देश बदला हो या नहीं मेरा पत्रकार जरूर... — अभिसार Abhisar Sharma on Indian Media


मीडिया मे खबर चलने के बाद कि रूस अब पाकिस्तान युद्ध अभ्यास के लिए नहीं जाएगा, न सिर्फ रूस गया, बल्कि 1947 के बाद पहली बार... और उरी हमलों के ठीक बाद भी गया। क्या ये भारत के लिए कूटनीतिक झटका नहीं था ? मनमोहन सरकार के दौरान जरूर होता , ये मैं दावे के साथ कह सकता हूं — अभिसार 

cartoon courtesy timesofindia.indiatimes.com


मित्रो मेरा "पत्रकार" बदल रहा है

— अभिसार 


तो एक चैनल ने घोषित कर दिया है कि आगे से पाकिस्तान नहीं ... “आतंकी देश पाकिस्तान” कहेंगे। गजब है। ये जज्बा 26-11 के वक्त नदारद था। लगता है सत्ता पर आसीन सरकार पर निर्भर करता है कि आपमें कब और कितनी देशभक्ति की भावना जागेगी। एक दद्दा हैं हमारी बिरादरी के जो कहते हैं कि पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने की मुहिम मे न सिर्फ दस्तखत करेंगे बल्कि इसका प्रसार भी करेंगे। जे बात। थरथरा उठेगा पापी पाकिस्तान। मार कसके ज़रा। अब जरा थोड़ा रिवाइंड (REWIND) करते हैं। मोदीजी के ऐतिहासिक भाषण से पहले। वहीं भाषण जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के साथ गरीबी भगाने के लिए ओलम्पिक खेलने की अपील की थी। हाँ हाँ, वही भाषण जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी जनता से “मन की बात” करने की सार्थक कोशिश की थी। कायल हो गया था मैं उस भाषण का। सच्ची। GOD PROMISE की सौगंध। अब जरा गौर कीजिए उस वक्त टीवी पर चल रही बहस पर…

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“पाकिस्तान पर चढ़ाई कर देंगे। हमला बोलो पाक के कब्जे वाले कश्मीर पर। पाकिस्तान की औकात नहीं कि हमपर परमाणु हमला कर सके।” और तो और महान बीजेपी के नेता और राज्यसभा से सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने तो ये भी आश्वासन दे दिया कि कोई बात नहीं अगर पाकिस्तान अगर परमाणु हमला भी कर दे , तब भी ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 10 करोड़ भारतीय मारे जाएंगे। पाकिस्तान तो पूरा खलास हो जाएगा। वाकई कितनी राहत की सांस ली होगी आपने... सिर्फ 10 करोड़! देश की जनसंख्या के त्वरित समाधान की भी एक झलक थी हरफनमौला स्वामी जी के बयान मे। हां तो मैं क्या कह रहा था ? टीवी पर बक्शी-नुमा विशेषज्ञ के आक्रोश और हाव भाव को देख कर तो लग रहा था कि बस नथुनों से अब निकला के तब निकला मिसाइल और हाफिज़ सईद का कचरा पेटी साफ। भारत माता की जय। ये सब था मोदीजी के उस ऐतिहासिक भाषण से पहले। मगर फिर क्या हुआ। अचानक तेवर बदल गए। अब बात होने लगी पाकिस्तान को अलग-थलग करने की। ये बात अलग है कि मीडिया मे खबर चलने के बाद कि रूस अब पाकिस्तान युद्ध अभ्यास के लिए नहीं जाएगा, न सिर्फ रूस गया, बल्कि 1947 के बाद पहली बार... और उरी हमलों के ठीक बाद भी गया। क्या ये भारत के लिए कूटनीतिक झटका नहीं था ? मनमोहन सरकार के दौरान जरूर होता , ये मैं दावे के साथ कह सकता हूं।




अब कोई पाकिस्तान मे चढ़ाई की बात नहीं कर रहा था। अब पाकिस्तान को घेरने की बात हो रही थी। न्यूज चैनल मान चुके थे कि युद्ध समाधान नहीं। हमले के अगले दिन एक खबर आई कि दस आतंकवादियों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया। न किसी की लाश दिखी और न सेना ने आधिकारिक पुष्टि की। मगर मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी हो चुकी थी। फिर एक और खबर अवतरित हुई कि भारतीय स्पेशल फोर्स ने पाकिस्तान मे घुस कर 20 आतंकियों को मार दिया। एक बार फिर हवाबाज़ी। इस बार सेना ने फिर मना किया। यानी कि “इस बार जमकर प्रौपगैंडा करेंगे यार”। ये क्या हो रहा था। क्या ऐसी खबरों का प्रचार इत्तफाक था , क्या कोई पतंगबाज़ी कर रहा था ? और बड़ा सवाल ये कि ये पतंगबाज़ी कौन कर रहा था ? ये कौन चित्रकार है... ये कौन चित्रकार...

विदेश मंत्री का यूएन मे भाषण सुनने के बाद अंदाज़ा हुआ कि ये भाषण इतना असरदार क्यों था। न सिर्फ इसलिए क्योंकि सुषमाजी एक काबिल मंत्री हैं बल्कि विश्वसनीयता के पैमाने पर वो कितनी पुख्ता हैं। मगर बावजूद इसके, विपक्ष को हक है उनके भाषण की आलोचना करने का। जहां कांग्रेस ने इसे नाकाफी बताया, आम आदमी पार्टी ने इसकी तारीफ की। अजीब तब लगा जब कुछ पत्रकारों ने विपक्ष को इस आलोचना के लिए आड़े हाथों लिया। दो ही दिन पहले एक चैनल पर ये बहस चल रही थी कि क्या उरी मुद्दे पर सियासत होनी चाहिए ? यहां तक कि कश्मीर मे बीजेपी की सहयोगी पीडीपी के सांसद के बुरहान वानी के महिमा मंडन पर कांग्रेस के सवाल उठाए जाने को चिल्ला कर दबा दिया गया। मैंने गौर किया कि देशभक्त पत्रकारों का भी बुरहान वानी पर खून, कुछ शर्तों के साथ खौलता है। अब अगर विपक्ष बीजेपी के दोहरे मापदंड पर सवाल उठा रही है तो वो उरी पर सैनिकों की शहादत की तौहीन कर रही है? यानी कि राष्ट्रवाद, मगर शर्तों के साथ।

यानी चाचा जो कहेंगे, मैं वही करूंगा...

ये बात अलग है कि मई 2014 से पहले विपक्ष आतंकी घटना पर सियासत भी करती थी, वो लव लेटर न लिखने की नसीहत भी देती थी, वो पाकिस्तान मे घुस जाने की बात भी करती थी। मगर हमने सही नही समझा कि पुराने वादे याद दिलाये जाएं। खैर कोई बात नहीं , ये बात कोई भी समझ सकता है कि विपक्ष मे रहने और सत्ता का दायित्व निभाने मे फर्क है। मगर एक बात जरूर है ...

मित्रो, मेरा देश बदला हो या न हो...मेरा पत्रकार जरूर बदल रहा है ...


Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.
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1 टिप्पणियाँ

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-09-2016) के चर्चा मंच "उत्तराखण्ड की महिमा" (चर्चा अंक-2481) पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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