पति को उसके माँ बाप से दूर किये जाने में पत्नी की भूमिका दुखद रही है...सुप्रीम कोर्ट ने इस मूद्दे पर कहा है कि ऐसा किया जाना क्रूरता है और इस बिनाह पर तलाक़ लिया जा सकता है...सुजाता मिश्रा निडर हो के, सोशल मीडिया पर वह बातें कह रही हैं, जिन पर - आज के माहौल में - क्या स्त्री और क्या पुरुष दोनों ही कुछ कहने से क़तराते नज़र आते हैं... न्यायालय के इस फैसले पर सुजाता की यह छोटी टिप्पणी स्त्रीविमर्श को भी कटघरे में खड़ा करती है...पढ़िए अवश्य
भरत तिवारी
स्त्री विमर्श, स्त्री मुक्ति की जो बयार हमारे यहाँ चली उमसे स्त्री का पर्याय सिर्फ एक उम्र विशेष की महिलाओं को माना गया। जिसमें एक औरत को एक बेटी, बहु, मित्र या स्वच्छन्द स्त्री के रूप में देखा-दिखाया गया। इस स्त्री विमर्श में 50 पार की महिलाओं का कोई चिंतन ही नही है एक सास भी औरत होती है...उसके अधिकार, उसकी जरूरतों किसी पर हमारे कथित स्त्री विमर्श में कोई चर्चा नही दिखती। औरत की आज़ादी का मतलब वो यदि शादी भी करें तो उसे आज़ादी चाहिए, और उसकी इस आज़ादी का पर्याय होता है पति के परिवार से मुक्ति, अपने खुद के परिवार से मुक्ति नही। पिछले कई वर्षों में ऐसे हज़ारों मामले हुए जहाँ विवाह के बाद पत्नी (अरेंज विवाह हो या प्रेम विवाह) छोटी-छोटी बातों में पति के परिजनों को झूठे आरोपों में कोर्ट घसीट ले जाती हैं, उनका मुख्य मकसद रहता है येन-केन-प्रकारेण पति के परिजनों को अलग-थलग करना, ताकि वो पति की संपत्ति का अकेले उपभोग करे, इस दौरान ये स्त्रियां पति के माता-पिता से अपने हिस्से की प्रॉपर्टी, जेवर आदि भी हथिया लेती हैं, और उसके बाद उनको बिल्कुल बेकार-फालतू समझ उनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश में लग जाती है। जैसा सम्बंधित मामले में हुआ, ये स्त्रियां अपनी बात न मानने पर पति को बार-बार आत्महत्या की धमकी देती हैं (अब इस तरह की धमकी भी अपराध की श्रेणी में शामिल हो गयी है), कोर्ट में घसीट झूठे मुकदमों में फँसा देने की धमकी देती है ( जिसके चलते कुछ समय पूर्व दहेज़ कानून में भी परिवर्तन किया गया) । महिलाओं में ये असंवेदनशीलता, स्वार्थ, सिर्फ मैं की ये भावना एकाएक नही आयी, इसे धीरे-धीरे उनके मन-मस्तिष्क में बिठाया गया है। अगर आप इतनी आज़ादी पसन्द है तो विवाह ही मत कीजिये? नही, ये महिलाएं विवाह करती हैं और उसके बाद ये मान लेती है ये इनके पति की जिम्मेवारी है कि वो उनकी हर ज़ायज़-नाज़ायज़ मांग पूरी करें, मने पति न हुआ सांता क्लॉज़ हो गया। हकीकत ये है कि आज पत्नी प्रताड़ना से ज्यादा मामले पति प्रताड़ना के है जो सामने ही नही आते, क्योंकि हमारी सामाजिक संरचना में यदि कोई पुरुष खुलकर यह स्वीकारे की उसकी पत्नी उसे प्रताड़ित करती है तो ये समाज ही उसका मख़ौल बनायेगा, अव्वल तो कोई मानेगा ही नही, और जो मानेंगे वो उसकी मर्दानगी पर ही सवाल उठा देंगे...लेकिन ये सच है कि (कम से कम शहरी मामलों में) आज पति कहीं ज्यादा सहनशील हैं, जिम्मेवार है, सहयोगी है...जबकि पत्नियाँ विवाह से पूर्व जितना नाटक करती है व्रत, उपवास, पूजा और अच्छी बहु बनने का एक बार विवाह हो जाने के बाद बिलकुल बदल जाती है...और जो स्त्रियां पहले लड़कों पर विवाह का दबाव बनाती है वही लड़कियां विवाह के बाद अपनी आज़ादी का रोना रोने लगती है, और अंततः रो-धोकर पतियों को आत्मग्लानि से भर देती है कि 'तुमने मेरे लिए कुछ नही किया, मैं इस शादी से बर्बाद हो गयी, मेरा कैरियर, मेरी लाइफ सब बर्बाद हो गया। ' ऐसे में जो जाहिल पति होते है वो पत्नियों की पिटाई कर देते है जो बेहद गलत है, अमानवीय है। लेकिन जो भावुक, समझदार पति होते है वो कहीं न कहीं ये मान लेते है कि मैंने इस बेचारी के साथ बहुत गलत किया, और फिर पूरी ज़िन्दगी वो अपनी पत्नी की हर बात, हर ख्वाहिश पूरी करते हुए ये जताने की कोशिश करते है कि तुम्हारे साथ जो बुरा हुआ मैं उसकी भरपाई करूँगा, लेकिन ऐसे में अधिकांश पत्नियाँ और उनके परिजन पति को कमजोर समझ लेते हैं, और दबाव डालकर उसे उसके परिवार से अलग कर देते है। लड़के भी पत्नी प्रेम में मुग्ध हो बुढ़ापे में अपने माता-पिता को छोड़ अपनी दुनिया अलग बसा लेते हैं, और इस पूरी प्रक्रिया में लड़की को कहीं, किसी प्रकार की ग्लानि नही होती। क्योंकि वो इसे अपना अधिकार मानती है, क्योंकि यही प्रकारांतर से हमारे समाज में प्रचारित किया जाता है। लेकिन मैंने अपने जीवन में जो कुछ देखा-समझा वो ये है कि जो लड़के जवानी में अपनी पत्नी की खातिर अपने माता-पिता से दूरी बना लेते है, चुपचाप उनका अपमान होते देखते रहते हैं उन्हें खुद उम्र के एक पड़ाव पर आत्मग्लानि होती है...और ऐसा अक्सर तब होता है जब पति के माता-पिता इस दुनिया से ही जा चुके हो...ऐसे में उन लड़कों को मन ही मन ये महसूस होता है कि मैंने उनके साथ गलत किया, क्योंकि अब वो खुद उम्र के उसी पड़ाव पर होता है, वो देखता है कि उसका कोई अपना उसके साथ नही, भाई, बहन, रिश्तेदार...हालांकि इस दौरान पत्नी अपने मायके के सभी रिश्तों को बचा के चलती है, उसके साथ सब होते है...और तब 25-30 साल पुराने वैवाहिक जीवन में भी कड़वाहट आ जाती है, घर-परिवार में सबकुछ होते हुए भी पति-पत्नी अक्सर उखड़े हुए रहते है या पति-पत्नी अलग हो जाते है, जैसा सम्बंधित मामले में हुआ, 24 साल की शादी तलाक में बदल गयी।
यहाँ मैं सिर्फ लड़कियों को गलत नही मानती, मुझे लगता है जब तक कोई लड़का खुद अपने परिजनों के प्रति सकारात्मक हो, उनको महत्व देता हो...उसकी पत्नी कभी चाह कर भी उसके परिजनों से बद्तमीज़ी कर ही नही सकती, प्रेम कीजिये, शादी कीजिये पर पुराने रिश्तों की शहादत पर नही, तब भी नही जब आपके परिजनों ने आपके विवाह का समर्थन न किया हो...दूरी बेशक हो जाए पर कड़वाहट नही होनी चाहिए। क्योंकि सच यही है कि आपको जन्म देने, पालने, पोसने, पढ़ाने, लिखाने और आत्मनिर्भर बनने की पूरी प्रक्रिया में सिर्फ और सिर्फ आपके परिजनों की भूमिका होती है, अपनी कई जरूरतों को मार कर वो आपको बनाते है, पत्नी या प्रेमिका आपको तब मिलती है जब आप इस लायक हो जाते है कि कोई पसंद करे आपको...हालांकि आगे के संघर्षों में पत्नी और प्रेमिका की भी भूमिका होती है, पर अंततः आधार तो माता-पिता द्वारा दी गयी परवरिश ही होती है...यदि ये छोटी-छोटी बातें पति-पत्नी दोनों समझे तो कभी कोर्ट जाने की नौबत ही न आये...विवाह एक बन्धन है, उसमे आज़ादी की कल्पना ही बेईमानी है। विवाह का अर्थ ही है एक व्यक्ति के साथ समर्पण, निष्ठा, जिम्मेवारी और त्याग का जीवन जीना। जिसमे कई बार खुद को पीछे रख परिवार को आगे रखना होता है, क्योंकि परिवार आपसे अलग नही है, बल्कि परिवार है ही आपसे...यदि आप ऐसे रिश्ते के लिए तैयार नही हो तो बेहतर है विवाह ही न करे...अपने निजी स्वार्थों के चलते किसी के खिलखिलाते परिवार को प्रताड़ित करने का आपको कोई हक नही है...स्त्री बाद में बनियेगा...पहले एक मनुष्य बनिये...
भरत तिवारी
हमारी सामाजिक संरचना में यदि कोई पुरुष खुलकर यह स्वीकारे की उसकी पत्नी उसे प्रताड़ित करती है तो ये समाज ही उसका मख़ौल बनायेगा
पति न हुआ सांता क्लॉज़ हो गया
— डॉ सुजाता मिश्रा
कल सुप्रीम कोर्ट ने एक अति महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला लिया 'पत्नी यदि पति को उसके परिजनों, परिवार से अलग रहने के लिए मजबूर करें तो यह क्रूरता माना जायेगी और इसके आधार पर पति अपनी पत्नी से तलाक ले सकता है। ' यह महज़ एक आम कानूनी फैसला नही है बल्कि हमारे बदले हुए समाज की कड़वी हकीकत है।स्त्री विमर्श, स्त्री मुक्ति की जो बयार हमारे यहाँ चली उमसे स्त्री का पर्याय सिर्फ एक उम्र विशेष की महिलाओं को माना गया। जिसमें एक औरत को एक बेटी, बहु, मित्र या स्वच्छन्द स्त्री के रूप में देखा-दिखाया गया। इस स्त्री विमर्श में 50 पार की महिलाओं का कोई चिंतन ही नही है एक सास भी औरत होती है...उसके अधिकार, उसकी जरूरतों किसी पर हमारे कथित स्त्री विमर्श में कोई चर्चा नही दिखती। औरत की आज़ादी का मतलब वो यदि शादी भी करें तो उसे आज़ादी चाहिए, और उसकी इस आज़ादी का पर्याय होता है पति के परिवार से मुक्ति, अपने खुद के परिवार से मुक्ति नही। पिछले कई वर्षों में ऐसे हज़ारों मामले हुए जहाँ विवाह के बाद पत्नी (अरेंज विवाह हो या प्रेम विवाह) छोटी-छोटी बातों में पति के परिजनों को झूठे आरोपों में कोर्ट घसीट ले जाती हैं, उनका मुख्य मकसद रहता है येन-केन-प्रकारेण पति के परिजनों को अलग-थलग करना, ताकि वो पति की संपत्ति का अकेले उपभोग करे, इस दौरान ये स्त्रियां पति के माता-पिता से अपने हिस्से की प्रॉपर्टी, जेवर आदि भी हथिया लेती हैं, और उसके बाद उनको बिल्कुल बेकार-फालतू समझ उनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश में लग जाती है। जैसा सम्बंधित मामले में हुआ, ये स्त्रियां अपनी बात न मानने पर पति को बार-बार आत्महत्या की धमकी देती हैं (अब इस तरह की धमकी भी अपराध की श्रेणी में शामिल हो गयी है), कोर्ट में घसीट झूठे मुकदमों में फँसा देने की धमकी देती है ( जिसके चलते कुछ समय पूर्व दहेज़ कानून में भी परिवर्तन किया गया) । महिलाओं में ये असंवेदनशीलता, स्वार्थ, सिर्फ मैं की ये भावना एकाएक नही आयी, इसे धीरे-धीरे उनके मन-मस्तिष्क में बिठाया गया है। अगर आप इतनी आज़ादी पसन्द है तो विवाह ही मत कीजिये? नही, ये महिलाएं विवाह करती हैं और उसके बाद ये मान लेती है ये इनके पति की जिम्मेवारी है कि वो उनकी हर ज़ायज़-नाज़ायज़ मांग पूरी करें, मने पति न हुआ सांता क्लॉज़ हो गया। हकीकत ये है कि आज पत्नी प्रताड़ना से ज्यादा मामले पति प्रताड़ना के है जो सामने ही नही आते, क्योंकि हमारी सामाजिक संरचना में यदि कोई पुरुष खुलकर यह स्वीकारे की उसकी पत्नी उसे प्रताड़ित करती है तो ये समाज ही उसका मख़ौल बनायेगा, अव्वल तो कोई मानेगा ही नही, और जो मानेंगे वो उसकी मर्दानगी पर ही सवाल उठा देंगे...लेकिन ये सच है कि (कम से कम शहरी मामलों में) आज पति कहीं ज्यादा सहनशील हैं, जिम्मेवार है, सहयोगी है...जबकि पत्नियाँ विवाह से पूर्व जितना नाटक करती है व्रत, उपवास, पूजा और अच्छी बहु बनने का एक बार विवाह हो जाने के बाद बिलकुल बदल जाती है...और जो स्त्रियां पहले लड़कों पर विवाह का दबाव बनाती है वही लड़कियां विवाह के बाद अपनी आज़ादी का रोना रोने लगती है, और अंततः रो-धोकर पतियों को आत्मग्लानि से भर देती है कि 'तुमने मेरे लिए कुछ नही किया, मैं इस शादी से बर्बाद हो गयी, मेरा कैरियर, मेरी लाइफ सब बर्बाद हो गया। ' ऐसे में जो जाहिल पति होते है वो पत्नियों की पिटाई कर देते है जो बेहद गलत है, अमानवीय है। लेकिन जो भावुक, समझदार पति होते है वो कहीं न कहीं ये मान लेते है कि मैंने इस बेचारी के साथ बहुत गलत किया, और फिर पूरी ज़िन्दगी वो अपनी पत्नी की हर बात, हर ख्वाहिश पूरी करते हुए ये जताने की कोशिश करते है कि तुम्हारे साथ जो बुरा हुआ मैं उसकी भरपाई करूँगा, लेकिन ऐसे में अधिकांश पत्नियाँ और उनके परिजन पति को कमजोर समझ लेते हैं, और दबाव डालकर उसे उसके परिवार से अलग कर देते है। लड़के भी पत्नी प्रेम में मुग्ध हो बुढ़ापे में अपने माता-पिता को छोड़ अपनी दुनिया अलग बसा लेते हैं, और इस पूरी प्रक्रिया में लड़की को कहीं, किसी प्रकार की ग्लानि नही होती। क्योंकि वो इसे अपना अधिकार मानती है, क्योंकि यही प्रकारांतर से हमारे समाज में प्रचारित किया जाता है। लेकिन मैंने अपने जीवन में जो कुछ देखा-समझा वो ये है कि जो लड़के जवानी में अपनी पत्नी की खातिर अपने माता-पिता से दूरी बना लेते है, चुपचाप उनका अपमान होते देखते रहते हैं उन्हें खुद उम्र के एक पड़ाव पर आत्मग्लानि होती है...और ऐसा अक्सर तब होता है जब पति के माता-पिता इस दुनिया से ही जा चुके हो...ऐसे में उन लड़कों को मन ही मन ये महसूस होता है कि मैंने उनके साथ गलत किया, क्योंकि अब वो खुद उम्र के उसी पड़ाव पर होता है, वो देखता है कि उसका कोई अपना उसके साथ नही, भाई, बहन, रिश्तेदार...हालांकि इस दौरान पत्नी अपने मायके के सभी रिश्तों को बचा के चलती है, उसके साथ सब होते है...और तब 25-30 साल पुराने वैवाहिक जीवन में भी कड़वाहट आ जाती है, घर-परिवार में सबकुछ होते हुए भी पति-पत्नी अक्सर उखड़े हुए रहते है या पति-पत्नी अलग हो जाते है, जैसा सम्बंधित मामले में हुआ, 24 साल की शादी तलाक में बदल गयी।
यहाँ मैं सिर्फ लड़कियों को गलत नही मानती, मुझे लगता है जब तक कोई लड़का खुद अपने परिजनों के प्रति सकारात्मक हो, उनको महत्व देता हो...उसकी पत्नी कभी चाह कर भी उसके परिजनों से बद्तमीज़ी कर ही नही सकती, प्रेम कीजिये, शादी कीजिये पर पुराने रिश्तों की शहादत पर नही, तब भी नही जब आपके परिजनों ने आपके विवाह का समर्थन न किया हो...दूरी बेशक हो जाए पर कड़वाहट नही होनी चाहिए। क्योंकि सच यही है कि आपको जन्म देने, पालने, पोसने, पढ़ाने, लिखाने और आत्मनिर्भर बनने की पूरी प्रक्रिया में सिर्फ और सिर्फ आपके परिजनों की भूमिका होती है, अपनी कई जरूरतों को मार कर वो आपको बनाते है, पत्नी या प्रेमिका आपको तब मिलती है जब आप इस लायक हो जाते है कि कोई पसंद करे आपको...हालांकि आगे के संघर्षों में पत्नी और प्रेमिका की भी भूमिका होती है, पर अंततः आधार तो माता-पिता द्वारा दी गयी परवरिश ही होती है...यदि ये छोटी-छोटी बातें पति-पत्नी दोनों समझे तो कभी कोर्ट जाने की नौबत ही न आये...विवाह एक बन्धन है, उसमे आज़ादी की कल्पना ही बेईमानी है। विवाह का अर्थ ही है एक व्यक्ति के साथ समर्पण, निष्ठा, जिम्मेवारी और त्याग का जीवन जीना। जिसमे कई बार खुद को पीछे रख परिवार को आगे रखना होता है, क्योंकि परिवार आपसे अलग नही है, बल्कि परिवार है ही आपसे...यदि आप ऐसे रिश्ते के लिए तैयार नही हो तो बेहतर है विवाह ही न करे...अपने निजी स्वार्थों के चलते किसी के खिलखिलाते परिवार को प्रताड़ित करने का आपको कोई हक नही है...स्त्री बाद में बनियेगा...पहले एक मनुष्य बनिये...
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