देवदत्त पटनायक — असुर एक उपाधि है @devduttmyth @Sheshprashn


Devdutt Pattanaik on Durga, Sur, and Asur, translation - Amit Mishra

असुर एक उपाधि है जो इंद्र, अग्नि, रुद्र, वरुण जैसे कई आराध्यों को दी गई है

— देवदत्त पट्टनायक

यह वक्त इन मान्यताओं को तोड़ कर इस बात को सोचने का है कि देव और असुर दोनों ही कश्यप ऋषि के बच्चे हैं  
अगर आप वेदों को पढ़ें, जो वाकई में 4000 साल पुराने हैं, तब वहां आपको ‘असुर’ शब्द का मतलब राक्षस या बुरा व्यक्ति न मिल कर एक पवित्र इंसान के रूप में मिलेगा। असुर एक उपाधि है जो इंद्र, अग्नि, रुद्र, वरुण जैसे कई आराध्यों को दी गई है। व्रित्र जो इंद्र के दुश्मन हैं उन्हें भी असुर नही कहा गया है।


हालांकि 2000 साल पहले लिखे पुराणों में चीजें बदलने लगती हैं। यहां पर असुर बुरे लोग हैं और भगवानों और देवताओं के दुश्मन की तरह वर्णित किए गए हैं। देव और असुर दोनों ही कश्यप ऋषि के बच्चे हैं, जो अलग-अलग पत्नियों से पैदा हुए हैं। देवों को आदित्य कहा गया क्योंकि वे अदिति से पैदा हुएअसुरों को दैत्य या दानव कहा गया क्योंकि वे दिति और दानु के बच्चे थे। देव और असुर में लगातार लड़ाई होती रहती है। देवों के नेता इंद्र अपने पिता ब्रह्मा से लगातार खुद को असुरों से बचाने की गुहार लगाते रहते हैं और दूसरी ओर असुर भी वरदान में देवों के स्वर्ग से बाहर करने के लिए शक्तियां मांगते हैं। देवों के पास अमृत है जो उन्हें अमर बनाता है। असुरों के पास संजीवनी विद्या है जो किसी भी मरे को जीवित कर सकती है। दोनों ही काम एक दूसरे के विरोधी न होकर पूरक नजर आते हैं। इसलिए लक्ष्मी जो कि पुलोमि कहलाती हैं क्योंकि वह असुर राजा पुलोमन की बेटी हैं लेकिन वह सची भी हैं क्योंकि वह इंद्र की पत्नी हैं। मतलब लक्ष्मी असुर की बेटी हैं और देव की पत्नी हैं। हम सोच में पड़ जाते हैं कि आखिर इसका मतलब क्या है। क्या इसका मतलब यह हो सकता है कि असुर जो पाताल में रहते हैं वे लक्ष्मी के स्रोत हैं और देव जो धरती से ऊपर स्वर्ग में रहते हैं वह जगह है जहां लक्ष्मी या धन-धान्य को महत्व मिला है।
One of the most unique features of the Goddess at the Kamakshi Temple, North Street, Tiruvannamalai, is that she is holding a Shiva Lingam in her hand which is pressed against her heart, whilst standing in a sea of flames to represent the austerity (thavasu) she had to perform in reparation for her sin in killing Mahisha, a Shiva devotee.

अगर हम गीता को पढ़ें, जो कि महाभारत का हिस्सा है और तकरीबन 2000 साल पुरानी है। इसमें कृष्ण जहां देवताओं का वर्णन उदारता, करुणा, दरियादिली, धैर्य और भरोसा जैसे सकारात्मक गुणों के लिए करते हैं वहीं असुरों का वर्णन ऐसे लोगों के रूप में करते हैं जो लालच, आत्ममुग्धता, झगड़ालू और घमंडी से भरे हुए हैं। यहां पर अंतर बिल्कुल साफ है: देव अच्छे हैं और असुर बुरे हैं। गीता में भगवान जैसा होने का मतलब दैहिक और भौतिक चीजों से ऊपर उठने से लगाया गया है।

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पुराण की कहानियों में सुर और असुर में अंतर कई बार काफी महीन हो जाता है। अच्छे असुरों और बुरे देवों की कहानियां पहेली जैसी जान पड़ती हैं मिसाल के तौर पर असुरों का राजा बालि दयालु है, विरोचन बुद्धिमान है, प्रह्लाद भगवान पर भरोसा रखने वाले हैं जबकि इंद्र जो देवों के राजा हैं, अहिल्या का पीछा करते हैं और शाप के भागी बनते हैं। इंद्र का बर्ताव कई बार एक सामंतवादी राजा की तरह प्रतीत होता है, जो गाने-बजाने वालों से घिरा रहता है और जिंदगी के एश्वर्य का भोग कर रहा है। असुरों को पूर्व जन्म के देवताओं की वर्णित किया गया है। मिसाल के तौर हिरण्यकश, जिसका विष्णु ने वराहा अवतार के रूप में वध किया और हिरण्यकश्यप जिसे विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर मारा दोनों ही बैकुंठ के द्वारपाल जय और विजय हुआ करते थे और शाप की वजह से वे असुर बन गए थे।

Goddess Durga at the Kamakshi Temple holding a Shiva Lingam in her hand which is pressed against her heart
तकरीबन 1500 साल पहले देवि महात्मय मार्कडेय पुराण का हिस्सा बना। यहां हमें बताया जाता है कि असुरों को ब्रह्मा से वरदान मिला है कि न तो उन्हें इंसान और जानवार मार सकते हैं और न ही भगवान। असुर महिलाओं के बारे में ऐसा वरदान लेना भूल जाते हैं। ऐसे मे देवता अपनी शक्तियों के मिला कर एक महिला दुर्गा की रचना करते हैं, जो शेर पर सवार होकर असुरों से युद्ध करती हैं और त्रिशूल से उनका संहार करती हैं। असुर को महिसासुर कहा जाता है, क्योंकि वह कई तरह के जानवरों का रूप रख सकता है जिसमें भैंस प्रमुख है। यहां साफ प्रतीत होता है कि महिसासुर एक बुरा इंसान है या हमें ऐसा लगता है कि वह बुरा है। लेकिन जब हम तमिलनाडु के अरुणाचल स्थल पुराण को पढ़ते हैं या स्कंधपुराण की कुछ कहानियों में देखते हैं तो पाते हैं कि दुर्गा को महिषासुर की कटी गर्दन में शिवलिंग प्राप्त होता है। उन्हें इस बात का आभास होता है कि उनसे एक शिव भक्त की हत्या हो गई है और इसके लिए वह पश्चाताप करती हैं। इसलिए वहां के एक मंदिर में दुर्गा को अग्नि में बैठे हुए दिखाया गया है जो हाथ में उस शिवलिंग को लिए हुए हैं जो महिषासुर की गर्दन में मिला था
अनुवाद : अमित मिश्रा
Amit Mishra

अमित मिश्रा

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से गणित में स्नातक और भारतीय विद्या भवन से मास कम्युनिकेशन में परास्नातक अमित ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत नवभारत टाइम्स से की। दिल्ली में अन्ना और रामदेव आंदोलनों के उथल पुथल को कवर करते हुए वह फिलहाल संडे नवभारत टाइम्स को सेवाएं दे रहे हैं और कुछ अलग करने की कुलबुलाहट में स्पेशल स्टोरीज पकाते रहते हैं। amitsoonu@gmail.com


जब हम भारतीय धर्मग्रंथों का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि अच्छे देवों और बुरे असुरों का बंटवारा का काफी सरलीकरण किया गया है।

जब हम भारतीय धर्मग्रंथों का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि अच्छे देवों और बुरे असुरों का बंटवारा का काफी सरलीकरण किया गया है। इंद्र और असुर राजाओं के बीच युद्ध की कहानियों में अर्थ की कई परते हैं। इन्हें सीधे-सीधे नैतिक या आचार संबंधी नजरिए से नही देखा जा सकता। हालांकि लोग ऐसा ही करते हैं। हम दुर्गा को एक ऐसी ताकत के रूप में देखना चाहते हैं जो बुरे लोगों का वध करती है और यह सोच उस तर्क को जन्म देती है जिसमें दुर्गा को एक औपनिवेशिक और दमनकारी ताकत की तरह देखा जाता है। यह वक्त इन मान्यताओं को तोड़ कर इस बात को सोचने का है कि देव और असुर दोनों ही कश्यप ऋषि के बच्चे हैं और एक दूसरे से युद्ध करके खुद के बड़ा और ताकतवर सिद्ध करना चाहते हैं। बिना असुरों के देवता समुद्र मंथन नहीं कर सकते। समुद्र मंथन से मिले खजाने में असुरों को उनका हक दिए बिना देव कभी भी शांति नही पा सकते।

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1 टिप्पणियाँ

  1. मां दुर्गा का एकमात्र उद्देश्य नैतिकता की स्थापना है
    प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने वाले को दण्ड देना प्रकृति का अधिकार है
    देवता प्रकृति के सहायक तत्व उन्हीं तत्वों से प्रकृति भौतिक रूप में सजी हुई है
    इसलिए वह परा प्रकृति प्रकृति के तत्व रूपी देवताओं से प्रकट होकर भौतिक रूप से दिखाई देती है
    जैसे आठो दिशाएं मां की आठ भुजाएं
    सूर्य चंद्र अग्नि नयन है
    रक्त परिधान है
    प्राकृतिक वनस्पति जीव जंतु का स्वामी सिंह वाहिन है
    निरंजन निराकर परब्रह्म परमात्मा परमेश्वर स्वामी है
    इस प्रकार से चराचर जगत की परिभाषा और ब्रह्मांड की जननी बताई गई है

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