एक दोपहर मोनालिसा की आंखों' में - पशुपति शर्मा | Poetry at Meeta Pant's Home - Pashupati Sharma

'मोनालिसा की आंखों' के नाम एक दोपहर

पशुपति शर्मा


सईद अय्यूब भाई का बुलावा। रविवार 17 जुलाई 2014 को तीन बजे आरके पुरम, सेक्टर 10 निवेदिता कुंज के जी-32' आएं। कवि गोष्ठी में जाऊँ या न जाऊँ, इसको लेकर असमंजस। गर्दन में दर्द की वजह से पत्नी की ना और सुभाषजी को दे दिया गया वचन। इस ‘हाँ और ना के द्वंद्व के बीच ही सुभाषजी का फोन आया और मैं पतलून और शर्ट डालकर निकल पड़ा। सुभाषजी की 'चौपहिया सेवा' ने ‘ना’ को ‘हाँ’ में तब्दील करने में बड़ी भूमिका निभाई। हम तीन बजते-बजते कवयित्री मीता पन्त के आवास आरके पुरम, सेक्टर 10 निवेदिता कुंज के जी-32 में दाखिल हो गए। 

बहरहाल, सवा 3 बजते-बजते कार्यक्रम की शुरुआत हुई। परिचय का औपचारिक सत्र। गाजियबाद से आए कवि सीमांत सोहल से लेकर अपने कवि मित्र आनंद कुमार शुक्ल तक सभी का सईद भाई ने अपने अंदाज में परिचय दिया, परिचय कराया। जहाँ मौका मिला, वहाँ चुहलबाजी से भी परहेज नहीं किया। ये बेतकल्लुफी ही इस तरह की अनौपचारिक गोष्ठियों को कुछ और यादगार बना जाती हैं।

काव्य गोष्ठी की शुरुआत पंखुरी सिन्हा की कविताओं से हुई। एक यायावर की झलक समेटे कुछ कविताएँ। आवाज़ की समस्या के बीच ही वो आगंतुक, अकेली औरत, तानाशाह जैसी कुछ कविताओं का पाठ कर गईं। इसके बाद जेएनयू के शोधार्थी बृजेश कुमार ने मैं एक गांव हूं, दूध और सीट कविताएं सुनाईं। उत्तराखंड से आईं डॉक्टर नूतन डिमरी गैरोला ने भिक्षुणी, प्रत्यंचा और माँ के जरिए अपने अनुभव साझा किए। कुमार अनुपम ने  बरसाती में जागरण, जल, काला पानी और अशीर्षक जैसी कविताओं के जरिए श्रोताओं को किसी और ही धरातल पर लेकर चले गए। रमा भारती की कविताओं ने चिनाब और चिनार की खूबसूरत लहरों का एहसास कराया। कर्मनाशा नदी के ईर्द-गिर्द रहने वाले 'राजेश खन्ना' सिद्धेश्वर सिंह ने 'कटी पतंग' के साथ काव्य गोष्ठी को नई 'उड़ान' दी। लकड़ बाज़ार, निर्मल वर्मा के शीर्षकों को कविताओं में इस खूबसूरती से पिरोया कि मन ठहर सा गया और पंखुरी सिन्हा के हस्तक्षेप पर उनका एक मीठा सा जवाब- 'हम सभी अपने-अपने वक्त के राजेश खन्ना हैं’ हमेशा याद रहेगा।' अरुण देव ने 'घड़ी के हाथ पर समय का भार' जैसी सुंदर कविता के साथ मन की कई 'खिड़कियां' खोल दीं। उनकी आवाज़ की कशिश कविता को कुछ और मानीखेज बना रही थी। 
अंत में सुमन केशरी ने थोड़ा सा 'सईद' बनने की ललक के साथ कविताओं का पाठ शुरू किया। रावण, कबीर-अबीर, तथागत, लोहे के पुतले, बहाने से जीवन जीती है औरत, तमगे, मोनालिसा और ऐसी ही कई कविताएँ। कभी मिथकीय आवरण लिए तो कभी आज का जीवन समेटे- स्त्री मन को छूती हुई, पुरुष मन को झकझोरती हुई छोटे से कमरे में इस वक्त तक कविता रेगिस्तान की रेत पर अपना 'घरौंदा' बना चुकी थीं, जिसमें हम सभी 'टीस भरा सुकून' महसूस कर रहे थे। 

ये बिलकुल सही वक़्त था जब सईद भाई ने काव्य गोष्ठी को थोड़ा सा विराम दे दिया। मीता पंत ने तब तक समोसे, बिस्किट, नमकीन की मेज़ सजा डाली थी। समय ऐसा था कि हम ज्यादा इंतज़ार न कर सके और टूट ही पड़े। कुछ साथियों ने चाय की चुस्कियां ली। पुरुषोत्तम अग्रवाल सर ने सईद जी को चाय में देरी पर आंदोलन की धमकी तक दे डाली। इन सबके बीच जेएनयू के कुछ पुराने साथियों से गुफ्तगू।

अब वक्त था सुमन केशरी के काव्य संग्रह 'मोनालिसा की आंखें' पर परिचर्चा का। सुमन केशरी की काव्य यात्रा पर एक नज़र डालने की औपचारिक जिम्मेदारी अरुण देव ने निभाई। अरुण देव के मुताबिक सुमन केशरी की कविताएं विचार के रेडिमेड कपड़े नहीं पहनती। केशरी जी कविता की यात्रा पर हैं, किसी मंजिल पर नहीं पहुंची, ये उनके रचना संसार का एक सुखद पहलू है। अरुण देव जी ने शमशेर बहादुर सिंह के एक लेख का जिक्र किया, और उस लेख में वर्णित कसौटियों पर सुमन केशरी के काव्य संसार को कसना शुरू किया। आधुनिक विकास के अध्येता, देश विदेश के साहित्य से परिचय और हिंदी ऊर्दू की परंपरा का ज्ञान के निकष पर एक महान कवयित्री के संकेतों का जिक्र किया। उन्होंने सुमन केशरी की यात्रा को ज्ञानात्मक संवेदना से संवेदनात्मक ज्ञान की ओर मुखर बताया। उनकी नज़र में सुमन केशरी सचेत स्त्री की दृष्टि से मिथकों को देखती हैं। आलोचनात्मक दृष्टि से मिथकों का सृजनात्मक पाठ तैयार करती हैं। यहसचेत स्त्री सिमोन द बोउवार से प्रभावित नहीं है बल्कि मीरा और महादेवी से अपनी संवेदना ग्रहण करती है।

इस आलेख के बाद विमर्श सवाल जवाब की तरफ बढ़ा। पंखुरी सिन्हा ने केशरी के कर्ण और दिनकर के कर्ण का अंतर पूछा तो वहीं पुरुषोत्तम अग्रवाल ने ऐसे सवालों के उत्तर खुद पाठकों को तलाश करने की नसीहत दे डाली। सिद्धेश्वर सिंह ने कवि को प्रेस कॉन्फ्रेंस की तरह सवाल जवाब के दौर में फंसाने पर चुटकी ली। वहीं नूतन जी ने 'मोनालिसा की आंखें' शीर्षक पर एक मार्मिक सा सवाल पूछ डाला। सुमन केशरी सृजन प्रक्रिया के 'एकांत' में पहुँच गईं। बेहद निजी क्षण। दफ्तर में तमाम लोगों के बीच अधिकारी की डाँट। आंखों में अटके आँसू। और उस दौरान एक कविता का सृजन। मोनालिसा की ये डबडबाई आंखें ही कवयित्री से संवाद करती हैं, बतियाती हैं, अपना दर्द साझा करती हैं। यही वजह है कि जिस मोनालिसा की मुस्कान पर नज़रें टिकती हैं, उस मोनालिसा की आंखों से गुजरती हुई सुमन केशरी एक काव्य यात्रा पर निकल पड़ती हैं।

गोष्ठी में दो लोगों की सक्रियता काबिले तारीफ़ थी। एक भरत तिवारी और दूसरे दीपक घई। कवि-शायर व शब्दांकन संपादक भरत तिवारी अपनी फोटोग्राफी कला के लिए भी विख्यात हैं। यह रिपोर्ट लिखते हुए मुझे उनके द्वारा खींची गयी कुछ तस्वीरें देखने का अवसर मिला। उन्होंने इस कार्यक्रम की संजोने लायक तस्वीरें खींची है। दीपक घई, जैसा कि हमें बताया गया कि हरिद्वार से आए थे। वे कविता और साहित्य के इतने रसिक हैं कि जहाँ कहीं भी जाते हैं, पता करके वहाँ की किसी साहित्यिक गोष्ठी में अवश्य जाते हैं। उन्होंने पूरे कार्यक्रम की खूब मेहनत से वीडियो तैयार किया और खूब सारी तस्वीरें भी खींची। 

ऊपर वर्णित नामों के अलावा श्रोताओं में गाज़ियाबाद से आयी कवयित्री मृदुला शुक्ला, नूतन यादव, रंगकर्मी सुबोध कुमार, जी-बिजेनेस में अधिकारी डॉ. सुभाष चन्द्र मौर्य, कवि व समीक्षक डॉ. आनंद कुमार शुक्ल, कवि व संपादक मुकेश कुमार सिन्हा व उनकी पत्नी अंजू सहाय, मीनाक्षी जिजीविषा, शायर राजेश शर्मा, अक्षय, कवि-कलाकार संजय शेफर्ड, ब्लॉगर व चिंतक डॉ. अमरेंद्रनाथ त्रिपाठी, कवयित्री मनीषा जैन, जापानी भाषा की रिसर्च स्कालर व सेंट स्टीफंस में शिक्षक चाँदनी कुमारी, डी.यू. की छात्रा मीनाक्षी डिमरी ने अपनी उपस्थिति से गोष्ठी को और गरिमा प्रदान किया.  

- पशुपति शर्मा

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

सितारों के बीच टँका है एक घर – उमा शंकर चौधरी
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
चतुर्भुज स्थान की सबसे सुंदर और महंगी बाई आई है
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'