसी भी मरीज के लिए इससे अच्छी खबर और क्या हो सकती है!
ऑपरेशन के बाद अलग-अलग कोंप्लीकशंस के बाद आईसीयू की यात्रा करती यूरिन इन्फेक्शन से जूझने के अलावा हालत बहुत सुधर चुकी थी। मेरे मित्र रवि शेखर म्यूजिक बॉक्स छोड़ गए। सुबह से शाम तक धीमे स्वर में वह मुझे अपने से जोड़े रखता। नर्स ने एक्सरसाइज़ बता दिए। दस दिन बाद घर पहुंची, एक पूर्णकालिक मरीज बनकर। अजय और बच्चे मेरे कमरे, खाने, दवाई के प्रबंध में जुट गए। मुझे सख्त ताकीद, कोई काम न करने की, खासकर प्रत्यक्ष हीट से बचने के लिए किचन में न जाने की। पूरे जीवन जितना नहीं खाया-पिया, आराम नहीं किया, अब मैं कर रही थी। शायद आपकी अपने ऊपर की ज्यादती प्रकृति भी नहीं सहती। उससे उबरने के इंतज़ाम वह कर देती है। तो मेरा कैंसर प्रकृति का दिया इलाज है?
सैंपल रिपोर्ट आ गई- पहला स्टेज, ग्रेड 3! डॉक्टर ने समझाया- चोरी होने पर पुलिस को बुलाते हैं, आतंकवादी के मामले में कमांडोज़। ग्रेड 3 यही आतंकवादी हैं, जो आपके ब्रेस्ट और आर्मपिट नोड्स में आ चुके हैं। इसलिए केमो अनिवार्य!
मौत का सन्नाटा!
मन उदास है
धरती की हरियाली पर,
फर्क़ नहीं पडता
आपके आसपास कौन है,
क्या है!
आप खुश हैं तो
जंगल में भी मंगल है
वरना
सारा विश्व खाली कमंडल है.
इतने दिनों में
जब हम कुछ भी नहीं
समझ और कर पाते
तब लगता है,
जन्म लिया तो क्या किया?
दिखती है
चिडिया, धरती, हवा, चांदनी
कहता है मौन का सन्नाटा कि
हां, हम हैं,
हम हैं, तभी तो है यह जगत!
खुश हो लें कि हम हैं
और जीवित हैं
अपनी सम्वेदनाओं के संग!
प्रार्थना करें कि पत्थर नहीं पडे
हमारी सम्वेदनाओं पर!
मौत!
तू कहीं और जा के बस!!
केमो स्पेशलिस्ट ने एक संभावित तारीख और निर्देश दे दिए- 23 नवम्बर- ‘सर्जरी के तीन से चार सप्ताह के भीतर केमो शुरू हो जाना चाहिए। चूंकि, केमो कैंसर सेल के साथ-साथ शरीर के स्वस्थ सेल को भी मारता है, इसलिए इसके साइड इफ़ेक्ट्स हैं- भूख न लगना, कमजोरी, चक्कर आना, बाल गिरना आदि।‘
तीसरा सप्ताह चढ़ा कि नहाने के समय हाथ में मुट्ठी-मुट्ठी बाल आने लगे। केमो की तैयारी के लिए पहले ही मैंने बाल एकदम छोटे करा लिए थे। लंबे बालों के गिरने से बेहतर है छोटे बालों का गिरना। फिर भी बालों के प्रति एक अजीब से भावात्मक लगाव के कारण और बाल गिरेंगे, यह जानते हुए भी मैं अपने-आपको रोक ना सकी और फूट-फूटकर रोने लगी। अजय और कोशी भागे-भागे आए। कारण जानकर दिलासे देने लगे। कोशी ने अवांछित बाल हटाकर खोपड़ी को समरूप-सा कर दिया। आईना देख खुद को ही नहीं सह पाई। झट सर पर दुपट्टा लपेट लिया। रात में तोषी के आने पर मैंने कहा कि मेरा चेहरा बहुत भयावना लग रहा है। उसने कहा, ‘ऐसा कुछ नहीं है, तुम अभी भी वैसी ही प्यारी लग रही हो।‘ एक-दो दिन बाद स्थिर होकर देखा- नाटक ‘मि. जिन्ना’ करते समय अक्सर गांधीवाली भूमिका की सोचती। तब हिम्मत नहीं थी। अब मुझे अपनी टकली खोपड़ी से प्यार हो गया। उसे ढंकती नहीं हूँ, न घर में न बाहर में। यह अपना आत्म-विश्वास है। मुझे देखneवाले कहते हैं- ‘यह ‘कट’ आप पर बहुत सूट कर रहा है।‘
आप भी कीजियेगा- सलाम विभा!, देखिये ये वीडियो
Post by Vibha Rani.
अभी इसी शिड्यूल में हूँ। कुछ दिन लगते हैं, अपने-आपसे लड़ने में, खुद को तैयार करने में। लेकिन, अपना मानसिक संबल और घरवालों का समर्थन कैंसर क्या, किसी भी दुश्वारियों से निजात की संजीवनी है। यह आपको कई रास्ते देता है- आत्म मंथन, आत्म-चिंतन, आराम, खाने-पीने और सबकी सहानुभूति भी बटोरने का (हाहाहा)। यह ना सोचें कि आप डिसफिगर हो रही हैं। यह सोचें कि आपको जीवन जीने का एक और मौका मिला है, जो शत-प्रतिशत आपका है। इसे जिएँ- भरपूर ऊर्जा और आत्म-विश्वास से और बता दीजिये कैंसर को कि आपमें उससे लड़ने का माद्दा है। सो, कम एंड लेट सेलेब्रेट कैंसर!
साभार बिंदिया अप्रैल
3 टिप्पणियाँ
विभा , इतना सब सह कर उसको इतने साहस से लिखना तुम्हारा ही काम है। मुझे तो अजय ने दीवाली वाले दिन ही बता दिया था और फिर हम लोग अजय से ही तुम्हारे हाल चाल लेते रहे। बस दुआ करते रहे कि इस चक्रव्यूह से तुम बाहर आ जाओ। बहुत ख़ुशी हो रही आज ये पढ़ कर। उन कष्ट भरे क्षणों में हम सामने न सही लेकिन सदा तुम लोगों के साथ थे और हमेशा रहेंगे। तुम्हें मेरी भी उम्र लग जाए।
जवाब देंहटाएंऔरों को संबल देने वाले खुश किस्मत होते है,आपके जज्बे को सलाम! स्वस्थ रहें....
जवाब देंहटाएंविभा जी , आपके जज्बे को सलाम | आपके आलेख हमेशा ऊर्जा प्रदान करते रहे हैं | इस खबर ने मन को विचलित कर दिया है | फिर आपके जज्बे को देखकर हिम्मत बंधी | मेरी कामना है कि आप जल्द स्वस्थ हो |
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