अमिता : अंधेरे से निकलती शिक्षा की रोशनी — अमित मिश्रा


जिंदगी जीने का फलसफा क्या है... कुछ लोगों के लिए 'मैं और मेरा' के संकुचित दायरे से निकल किसी अनजान चेहरे पर मुस्कान लाना ही जिंदगी का दूसरा नाम है। वे दूसरों के लिए कुछ करने को ही 'सेलिब्रेशन ऑफ लाइफ' मानते हैं। वहीं, कुछ दूसरे ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने अपनी नाकामियों को धकेलते हुए जीत के जज्बे की मिसालें पेश की हैं। ये दोनों ही तरह के लोग दूसरों के लिए प्रेरणा का काम करते हैं।

ऐसे ही चंद लोगों से रूबरू कराएंगे अमित मिश्रा...
आज मिलिए अमिता से  

अमिता

अंधेरे से निकलती शिक्षा की रोशनी

(गरीब बच्चों की दृष्टिहीन टीचर)




क्या अंधेरा किसी को रोशनी दे सकता है? लोग यही कहेंगे कि ऐसा मुमकिन नहीं है। लेकिन अगर अंधेरे के भीतर एजुकेशन की ताकत धड़कने लगे तो वहां से भी दुनिया को रोशनी मिल सकती है। अमिता एक ऐसा ही नाम है, जो अंधेरों से आ रही रोशनी के लिहाज से एक मिसाल हैं। वह खुद तो जन्म से आंखों की रोशनी से वंचित हैं, लेकिन उन्होंने ज्ञान और शिक्षा की रोशनी फैलाने का बीड़ा उठाया है।

41 साल की अमिता का जन्म एक मिडल क्लास फैमिली में हुआ। जन्म से ही वह देख नहीं सकतीं। उनकी एक बहन और एक भाई भी पैदाइशी दृष्टिहीन थे। इन अजीब हालात के बीच अमिता के पिता ने पत्नी तेजेंदर कुमारी को बच्चों के साथ अकेला छोड़ दिया। तेजेंदर ने बच्चों को अकेले पालने का बीड़ा उठाया। उन्होंने शिक्षा को सबसे बड़ा सहारा समझा और अमिता समेत सब भाई-बहनों ने मेहनत करके पढ़ना शुरू किया। अमिता पढ़ने में शुरू से अच्छी थीं और उन्होंने डीयू के जानकी देवी कॉलेज से ग्रैजुएशन करने के बाद डीयू से ही बीएड, एमएड और एमफिल की डिग्री हासिल की। अपनी शारीरिक सीमाओं के साथ जूझते हुए भी उन्हें समाज को कुछ वापस करने की ललक भी लगी हुई थी।

अमिता के मन में हमेशा यह बात रही है कि जितनी परेशानी उन्हें हुई है, उस संघर्ष से और किसी को न गुजरना पड़े। संघर्षों से पार निकलने का रास्ता उन्हें अपने मां से मिले पाठ से मिला। यह पाठ था, खुद को इतना शिक्षित कर लो कि हर परेशान ज्ञान के आगे बौनी नजर आने लगे। उन्होंने 2004 में रघुवीर नगर में 15 गरीब बच्चों के साथ एक स्कूल शुरू किया। अब वह तकरीबन 500 बच्चों को मुफ्त में पढ़ा रही हैं। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने का सिलसिला किराए पर कमरा लेकर शुरू किया। बाद में उनकी मेहनत को सरकारी महकमे ने सराहा और सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकार ने उन्हें सरकारी स्कूलों में ही बच्चों को पढ़ाने के लिए जगह दी है। इस स्कूल में जब रेग्युलर क्लास खत्म हो जाती हैं, तब इविनंग क्लासेज गरीब बच्चों के लिए होती हैं।

इस पूरे सफर में जहां एक ओर वह गरीब बच्चों को पढ़ा रही थीं, वहीं पर्सनल मोर्चे पर उनकी लड़ाई भी जारी थी। कभी अपने लिए स्टडी मटीरियल की दिक्कत तो कभी नौकरी की तलाश की चुनौती। वह बताती हैं कि एक बार उन्हें बैंक में पीओ की पोस्ट के लिए अप्लाई करने से इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि वह देख नहीं सकतीं। इसके लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट तक की लड़ाई लड़ी। सोशल सर्विस के संघर्ष से बची हुई एनर्जी और पूंजी से उन्होंने इस केस को पुरजोर तरीके से लड़ा और फैसला उनके हक में आया। कोर्ट ने आदेश दिया कि बैंकिंग के सभी एग्जाम में 1 फीसदी पद इस तरह के कैंडिडेट के लिए रिजर्व किए जाएं। नौकरी के तौर पर फिलहाल वह सरकारी स्कूल में पढ़ाती हैं और बचे हुए पूरे वक्त में वह गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ाती हैं। वह बच्चों के साथ बागवानी से लेकर नुक्कड़ नाटक तक, सब करती हैं और इसी तरीके से उन्हें मेन स्ट्रीम का हिस्सा बनाने की लड़ाई लड़ रही हैं।

००००००००००००००००



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा