टेलीविजन की भाषा: शब्दों का खेल है बीड़ू : हरीश चन्द्र बर्णवाल | Bhartendu Harishchandra Award 2011 to Harish Chandra Burnwal

शब्दों का खेल है बीड़ू 

"टेलीविजन की भाषा" का एक रोचक अंश

हरीश चन्द्र बर्णवाल 


साल 2011 का 

भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार हरीश चन्द्र बर्णवाल 

को 


IBN7 में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार हरीश चन्द्र बर्णवाल को साल 2011 के भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार के लिए चुना गया है। उन्हें उनकी किताब “टेलीविजन की भाषा” के लिए ये पुरस्कार 9 सितंबर को सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर दोपहर 3 बजे सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम, हाल नंबर-2 (गेट नंबर चार), अगस्‍त क्रांति मार्ग, नई दिल्‍ली  में आयोजित कार्यक्रम में देंगे। गौरतलब है कि भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा दिया जाने वाला ये पुरस्कार पत्रकारिता जगत के लिए एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। प्रकाशन विभाग द्वारा गठित एक हाई प्रोफाइल कमेटी बकायदा इसके लिए देश भर की तमाम किताबों में चयन करती है। अलग-अलग कैटेगरी में कई लोगों को ये पुरस्कार दिया जाता है। 

       हरीश चन्द्र बर्णवाल की ये किताब “टेलीविजन की भाषा” साल 2011 में राजकमल प्रकाशन (राधाकृष्ण प्रकाशन) ने प्रकाशित की थी। टेलीविजन न्यूज की दुनिया में काम करने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों के लिए ये एक अहम किताब है। साल 2011 में इस किताब का विमोचन एक साथ देश के 8 जाने माने दिग्गज संपादकों ने किया था। इसमें राजदीप सरदेसाई, कमर वाहिद नकवी, आशुतोष, विनोद कापड़ी, सतीश के सिंह, अजीत अंजुम, चंदन मित्रा, श्रवण गर्ग शामिल थे। किताब की प्रस्तावना राजदीप सरदेसाई ने लिखी है। 

       लेखक हरीश चन्द्र बर्णवाल को इससे पहले उनकी कहानियों पर भी पुरस्कार मिल चुके हैं। इसमें अखिल भारतीय अमृतलाल नागर पुरस्कार, हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार का पुरस्कार, कादंबिनी, हिन्दुस्तान टाइम्स का पुरस्कार शामिल है। इसके अलावा IMA ने विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया है। हरीश चन्द्र बर्णवाल की अब तक चार किताबें आ चुकी हैं। इसमें गजल संग्रह “लहरों की गूंज”, कहानी संग्रह “सच कहता हूं”, नरेंद्र मोदी पर “मोदी मंत्र” शामिल है। 

हरीश चन्द्र बर्णवाल को आप उनकी ईमेल पर बधाई दे सकते हैं – hcburnwal@gmail.com

अगर मौजूदा दौर में हिन्दी भाषा को किसी ने सर्वाधिक महत्त्व दिलाया है तो वो है, टेलीविजन न्यूज चैनल। पहली बार बाजार ने महसूस किया कि हिन्दी भाषा में कितनी ताकत है । हिन्दी के पत्रकार न सिर्फ अपना सीना चौड़ा करके घूमते हैं, बल्कि ये भी जानते हैं कि हिन्दी भाषा पर पकड़ की वजह से ही उनकी रोजी-रोटी कितनी सहूलियत से चल रही है। आज भाषा का, जो भी जितना बड़ा जानकर है, वो उतना बड़ा पत्रकार बना हुआ है। दरअसल आज टेलीविजन न्यूज चैनलों के बीच टीआरपी को लेकर जिस तरह की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है, उसमें मुकाबले के लिए बहुत कम क्षेत्र बच गए हैं। 

       न्यूज चैनलों के पास न तो विजुअल की कमी है और न ही तकनीक की। ऐसे में पूरा जोर भाषा पर ही लगाया जा रहा है। कोई प्रोग्राम कितना अच्छा होगा, आज इसका सारा दारोमदार स्क्रिप्ट के लेवल पर आ टिका है। स्क्रिप्ट की सबसे छोटी इकाई ‘शब्द’ है, जिस पर ध्यान देने की बेहद जरूरत है। आपके लिखे दो शब्द दर्शकों को काफी देर तक रोके रख सकते हैं। हालांकि न्यूज चैनलों के लिए भले ही हिन्दी भाषा का महत्त्व बढ़ा हो, लेकिन टेलीविजन पत्रकारिता में हिन्दी भाषा सिकुड़ती जा रही है, शब्द कम होते जा रहे हैं। अब इसे बाजार का दबाव कहें या फिर टेलीविजन का मिजाज, लेकिन हकीकत यह है कि टेलीविजन न्यूज चैनलों ने हिन्दी को महज सैकड़ों शब्दों की भाषा बनाकर रख दिया है। टेलीविजन के हिन्दी पत्रकार बनने की इच्छा रखने वाले इसे अपनी सहूलियत मान सकते हैं। यहां हिन्दी भाषा की कद्र वहीं तक है, जिसे लोग आसानी से पचा लें। 

       इस लेख में हम आपको उन शब्दों की जानकारी देंगे, जिनसे आप पत्रकारिता के दौरान अपना काम बखूबी चला सकते हैं। आपको उन शब्दों के बारे में भी बताएंगे, जिनका इस्तेमाल टेलीविजन न्यूज चैनलों में बिल्कुल भी नहीं होता या फिर जिन शब्दों का इस्तेमाल बहुत ही खूबसूरत माना जाता है। इस लेख में आप ये भी जान सकेंगे कि टेलीविजन पत्रकारिता में कैसे शब्दों का खेल शुरू हो गया है। कैसे कुछ नए शब्द आकार लेते जा रहे हैं तो कुछ दम तोड़ते जा रहे हैं। बस आप दो-चार शब्दों का ज्ञान बढ़ाइए, फिर आप भी भाषा के मामले में किसी से पीछे नहीं रहेंगे। 

       सबसे पहले बात उन शब्दों की, जिनका टेलीविजन में इस्तेमाल लगभग नहीं किया जाता । इसकी जगह दूसरे किसी खास शब्द को जगह दे दी गई है। यहां ये बता दूं कि इन शब्दों की मनाही, किसी व्याकरण की किताब में नहीं मिलेगी, बल्कि टेलीविजन पत्रकारों ने अपने अनुभव से सौंदर्य और सहजता के लिहाज से इसे अपनाया हुआ है। जैसे – 

- पैतृक शब्द का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इसके लिए पुश्तैनी लिखते हैं।
- निश्चित या अनिश्चित के लिए मियादी या बेमियादी ही लिखा जाता है।
- मंजूरी, अनुमति, स्वीकार, इजाजत जैसे शब्दों के लिए प्राथमिकता से इस क्रम में लिखें, इजाजत, मंजूरी, अनुमति, स्वीकार
- आवश्यक के बदले जरूरी
- नेतृत्व की बजाय अगुवाई
- अभियुक्त की बजाय आरोपी
- भाग लेने की बजाय हिस्सा लेना
- संयुक्त की जगह मिला-जुला या फिर वाक्य के मुताबिक
- अनुसार की जगह मुताबिक
- वर्ष की बजाय साल
- केवल की बजाय सिर्फ या बस
- सही की बजाय ठीक
- स्थिति की बजाय माहौल या हालात
- प्रतिबंध की बजाय मनाही या रोक, लेकिन कई बार प्रतिबंध ही लिखना जरूरी हो जाता है। 
- द्वारा की बजाय जरूरत के हिसाब से कुछ और लेकिन द्वारा बिल्कुल भी नहीं।*
- निर्णय की बजाय फैसला
- क्योंकि या इसलिए का प्रयोग नहीं
- प्रयोग की जगह इस्तेमाल
- विख्यात की बजाय मशहूर
- आरंभिक या प्रारंभिक की बजाय शुरुआती
- व्यक्ति की बजाय आदमी या लोग या इंसान
- विभिन्न की बजाय अलग–अलग
- मामला गर्म होता जा रहा है की जगह मामला तूल पकड़ता जा रहा है
- मृत्यु नहीं लिखते, बल्कि मौत या मारे गए
- कारण की बजाय वजह
- विरुद्ध की बजाय खिलाफ
- वृद्धि की बजाय बढ़ोत्तरी
- व्यवहार की बजाय सलूक
- अनुसार की बजाय मुताबिक
- कार्यवाही और कामकाज को इस प्राथमिकता में लिखें– कामकाज, कार्यवाही। हालांकि कई बार कार्यवाही लिखना ही जरूरी हो जाता है।
- आह्वान की बजाय अपील
- न्यायालय या कोर्ट की बजाय अदालत
- अफसर या ऑफिसर नहीं बल्कि अधिकारी
- नेतृत्त्व की बजाय अगुवाई
- अतिरिक्त की बजाय अलावा या सिवाय
- अवस्था की बजाय हालत
- मुहिम और अभियान को वरीयता क्रम में लिखें। 
- अंदाजा और अनुमान को वरीयता क्रम में।
- अनुकूल की बजाय मुताबिक
- फल, परिणाम, नतीजा या अंजाम वरीयता क्रम में।
- आपत्ति की जगह एतराज
- अतिथि की बजाय मेहमान
- आवश्यक की बजाय जरूरी
- आधारभूत ढांचा की बजाय बुनियादी ढांचा
- फौज और सेना को वरीयता क्रम में।
- ख्याति की बजाय मशहूर
- जायजा और आकलन वरीयता क्रम में।
- दरख्वास्त और आवेदन वरीयता क्रम में।
- पक्षपात और भाई-भतीजावाद वरीयता क्रम में।
- यद्यपि की बजाय हालांकि 
- शंका या संदेह की जगह शक
- प्रस्तुत की जगह पेश करना, जाहिर करना या फिर वाक्य के मुताबिक।

बहरहाल, कुछ ऐसे शब्द भी हैं, जिनका लिखने में तो बहुत कम इस्तेमाल होता है, लेकिन एंकरिंग या रिपोर्टिंग के दौरान बोलने में खूब इस्तेमाल होता है। ये सुनने के लिहाज से बहुत अच्छे होते हैं और इससे टेलीविजन की खूबसूरती भी झलकती है । 

- विचार के लिए गौर करना

- किस आधार पर की बजाय किस बिनाह पर

- हर दिन की बजाय हर रोज

- सभी की बजाय हर

कुछ शब्द टेलीविजन में खास तौर पर बड़े ही अच्छे माने जाते हैं। इनका आधार ये है कि इन शब्दों मे गूंज है। इन्हें बोलते ही एक बिम्ब खड़ा हो जाता है । मसलन -

- अफरा–तफरी

- धर दबोचा

- अंधाधुंध

- भाई–भतीजावाद 

 इतना ही नहीं, कुछ शब्द तो ऐसे हैं, जो चामत्कारिक माने जाते हैं। इन शब्दों के इस्तेमाल से आप अपनी स्क्रिप्ट में जान डाल देते हैं। इन शब्दों की और अधिक जानकारी के लिए आप ‘भाषा का चमत्कार’ चैप्टर देखें।


* देखें चैप्टर - क्या करें, क्या न करें – वाक्य संबंधी
(यानि पुस्तक खरीदें)

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