मेरे जीवन गुरु
19 दिसंबर, 2013
!['पातर पातर मुनगा फरय' जयप्रकाश #मानस_डायरी - १ | From Jayprakash #Manas_Diary - 1](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTfOGA4SyLffMXFV2e1QZQpblpKjdlyUEGfpdawBoHpcPixEq-CPlymXjLRYSHXCrSao4rzemuQHQZgJevVw5rdsw5t7b4-Z4keRmTBEHk1hlQHwTnxeomzRZP3vHxLAdzLOXMF6ezh5yt/s1600-rw/shabdankan_%25E0%25A4%259C%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B6_%25E0%25A4%25AE%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25B8_%25E0%25A4%25A1%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2580_%25E0%25A4%25B6%25E0%25A4%25AC%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A6%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25A8_Jayprakas_Manas_Diary_.jpg)
छत्तीसगढ़ साहित्य की शान जयप्रकाश मानस की डायरी के पन्नों से रूबरू हों.
जयप्रकाश मानस
जयप्रकाश मानस
जन्म- 2 अक्टूबर, 1965, रायगढ़, छत्तीसगढ़
मातृभाषा – ओडिया
शिक्षा- एम.ए (भाषा विज्ञान) एमएससी (आईटी), विद्यावाचस्पति (मानद)
प्रकाशन – देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक/लघु पत्र-पत्रिकाओं में 300 से अधिक रचनाएँ
प्रकाशित कृतियाँ-
* कविता संग्रहः- तभी होती है सुबह, होना ही चाहिए आँगन, अबोले के विरूद्ध
* ललित निबंध- दोपहर में गाँव (पुरस्कृत)
* आलोचना - साहित्य की सदाशयता
* साक्षात्कार – बातचीत डॉट कॉम
* बाल कविता- बाल-गीत-चलो चलें अब झील पर, सब बोले दिन निकला, एक बनेगें नेक बनेंगे
मिलकर दीप जलायें,
* नवसाक्षरोपयोगीः यह बहुत पुरानी बात है, छत्तीसगढ के सखा
* लोक साहित्यः लोक-वीथी, छत्तीसगढ़ की लोक कथायें (10 भाग), हमारे लोकगीत
* संपादन: हिंदी का सामर्थ्य, छत्तीसगढीः दो करोड़ लोगों की भाषा, बगर गया वसंत (बाल कवि श्री वसंत पर एकाग्र), एक नई पूरी सुबह कवि विश्वरंजन पर एकाग्र), विंहग 20 वीं सदी की हिंदी कविता में पक्षी), महत्वः डॉ.बल्देव, महत्वः स्वराज प्रसाद त्रिवेदी, लघुकथा का गढ़:छत्तीसगढ़, साहित्य की पाठशाला आदि ।
* छत्तीसगढ़ीः कलादास के कलाकारी (छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रथम व्यंग्य संग्रह)
* विविध: इंटरनेट, अपराध और क़ानून
संपर्क
एफ-3, छग माध्यमिक शिक्षा मंडल
आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ़, 492001
मो.- 9424182664
ईमेल- srijangatha@gmail.com
प्रशासनिक महकमे में घोर दबाबों के बीच अपनी अस्मिता को बरक़रार रखते हुए निराश नहीं होना बल्कि और उत्साह से काम करना मैंने सीखा है, वह भी सामाजिक जीवन में अपनी उपस्थिति को पूरी तरह सिद्ध करते हुए - अपने सबसे प्रिय और संवेदनशील प्रशासनिक अधिकारी और शिक्षाविद् डॉ. देवराज विरदी ( Dev Raj Birdi - 1982 बैंच के आईएएस) जी से । ये वही हैं जिन्होंने मुझ देहाती को सिखाया है कि कैसे शासकीय और सार्वजनिक जीवन की तमाम व्यस्तताओं और जटिलताओं के मध्य हंसते-खिलखिलाते रहा जा सकता है । यानी सरकारी होते हुए भी असरकारी । सच कहूं तो उन्होंने मेरी कलाप्रियता को कामकाज में बाधा नहीं माना बल्कि अधिकाधिक प्रोत्साहित किया । साहित्यिक गुरु तो कई हैं पर वे सच्चे अर्थों में मेरे जीवन गुरु हैं । तब की बात कुछ और थी वे मेरे पहले कलेक्टर थे। बहुत अंतराल के बाद आज फिर उनसे दुआ सलाम हुई तो नई ऊर्जा मिली । मुझे खुशी है कि वे आज जब मध्यप्रदेश राज्य के चीफ़ सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी हैं पर वही जीवन्त हंसी, वही जीवंत वार्तालाप । सर आपकी दक्षता और सीख को याद करते हुए नमन ।
फिर मेले सजाना ।
नदी है तो
27 मई 2014
नदी केवल धोती है ।
नदी केवल बोती है ।
नदी केवल खोती है ।
नदी केवल रोती है ।
नदी केवल सोती नहीं !
नदी और नींद का मेल कहाँ !
नींद एक नदी है पर नदी कोई नींद नहीं ।
नदी सदा जागती है ।
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Distances | Photo: Bharat Tiwari |
वह सदा जगाती है ।
जगना उसका धर्म है ।
जगाना उसका कर्म ।
नदी की नीयत में दो ही बातें हैं
- कर्म और धर्म ।
जो उसका कर्म है वही उसका धर्म ।
नदी का यही सच्चा मर्म ।
नदी एक ताल है ।
छंद गति लय भी ।
सच कहो तो नदी जैसे जीवन का संगीत ।
जीवन कभी भी थमता कहाँ !
बिन गाये नदी का मन भी रमता कहाँ !
न थमना,
केवल रमना ही नदी का जीवन है ।
बहते ही रहना,
कुछ कहते रहना ही जीवन की नदी है ।
दो तटों को मिलाना ।
फिर स्वयं खिलखिलाना ।
पास-पड़ौस को बुलाना ।
कानों में बुदबुदाना ।
नदी की ही रीति ।
नदी की ही नीति ।
नदी कभी अपना रीत नहीं छोड़ती ।
नदी भूले से भी प्रीत नहीं तोड़ती ।
जोड़ती-जोड़ती सिर्फ़-सिर्फ़ जोड़ती ।
नदी है तो जागती रहती हैं मछलियाँ ।
नदी है तो मल्लाह की रोती नहीं पुतलियाँ ।
नदी है तो चमकती रहती है डोंगियाँ ।
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