अंजली के लिए, जो मुझे तब याद करती है जब उसे साहित्य का कुछ नहीं मिल रहा होता...
दोपदी सिंघार
पेटीकोट व अन्य कवितायेँ ... फेसबुक से
आग
कविता अब नारा बना ली जाएगी
कविता अब झगड़ा बना ली जाएगी
कविता को नाव बना लूँगी
और पार करूँगी पदुमा
जिसके ऊपर पुल नहीं बनाया
कविता को इस्कूल बना लूँगी
और तैयार करूँगी ऐसे बच्चे
जो सवाल उठाएँगे
जो मना करेंगे
जो फ़रार होंगे
जो प्रेम करेंगे
कविता को बिस्तर बना लूँगी
और सोऊँगी दिनभर की मजूरी-मारपीट के बाद
कविता को दूध बनाऊँगी
बेटा तुझे पिलाऊँगी
कविता को रोटी बनाऊँगी
गाँव भर दुनिया भर को जिमाऊँगी
पापा सुन लो
कविता को खसम करूँगी मैं
और कविता को रख दूँगी
जहाँ अपनी बिटिया की लाश रखी थी
दिया नहीं कविता जलाऊँगी मैं
जिसने सोलह साल में देख ली
नौ मौत छह डिलेबरियाँ
उसके लिए
अँधेरा कविता है
मार कविता है झगड़ा कविता है
घाव कविता है घर कविता है
तुम लोगों को बहुत परनाम
कविता बनाना बतलाया
इस कविता से मिज़स्ट्रेट के दफ़्तर
आग लगाऊँगी मैं ।
तांट्य भील
माँओं बेटों का मुंडन करने मत जाओ
जाना तो गर्दन कटवाना
तीर चलाना गुलेल मारना
ब्याह के मौके नहीं
न्याय माँगने जाना
इन्होंने लड़ना सिखलाया है
नेता अफ़सर पुलिस पटवारी
सबसे भिड़ना सिखलाया है
मरने और मारने का पथ दिखलाया
अगले बरस बेटे को बच्चा हो
और गाय को बछड़ी ये माँगने मत जाना
उनके पास गोली है तोप है तलवार है
तुम मन को बंदूक़ बनाना
तन को तीर बनाना
धनुष करना स्वाभिमान का
और अपना लोहा मनवाना
मुंडन करवाने मत जाना
मुण्ड कटाने जाना
रक्त बहाने जाना
अपना जंगल अपनी मिट्टी
अपना कोदों अपनी कुटिया
हमें चाहिए
जवाई चपरासी बन जाए
बेटा मास्टर हो जाए
डेलीबिजेस आदमी
परमानेंट हो जाए
ये माँगने मत जाना
हम राजा लोग है जानो
हम बाजालोग नहीं
कि कोई बजाए
सड़क निकालने के नाम पर
घर उजाड़ के जाए
अपना राज माँगने जाना
अपनी रक्त माँगने जाना ।
पदुमा का पानी
पदुमा का पानी
सबका है
ये पानी पंडित का बनिए का
ये पानी कायथ का कुम्हार का
ये पानी गोरमेंट का पंचायत का
ये पानी हमारा नहीं
ये पानी मेरे बच्चे तुम्हारा नहीं
ये पानी में वो आग nahin
जो बुझा सके
हमारे जन्म की
हमारे पापों की आग
चावल के माड़ गुड़ मिला के देती हूँ
जो दूध मान के पी
और सोजा
सपने में तू पंडित बनना सपने में तू पंसारी बनना
मेरा बेटा मत बनना, मेरे बेटे
मेरा बेटा मत बनना।
वो
आदमी बनाती अपना उसे
गहने के नाम के गिलट की नथ तक नहीं दी
गहनों के नाम पर लाया एक दरांती हाट से
बोला, 'यहीं है अपना गहना अपना चाँद, अपना प्यार'.
उन्नीस साल की उमर
बताओ भला, दरांती को मानती गहना
फिर एक रात आया. काका मेरे गए थे मंडला
काकी बुखार में बड़बड़ाती है.
रसोई में बुलाया आधी रात
खोल दिए ब्लाउज के बटन
मैंने उसकी दी दरांती निकाल ली
खिलखिलाके हंसा
चुटिया खींच के गले भींच लिया.
उसके बाद कभी नहीं आया
न मिली उसकी लाश
जिसको अपना मर्द बनाना चाहती थी
उसकी लाश की बात करते
रोना नहीं आता
कहता था वो
बचाना हो दोपदिया तो गुस्सा बचाना
जैसे बचाता है तेरा काका रुपैया।
रात
महुए सी गिरती है रात
चाँद इतना बड़ा जितनी हंसिया थी मेरे रसिया की
फिर रात जोर-जबर की
हंसिया उठाया और काट दी पंसली
दिन उगा
खून में
उसने कहा मासिक धर्म का खून है
खून मेरी पंसलियों से मेरे ह्रदय से गिर रहा था
टप टप
चाँद डूब गया था
हंसिया उठाके रसिया गया खेत
मैं गई रसोई में.
कार्ल मार्क्स
एक मुसलमानी भाषा की कविता
उन्होंने सुनाई।
मैं नहीं कर सकती ये 'तमाशे, माशूक की कविता'
तो बोले, ग़ालिब का है यह शेर.'
पूछा मैंने, 'क्या बहुत बड़े कवि थे ग़ालिब जी?'
'दुनिया के सबसे बड़े कवि है ग़ालिब'.
'नहीं मुझे नहीं लिखनी इनके जैसी कविता.
वो जो ऊँचे टांड पर रखते हो तुम मोटी किताब
उस पर जो दाढ़ीवाले रिसि-मुनि की तस्वीर
उनकी कविता बतलाओ।'
हँस हँस बाबू लोट-पोट
'वो तो कार्ल मार्क्स है,
कविताई नहीं करते फिलोसोफर है'
'क्या डॉक्टर है?'
'डॉक्टर ही समझो उनको,
दुःख से मुक्ति का उपाय बताते है.'
'आप हमें मत बहलाओ.'
आंबेडकर जी जैसे है मार्क्स.'
'अच्छा क्या फॉरेन में भी शुडूल कास्ट होती है?'
'दबे, कुचले लोग दुनिया में जहाँ तहाँ है,'
तबसे मैंने मार्क्स बाबा की राहों पर
ठाना।
फाड़ पोल्का तुम हमारा
राष्ट्र का झंडा बना लो साहेब
काटो और पकाके माँस हमारा
तुम गौमाँस बचा लो साहेब
एक ताड़ी की बोतल देके
मर्दों का वोट
अपनी मतपेटी में सजा लो साहेब
ढोल बना हमको तुम
दोनों और बजा लो साहेब
बच्चे हमारे इस्कूल जाएँगे और पढ़ेंगे
दौड़ेंगे खेल मैदान में
जंगल के फूल जंगल में
खेलेंगे और गाएँगे
जो तुमने उनका इस्कूल उजाड़ा
और जो अस्पताल गिराया
जो तुमने उनकी कॉपी किताब पर पैसा खाया
उनके मिडडे मील के गेहूँ में घुन लगाया
तो तुम्हारी गर्दन टेबुल पर सज़ा देंगे साहेब
ईंट से ईंट गवर्न्मेंट की बजा देंगे साहेब ।
हमारे गाँव मामाजी आया
चावल से किया टीका
गेंदे का हार पहनाया
एसडीएम कलेक्टर एसपी सब हाथ जोड़ खड़े थे
फिर दलित आदिवासियों को
मामाजी ने बुलवाया
हमारे गाँव मामाजी आया
लाइन बनाके हाथ जोड़ के मुँह झुकाए
खड़े भांजे
मामाजी बोले आज दलित की चाय पियेंगे
बम्मन बनियों का बहुत खाया
चवन्नी लीटर दूध बच्चे को जो लेती थी
उससे चाय बनाई बिस्कुट मँगावाए
घूँट भर मामाजी ने चाय पी
बिस्कुट उन्हें पसंद न आए
बच्चा मेरा ख़ुश कि अब बिस्कुट खाएगा
मगर अफ़सरलोग बिस्कुट का कर गए सफाया
हमारे गाँव मामाजी आया।
(हमारे मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्रीजी को मामाजी बोलते है।)
उसने ईत्र दिया
मैं तेल समझी
बिगड़ गई साग
रूठ गया
जबलपुर शहर का रहने वाला
मेरा बोयफ़्रेंड
नया अफसर
पखाने गिनने को अफसर लगा है
रात दिन आंख रखता है लोटा-बोतल लेकर
फिरने वालों पर
कोई दिखे तो पंचायत में शिकवा लगाता है
सरपंच तो रूपया दो अफसर को पांच सौ
फिर मजे से जाओ खुल्लमखुल्ला महीना भर
नर्भदा बाई कहती है पखाने में उनको कब्जी हो गई
गंगवाल पंसारी कहता है खुले में जाने का मजा अलग है
पखाने में बू भराती है
मोनू और टुन्नी नए ब्याहे है
एकांत टेम संग दिसा-मैदान जाते है तो ही मिलता है
हमारे टोले में बात अलग है
भात-सब्जी टेम से जुट नहीं पाती
बच्चों को दस्त लगे रहते है
प्रधान जी जो आप गाँधी बाबा की न सुनते
जो आप आंबेडकर की सुनते
जो आप मार्क्स बाबा की सुनते
थाली में रोटी गिनने के पीछे लगाते अफसर
तब हम रोटी खाते तब हम चावल खाते
कई दिन गुजरे रोटी बेलने को हाथ तरसते है
कोदों खा खा
पेट ख़राब.
संविधान
औरत के बहुत अधिकार है
ऐसा अम्बेडकर जी संविधान नाम की पोथी में
लिख गए है
औरत के बहुत अधिकार है
१.औरत उसी टेम नंगी हो जाए जब उसका आदमी
कहे
२. आदमी अगर कहे तो औरत दूसरे आदमी के आगे मिनट भर में नंगी हो जाए
३. औरत जेठ के आगे देवर के आगे नंदोई के आगे
नेता के आगे अफ़सर के आगे मास्टर के आगे
डॉक्टर के आगे वक़ील में आगे पंसारी के आगे
पुलिस के आगे जज के आगे पंच के आगे पटवारी में आगे
नंगी हो जाए
४. औरत का अधिकार है कि वह अगर नंगी न होना चाहे तो
मर जाए
५. औरत हमेशा शरीर ढँकके रखे या बलात्कार करवाए
६. औरत का अधिकार है कि वह बलात्कार का मजा ले और पुलिस में न जाए
७. औरत को बलात्कार करवाने पर सरकार २५००० रुपए का ईमान देगी
८. औरत गाली खाए
९. औरत बंदरिया जैसी जब चाहे नाच दिखाए और भाड़ में जाए
१०. औरत तुलसी बाबा के भजन मंदिर में जाके गाए
अम्बेडकर की पोथी में यह सब लिखा है
सब अधिकार सरकार और समाज ने दिए है
ऐसा हम औरतों को अपनी आँख से दिखा है ।
पेटीकोट
नहीं उतारा मैंने अपना पेटीकोट
दरोगा ने बैठाये रखा
चार दिन चार रात
मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट
मेरी तीन साल की बच्ची अब तक मेरा दूध पीती थी
भूखी रही घर पर
मगर मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट
मेरी चौसठ साल की माँ ने दिया उस रात
अपना सूखा स्तन मेरी बिटिया के मुंह में
मगर मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट.
नक्सल कहकर बैठाया रखा चार दिन चार रात
बोला, 'बीड़ी लेकर आ'
बीड़ी का पूड़ा लेके आई
'चिकन लेके आ रंडी'
चिकन ले के आई
'दारू ला'
दारू लेके आई.
माफ़ करना मेरी क्रांतिकारी दोस्तों
मैं सब लाई जो जो दरोगा ने मंगाया
मेरी बिटिया भूखी थी घर पर
दरोगा ने माँगा फिर मेरा पेटीकोट
मैं उसके मुंह पर थूक आई
भागी, पीछे से मारी उसने गोली मेरी पिंडली पर
मगर मैंने उतारा नहीं अपना पेटीकोट।
पेटीकोट-२
आपने बताया है
आदिवासी औरत पेटीकोट नहीं पहनती
आदिवासी औरत पोल्का नहीं पहनती
एक चीर से ढँक लेती है शरीर
आप सर आप मेडम
आप सदियों से नहीं आए हमारे देस
आपने कहा बैठा नहीं सकता कोई दरोगा
किसीको चार दिन चार रात थाने पर
आप सर आजादी से पहले आए होगे
हमारे गाँव
वो आजादी जो आपके देश को मिली थी १९४७ में
आप नहीं आए हमारे जंगल
आपको नहीं पता पखाने न हो
तो हम औरतें नहीं छोड़ती अपने खसम
कि दो रोटी लाता है रात को एक टेम लाता है
पर लाता है लात मारता है पर रोटी लाता है
रोटी है तो दूध है
दूध है तो मेरा बच्चा
आप नहीं आए हमारे गाँव
नहीं तो पूछते क्यों औलाद से माया रखती है दोपदी
क्या करेगा तेरा बच्चा
भूखा दिन काटेगा जंगल जंगल भटकेगा और मरेगा
आप नहीं आए हमारे गाँव
नहीं तो बताती
ये जंगल बचाएगा ये जानवर बचाएगा
ये गोली खाएगा ये किसी आदिवासन को
लेकर भाग जाएगा
यहीं हमारी रीत है
आप नहीं आए हमारे गाँव
नहीं तो बताती कि जो लोग आते है आपकी तरफ से
उनकी निगाह बड़ी लम्बी है
आप एक चीर से शरीर ढाँकने की बात करते हो
हम पेटीकोट पोल्के में नंगे दिखते है
आप जरूर ही नहीं आए हमारे गाँव।
एनजीओ वाले लड़के के लिए
मैं तो आ गई आधी रात
भरी बरसात में तुझसे मिलने
जंगल इतना घना था कि केसों में
मेरे उलझे थे मेंढक
पैर में हरे हरे सांप
जब तक सब सेवा की
लाई पानी भर, रोटी बनाई, कपडे धोये
रात बिछ गई चादर बनके तेरी खाट के ऊपर
तूने रगड़ा मुझे तूने बापरा मुझे
फिर दातुन जैसी जब तार तार हो गई
तूने दी पांचसौ की बक्शीश
बोला, देखा है नोट पांचसौ का कभी तूने दोपदी'
जब बोल नहीं पाई
आज कविता में कहती हूँ
'मैंने देखा नहीं ऐसा आदमी भी कभी
हम जंगल के जीव
निभाते है मोह रखते है लाज.
मैं कौन हूँ
बकरी पटवारी के पास नहीं गईबकरी होने का सर्टिफ़िकेट लेने
गाय नहीं गई पटवारी के पास
गाय हूँ ऐसा सर्टिफ़िकेट लेने
भैंस नहीं गई
हिरनी नहीं गई
ऊँठनी नहीं गई
मोरनी नहीं गई
कुतिया नहीं गई
मगर हम जंगल की नार
कहा एक नारी ने
'कुतिया जा जाके
अपने आदिवासी होने का
सर्टिफ़िकेट ला
जा जाके औरत होने का सर्टिफ़िकेट ला'
बताओ ज्ञानी ध्यानी सभी पिरानी
कोई औरत होने का सर्टिफ़िकेट कैसे दे
जो पेटीकोट
दरोग़ा ने नहीं उतारा
वो कविता करने वाले
वो कविता पढ़ने वाले
वो कोमल मन के
जीवों ने कहा उतारो
और बताओ दुनिया को
कि तुम औरत हो
कि आदिवासी हो
कि कविता लिखती हो
कि तुम्हारे संग रेप हुआ है
कि तुम्हारी औलाद मरी है
कि तुम मजूर हो
कविलोग और पढ़नेवालों
सुन लो देके कान
मैं कुतिया हूँ
मैं कुतिया हूँ
मैं क्रीम नहीं लगाती
मैं काली कुतिया हूँ।
रेप
'तेरा रेप हुआया पचीस हजार को आई है'
बोला हँसा और बोला
'तेरा रेप कौन करेगा
सतयुग में दोपदिया पाँच खसम किए है
कलयुग पचास करेगी
तेरा रेप हुआ है
झूठी मक्कार
काला कालूटा बदन देख अपना
बासभरी बालभरी बगलें सूंघ अपनी
तू कहती है तेरा रेप हुआ है
कल बोलेगी बच्चा होगा
परसों बोलेगी मेरा है पंच का है सरपंच का
तेरा रेप हुआ है
हँसा बोला हँसा
'तू सनसनी फैलाने आई है
हमें डराने आई है
नेता बनने आई है
रूपैया बनाने आई है
अपने खसम का मुँह देख
बम्मन ने जो रेप किया दरबार ने रेप किया
तो तुझपे अहसान किया
तेरी सात पीढ़ी तारी है
तू कहती है तेरा रेप हुआ है'
कहा नहीं कुछ बस जरा आँख डबडबाई
मुँह ही मुँह बड़बड़ाई
'नहीं साब बच्चा नहीं होगा
अब बिदरोह होगा
आज लिख भी सकूँ न पूरा शब्द सही सही
एक दिन ऐसा आएगा
जब कोई किसी का हाथ खींचके
बलात्कार न करने पाएगा।
मिलना
मिलना मुझे पौने बारह बजे रातपाटीदार बाऊजी के पुआल ले पीछे
ले आऊँगी
बची हुई दाल
तुम रोटी ले आना
देखो देर मत करना
खतरा बहुत है
कल आ गए थे चार छह वर्दीवाले
तो कितनों की भूख मर गई
कितने बीमार हो गए
वो तो आए थे चिकन-दारू की पाल्टी मनाने
तुम साथ में कोई हथियार रखना हमेशा
और मुँह पर डालके आना कपड़ा
मैं टाँग दूँगी टिफन आगे
इशारे को, समझ के आ जाना पीछे
और कभी नहीं मिली तो घबराना मत न डरना
तमंचा दबने से गोली लगने के बीच
जो टेम है , वहीं है हमारी जिनगी
तुम रोना मत
मिलूँगी जरुर तुम्हें एक रोज
ढूँढना जरूर
मरने में मनख के देर नहीं लगती
मगर मिलूँगी जरुर तुम्हें
चाहे लाश बनके मिलूँ या मिलूँ फरार
आना ठीक पौने बारह बजे।
रात
कनस्तर में आधा किलो आटा थाफैला दिया
साब दो टेम की मेरी रोटी थी
आटे में बारूद छुपाई है
क्या कहते हो
बारूद आटे में नहीं हम
माथे में छुपाते है - लोहा हड्डियों में
हमें भी यह धरती प्यारी है
हमें भी धान प्यारा है
नरमदा हमारी भी मैया है
मटका लात मारी फोड़ दिया
तमंचा पानी में कौन छुपाता है
मंदिर के कुएँ से लाई
पंडितजी एक टेम ही भरने देते है
गोदड़ियाँ फाड़ दी रेडीओ फेंक दिया
जब कुछ न मिला तो
फोड़ दिया आदमी का सर
तूने खून छिपाया है तूने आग छिपायी है
तूने प्रेम तूने जीने की आस छुपाई है
तूने सरकार गिराने का पिलान छिपाया है
बहता रहा खून देर तक
उन्होंने पानी पिया उन्होंने हँसी उड़ाई
हमने लौकी अकेली उबाल में खाई
ऐसे रात बिताई।
१५ अगस्त
बासी भात खाके भागे भागे पहुँचेठेकेदार न इंजिनीर था
दो तीन और मजूर बीड़ी फूँक रहे थे
दो एक ताड़ी पीके मस्ताते थे
ठेकेदार बोला आज १५ अगस्त है
गांधी बाबा ने आजादी करवाई है आज
आज परब मनेगा आज त्योहार मनेगा
आज खुशी की छुट्टी होगी
आज काम न होगा
गाँठ में बँधा था सत्रह रूपैया
घर के भांडे खाली
'बाऊजी अदबांस दे दो कल की पगार
रोटी को हो जाए इतना दे दो
कुछ काम करा लो लाओ तुम्हारा पानी भर दूँ
लाओ तुम्हारा चिकन बना दूँ
लाओ रोटी सेंक दूँ'
डरते डरते बोली मैं तो वो बोला
'भाग छिनाल
रोज माँगने ठाढ़ी हो जाती है माथे पे
आजादी आज त्योहार है
खुशी की बात हो गई
ये मंगती भीख माँगने हमेशा आ जाती है
जा जाके त्योहार मना
गांधीबाबा ने आजादी जो करवाई है
उनको जाके पूज गँवार दारी'
सत्रह रुपए खरचके
मैंने आजादी का परब मनाया
सुना है दूर दिल्ली में नई लिस्ट आई है
सत्रह रूपैया जिनकी गाँठ है
उनको सेठ ठहराया है
सेठानी जी ओ दोपदी
तुमने सत्रह रुपए का आटा नोन लेके
गजब मनाई आजादी।
सरसती माई का भजन
माओ की मैया सरसुतियामार्क्स की दादी सरसुतिया
गांधी जी की परदादी है जी
ये अम्बेडकर की सुसरी सरसुतिया
पचास रूपैया की तस्वीर नहीं है
जीभ होके बैठ बिराजी मुँह में
लेनिन की अम्माँ सरसुतिया
बोलो क्या पहले अपने जबान थी
गूँगे सबकुछ सहते थे
पूछने को जीभ नहीं थी
मना किया बिन हाँ कहते थे
ये ज्ञान ये सकत हमारी
यहीं हमारी सरसुतिया है
इसके बल तुम बढ़े चलो
अड़ जाओ और लड़े चलो
सरसुतिया को तोप बना लो
सरसुतिया को बंदूक़ करो
कविताई हथियार करो तुम
बानी हमने ख़ूब जतन से पाई है
पंडितों से छीनी है और
ठकुरेती से उड़ाई है
सोच है सरसुतिया
सरकार की एड़ी में
दे देगी मोच है सरसुतिया
चिड़िया की चोंच है सरसुतिया।
डिलेबरी
दो दिन उलटी हुईतीसरे दिन ठंडी पड़ गई मेरी बिटियारानी
गोरमेंट का पईसा अब नहीं मिलेगा
गोरमेंट की साइकल अब नहीं मिलेगी
गोरमेंट की स्कूल की कमीज-मेक्सी अब नहीं मिलेगी
मर गई मेरी बिटियारानी
बिटिया मेरी अब डाक्टर नहीं बनेगी
पड़ गई ठंडी बिटियारानी
मटका भर के पानी लाई
पंसारी से लाई शक्कर नोन उधार
रेडियो में जो बतलाया था सब किया धरा
जब तक जाती जिला अस्पताल
ठंडी पड़ गई बिटियारानी
उसका झबला गोदड़े देके
मेरी माँ तपेला ले आई
अब किसका दूध गरम करेगी
अब किसका पानी उबालेगी
ठंडी पड़ गई मेरी बिटियारानी
इतने में वो बोली
तेरा दूसरा ब्याह कराऊँगी तुझे भगोरिया में ले जाऊँगी
सपनो को मत मरने दे दुनिया इतनी ठंडी है
तू मन को कर ले आँच
जा जाके अपने मार्क्स बाबा
जा जाके अपने अम्बेडकर बाबा की
पोथिया तू बाँच।
पीठ
तेरी पीठ भर बहुत थीघर बसाने को खाट डालने बर्तन जमाने को
हड्डी हड्डी पीठ थी तेरी
कभी लगता पंख निकलने को है
कंधे के थोड़ा नीचे मस्सा था एक
जब पीटता था तो तेरी पुतलियाँ
ऐसी कोमल पड़ जाती जैसे
गाभिन गौ के नैन
मगर ये मस्सा ऐसा डाकू दिखता था
जब तू पीटता था मुझे
दुनिया जहान की रीस सब मुझ पर उतारता
फिर उस दिन तू बोला जाएगा बाकीगुड़ा
नदी में डूबा नाले में डूबा कि तलाओ में डूबा
लौटा तो फूला था साँस का नाम नहीं था
तेरे पास तो पंख थे
तू तो तैरता था सौ गाँव में सबसे तेज
तू तो मछली था तू तो बाज था
पीठ तेरी देख नहीं पाई दोबारा
पीठ के बल लेटा रहा तू
और तुझे ले गए लोग
जिदवाड़े जो करती तो शायद दिखा देते एक बार
तुझे पलट के तेरी पीठ
मैं मरी रोती रही मैं मरी मरी नहीं।
भाबरा के जागे भाग
स्कूल बन्द रहे तीन दिन अस्पताल बंद रहेतीन दिन तीन रात
अंबुलेंस बिजी थी बसें बिजी थी
थाने की जीपगाड़ी बिजी
उचक्के बिजी थे नेता बिजी थे
सुना है प्रधानजी तीन खटोले में आए सवार
हमारे नंदोई ने बतलाया है
एक खटोला छोटा पड़ता है ५९ ऊंगल की छाती है
कीच दलदल नाला तैर कर
आ गए हजारों हजार तीन खटोले देखने
आजादी को बताया सत्तर साल हो गए
हमलोग तो जवानी में जाते है सिधार
सत्तर की गिनती नहीं आती
पाँचवी तक की शाला तीन साल पुरानी है
जिसमें मास्टर छह महीने से है फरार
सत्तर बिस्तरों का अस्तपताल तो नहीं है
मगर प्रधानजी आपकी दया से
सत्तर अंतिम संस्कारों का समान मिलने में
परचूनिया के यहाँ कमी नहीं पड़ती
प्रधानजी दाल एक बार न मिले
कफन की पोत आपकी दया से
मिलने में देर नहीं लगती
ड़ाकसाब मिलने में आधे प्रान निकल जाए
आपकी दया से दरोगा से मिलने में देर नहीं लगती
बुखार की गोली मिलने में अधेला कम पड़े
बंदूक की गोली मिलने में देर नहीं लगती
आपकी दया से, जलूस में जाने भर का काम है
आप आए हमारे जिले
प्रधानजी आपको हाथ जोड़ के बार बार परनाम।
मन की बात
प्रधानजी जब तब रेडियो पर बताते हो मन की बातकि मन लगाके पढ़ो आगे बढ़ो काला धन मत रखो
आप किससे बात करते हो प्रधान जी
सेठलोग रेडियो कहाँ सुनते
वो तो देखते है सेठानियों का नाच उनके घर टीवी है
और हमारे बच्चे नहीं करते परीक्षा का टेंसन
उन्हें पैदा होते ही पता होता है
कि उन्हें तो फेल होना है
हमारे यहाँ कोई आत्महत्या नहीं करता प्रधानजी
यहाँ हत्याएँ ही होती है
बता आते है आपको मामाजी कि सुसेड हो गई
प्रधानजी आपने बताया था कि सबको काले धन का
पंद्रह हजार रुपया दोगे
सेठों की पेटी गाँव देहात के हवाले करोगे
आप पुल बनवा दो आप उससे अस्पताल खुलता दो
आप स्कूल चला दो
बातों से बात नहीं बनती आप हमें बस पढ़ने लिखने लायक
हो जाए ऐसा मास्टर भिजवा दो
रूपिया तो हम जुटा लेंगे
धरती देगी जंगल देगा महुआ नीम करोन्दा देंगे
मामाजी से कहना
हमारी लाड़लियों को साइकल नहीं चाहिए
पैर चाहिए खड़े होने को
और अटल बिहारी सड़क जाती है
मसान, कच्चा मसान था गाँव में तो लोग
बरसात में सड़क को करते है मसान
बाकी साल उसपर भूत नाचते है
प्रधान जी हमारी मन की बात भी कभी सुनना
अकेले में जो चिंता करते हो इतनी देश की
उसमें गुनना।
आखिरी सलाम आखिरी कविता
कोई कविता आखिरी नहीं होती दोस्तोंजब तक पुकारते रहोगे तुम अपने प्रेमियों को
बची रहेगी मेरी कविता
तुम्हारे गले में नसों में
जब तुम्हें मिलेगी खबर कि तुम माँ बनने वाली हो
समझना दोपदी की कविता जिंदा हो गई
कोई सलाम आखिरी नहीं होता
बादल बनके आ जाऊँगी किसी रोज
गेहूँ की बाली में दाना बनके आऊँगी
लाश दिखे कभी कोई जवान
तो समझ लेना दोपदी जा रही है
मगर दुखी मत होना गुस्सा होना
कभी कोई खड़ा हो जाए अन्याय के खिलाफ
तो आँख की लाली परखना
दोपदी की कविता बहुत दूर नहीं जा पाएगी
रहेगी हमेशा तुम्हारे पास
और मरना मत और डरना मत
परेम करना जैसा मैंने किया
कि दे दी अपनी जान
सुना है दोपदी के नाम का वारंट निकला है
सुना है दोपदी को
१५ अगस्त पर आजादी दे दी जाएगी।
10 Aug 12:09 pm
फटफटी चलाने का सपना
शर्माती थी पहले कहतेअब नहीं शर्माऊँगी, अपना सपना बताते
क्या शरम
फटफटी दौड़ाने का सपना है मेरा
मेड़ मेड़ दौड़ाऊँगी
किसी का खेत नहीं उजाड़ूँगी
जैसे उजाड़ती है सरकार
किसी का सर नहीं फोड़ूँगी
जैसे फोड़ते है सेठों के लाल
मोनु बोला मम्मी तू पागल है
विधायक मंत्री लोग हवाई जहाज में आते जाते है
तू फटफटिया दौड़ाने का सपना सजाती है
दुनिया किधर से कहाँ पहुँच गई
तुम चलाते थे फटफटी माँग माँग के
साइकल से भी धीमी, माथा फटने से भय खाते थे
फिर कैसे कर दिया माथा अपना
फोड़ो फोड़ो, अब माथा फोड़के
सपना तोड़ न पाओगे
मोनु मरना और मारना
लेकिन डरना मत
लड़ना, लड़ते रहना और तू डरना मत
सपने को मत मरने देना
उनको मर्डर करने देना
पर तू मरना मत
जब वारंट निकलेगा
हम फटफटी पर भाग जाएँगे
मगर फटफटी कहाँ से लाएँगे
आओ आओ सपना देखे
कि खरचा इस पर न धेला न सिक्का
बस अपनी गर्दन कटवाना है
सरकारों की कालर पकड़के
अपने सपने पूरे करवाना है।
Poems from facebook wall of Dopadi Singhar
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9 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंदर्द की मिटटी से लेप कर लिखी गए कवितायेँ
जवाब देंहटाएंसभी बेहतरीन
बहुत खुब ! नै सोच नए दर्शन से सामना हुआ | बेबाक बिंदास नारी मन के दर्द सपनों का अदभुत शब्दांकन . द्रोपदी बहुत शुभकामनायें --------रेणु
जवाब देंहटाएंदो टूक शब्दों में व्यवस्था पर लात मारती दोपदी सिंघार जी कवितायेँ 'करनी और कथनी' के भेद को सबके सामने जस का तस बयाँ कर अंतर्मन को झकझोरती हैं कि क्या यही हमारा विकास है, उत्थान है, सभ्यता है, स्वतंत्र होने का अभिप्राय है .....
जवाब देंहटाएंदोपदी जी को साहसिक, प्रेरक कवितायों के लिए हार्दिक बधाई ..
इतनी मार्मिक और हृदय को छूने वाली कविताएं एक अरसे से नहीं पढ़ी। हिन्दी में थे कवि मित्र कुमार विकल और पंजाबी में पाश । ये कविताएं उनके आगे की कविताएं हैं । दोपदी को किन शब्दों में बधाई दूँ। उसका संघर्ष विजयी हो ।
जवाब देंहटाएंमैंने नहीं उतारा कफ़न
जवाब देंहटाएंजब वापस लाये उसे , तो एक बक्से में बंद था ।
मैं जोर से चिल्लाई
अरे खोलो ये बक्सा , उसका दम घुट जाएगा ।
उन्होंने खोल दिया बक्सा
तिरंगे में लिपटा था ।
मैंने कहा , एक बार शक्ल तो दिखा दो
IED ब्लास्ट में शहीद हुआ है
शहीदों की अंतड़ियां निकल के छितरा जाती हैं
चेहरे पे सिर्फ हड्डियां दीखती हैं ,
और मांस के लोथड़े
शहीदों के चेहरे नहीं दिखाए जाते उनकी बेवाओं को
वो तिरंगे में लिपटे हुए पति को
सिर्फ छू लिया करती हैं
आखिरी बार
मैंने नहीं उतारा वो कफ़न
सिर्फ छू भर लिया आखिरी बार ।
जरूर पढ़िऐ आदरणीया अंजली जी की यह शानदार रचना :-
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मैंने नहीं बनाई रोटियाँ
भूख से तड़पती
रही बूढी सास
बिलबिलाता रहा पति का बाप
पर मैंने नहीं बनाई रोटियाँ
क्योंकि मुझे तो
करनी थी क्रांति
मुझे तो सुधारना था समाज
भूख से तड़प के सो गए
पति के बच्चे
मैंने नहीं बनाई रोटियाँ
क्योंकि मैं तो
विराट व्यक्तित्व थी
व्यक्तिगत स्वार्थों में
नहीं पड़ना था
मुझे चलाने थे NGO
मुझे वृद्धाश्रम जाना था
झंडा बैनर पकड़
हाय-हाय चिल्लाना था
वक़्त कहाँ था मेरे पास
मैंने नहीं बनाई रोटियाँ
हाथ का मेनिक्योर
नेल पेंट उतरने का लफड़ा था
भारत की संस्कृति से भी जुड़ने का खतरा था
गवार कहे जाने का
था अहसास
पति ने कहा
हे औरत बना दे रोटियाँ
नारी विरोधी
संघी कह मैंने झटक दिए हाथ
मैंने नहीं बनाई रोटियां
तड़प के बेउम्र मर गई सास
मैंने नहीं बनाई रोटियां
अंजलि सखी की वाल से-
गुरुदेव Trilochan Nath Tiwari जी व आदरणीय दद्दा Ajit पहलवान भाऊ को समर्पित :-) _/|\_ :-)
दोपदी जड़ भी तुम्हारी कवियायें पढ़ती हूँ , बार बार पढ़ती हूँ दिल में कुछ पिघल सा जाता है , इतना दर्द इतनी वाक् पटुता कहाँ से ली ? भगवान तुम्हारा ये हुनर , सवेदन शीलता बनाये रखे
जवाब देंहटाएंThis poetry blasted the mind. as she blasted the ugly system in her poem.
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