सचिन गर्ग - वी नीड ए रिवोल्युशन - लोकार्पित @GargSachin


 'वी नीड ए रिवोल्युशन' में जारवा जनजाति के अधिकारों के लिए संघर्ष को दर्शाया गया है #शब्दांकन

सचिन गर्ग ने तीन साल के अंतराल के बाद पुस्तकों की श्रृंखला के साथ वापसी की

जाने-माने लेखक सचिन गर्ग की पांचवी पुस्तक "वी नीड ए रिवोल्युशन" का 7 फ़रवरी को राष्ट्रीय राजधानी में लोकार्पण हुआ। तीन साल के अंतराल के बाद सचिन गर्ग की यह पुस्तक पाठकों के सामने आ रही है। सचिन गर्ग ने आज कनाट प्लेस स्थित ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर्स में इस पुस्तक का लोकार्पण किया। दिल्ली के पाठकों के समक्ष उन्होंने इस पुस्तक के कुछ अंश का पाठ किया तथा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही जारवा जनजाति के बारे में भावनाप्रद व्याख्यान दिया।

अपने पूर्व के प्रशंसित रोमांटिक उपन्यास से बिल्कुल अलग हटकर सचिन गर्ग ने अपनी इस नई पुस्तक में पुस्तक के मुख्य किरदार सुभ्रोदीप श्याम चौधरी के साथ मानव सफारी तथा अंडमान और निकोबार की लुप्तप्रायः जनजाति के बारे में चर्चा की है। इस पुस्तक को लिखने के सिलसिले में उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के तहत एक आरटीआई भी दाखिल की लेकिन उसका उन्हें जवाब नहीं मिला। उन्होंने करीब तीन साल तक अनुसंधान किया और एक महीने से अधिक समय तक अंडवान निकोबार में निवास किया। जारवा जनजाति के प्रति उनका लगाव "वी नीड ए रिवोल्युशन" नामक पुस्तक के रूप में सामने आया।

अपनी पुस्तक के बारे में चर्चा करते हुए लेखक सचिन गर्ग कहते हैं, "यह पुस्तक न केवल जारवा जनजाति के बारे में है, बल्कि यह पुस्तक यह सवाल भी उठाती है कि क्या आज के लड़के-लड़कियों का कोई समूह उस मकसद के लिए संघर्ष करने को तैयार होगा जिसमें वे विश्वास करते हैं और यह समूह इसके लिए कितना आगे जाने को तैयार होगा।"
सचिन गर्ग और अनुराग बत्रा - वी नीड ए रिवोल्युशन #शब्दांकन
सचिन गर्ग और अनुराग बत्रा 

"वी नीड ए रिवोल्युशन" एक यात्री सुभ्रोदीप श्याम चौधरी के जीवन तथा अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की जनजातियों के बारे में आश्चर्यजनक खोजों के आसपास घुमती है।

"वी नीड ए रिवोल्युशन" ...
शुभ्रो दीप श्याम चौधरी पूरे भारत की सैर करने वाले घुमक्कड़ हैं। उनकी एक कमजोरी यह है कि जब भी वह किसी के साथ अन्याय होते देखते हैं तो वह अन्याय का विरोध करने के लिए सक्रिय हो जाते हैं।

जब वह अंडमान पहुंचते हैं तो वह एक बड़ी चुनौती का सामना करते हैं, जिसके बारे में उन्होंने पहले सोचा नहीं था। वहां देखते हैं कि जारवा जनजाति के लोग बलात्कार, बीमारियों, हिंसा और अमानवीय अत्याचार से जूझ रहे हैं।

अपने दोस्तों के एक समूह के साथ वह इन लोगों के लिए कुछ करने का फैसला करते हैं। लेकिन वह कितना बर्दाश्त करने को तैयार हैं? क्या नियमित जीवन जीने वाले लोग सभी बाधाओं से ऊपर उठकर अपने विचारों के लिए खड़े हो सकते हैं ?



सुभ्रो दीप श्याम चौधरी ने 20 साल पहले पूरे भारत में घूमने का फैसला किया। उन्होंने तय किया कि वह देश के प्रत्येक राज्य एवं प्रत्येक केन्द्र शासित प्रदेश में छह माह रहेंगे। उन्होंने अपनी इस यात्रा को "मूव ऑन थ्योरी" नाम दिया। वह अन्य लोगों की सोच की तुलना में कहीं अधिक गंभीर प्रतीत होते हैं।

प्रत्येक राज्य और प्रत्येक केन्द्र शासित प्रदेश में वह उस राज्य के सामाजिक मुद्दों के साथ या आदिवासियों के साथ जुड़ते हैं और स्थिति में बदलाव लाने के लिये यथासंभव पूरी कोशिश करते हैं।

इस श्रृंखला की पहली पुस्तक "वी नीड ए रिवोल्युशन" में जारवा जनजाति के अधिकारों के लिए संघर्ष को दर्शाया गया है। इस श्रृंखला की दूसरी पुस्तक में, एक स्टील कारखाने में काम करने वाले मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष को दिखाया जाएगा। तीसरी पुस्तक में पंजाब में नशीली दवाओं की लत की समस्या को सामने लाया जाएगा।


सचिन गर्ग ने 29 साल पहले अपनी सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक ‘‘आई एन नॉट ट्वेंटी फोर ... आई हैव विन नाइंटिन फॉर फाइव इयर्स’’ (2010) में लिखी थी। इसके बाद उन्होंने ‘‘इट इज फर्स्ट लव, जस्ट लाइन द लास्ट वन’’ (2011), ‘‘नेवर लेट मी गो’’ (2012) और ‘‘कम ऑन इनर पीस ... आई डांट हैव ऑल डे’ (2013)’’

अब तक उनकी सभी पुस्तकों की पांच लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी है और वह भारत के अग्रणी प्रकाशक ग्रैपवाइन इंडिया पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक भी हैं। 

सचिन गर्ग का जन्म दिल्ली में हुआ और यहीं वह पले-बढ़े। सचिन गर्ग शिक्षा और परियोजनाओं के लिए पेरिस, एक्स - इन प्रांत (फ्रांस) तथा उत्तरी कर्नाटक के छोटे से गाव तोरानागुलु में रहे। 

दिल्ली कालेज ऑफ इंजीनियरिंग से उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में स्नातक किया। उन्होंने गुडगांव के एमडीआई तथा फ्रांस के एक्स-एन प्रांत के आईएई से मैनेजमेंट की पढ़ाई की। 

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