
महामहिम की सेवा में कृष्णा सोबती का निवेदन
महामहिम राष्ट्रपति जी की सेवा में
सम्प्रभुतापूर्ण भारत देश राष्ट्र की कोटि-कोटि सन्तानों के पुरोधा राष्ट्रपति जी!
आप हमारी वैचारिक, लोकतांत्रिक और संस्कृति के संरक्षक हैं —
हम भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखनेवाले नागरिक आपके सन्मुख इस प्रार्थना के साथ उपस्थित हैं कि देश आज जिस संकट के सामने है, आप उसे गंभीरतापूर्वक देखें। देश को विभाजित करनेवाले कोलाहल की हर प्रतिध्वनि आप तक पहुँचती है, जो आज हो रहा है और जिसके कारण देश तनाव में है–उसके सम्मिलित स्वर को लेकर हम आपके सामने हाजिर हैं।
राष्ट्र की राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियों का लेखा-जोखा और संवैधानिक-नैतिक व्यावहारिकता की राजनैतिक पुष्टि और उल्लंघन, दोनों आप तक लगातार पहुँचते हैं।
महामहिम, इस सन्दर्भ में हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित की आत्महत्या का दुखदायी प्रकरण और इसके पीछे आतंकित करते दलित छात्र-दमन जैसे कई मामले हमारे लोकधर्म को पछाड़ने की भरसक कोशिश में हैं।
हम भारत की साधारण प्रजाएँ–एक साथ पुरानी विसंगतियों और विषमताओं से उबरते हुए लोकतंत्र की उन बरकतों को छूना चाहते हैं जो संविधान के अनुरूप भारतीय लोकतांत्रिक जीवन-शैली से उभर रही हैं। हम भारतवासी संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिक बराबरी और मानवीय अस्मिता के सम्मान को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं।
देश में निवास करते पिछड़े, दलित और विभिन्न दलित समूह विश्वविद्यालयों में कैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, वह आज सर्वविदित है।
इन क्रूर स्थितियों, परिस्थितियों का इतिहास कम लम्बा नहीं।
राष्ट्रपति जी, हमारे देश का लोकतंत्र जिस मानवीय बिरादरी में आस्था रखता है, भारत का हर नागरिक वहाँ तक पहुँचना चाहता है।
संविधान ने हर हिन्दुस्तानी को बराबरी का अधिकार दिया है।
हर हिन्दुस्तानी अपने देश के संविधान से बँधा हुआ है। उसके गुणों में आस्था रखता है।
महामहिम, भारत के ऊँचे, सफल, पिछड़े सभी प्रजाजन देश के संविधान के जनक अम्बेडकर जी को शत-शत प्रणाम करते हैं जिन्होंने राष्ट्र के लोकतांत्रिक संस्कार को संविधान में बाँधकर यह वरदान दिया।
आपके सामने नतमस्तक हो विनम्रतापूर्वक यही प्रार्थना है कि आज लोकतंत्र में जो विद्रूप और अमानवीय विसंगतियाँ उभर रही हैं, उनका राजनैतिक समाधान आप करें।
महामहिम आप राष्ट्र के सत्तातंत्र के सर्वोपरि हैं। राष्ट्र की विचारधारा किस ओर जा रही है, वह आप देख ही रहे हैं।
अपने देश का भूगोल, इतिहास भारतवासियों के एकत्त्व में गुँथा है। उसे तानाशाही राष्ट्रवाद की ओर बढ़ते देख, हम नागरिक चिन्ता में हैं।
भारतीय विवेक सदियों-सदियों से विभिन्नताओं में भारत के एकत्त्व को रचता आ रहा है। इसकी यह संरचना विश्वप्रसिद्ध है।
एक स्वतंत्र देश के नागरिक के रूप में भारत का हर विशेष और साधारण जन इन्हीं मानवीय सम्बन्धों को गरमाहट से जीना चाहता है।
हम साधारण नागरिक यह समझने में असमर्थ हैं कि जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय के छात्र नेता-कन्हैया से पुलिस द्वारा पूछताछ करने के दौरान उसे बगैर गुनाह साबित हुए क्यों पीटा गया और पटियाला हाउस में वकीलों ने किस विचारधारा से प्रेरित हो उस पर हमला किया।
मान्यवर, लोकतंत्र की राष्ट्रीय विरासत कन्हैया जैसे युवाओं को पीटने, धमकाने और सजा देने में नहीं, उनकी प्रतिभा को देश के लिए इस्तेमाल करने में हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और उस जैसे अन्य विश्वविद्यालयों में पनप रही विचारधाराएँ इस बात का प्रमाण हैं कि आज के भारत का युवा-समाज आत्मनिरीक्षण से अपनी चेतना को स्फूर्त करता है, संकुचित आत्ममुग्धता से नहीं। वह अपनी सुयोग्यता से सार्वजनिक जीवन में अनुशासन और आत्मविश्वास से अग्रसर होता है।
महामहिम भारत देश के बहुजातीय, बहुधर्मी, बहुभाषी समाजों की अस्मिता को किसी संकीर्ण सांस्कृतिक विचारधारा से नत्थी करना सेहतमन्द पक्षधरता का प्रतीक नहीं।
जिस वैचारिक नियंत्रण की यह भूमिका है, वह हमारे देश की उभरती पीढ़ियों की लोकतांत्रिक अवधारणाओं और विश्वासों के विपरीत है।
महामहिम, लोकतंत्र के नाम पर ही अगर विश्वविद्यालय में लोकधर्म का अंग-भंग होगा तो यह नागरिक समाज की लोकतांत्रिक आस्था को भी घायल करेगा और यह संकीर्णता देश की बौद्धिक प्रतिभा और ऊर्जा का भी ह्रास कर देगी।
महामहिम आज हम जो भी लगातार सुन-पढ़ रहे हैं, वह लोकतांत्रिक मूल्यों के नितान्त विपरीत है। हम लाखों-लाखों नागरिक राष्ट्र के भविष्य के लिए चिन्तित हैं।
आपकी सेवा में
भारत के नागरिक समाज की एक प्राचीन सदस्य
कृष्णा सोबती
( वो नागरिक जो देशमोह और देशद्रोह के शोर से आतंकित हैं वह हमारी प्रार्थना में शामिल हों और अपनी नागरिक संज्ञा का नाम दें )
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