सभी के प्रति द्वेष के साथ - अनंत विजय / Anant Vijay on Khushwant Singh

सूना हुआ जीवंत कोना

अनंत विजय

जिंदगी की पिच पर खुशवंत सिंह शतक से चूक गए

जिंदगी की पिच पर खुशवंत सिंह शतक से चूक गए और निन्यानवे साल की उम्र में उनका निधन हो गया । कहते हैं कि हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता लेकिन खुशवंत सिंह ने ना केवल मुकम्मल जिंदगी जी बल्कि उन्हें मुकम्मल जहां भी मिला । विदेश सेवा में अफसर से लेकर संपादक, इतिहासकार और राजनेता तक का जीवन जिया और हर जगह अपनी अमिट छाप छोड़ी । खुशवंत सिंह को विवादों में बड़ा मजा आता था और उनके करीबी बताते हैं कि वो जानबूझकर विवादों को हवा देते थे । उनके करीबी लेखकों का तो यहां तक कहना है कि विवादों से उन्हें लेखकीय उर्जा मिलती थी और यही ऊर्जा उनसे जीवन पर्यंन्त स्तंभ लिखवाती रही । उनका स्तंभ- विद मलाइस टुवर्ड्स वन एंड ऑल लगभग पचास साल तक चला और माना जाता है कि भारत में सबसे लंबे समय तक चलनेवाला और सबसे लोकप्रिय स्तंभ था । इस स्तंभ में मारियो मिरांडा का बनाया एक कार्टून भी छपता था जिसमें बल्ब के अंदर वो बैठे थे । मारियो उनके साथ एक पत्रिका में काम करते थे । अबतक खुशवंत सिंह की लगभग अस्सी किताबें छप चुकी हैं। पिछले साल भी उनकी एक किताब आई थी । उस किताब पर पंजाब के एक विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम हुआ था जिसमें खुशवंत सिंह के बेटे राहुल सिंह ने उनका एक वक्तव्य पढा था । अपने संदेश में खुशवंत सिंह ने कहा था- लगता है कि वक्त आ गया है मुझे अब मर जाना चाहिए और मरने के बाद मैं ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचान चाहता हूं जिसने ताउम्र लोगों को हंसाया । खुशवंत सिंह ने अपने पाठकों को हंसाया जरूर लेकिन अपनी टिप्पणियों और लेखों से लोगों को सोचने पर मजबूर भी किया था । उनकी किताब ट्रेन टू पाकिस्तान और दो खंडों में सिखों का इतिहास काफी चर्चित रहा था । उनकी आत्मकथा का हिंदी अनुवाद – सच, प्यार और थोड़ी सी शरारत जब छपा तो अपने प्रसंगों की वजह से काफी चर्चित हुआ था ।
खुशवंत सिंह को विवादों में बड़ा मजा आता था और उनके करीबी बताते हैं कि वो जानबूझकर विवादों को हवा देते थे

          खुशवंत सिंह इंदिरा गांधी के बेहद करीब थे और उन्होंने इमरजेंसी के दौरान उनका समर्थन भी किया था लेकिन बाद में जब इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लूस्टार को मंजूरी दी तो वो उनके खिलाफ हो गए और पद्म सम्मान वापस कर दिया । यहां यह बात गौर करने लायक है कि खुशवंत सिंह ने चरमपंथी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनकी नीतियों का जमकर विरोध किया था । खुशवंत सिंह पाकिस्तान के हदाली में उन्नीस सौ पंद्रह में पैदा हुए थे और बंटवारे के बाद भारत आ गए थे । खुशवंत सिंह के पिता सरदार सोभा सिंह को लुटियन दिल्ली बनाने का ठेका मिला था । दिल्ली के ही सुजान सिंह पार्क में खुशवंत सिंह ने अंतिम सांसे ली । खुशवंत सिंह के जाने के बाद साहित्य और पत्रकारिता का एक जीवंत कोना सूना हो गया है । 

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
कहानी : भीगते साये — अजय रोहिल्ला
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
काली-पीली सरसों | ज्योति श्रीवास्तव की हिंदी कहानी | Shabdankan
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'