नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में छोटे और बड़े मियां के खेल – रवीन्द्र त्रिपाठी


रतन थियम के पुत्र भी नाट्य विद्यालय के पुराने स्नातक नहीं है। उसके किस आधार पर बुलाया जाता है? क्योंकि वे चेयरमैन के बेटे हैं?

क्या राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में भ्रष्टाचार का खुला खेल चल रहा है? इस प्रश्न का जवाब है हां।

कौन हैं इस जो इस खेल में शामिल हैं? वे हैं इसके निदेशक वामन केंद्रे और चेयरमैन रतन थियम।

वामन केंद्रे बतौर निदेशक वेतन ले रहे हैं जिनमें एचआरए शामिल होता है। दूसरे वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बंगाली मार्केट वाले गेस्ट हाउस में भी रह रहे हैं जिसका किराया डेढ लाख रूपए है। यानी प्रतिमाह सरकार को डेढ़ लाख रूपए का चूना। कोई पूछनेवाला नहीं है। सरकार मौन है? लेकिन वामन की कारस्तानी सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अलग अलग समारोहों में अपने ग्रूप के नाटक भी करा रहे हैं। उसका पैसा अलग है। वे खुद अपने नाटकों का चयन कर लेते हैं। कोई बताए कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में कोई ऐसा निदेशक हुआ जो इस तरह से पैसे बनाने की कला जानता था? इसमें मामले में वामन ने इब्राहिम अलकाज़ी (Ebrahim Alkazi), बी वी कारंत (B. V. Karanth) , मोहन महर्षि (Mohan Maharishi), बी एम शाह (B.M.Shah), राम गोपाल बजाज (Ram Gopal Bajaj), देवेंद्र राज अंकुर (Devendra Raj Ankur) आदि की परंपरा को ध्वस्त कर दिया है। पिछले साल यानी 2015 के भारत रंग महोत्सव की शुरुआत वामन के नाटक से हुई और उसके तीन शो हुए। ये भी अपने में रिकार्ड है।


छोटे मियां तो छोटे मियां बड़े मियां सुभान अल्लाह। बड़े मियां यानी नाट्य विद्यालय के चेयरमैन रतन थियम। चेयरमैन का पद अवैतनिक होता है। लेकिन जितने पैसे रतन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से बना रहे हैं वह एक नया इतिहास है। बेमिसाल है। वे नाट्य विद्यालय के अलग अलग समारोहों में अपने नाटक कराते हैं। खुद ही चयन कर लेते हैं। इस बार के भारत रंग महोत्सव की शुरुआत उनके नाटक `मेकबेथ’ से हुई। फिर दूसरे समारोहो में अपने नाटक करते हैं। `मेकबेथ’ भी दूसरे समारोह में हो चुका है और जहां अपने नाटक नहीं कराते वहां अपने बेटे के नाटक करा लेते हैं। यही नहीं रतन ने पिछसे साल गुवाहाटी में एक वर्कशाप भी कराया जिसकी फीस ली, वे पंच सितारा होटल में एक महीना रहे, उसका खर्चा कराया और फिर उसमें अपने बेटे को भी बुलाया। यानी संपूर्ण पारिवारिक ड्रामा।

पर बात सिर्फ आर्थिक भ्रष्टाचार की नहीं है। वामन और रतन – दोनो मिलकर योजनाबद्ध ढंग से दिल्ली रंगमंच को खत्म कर रहे हैं। दिल्ली में अरविंद गौड़, अतुल सत्य कौशिक, अनिल शर्मा, शाम कुमार, लोकेश जैन जैसे कई निर्देशक हैं जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से नहीं निकले हैं लेकिन शानदार नाटक करते हैं। राष्टीय नाट्य विद्यालय इनकी कोई मदद नहीं करता। हालांकि इनके नाटकों में नाट्य विद्यालय की प्रस्तुतियों से अधिक भीड़ होती है। एनएसडी (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय / National School of Drama) न सिर्फ इनके नाटक नहीं कराता बल्कि इनको अपने यहां निर्देशक प्रशिक्षण के लिए भी नहीं बुलाता। इनको किसी वर्कशाप में नहीं बुलाता। उनके साथ ऐसा सलूक करता है मानों वे नाटककार हो नहीं। औऱ बात सिर्फ दिल्ली की नहीं। उर्मिल कुमार थपलियाल, सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ जैसे उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ रंगकर्मियों के नाटक भी नाट्य विद्यालय नाटक नहीं करता। उनको किसी वर्कश़ॉप में नही बुलाता। क्या राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय सिर्फ अपने पुराने स्नातकों का है? क्या पूरे देश के नाट्य जगत का उस पर अधिकार नहीं है? और रतन थियम के पुत्र भी नाट्य विद्यालय के पुराने स्नातक नहीं है। उसके किस आधार पर बुलाया जाता है? क्योंकि वे चेयरमैन के बेटे हैं?
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